फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम शेखचिल्ली की कहानी “शेखचिल्ली और सात परियाँ” (Shekh Chilli Aur Pari Ki Kahani) शेयर कर रहे हैं. नौकरी की तलाश में दूसरे गाँव जाते शेख चिल्ली की मुलाक़ात सात परियों से हो जाती है. वे उसे जादुई घड़ा देती हैं, जिससे शेख चिल्ली और उसकी माँ खूब दौलत मांगते हैं. क्या मूर्ख शेख चिल्ली जादुई घड़े की बात गाँव वालों छुपा पाता है? जानने के लिए पढ़िये शेख चिल्ली का ये किस्सा :
Shekh Chilli Aur Pari Ki Kahani
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पढ़े शेखचिल्ली की संपूर्ण कहानियाँ
शेखचिल्ली एक गरीब शेख परिवार से ताल्लुक रखता था. पढ़ाई-लिखाई में कमज़ोर था. ध्यान बस खेल-कूद में रमता था. मोहल्ले के लड़कों के साथ कंचे खेलने में उसने अपना पूरा बचपन बिता दिया. जवान हुआ, तब भी कंचों से पीछा ना छूटा.
माँ उसकी इस आदत से परेशान थी. वह चाहती थी कि उसका बेटा कुछ काम-धंधा करे. एक दिन वह उसे बुलाकर फटकारने लगी, “ये क्या दिन भर मोहल्ले के आवारा लड़कों के साथ कंचे खेलता रहता है. हट्टा-कट्ठा जवान हो गया है. कुछ कमा-धमा कर ला. कब तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ेगा?”
शेख चिल्ली क्या करता? माँ की बात मानकर अगले दिन काम की तलाश में दूसरे गाँव की ओर निकल पड़ा. रास्ते में खाने के लिए माँ ने उसे सात रोटियाँ दीं.
आधा रास्ता तय करने के बाद शेख चिल्ली को भूख लग आई. एक कुएं के पास वह रोटी खाने बैठ गया. माँ की दी सात रोटियों को देख वह कहने लगा, “एक खाऊं..दो खाऊं…तीन खाऊं कि सातों को खा लूं.”
उस कुएं में सात परियाँ रहती थीं. यह बात सुनकर उन्हें लगा कि शेख चिल्ली उन्हें ही खाने की बात कर रहा है. वे डर गईं और कुएं से बाहर आकर शेख चिल्ली से प्रार्थना करने लगी, “हमें मत खाओ. इसके बदले हम तुम्हें एक जादुई घड़ा देती हैं. इससे तुम जो भी मांगोगे, तुम्हें वह मिलेगा.”
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शेख चिल्ली ने वह जादुई घड़ा ले लिया और अपने घर वापस आ गया. माँ को घड़ा देकर उसने उसे सात परियों की बात बता दी. माँ ने घड़े का परीक्षण करते हुए उससे ढेर सारे पकवान मांगे. देखते ही देखते उनके सामने थालियों में एक से बढ़कर एक पकवान सज गए. दोनों ने उस रात छककर दावत उड़ाई.
फिर शेख चिल्ली की माँ ने जादुई घड़े से खूब दौलत मांगी. उस दौलत से वे मालामाल हो गए. शेख चिल्ली की माँ खुश तो बहुत हुई, लेकिन उसे गाँव वालों का डर था. वह जानती थी कि वे लोग उसके मूर्ख बेटे से सब उगलवा लेंगे.
इसलिए उसने एक तरकीब सोची और बाज़ार से बताशे ख़रीद लाई. फिर घर की छप्पर पर चढ़कर उन्हें बरसाने लगी. छप्पर से बताशे बरास्त देख शेख चिल्ली उन्हें लूटकर खाने लगा.
कुछ दिनों में ही शेख चिल्ली और उसकी माँ के बदले ही रहन-सहन पर गाँव वालों की नज़र पड़ गई. उन्हें शक हो गया. वे सोचने लगे कि अचानक इनके पास इतनी दौलत कहाँ से आ गई.
शेख चिल्ली की माँ से पूछने पर वह कुछ ना बोली, तब उन्होंने मूर्ख शेख चिल्ली से सब उगलवाने का इरादा किया. एक दिन शेखचिल्ली को घेर कर उन्होंने पूछा, “अरे चिल्ली मियां, आजकल रंग-ढंग बदले हुए हैं जनाब के. क्या बात है?”
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शेख चिल्ली ने मासूमियत से सारी बात बता दी, “हमारे पास एक जादुई घड़ा है. उससे जो मांगों, वह मिल जाता है.”
यह सुनकर गाँव वाले उसकी माँ के पास पहुँचे और उससे घड़ा दिखाने कहने लगे.
माँ बोली, “ऐसा कोई घड़ा नहीं है. शेख चिल्ली को तुम जानते ही हो. ये तो दिन में भी सपने देखता है.”
गाँव वालों ने शेख चिल्ली को घूर कर देखा, तो शेख चिल्ली बोला, “माँ मैंने तुझे घड़ा दिया था ना…..भूल गई क्या? हमने ढेर सारे पकवान खाए थे और उस दिन घर की छप्पर से बताशे बरसे थे.”
माँ बोली, “अब बताओ….छप्पर से भी कहीं बताशे बरसते हैं.”
गाँव वालों को भी यकीन हो गया कि शेख चिल्ली ने कोई सपना देखा होगा और वे अपने-अपने घर लौट गए.
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