शेख चिल्ली की 16 मज़ेदार कहानियाँ | Shekh Chilli Ki Mazedar Kahaniya

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम शेख चिल्ली की मज़ेदार कहानियाँ (Shekh Chilli Ki Mazedar Kahaniya) शेयर कर रहे हैं. शेख चिल्ली भारतीय किस्से-कहानियों का रोचक पात्र है. यह पात्र दिन में सपने देखने वाला है. इसलिए अक्सर दिन में देखे जाने वाले सपने को “शेख चिल्ली के सपने” भी कहा जाता है. 

उनका मूल नाम ‘सूफी अब्द उर रज्ज़ाक’ था. इसके अलावा उन्हें अब्द उर रहीम, अलैस अब्द उर करीम, अलैस अब्द उर रज्जाक के नाम से भी जाना जाता था. घुमक्कड़ी का शौक उन्हें भारत ले आया. उनका ईमानदारी और साफ़गोई से अपनी बात कह देने का अंदाज़ ही उनके किस्सों में हास्य का रंग भर देता है. इन कहानियों में आपको वही रंग और अंदाज़ नज़र आएगा. पढ़िए :

Shekh Chilli Ki Mazedar Kahaniya
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Shekh Chilli Ki Mazedar Kahaniya

1. कैसे पड़ा शेखचिल्ली नाम?

शेखचिल्ली एक महान सूफी संत और दार्शनिक थे. मुगल बादशाह शाहजहाँ का पुत्र दारा शिकोह उन्हें अपना गुरू मानता था. शाहजहाँ भी उनके बहुत बड़े प्रशंषक थे. 

उनका वास्तविक नाम सूफी अब्द उर रज्ज़ाक था. इसके अलावा उन्हें अब्द उर रहीम, अलैस अब्द उर करीम, अलैस अब्द उर रज्जाक के नाम से भी जाना जाता था.

बलूचिस्तान के एक खानाबदोश कबीले में जन्मे शेखचिल्ली को उनकी घुमक्कड़ी का शौक भारत ले आया. शेखचिल्ली को न व्यवहारिकता की परवाह थी, न ही दिखावे में विश्वास. वे अपनी बात बड़ी ही ईमानदारी और साफ़गोई से कह दिया करते थे. वे इतनी खरी-खरी होती थी कि उसमें से हास्य उत्पन्न हो जाता था. उनकी सरलता और भोलापन भी लोगों को हँसने पर विवश कर देता था. 

शेखचिल्ली भारतीय किस्से-कहानियों के एक मज़ेदार और रोचक पात्र के रूप में मशहूर हैं. उनके बारे में यह कहा जाता था कि वे दिन में सपने देखा करते थे. उनके हास्य पात्र बनने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण उनकी यह आदत भी रही है. आज भी दिन में सपने देखने वालों को शेखचिल्ली कहा जाता है.

इस कहानी में हम आपको शेखचिल्ली के बचपन में ले जायेंगे. इसमें उस समय की उस घटना का वर्णन है, जहाँ से उनका नाम शेखचिल्ली पड़ गया.  

शेखचिल्ली की पैदाइश शेख परिवार में हुई थी. पिता जब अल्लाह को प्यारे हो गए, तब माँ ने बेहद ग़रीबी में उसकी परवरिश की. ग़रीबी के बावजूद माँ उसे अच्छी तालीम दिलवाना चाहती थी, इसलिए उसका दाखिला गाँव के एक मदरसे में करवा दिया.

वह रोज़ मदरसे जाने लगा और मौलवी से तालीम लेने लगा. मदरसे में गाँव के कई बच्चे आया करते थे. शेख परिवार से ताल्लुक होने के कारण वे सभी उसे ‘शेख” पुकारा करते थे.

मौलवी साहब ने एक दिन पढ़ाया, “लड़की जाती है, तो लड़का जाता है. लड़की खाती है, तो लड़का खाता है.”

सारे बच्चों के पीछे-पीछे दोहराया, “लड़की जाती है, तो लड़का जाता है. लड़की खाती है, तो लड़का खाता है.”

फिर मौलवी ने सबसे पूछा, “आया समझ में.”

सबने “हाँ” में अपना सिर हिलाया, शेख ने भी.

शाम को मदरसे से वापस घर जाते समय शेख को किसी लड़की के चिल्लाने की आवाज़ आई. वह भागा-भागा आवाज़ की दिशा में गया. वहाँ उसने देखा कि एक लड़की तालाब में डूब रही है और मदद के लिए पुकार रही है.

अकेले उसे तालाब से बाहर निकाल पाना शेख के बस के बाहर था. वह दौड़ता हुआ मदरसे के साथियों के पास गया और बोला, “एक लड़की चिल्ली रही है. जल्दी चलो.”

किसी को भी समझ नहीं आया कि शेख कहना क्या चाहता है. लेकिन वे उसके साथ हो लिए. तालाब पर पहुँचकर जब उन्होंने एक लड़की को डूबते हुए देखा, तो उसकी मदद कर उसे बाहर निकाला.

तालाब से बाहर निकलने के बाद भी वह रोना-पीटना मचाती रही. उसे देख शेख बोला, “देखो, अब भी कितना चिल्ली रही है. अरे, अब चुप भी हो जा.”

बार-बार ‘चिल्ली’ सुनकर शेख के साथी तंग आ चुके थे. वे बोले, “शेख, तू बार-बार ‘चिल्ली रही है’, क्यों कह रहा है?”

“अरे मौलवी साहब ने ही तो सिखाया था. लड़के के लिए ‘जाता है’, लड़की के लिए ‘जाती है’. वैसे ही लड़के के लिए ‘चिल्ला’ रहा है और लड़की के लिए ‘चिल्ली’ रही है.”

उसकी मूर्खतापूर्ण बात सुनकर सब ठहाका मारकर हँस दिए. उस दिन के बाद से सब उसे ‘चिल्ली-चिल्ली’ चिढ़ाने लगे और बाद में यह ‘चिल्ली’ शेख के साथ जुड़ गया और वो ‘शेखचिल्ली’ कहलाने लगा.

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2. शेख चिल्ली का सपना 

शेख चिल्ली बचपन से ही बड़ा आलसी था. काम-धाम करता नहीं था. बस दिन भर अमीर बन जाने के सपने देखा करता था. उसकी माँ मेहनत-मजदूरी करके घर चलाती थी.

एक दिन किसी के उसकी माँ को दूध से भरे दो घड़े दिए, जिसे लेकर वह घर आई और शेख चिल्ली से बोली, “बेटा! इन दो घड़े में दूध रखा है. पीने का मन हो, तो पी लेना. मैं जंगल में घास छीलने जा रही हूँ.”

माँ के जाने के बाद शेख चिल्ली ने एक घड़े का दूध पी लिए और एक घड़े के दूध से दही जमा दिया. फिर वह बिस्तर पर लेट गया. कुछ ही देर में उसे नींद आ गई और वह सपना देखने लगा.

सपने में उसने देखा कि उसके जमाये दूध से दही बन गया है. दही से उसने मक्खन निकाला और फ़िर मक्खन से घी. घी को उसने बाज़ार में ले जाकर बेच दिया, जो पैसे मिले, उससे उसने एक मुर्गी ख़रीद ली. मुर्गी से अंडे निकले. उस अंडे से चूजे. धीरे-धीरे उसके पास ढेर सारी मुर्गियाँ हो गई.

मुर्गी और अंडे बेचकर उसने बहुत पैसे कमाए और गाय ख़रीद ली. अब वह गाय का दूध बेचने का धंधा करने लगा. इस धंधे में उसे बहुत मुनाफ़ा हुआ और वह बहुत अमीर हो गया.

फिर उसने ढेर सारे आभूषण खरीदे और उन आभूषणों को बेचकर वह और अमीर हो गया. फिर एक अमीर सेठ की लड़की से उसने ब्याह कर लिया. साल भर बाद उसका एक प्यारा बेटा हुआ.

बड़ा होने पर बेटा शरारतें करने लगा. इन शरारतों से तंग आकर पत्नी ने शेख चिल्ली से शिकायत की, तो शेख चिल्ली ने छड़ी उठाई और उसे पीटने लगा.    

सपने में ही शेख चिल्ली ने एक लाठी उठा ली और घड़े पर बरसना शुरू कर दिया. घड़ा फूट गया और सारा दही बह गया. उसी समय जंगल से लौटी माँ ने शेख चिल्ली की हरक़त देखी, तो उसकी हाथ से लाठी छीनकर उस पर बरसाने लगी, तब जाकर शेख चिल्ली की नींद खुली.  उसके बाद दो दिन तक माँ ने उसे खाना नहीं दिया.


3. शेखचिल्ली और भैंस 

एक बार शेखचिल्ली के गाँव में एक सूफ़ी संत आया. गाँव के मैदान में उसका प्रवचन हुआ. गाँव के लोग मैदान में इकट्ठा थे और प्रवचन सुन रहे थे. संत कह रहा था, “यदि तुम लोग रोज़ अल्लाह की इबादत करोगे, तो अल्लाह तुम्हें ईनाम के तौर पर भैंस देगा.”

उसी समय शेखचिल्ली वहाँ से गुजर रहा था. उसने कानों में जब यह बात पड़ी, तो वह ख़ुद को रोक न सका. वह फ़ौरन संत के पास पहुँच गया. उसे भैंस तो हर हाल में चाहिए थी, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उसके साथ किसी प्रकार का छल हो. कहीं भैंस वाली बात झूठ तो नहीं, ये जानने के लिए उसने संत से पूछा, “क्या अल्लाह सच में मुझे भैंस देगा, यदि मैं रोज़ उसकी इबादत करूंगा.”

“इबादत करके देखो, ख़ुद-ब-ख़ुद पता चल जाएगा.” संत के जवाब दिया.

अगले ही दिन से शेखचिल्ली रोज़ दिन में कई बार अल्लाह की इबादत करने लगा. उसे खाने-पीने की भी सुध न रही. एक महिना गुज़र गया. इतने वक़्त में तो मुझे भैंस मिल जानी चाहिए, शेखचिल्ली ने सोचा. वह घर के दरवाज़े पर गया और इधर-उधर देखने लगा. लेकिन उसे कोई भैंस नज़र नहीं आई.

वह भागा-भागा संत के पास पहुँचा और शिकायती अंदाज़ में बोला, “मैंने एक महिने तक अल्लाह की इबादत की, लेकिन मुझे भैंस नहीं मिली.”

संत बोला, “मैंने तो वो इसलिए कहा था कि तुम दिल लगाकर अल्लाह की इबादत करना शुरू कर दो. जहाँ तक भैंस की बात है, वो बाज़ार जाकर ख़रीद लो, वो तुम्हें मिल जाएगी.”

शेखचिल्ली ख़ुद को छला महसूस करने लगा. उसे लगा कि संत ने उसे मूर्ख बनाया है. लेकिन वह ख़ुद को उनके सामने मूर्ख नहीं दिखाना चाहता था. इसलिए बोला, “तुम्हें लग रहा होगा कि तुमने मुझे बेवकूफ़ बनाया है. लेकिन सुन लो कि इबादत तो मैंने भी नहीं की थी, मैंने भी बस अपने होंठ हिलाए थे. मैंने तुम्हें बेवकूफ़ बनाया है, समझे.” और हँसता हुआ वहाँ से चला गया. संत हक्का-बक्का सा उसे देखता रह गया.

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4. शेखचिल्ली की चिठ्ठी 

शेखचिल्ली का भाई दूसरे गाँव में रहता था. दोनों चिट्ठियों द्वारा एक-दूसरे की खैर-ख़बर लिया करते थे और जब भी मौका मिलता, एक-दूसरे के गाँव जाकर मुलाक़ात कर लिया करते थे.

एक दिन भाई के बीमार हो जाने की खबर शेखचिल्ली को मिली. उसने सोचा कि चिट्ठी भेजकर उसकी खैरियत पूछ लेता हूँ और चिट्ठी लिखने बैठ गया.

चिट्ठी लिख लेने के बाद उसे भेजने की बारी आई. उन दिनों आजकल की तरह डाक सुविधाएँ नहीं थी. लोग आने-जाने वाले मुसाफ़िरों के हाथों चिट्ठियाँ भिजवाया करते थे. शेख चिल्ली के गाँव के लोग वहाँ के नाई के हाथों ही चिट्ठियाँ भिजवाते थे और बदले में उसे कुछ पैसे दे दिया करते थे.

चिल्ली चिट्ठी लेकर नाई के पास पहुँचा, लेकिन नाई भी उस वक़्त बीमार चल रहा था. उसने चिट्ठी पहुँचाने से मना कर दिया. शेख चिल्ली ने बहुत ढूंढा, लेकिन उसे गाँव में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं मिला, जो चिट्ठी पहुँचाने तैयार होता.

अब चिल्ली क्या करे? उसने सोचा कि अब तो कोई चारा नहीं. मुझे ही भाईजान के पास जाकर चिट्ठी पहुँचानी पड़ेगी.

अगले दिन सुबह-सवेरे ही वह अपने गाँव से निकल पड़ा. दिन भर का सफ़र पैदल करने के बाद वह शाम को अपने भाई के गाँव पहुँचा. वहाँ अपने भाई के घर जाकर उसने दरवाज़े पर दस्तक दी.

भाई ने दरवाज़ा खोला. सामने देखा, शेखचिल्ली खड़ा हुआ है. वह कुछ कहता, उसके पहले ही शेखचिल्ली ने उसके हाथ में चिट्ठी थमाई और वापस लौटने लगा.

शेख चिल्ली की ये हरक़त भाई को समझ नहीं आई. वह उसे रोककर बोला, “अरे भाई, क्या बात है? इतनी दूर से मेरे घर आया है और मुझे देखकर उल्टे पांव वापस जा रहा है? क्या हो गया? नाराज़ है क्या?”

“नहीं भाईजान!” शेखचिल्ली बोला, “मैं आपसे क्यों नाराज़ होऊंगा? आप बीमार है ना, बस ये चिट्ठी मैंने आपकी खैर-ख़बर पूछने के लिए लिखी है. लेकिन मेरे गाँव का नाई आपको चिट्ठी पहुँचाने आ नहीं पाया. इसलिए उसकी जगह मुझे ख़ुद ही ये चिट्ठी देने यहाँ आना पड़ा. आप इसे पढ़ लेना और इसका जवाब ज़रूर देना.”

इस बात पर हैरान भाई बोला, “वो ठीक है. लेकिन जब तुम मेरे घर आ ही गए हो, तो अंदर आओ. कुछ दिन यहीं मेरे पास रुको. फिर चले जाना.”

इतना सुनना था कि शेख चिल्ली बिगड़ गया. वह बोला, “भाईजान आप समझते नहीं हो. अभी मैं नाई की जगह आपको ये चिट्ठी देने आया हूँ. मैं उसका फ़र्ज़ अदा कर रहा हूँ. मुझे आपसे मिलना होता, तो मैं ना चला आता. नाई की जगह क्यों आता?”

हक्का-बक्का भाई कुछ कह नहीं पाया और शेख चिल्ली वापस चला गया.


5. शेखचिल्ली और सात परियों 

शेखचिल्ली एक गरीब शेख परिवार से ताल्लुक रखता था. पढ़ाई-लिखाई में कमज़ोर था. ध्यान बस खेल-कूद में रमता था. मोहल्ले के लड़कों के साथ कंचे खेलने में उसने अपना पूरा बचपन बिता दिया. जवान हुआ, तब भी कंचों से पीछा ना छूटा.

माँ उसकी इस आदत से परेशान थी. वह चाहती थी कि उसका बेटा कुछ काम-धंधा करे. एक दिन वह उसे बुलाकर फटकारने लगी, “ये क्या दिन भर मोहल्ले के आवारा लड़कों के साथ कंचे खेलता रहता है. हट्टा-कट्ठा जवान हो गया है. कुछ कमा-धमा कर ला. कब तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ेगा?”

शेख चिल्ली क्या करता? माँ की बात मानकर अगले दिन काम की तलाश में दूसरे गाँव की ओर निकल पड़ा. रास्ते में खाने के लिए माँ ने उसे सात रोटियाँ दीं.

आधा रास्ता तय करने के बाद शेख चिल्ली को भूख लग आई. एक कुएं के पास वह रोटी खाने बैठ गया. माँ की दी सात रोटियों को देख वह कहने लगा, “एक खाऊं..दो खाऊं…तीन खाऊं कि सातों को खा लूं.”

उस कुएं में सात परियाँ रहती थीं. यह बात सुनकर उन्हें लगा कि शेख चिल्ली उन्हें ही खाने की बात कर रहा है. वे डर गईं और कुएं से बाहर आकर शेख चिल्ली से प्रार्थना करने लगी, “हमें मत खाओ. इसके बदले हम तुम्हें एक जादुई घड़ा देती हैं. इससे तुम जो भी मांगोगे, तुम्हें वह मिलेगा.”

शेख चिल्ली ने वह जादुई घड़ा ले लिया और अपने घर वापस आ गया. माँ को घड़ा देकर उसने उसे सात परियों की बात बता दी. माँ ने घड़े का परीक्षण करते हुए उससे ढेर सारे पकवान मांगे. देखते ही देखते उनके सामने थालियों में एक से बढ़कर एक पकवान सज गए. दोनों ने उस रात छककर दावत उड़ाई.

फिर शेख चिल्ली की माँ ने जादुई घड़े से खूब दौलत मांगी. उस दौलत से वे मालामाल हो गए. शेख चिल्ली की माँ खुश तो बहुत हुई, लेकिन उसे गाँव वालों का डर था. वह जानती थी कि वे लोग उसके मूर्ख बेटे से सब उगलवा लेंगे.

इसलिए उसने एक तरकीब सोची और बाज़ार से बताशे ख़रीद लाई. फिर घर की छप्पर पर चढ़कर उन्हें बरसाने लगी. छप्पर से बताशे बरास्त देख शेख चिल्ली उन्हें लूटकर खाने लगा.

कुछ दिनों में ही शेख चिल्ली और उसकी माँ के बदले ही रहन-सहन पर गाँव वालों की नज़र पड़ गई. उन्हें शक हो गया. वे सोचने लगे कि अचानक इनके पास इतनी दौलत कहाँ से आ गई.

शेख चिल्ली की माँ से पूछने पर वह कुछ ना बोली, तब उन्होंने मूर्ख शेख चिल्ली से सब उगलवाने का इरादा किया. एक दिन शेखचिल्ली को घेर कर उन्होंने पूछा, “अरे चिल्ली मियां, आजकल रंग-ढंग बदले हुए हैं जनाब के. क्या बात है?”

शेख चिल्ली ने मासूमियत से सारी बात बता दी, “हमारे पास एक जादुई घड़ा है. उससे जो मांगों, वह मिल जाता है.”

यह सुनकर गाँव वाले उसकी माँ के पास पहुँचे और उससे घड़ा दिखाने कहने लगे.

माँ बोली, “ऐसा कोई घड़ा नहीं है. शेख चिल्ली को तुम जानते ही हो. ये तो दिन में भी सपने देखता है.”

गाँव वालों ने शेख चिल्ली को घूर कर देखा, तो शेख चिल्ली बोला, “माँ मैंने तुझे घड़ा दिया था ना…..भूल गई क्या? हमने ढेर सारे पकवान खाए थे और उस दिन घर की छप्पर से बताशे बरसे थे.”

माँ बोली, “अब बताओ….छप्पर से भी कहीं बताशे बरसते हैं.”

गाँव वालों को भी यकीन हो गया कि शेख चिल्ली ने कोई सपना देखा होगा और वे अपने-अपने घर लौट गए.

 


6. क़ुतुब मीनार कैसे बना? 

एक बार शेख चिल्ली दिल्ली घूमने गया. वहाँ क़ुतुब मीनार के चर्चे सुनकर वह उसे देखने पहुँचा.

क़ुतुब मीनार के पास खड़े होकर वह उसका मुआइना कर ही रहा था कि उसके कानों में दो आदमियों की बात पड़ी. दोनों आपस में बातें कर रहे थे. एक कह रह था, “वाह, क्या शानदार मीनार है? इसकी लंबाई तो देखो. ज़रूर उस ज़माने के लोग बहुत लंबे होते होंगे, तभी तो इतनी लंबी मीनार बना ली.”

“अरे बेवकूफ़” दूसरा आदमी बोला, “थोड़ा तो दिमाग लगाया कर. क़ुतुब मीनार को पहले लिटाकर बनाया गया है. फिर इसे सीधा खड़ा कर दिया गया है.”

पहले आदमी को ये बात जमी नहीं. वह बोला, “ऐसा हो ही नहीं सकता.”

बस फिर क्या था? दोनों में बहस होने लगी. कोई दूसरे की बात मानने को राज़ी नहीं था. कुछ ही देर में उनकी बहस लड़ाई में तब्दील हो गई.

शेख चिल्ली यह सब देख-सुन रहा था. उसे उन दोनों की सोच पर बड़ा तरस आया. वह उनका बीच-बचाव करता हुआ बोला, “लड़ क्यों रहे हो भाइयों. तुम दोनों ही गलत हो. बात ये है कि क़ुतुब मीनार बनाने के लिए पहले कुवां खोदकर उसे पक्का किया गया. बाद में पलटकर खड़ा कर दिया. हो गई क़ुतुब मीनार तैयार. इतनी बात समझ नहीं आई तुम दोनों को.”

दोनों आदमी शेखचिल्ली का मुँह देखते रह गए.


7. शेख चिल्ली की खुरपी को बुखार 

एक दिन शेखचिल्ली की माँ को किसी जान-पहचान वाले की शादी में जाना था. घर से निकलते समय वह शेख चिल्ली से बोली, “चिल्ली! जंगल जाकर घास छील लेना और उसे पड़ोसी के घर छोड़कर उससे पैसे ले लेना. ये काम सही तरीके से करोगे, तभी मैं तुम्हें शादी से लाई मिठाइयाँ दूंगी.”

शेख चिल्ली ने हामी तो भर दी, लेकिन माँ के जाते ही उन मिठाइयों के सपने में खो गया, जो उसकी माँ शादी से लाने वाली थी.

जब माँ घर वापस आई, तो शेख चिल्ली को बिस्तर पर लेटकर सपना देखता हुआ पाया. उसने उसे झंझोड़कर उठाया और डांटते हुए बोली, “तू फिर दिन में सपने देखने लगा. जा जंगल जाकर घास छील. वरना तुझे मिठाइयाँ नहीं मिलने वाली.”

मिठाइयों के चक्कर में शेख चिल्ली को जंगल जाना पड़ा. वहाँ तेज धूप में पसीना बहाकर उसने घास छीली और उसे पड़ोसी को बेचकर मिले पैसे जाकर अपनी माँ के हाथ पर रख दिए. माँ ने ख़ुश होकर उसे शादी से लाई मिठाइयाँ दी.

मिठाइयाँ खाते हुए शेख चिल्ली को याद आया कि घास छीलने की खुरपी तो वह जंगल में ही छोड़ आया है. फिर क्या था? एक बार में ही सारी मिठाइयाँ अपने मुँह में ठूंसकर वह खुरपी लेने भागा-भागा जंगल गया.

खुरपी तेज धूप में पड़ी हुई थी. शेख चिल्ली ने जैसे ही खुरपी को छुआ, वह चीख पड़ा. तेज धूप में लंबे समय तक पड़े रहने से खुरपी बहुत गर्म हो चुकी थी. शेख चिल्ली को लगा कि खुरपी को बुखार हो गया है.

वह खुरपी लेकर फ़ौरन हक़ीम के पास पहुँचा और बोला, “हक़ीम साहब, देखिये मेरी खुरपी को बुखार हो गया है. इसके लिए दवाई दे दीजिये.”

हक़ीम शेख चिल्ली की बेवकूफियों से वाकिफ़ था. इसलिए उसने कह दिया, “हाँ चिल्ली, तुम्हारी खुरपी को तो बहुत तेज बुखार है. लेकिन, बात यह है कि यह दवाई से नहीं उतरने वाला. तुम्हें इसे रस्सी से बांधकर कुएं के पानी में डुबकी दिलवानी होगी. तभी इसका बुखार उतरेगा.”

शेखचिल्ली ने वैसा ही किया, जैसा हक़ीम ने बताया. खुरपी को रस्सी से बांधकर कुएं के पानी में डुबकियाँ दिलवाई. पानी में डूबते ही खुरपी ठंडी हो गई, शेखचिल्ली को लगा कि हक़ीम का नुस्खा काम कर गया.

इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन शेखचिल्ली के पड़ोस में रहने वाली एक बूढ़ी औरत को तेज बुखार आ गया. बुखार में उसका शरीर बुरी तरह तप रहा था. घरवाले उसे हक़ीम के पास ले जाने लगे. रास्ते में उनकी मुलाक़ात शेख चिल्ली से हो गई.

शेखचिल्ली ने पूछा, “भाई लोग, इतनी हड़बड़ी में कहाँ जा रहे हो?”

“अम्मा को बुखार आ गया है. हम इन्हें हक़ीम के पास ले जा रहे हैं.” बूढ़ी औरत के घरवाले बोले.

“इसके लिए हक़ीम साहब के पास जाने की कोई ज़रूरत नहीं है. वे जो नुस्खा तुम्हें अपने दवाखाने में बतायेंगे, मैं यहीं बताये देता हूँ. ऐसा करो, इन्हें रस्सी से बांधकर कुएं में लटका दो और उसके पानी में डुबकियाँ लगवाओ. बुखार फ़ौरन उतर जायेगा.”

“यह नुस्खा हक़ीम साहब का बताया हुआ है.” बूढ़ी औरत के घरवालों ने पूछा.

“यकीनन…और १००% कारगर भी है.” शेख चिल्ली ने जवाब दिया.

लोगों ने शेख चिल्ली की बात मान ली और बूढ़ी औरत को रस्सी से बांधकर कुएं में लटकाकर उसके पानी में डुबकियाँ लगवाने लगे. थोड़ी देर डुबकियाँ लगाने के बाद जब उसे बाहर निकाला गया, तो वह पूरी तरह से ठंडी पड़ चुकी थी मतलब उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे.

यह देख उसके घरवाले शेखचिल्ली पर चिल्लाने लगे. शेख चिल्ली बोला, “मैंने कहा था बुखार उतर जायेगा. उतर गया ना….इनका शरीर ठंडा पड़ गया ना….”

“ये पूरी ठंडी हो गई है चिल्ली…..समझ रहा है….ये अल्लाह को प्यारी हो गई है.” कहते हुए वे लोग शेख चिल्ली पर बरसने लगे.

“अरे, मुझ पर क्यों बरस रहे हो भाई लोग? ये नुस्खा हक़ीम साहब का बताया हुआ है. इसलिए बरसना है, तो उन पर बरसो.” शेख चिल्ली शिकायती अंदाज़ में बोला

सब हक़ीम के पास पहुँचे और उन्हें पूरा किस्सा कह सुनाया, जिसे सुनकर हक़ीम ने अपना सिर पीट लिया और बोला, “अरे, मैंने वह नुस्खा शेख चिल्ली की खुरपी को ठंडा करने के लिए बताया था, न कि किसी इंसान का बुखार उतारने के लिए.”

उस दिन शेखचिल्ली की बहुत धुनाई हुई.

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8. उड़ा हुआ पैजामा 

एक सुबह शेखचिल्ली की माँ ने उसके कपड़े धोए और उन्हें घर की छत पर लगी रस्सी पर सुखा आई. कुछ ही समय बीता था कि अचानक तेज हवा चलने लगी, जो फ़िर आँधी-तूफ़ान में बदल गई. ऐसे मौसम में शेखचिल्ली की माँ छत पर कपड़े लेने नहीं जा पाई.

जब तूफ़ान थमा, तो वह छत पर गई. सारे कपड़े इधर-उधर बिखरे हुए थे. एक-एक कर उसने सारे कपड़े समेटे. लेकिन उसे शेखचिल्ली का पैजामा नहीं मिला. वह हर तरफ़ उसे खोजने लगी. पता चला कि वह पैजामा कुएं में गिरा हुआ है.

वह शेखचिल्ली के पास गई और बोली, “मैं छत से तुम्हारे सारे कपड़े ले आई. लेकिन तुम्हारा पैजामा नहीं ला पाई. वह आँधी-तूफ़ान में उड़कर कुएं में गिर गया है.”

वह कुछ उदास थी.

उसे उदास देख शेखचिल्ली चहकते हुए बोला, “तुम उदास क्यों होती हो माँ? तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए.” माँ हैरान होकर उसे देखने लगी.

वह बोला, “सकारात्मक पहलू पर ध्यान दो माँ. सोचो, अगर मैंने वो पैजामा पहना होता, तो मैं भी कुएं में गिरा हुआ होता. इसलिए ख़ुश हो जाओ कि तुम्हारा बेटा सही-सलामत है.”

शेखचिल्ली की बात सुनकर माँ मुस्कुराने लगी.


9. शेख चिल्ली रेलगाड़ी में 

शेख चिल्ली किसी भी नौकरी में ज्यादा दिन नहीं टिक पाता था. वह कोई न कोई ऐसा कारनामा कर जाता कि उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ता था. इसलिए उसने सोचा कि इस नौकरी में क्या रखा है? मुझे तो मुंबई जाकर हीरो बनना चाहिए. वैसे भी माशा-अल्लाह मैं सजीला-जवान हूँ.

यह बात दिमाग में आते ही उसने मुंबई की टिकट कटा ली. यह पहला अवसर था, जब वह रेलगाड़ी में सफ़र करने वाला था. वह रेलवे स्टेशन पहुँचा और रेल गाड़ी का इंतज़ार करने लगा.

जब रेल गाड़ी आई, तो वह प्रथम श्रेणी के डब्बे में चढ़ गया. प्रथम श्रेणी का डब्बा पूरा खाली था. शेख चिल्ली हैरान हो गया और सोचने लगा – ‘अजीब बात है. ये रेल गाड़ी तो पूरी खाली है. इसमें बस मैं ही बैठा हुआ हूँ. लोग झूठ बोलते हैं कि रेल गाड़ी में बहुत भीड़-भाड़ होती है.’

कुछ देर में रेल गाड़ी चलने लगी. अकेले बैठे-बैठे शेख चिल्ली ऊबने लगा. उसकी आदत बस के सफ़र की थी. वह सोचने लगा कि रेल गाड़ी कहीं रुकेगी, तो बाहर जाकर थोड़ी तफ़री कर लूंगा. लेकिन रेल थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

बस के सफ़र के आदी शेख चिल्ली को लगता था कि रेल गाड़ी भी बस की तरह जगह-जगह रुकती होगी. लेकिन कई शहर निकल गए और रेल गाड़ी रुकी ही नहीं. परेशान शेख चिल्ली रेल रोकने के लिए चिल्लाने लगा, “अरे ड्राईवर मियां गाड़ी रोको.”

लेकिन, तब भी रेल नहीं रुकी. शेख चिल्ली मन मसोसकर बैठा रहा.

आखिरकार, जब एक स्टेशन पर रेल गाड़ी रुकी, तो शेख चिल्ली ने बाहर झांककर एक रेल कर्मी को अपने पास बुलाया और उससे कहने लगा, “मियां, ये रेल गाड़ी भी कमबख्त अजीब चीज़ है?”

“क्यों?” रेल कर्मी ने पूछा.

“कितना शोर मचाया मैंने, लेकिन किसी ने गाड़ी नहीं रोकी.” शिकायती अंदाज़ में शेख चिल्ली बोला.

“ये रेल गाड़ी है. बस नहीं कि ड्राईवर या कंडक्टर को आवाज़ लगाईं और गाड़ी रुकवा दी.” रेल कर्मी ने बताया.

“ये मुझे मालूम है.” शेख चिल्ली ने अपनी नादानी छुपाने की कोशिश की.

“तो फिर ये पूछा क्यों?”

“मैंने क्या पूछा?”

“यही कि रेल गाड़ी शोर मचाने पर रूकती क्यों नहीं? तुम्हें पता होना चाहिए कि रेल गाड़ी सिर्फ़ अपने स्टेशन पर ही रूकती है.”

“तुम क्या मुझे बेवकूफ़ समझते हो. मुझे सब मालूम है.” अपनी बेवकूफ़ी छुपाने के लिए शेख चिल्ली बहस करने लगा.

रेल कर्मी भी तैश में आ गया, “अरे, जब सब पता है, तो मुझे बुलाकर ये सब क्यों पूछ रहे हो. ख्वामख्वाह मेरा वक़्त बर्बाद कर रहे हो.”

“मेरी मर्ज़ी. जिससे जो पूछना है, पूछूंगा.”

इस बात पर रेल कर्मी चिढ़ गया और “नॉनसेंस” कहता हुआ जाने लगा.

“अरे नून हम नहीं खाते…..पूरी दावत उड़ाते हैं.” कहते हुए शेखचिल्ली हँसने लगा. इधर रेल गाड़ी भी चल पड़ी.


10. शेख चिल्ली और चोर 

शेख चिल्ली के गाँव में चोरी की घटनाएं बढ़ गई थी. रोज़ाना किसी न किसी के घर चोरी हो रही थी और चोर पकड़ा नहीं जा रहा था. गाँव वाले परेशान थे, साथ ही डरे हुए भी.

लेकिन शेख चिल्ली बेफ़िक्र था, क्योंकि उसके पास चुराने लायक कुछ था ही नहीं. उसने जो कमाया भी था, अपनी बेवकूफ़ी के चलते लुटा दिया था.

एक रात उसे नींद नहीं आ रही थी. वह अपने घर की छत पर टहलने के लिए चला गया. टहलते-टहलते वह अपने अब्बा को याद करने लगा और अपने बचपन की यादों में खो गया कि कैसे वह अपने अब्बा के साथ पतंग उड़ाया करता था.

बचपन की यादों में खोये-खोये उसे पता ही नहीं चला कि कब वह छत के किनारे आ गया, कब उसका पैर फिसला और कब वह धड़ाम से नीचे जा गिरा.

उसके नीचे गिरते ही किसी के ज़ोर से चीखने की आवाज़ आई. हुआ ये है कि उसी समय एक चोर उसके घर चोरी के इरादे से घुसा था और शेख चिल्ली उसी चोर के ऊपर की जा गिरा था. दर्द के मारे चोर की चीख निकल गई थी.

चीख सुनकर पड़ोसी जाग गए और भागते हुए शेख चिल्ली के घर पहुँचे. देखते क्या हैं कि शेख चिल्ली एक आदमी के ऊपर चढ़ा हुआ है. जब उन्हें पता चला कि वह आदमी चोर है, तो उसकी ख़ूब मरम्मत कर जेल में डलवा दिया गया.

शेख चिल्ली की बहादुरी की पूरे गाँव में तारीफ़ होने लगी कि कैसे छत से कूदकर उसने चोर को पकड़ लिया. राजा के द्वारा उसे ईनाम भी दिया गया. इधर शेख चिल्ली को कभी समझ ही नहीं आया कि आखिर उसने ऐसी क्या बहादुरी दिखाई कि चोर पकड़ा गया.

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11. शेख चिल्ली का गुस्सा 

शेख चिल्ली को उसके मोहल्ले के बच्चे बहुत चिढ़ाते थे. वह भी बात-बात पर तुनक जाता और चिढ़ के मारे बच्चों को ख़ूब दौड़ाता. लेकिन बच्चे भागकर किसी न किसी के घर में छुप जाते और शेख चिल्ली हाथ मलता रह जाता.

ये सब होने के बाद भी बच्चे कभी बाज़ नहीं आते थे. उन्हें तो और मज़ा आता था. इसलिए वे शेख चिल्ली को तंग करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे.

लेकिन, एक दिन एक लड़का शेख चिल्ली के हत्थे चढ़ गया. शेख चिल्ली बेवकूफ़ था. अंज़ाम की परवाह किये बगैर उसने उस लड़के को कुएं में फेंक दिया और घर चला आया.

घर पर आकर उसने अपनी माँ को बताया कि आज उसने एक लड़के को कुएं में फेंक दिया है. यह सुनकर उसकी माँ परेशान हो गई. उसे डर था कि कहीं वह लड़का मर गया, तो लेने के देने पड़ जायेंगे.

शेख चिल्ली को खाना परोसकर वह कुएं की ओर चल पड़ी. इधर जब तक शेख चिल्ली खाना खाता रहा. उसकी माँ ने कुएं से लड़के को बाहर निकाल लिया. गनीमत थी कि लड़का ज़िन्दा था. लेकिन कुएं के ठंडे पानी में डूबे रहने के कारण उसकी तबियत बिगड़ चुकी थी.

शेख चिल्ली की माँ उसे अपने भाई के घर ले गई और उसे सारा वाक्या बताया. फिर बोली, “भैय्या! मेरी गुज़ारिश है कि तुम कुछ दिनों तक इसे अपने पास रखो और इसकी तीमारदारी करो. जब ठीक हो जायेगा, तो घर छोड़ देंगे.”

“लेकिन आपा, अगर इसके माँ-बाप इसे ढूंढते हुए आ गए, तब हम क्या करेंगे.” भाई ने अपनी शंका जताई.

“तब की तब देखेंगे भाई. लेकिन अगर इसके माँ-बाप ने इसे इस हाल में देख लिया, तो शामत आ जायेगी. शेख चिल्ली तो ठहरा नासमझ. कैसे उसे जेल जाने से बचा पाऊंगी?” शेख चिल्ली की माँ बोली.

उसका भाई लड़के को अपने पास रखने के लिए मान गया और वह घर आ गई. घर से एक बकरी के बच्चे को उठाकर वह फिर उस कुएं पर गई और उसे कुएं में फेंक कर वापस घर आ आई. 

इन सबसे शेख चिल्ली बेखबर था. अगले दिन सुबह से ही गुमशुदा लड़के के माँ-बाप उसे खोजने लगे. हर गली-मोहल्ले में खोजते हुए वे शेख चिल्ली के मोहल्ले में पहुँच गए.

शेख चिल्ली बाज़ार जा रहा था. लड़के के माँ-बाप ने उससे अपने लड़के के बारे में पूछा, तो वह बोला, “मैंने कल उसे कुएं में फ़ेंक दिया. रोज़ मुझे चिढ़ाता था. अच्छा सबक सिखाया.”

यह सुनकर लड़के की माँ छाती पीटकर रोने लगी. लड़के के बाप ने शेख चिल्ली का गिरेबान पकड़कर पूछा, “बता किस कुएं में फेंका है तूने मेरे बेटे हो?”

कुआं सामने ही था. शेख चिल्ली ने इशारे से बता दिया. फ़ौरन उस कुएं में कुछ आदमी उतारे गए. वे कुएं से लड़के की जगह बकरी के बच्चे की लाश लेकर बाहर निकले. माँ-बाप हैरान थे, साथ ही शेख चिल्ली भी.

मोहल्ले वालों ने लड़के के माँ-बाप को बताया भी कि ये शेख चिल्ली तो पागल है. कुछ न कुछ उटपटांग सोचता रहता है और बकता रहता है. इसकी बातों में मत आना.

लड़के के माँ-बाप की उम्मीद जाग गई कि उनका अल्द्का ज़िन्दा हो सकता है. वे उसकी तलाश में दूसरे मोहल्ले चले गए. इधर तब तक वह लड़का भी ठीक हो गया. शेख चिल्ली का मामा उसे उसके घर के पास छोड़ कर आ गया.

लड़के के माँ-बाप ने दिन भर पूरा गाँव छान मारा, लेकिन शाम को लड़का घर पर ही मिला. यह ख़बर पूरे गाँव में आग की तरह फ़ैल गई थी.

ख़बर सुनकर शेख चिल्ली की माँ ख़ुदा का खैर मनाती रही और शेख चिल्ली ये सोचता रहा कि आखिर एक लड़का बकरी का बच्चा कैसे बन गया.


12. लंबी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं

शेख चिल्ली को अपनी एक फ़ुट लंबी दाढ़ी पर बड़ा गुमान था. वह उसका ख़ास ख्याल रखा करता था. उसे लगता था कि लंबी दाढ़ी अक्लमंदी की निशानी है.

लेकिन, एक दिन एक किताब में उसने पढ़ लिया कि लंबी दाढ़ी वाले बेवकूफ़ होते हैं. इस वाक्य का उस पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने अपनी दाढ़ी से निज़ात पाने का इरादा कर लिया, ताकि लोग उसे बेवकूफ़ न समझें.

किताब एक ओर रख वह कैंची ढूंढने में लग गया. घर की हम लाज़िमी जगह में उसने कैंची ढूंढी, लेकिन हाय रे ख़राब किस्मत कि उसे कैंची मिली ही नहीं. अब वो क्या करे? उसे तो किसी भी सूरत में दाढ़ी से निज़ात पाना था.

वह अपना दिमाग दौड़ाने लगा. तभी उसकी नज़र घर के एक कोने में रखे दीपक पर पड़ी. दीपक को देखते ही उसके दिमाग में कौंधा कि क्यों न दीपक की लौ से आधी दाढ़ी जला दूं. बची हुई बाद में मुंडवा लूंगा.

यह ख्याल आते ही उसने दीपक जलाया और एक हाथ से अपनी दाढ़ी पकड़कर उसे दीपक की लौ के पास ले गया. दाढ़ी ने तुरंत आग पकड़ ली. आग की तपिश जब उसके चेहरे को झुलसाने लगी, तो वह छटपटाने लगा.

आनन-फ़ानन में दीपक को फेंककर वह गुसलखाने की ओर भागा और पानी से भरी बाल्टी में अपना सिर डुबो दिया. आग बुझी, तब कहीं उसकी जान में जान आई.

गुसलखाने से बाहर आकर वह सोचने लगा, “किताब में बिल्कुल ठीक लिखा है कि लंबी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं.”


13. शेख चिल्ली और उसके दोस्त

एक बार शेख चिल्ली के पड़ोस के गाँव में मेला लगा. शेख चिल्ली और उसके तीन मूर्ख दोस्त गाँव में मटर-गश्ती करते-करते ऊब गए थे. उन्होंने सोचा क्यों ना, मेला देख लिया जाए.

योजना बनते ही वे चारों पड़ोसी गाँव के लिए निकल गए. रास्ते में एक नदी पड़ी, जिसे उन्हें तैरकर पार करना था. चारों इस बात को लेकर भयभीत थे कि कहीं कोई नदी में डूब ना जाये. लेकिन हिम्मत करके वे सब नदी में उतरे और नदी पार ली.

नदी पार करने के बाद शेख चिल्ली बोला, “दोस्तों, हम चारों सही-सलामत नदी पार कर पाए हैं या नहीं, यह जानने के लिए मैं सबसे सिरों को गिनता हूँ.”

शेख चिल्ली ने तीनों दोस्तों के सिर गिने, “एक..दो…तीन.” लेकिन अपना सिर गिनना भूल गया. कायदे से चार सिर होने चाहिए थे, लेकिन तीन सिर गिनकर शेख चिल्ली रोते हुए बोला, “ये तो तीन ही सिर हुए. हममें से कोई नदी में डूब गया है.”

“ऐसा कैसे हो सकता है? मैं गिनता हूँ.” एक दोस्त ने सिर गिनना शुरू किया, “एक..दो..तीन” वह भी अपना सिर गिनना भूल गया और रोने लगा, “कोई डूब गया है…कोई डूब गया है.”

अब दूसरे दोस्त ने सिरों की गिनती की, “एक..दो..तीन” वह भी अपना सिर गिनना भूलकर रोने लगा. वैसा ही तीसरे दोस्त ने किया. अब शेख चिल्ली और उसके सारे दोस्तों ने रोते हुए तय किया कि गाँव वापस चलते हैं. हम चारों में से कोई एक नदी में डूब गया है. घर चलकर यह बात बतानी होगी.”

चारों रोते हुए घर पहुँचे. शेख चिल्ली की माँ ने उन्हें जब रोते हुए देखा, तो पूछा, “क्या हो गया? क्यों रो रहे हो तुम सब?”

शेख चिल्ली ने रोते-रोते ही सारी बात बताई. तब उसकी माँ शेख चिल्ली के सिर पर चपत लगाकर बोली, “एक”. फिर एक-एक कर तीनों दोस्तों के सिर पर चपत लगाकर बोली, “दो..तीन…चार.”

चार सिर होने पर शेख चिल्ली और उसके मूर्ख दोस्तों ने रोना बंद किया.


14. सबसे बड़ा झूठ 

उन दिनों शेख चिल्ली बादशाह के दरबार में  मुलाज़िम था. बादशाह तो उसे बहुत पसंद करते थे, लेकिन शहज़ादा उससे बहुत चिढ़ता था.

एक दिन सभी दरबार में मौज़ूद थे. शाहजादे ने अचानक एलान किया कि जो सबसे बड़ा झूठ बोलेगा, उसे ईमान में पाँच सौ अशर्फियाँ दी जायेंगी. सभी दरबारी ये एलान सुनकर बहुत ख़ुश हुए और अपनी-अपनी किस्मत आज़माने लगे.

एक दरबारी बोला, “मेरे गाँव में बहुत बड़ी चींटी रहती है, इतनी बड़ी कि एक हाथी को खा जाये.”

दूसरा दरबारी बोला, “एक बार मेरे दादाजी तरबूज़ खा रहे थे. खाते-खाते वो उसके बीज भी खा गए, जिससे उनके पेट में तरबूज़ की बेल उग आई.”

हर दरबारी इसी तरह की झूठी कहानियाँ सुनाकर शाहज़ादे को ख़ुश करने की कोशिश करने लगे. लेकिन, शहज़ादा बोला, “अपने अब तक जो भी कहा है, वो सब मुमकिन है. इसलिए उसे झूठ नहीं माना जा सकता.”

आखिर में शेख चिल्ली की बारी आई और वह अपने स्थान पर खड़ा हो गया.

शाहज़ादे ने कहा, “बताओ चिल्ली, क्या आया है तुम्हारे खुराफ़ाती दिमाग में?”

शेख चिल्ली बोला, “आप इस दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ़ है. बादशाह को आपको कभी भी राजगद्दी पर नहीं बिठाना चाहिए.”

ये सुनकर शाहज़ादे का खून खौल उठा. वह उठकर खड़ा हो गया और चिल्लाया, “सैनिकों, चिल्ली को पकड़कर अभी इसी वक़्त कैदखाने में डाल दो.”

सैनिक दौड़ते हुए शेख चिल्ली के पास आये, तब शेख चिल्ली बोला, “शाहज़ादे! मैंने जो कहा था, वो झूठ था. दुनिया का सबसे बड़ा झूठ. आप उसे सच मानते हैं, तो मुझे कैदखाने में डलवा दीजिये. यदि झूठ मानते हैं कि तो फ़िर निकालिए मेरा ईनाम.”

शहज़ादा क्या करता? उसे मानना ही पड़ा कि शेख चिल्ली के द्वारा जो कहा गया है, वो दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है. उस दिन शेख चिल्ली ख़ुशी-ख़ुशी ईनाम लेकर अपने घर गया.    

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15. शेख चिल्ली की खीर 

शेख चिल्ली निरा मूर्ख था. बातें भी ऐसी करता था कि अच्छे-भले इंसान का सिर चकरा जाए. सबसे ज्यादा वह अपनी माँ को परेशान किया करता था उट-पटांग सवाल पूछ-पूछकर.

एक बार उसने अपनी माँ से पूछा, “माँ मरते कैसे हैं?”

अब माँ क्या जवाब दे? शेख चिल्ली को टरकाने के लिए उसने कह दिया, “आँखें बंद हो जाती हैं और इंसान मर जाता है.”

“ये तो बहुत आसान है.” कहता हुआ चिल्ली घर से बाहर चला गया.

घर से निकलने के बाद शेख चिल्ली घूमता-घामता जंगल चला आया. वहाँ उसने एक पेड़ के नीचे बड़ा सा गड्ढा देखा, तो सोचा क्यों ना मैं आज मर कर देखूं. वह गड्ढे में घुसकर आँखें बंदकर लेट गया.

रात होने पर दो चोर वहाँ आये और उसी पेड़ के नीचे बैठकर बातें करने लगे, जिसके पास गड्ढे में शेख चिल्ली लेटा था.

एक चोर बोला, “चोरी करते समय एक साथी की कमी खलती है. हम तीन होते, तो चोरी करने में सहूलियत रहती. एक घर के सामने पहरा देता, दूसरा घर के पीछे और तीसरा आराम से घर के अंदर घुसकर चोरी करता.”

शेख चिल्ली उनकी बातें सुन रहा था. वह बोला, “दोस्तों! मैं तुम्हारी मदद करना तो चाहता हूँ, लेकिन क्या करूं, मैं तो मरा हुआ हूँ.”

उसकी आवाज़ सुनकर चोरों ने गड्ढे के अंदर झाँककर देखा, तो शेख चिल्ली को आँखें बंदकर वहाँ लेटा हुआ पाया.

उन्होंने पूछा, “तुम कब मरे दोस्त?”

“आज दोपहर.” शेख चिल्ली बोला, “अब तो रात होने को आई है और मरे-मरे भी मुझे भूख लगने लगी है.”

चोरों को समझते देर न लगी कि ये कोई मूर्ख है. उन्होंने सोचा क्यों ना, इसकी मूर्खता का लाभ उठाकर इससे चोरी करवाई जाये.

वे बोले, “अरे भाई, तुम्हें भूख लगी है, तो चलो हमारे साथ. चोरी करने में हमारी मदद कर देना. बदले में हम तुम्हें दावत देंगे. मरने का क्या है? दावत उड़ा कर मर जाना.”

शेख चिल्ली को बात जम गई, क्योंकि भूख के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था और ऊपर से गड्ढे में उसे ठंड भी लग रही थी.

वह दोनों चोरों के साथ हो लिया. तीनों मिलकर गाँव के एक घर में गए. वहाँ एक चोर घर के सामने पहरा देने लगा और दूसरा घर के पीछे. उन्होंने शेख चिल्ली को घर के अंदर चोरी करने भेज दिया.

रसोई के रास्ते शेख चिल्ली घर में घुसा. वहाँ उसने देखा कि दूध, शक्कर और चांवल पड़ा हुआ है. उसकी भूख बढ़ गई और वह चोरी करने की बात भूलकर खीर बनाने लगा. उसने चूल्हा जलाया और उस पर तपेली चढ़ा दी.

उसी रसोई में एक बूढ़ी औरत सो रही थी. ठंड के कारण वह एक कोने में दुबकी थी. लेकिन चूल्हा जलने से उसे थोड़ी गर्माहट महसूस हुई और वो पसर कर सोने लगी.

शेख चिल्ली की नज़र जब उस पर पड़ी, तो देखा कि उसका हाथ पसरा हुआ है. उसे लगा कि वह औरत खीर मांग रही है. वह बुदबुदाया, “खीर बनी नहीं और मांगने वाले हाज़िर हो गए.”

उसने चूल्हे की आंच तेज कर दी, ताकि खीर जल्दी बन सके. आंच तेज होने से गर्माहट और बढ़ गई. बूढ़ी औरत ने अपने हाथ-पैर और ज्यादा पसार लिए.

ये देख शेख चिल्ली झुंझलाया, “अरे इतनी क्या हड़बड़ी है? खीर बनने तो दो, तुम्हें भी दूंगा. पूरा मैं थोड़े खा जाऊंगा.”

लेकिन गर्माहट बढ़ने के साथ-साथ बूढ़ी औरत का पसरना जारी रहा. शेख चिल्ली को लगने लगा कि वह औरत खीर खाने के लिए बेसब्र हुए जा रही है. इसलिए इतना हाथ पसार रही है. झल्ला कर उसने चम्मच से खीर निकाकर उस औरत के हाथ पर डाल दिया.

गर्म खीर हाथ में पड़ते ही बूढ़ी औरत चीखकर उठ बैठी. उसकी चीख सुनकर घर के लोग भी उठ गए और रसोई की तरफ़ भागे. वहाँ शेख चिल्ली को देख उन्होंने उसे कोतवाल के हवाले करने के लिए पकड़ लिया.

तब शेख चिल्ली बोला, “मुझे क्यों पकड़ रहे हो? जो चोर हैं, वो दोनों तो घर के बाहर है. जाओ जाकर उन्हें पकड़ो.”

इस तरह उसने उन चोरों को भी पकड़वा दिया.


16. घर में लगी आग 

शेखचिल्ली की माँ ने किसी से सिफ़ारिश करवाकर राज दरबार में काम करने वाले एक व्यक्ति के पास उसकी नौकरी लगवा दी. शेखचिल्ली का काम अपने मालिक को घोड़ागाड़ी में बैठाकर दरबार ले जाना और वापस लाना था. दिन भर मालिक दरबार में रहता. उस समय शेखचिल्ली बाहर ही घोड़ागाड़ी लगा देता और पहरेदार के पास बैठकर मालिक का इंतज़ार करता.

एक दिन शेखचिल्ली के मालिक के घर आटा ख़त्म हो गया. उसकी बेगम ने देखा कि घर में पैसे भी नहीं है. उसने फ़ौरन एक नौकर को पैसे लाने मालिक के पास भिजवाया. नौकर दरबार जाकर शेखचिल्ली से मिला और उसे सारी बात बताकर मालिक से पैसे मांगकर लाने को कहा.

बिना पहरेदार की अनुमति के शेखचिल्ली दरबार के अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था. उसने पहरेदार से निवेदन किया कि उसे अपने मालिक के पास जाने दे. लेकिन पहरेदार ने मना कर दिया. अब शेखचिल्ली क्या करे? वह वहीँ से ज़ोर से चिल्लाकर मालिक से बोला, “हुज़ूर, आपके घर में आटा ख़त्म हो गया है. मालकिन ने आटा ख़रीदने पैसे मंगाए हैं.”

सारे दरबारी यह बात सुनकर मंद-मंद मुस्कुराने लगे. मालिक बड़ा शर्मसार हुआ. उसे शेखचिल्ली पर बहुत गुस्सा आया. बाहर आकर वह शेखचिल्ली को डांटते हुए बोला, “आइंदा, कभी मुझे दरबार में परेशान मत करना. कुछ भी बताना हो, तो मेरे दरबार से बाहर आने का इंतज़ार करना.”

शेखचिल्ली ने हामी भर दी.

एक दिन मालिक के घर में आग लग गई. घर से नौकर भागा-भागा आया और शेखचिल्ली से यह ख़बर मालिक तक पहुँचाने को कहा. शेखचिल्ली को पिछला वाक्या याद था और मालिक का आदेश भी. इसलिए वह शांति सी दरबार की कार्यवाही समाप्त होने तक बाहर ही खड़ा रहा.

दरबार की कार्यवाही समाप्त होने के बाद जब मालिक बाहर आया, तो शेखचिल्ली ने उसे यह घर में आग लगने की सूचना दी. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी दी. मालिक शेखचिल्ली पर बहुत आग-बबूला हुआ. शेखचिल्ली भोलेपन से कहता रहा, “मालिक, आपने ही आदेश दिया था कि आपको दरबार में परेशान न करूं. आपके दरबार से बाहर आने का इंतज़ार करूं.”

मालिक सिर पीट कर रह गया. शेखचिल्ली को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी.


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