शेख चिल्ली रेलगाड़ी में : शेख चिल्ली की मज़ेदार कॉमेडी | Shekh Chilli In Train Story In Hindi

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फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम शेखचिल्ली की कहानी “शेख चिल्ली रेलगाड़ी में” (Shekh Chilli In Train Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. ये कहानी पहली बार शेख चिल्ली के रेल गाड़ी के सफ़र की है. वहाँ शेख चिल्ली क्या कारनामा करता है? जानने के लिए पढ़िये शेख चिल्ली का ये मज़ेदार किस्सा :

 Shekh Chilli In Train Story In Hindi

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Shekh Chilli In Train Story In Hindi
Shekh Chilli In Train Story In Hindi | Shekh Chilli In Train Story In Hindi

पढ़े शेखचिल्ली की संपूर्ण कहानियाँ  

शेख चिल्ली किसी भी नौकरी में ज्यादा दिन नहीं टिक पाता था. वह कोई न कोई ऐसा कारनामा कर जाता कि उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ता था. इसलिए उसने सोचा कि इस नौकरी में क्या रखा है? मुझे तो मुंबई जाकर हीरो बनना चाहिए. वैसे भी माशा-अल्लाह मैं सजीला-जवान हूँ.

यह बात दिमाग में आते ही उसने मुंबई की टिकट कटा ली. यह पहला अवसर था, जब वह रेलगाड़ी में सफ़र करने वाला था. वह रेलवे स्टेशन पहुँचा और रेल गाड़ी का इंतज़ार करने लगा.

जब रेल गाड़ी आई, तो वह प्रथम श्रेणी के डब्बे में चढ़ गया. प्रथम श्रेणी का डब्बा पूरा खाली था. शेख चिल्ली हैरान हो गया और सोचने लगा – ‘अजीब बात है. ये रेल गाड़ी तो पूरी खाली है. इसमें बस मैं ही बैठा हुआ हूँ. लोग झूठ बोलते हैं कि रेल गाड़ी में बहुत भीड़-भाड़ होती है.’

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कुछ देर में रेल गाड़ी चलने लगी. अकेले बैठे-बैठे शेख चिल्ली ऊबने लगा. उसकी आदत बस के सफ़र की थी. वह सोचने लगा कि रेल गाड़ी कहीं रुकेगी, तो बाहर जाकर थोड़ी तफ़री कर लूंगा. लेकिन रेल थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

बस के सफ़र के आदी शेख चिल्ली को लगता था कि रेल गाड़ी भी बस की तरह जगह-जगह रुकती होगी. लेकिन कई शहर निकल गए और रेल गाड़ी रुकी ही नहीं. परेशान शेख चिल्ली रेल रोकने के लिए चिल्लाने लगा, “अरे ड्राईवर मियां गाड़ी रोको.”

लेकिन, तब भी रेल नहीं रुकी. शेख चिल्ली मन मसोसकर बैठा रहा.

आखिरकार, जब एक स्टेशन पर रेल गाड़ी रुकी, तो शेख चिल्ली ने बाहर झांककर एक रेल कर्मी को अपने पास बुलाया और उससे कहने लगा, “मियां, ये रेल गाड़ी भी कमबख्त अजीब चीज़ है?”

“क्यों?” रेल कर्मी ने पूछा.

“कितना शोर मचाया मैंने, लेकिन किसी ने गाड़ी नहीं रोकी.” शिकायती अंदाज़ में शेख चिल्ली बोला.

“ये रेल गाड़ी है. बस नहीं कि ड्राईवर या कंडक्टर को आवाज़ लगाईं और गाड़ी रुकवा दी.” रेल कर्मी ने बताया.

“ये मुझे मालूम है.” शेख चिल्ली ने अपनी नादानी छुपाने की कोशिश की.

“तो फिर ये पूछा क्यों?”

“मैंने क्या पूछा?”

“यही कि रेल गाड़ी शोर मचाने पर रूकती क्यों नहीं? तुम्हें पता होना चाहिए कि रेल गाड़ी सिर्फ़ अपने स्टेशन पर ही रूकती है.”

“तुम क्या मुझे बेवकूफ़ समझते हो. मुझे सब मालूम है.” अपनी बेवकूफ़ी छुपाने के लिए शेख चिल्ली बहस करने लगा.

रेल कर्मी भी तैश में आ गया, “अरे, जब सब पता है, तो मुझे बुलाकर ये सब क्यों पूछ रहे हो. ख्वामख्वाह मेरा वक़्त बर्बाद कर रहे हो.”

“मेरी मर्ज़ी. जिससे जो पूछना है, पूछूंगा.”

इस बात पर रेल कर्मी चिढ़ गया और “नॉनसेंस” कहता हुआ जाने लगा.

“अरे नून हम नहीं खाते…..पूरी दावत उड़ाते हैं.” कहते हुए शेखचिल्ली हँसने लगा. इधर रेल गाड़ी भी चल पड़ी.


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