शेर की 15 कहानियाँ | 15 Best Sher Ki Kahani Story 

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फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम शेर की कहानी इन हिंदी (Sher Ki Kahani In Hindi) शेयर कर रहे हैं. जानवरों की कहानियाँ बच्चों में बहुत लोकप्रिय है. इसलिए अनेक कहानियाँ जानवरों के इर्द-गिर्द रची गई हैं. शेर तो जंगल का राजा है. ऐसे में उसके प्रधान किरदार में रची कहानियाँ बेहद रोचक और मनोरंजक लगती हैं. तो पढ़िए शेर की मनोरंजक और ज्ञानवर्धन कहानियाँ (Lion Story For Kids In Hindi) :  

Sher Ki Kahani

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Sher Ki Story In Hindi : 1# शेर और सियार  

बहुत समय पहले की बात है. हिमालय की गुफ़ा में एक सिंह रहा करता था. जंगल के जीव-जंतुओं को अपना आहार बना वह दिन-प्रतिदिन बलिष्ठ होता जा रहा था.

एक दिन जंगली भैंसे का शिकार कर उसने अपनी क्षुधा शांत की और गुफ़ा की ओर लौटने लगा. तभी रास्ते में एक अत्यंत कमज़ोर सियार से उसका सामना हुआ.

निरीह सियार अपने समक्ष बलशाली सिंह को देख नत-मस्तक हो गया और बोला, “वनराज! मैं आपकी शरण में आना चाहता हूँ. मुझे अपना दास बना लीजिये. मैं आजीवन आपकी सेवा करूंगा और आपके शिकार के अवशेष से अपना पेट भर लूंगा.”

सिंह को सियार पर दया आ गई. उसके उसे अपनी शरण में रख लिया. सिंह की शरण में सियार को बिना दर-दर भटके भोजन प्राप्त होने लगा. सिंह के शिकार का छोड़ा हुआ अवशेष उसका होता. जिसे खाकर वह कुछ ही दिनों में हट्टा-कट्ठा हो गया.

शारीरिक सुगढ़ता आने के बाद सियार स्वयं को सिंह के समतुल्य समझने लगा. वह सोचने लगा कि अब वह भी सिंह के सामान बलशाली हो गया है.

इसी दंभ में वह एक दिन सिंह से बोला, “अरे सिंह! मेरा हृष्ट-पुष्ट शरीर देख. बोल, क्या अब मैं तुमसे कम बलशाली रह गया हूँ? नहीं ना. इसलिए आज से मैं शिकार कर उसका भक्षण करूंगा. मेरे छोड़े हुए अवशेष से तुम अपना पेट भर लेना.”

सिंह सियार के प्रति मित्रवत था. उसने उसकी दंभपूर्ण बातों का बुरा नहीं माना. किंतु उसे सियार की चिंता थी. इसलिए उसने उसे समझाया और अकेले शिकार पर जाने से मना किया.

लेकिन दंभ सियार के सिर पर चढ़कर बोल रहा था. उसने सिंह का परामर्श अनसुना कर दिया. वह पहाड़ की चोटी पर जाकर खड़ा हो गया. वहाँ से उसने देखा कि नीचे हाथियों का झुण्ड जा रहा है. उन्हें देख उसने भी सिंह की तरह सिंहनाद करने की सोची, लेकिन था तो वह सियार ही. सियार की तरह जोर से ‘हुआ हुआ’ की आवाज़ निकालने के बाद वह पहाड़ से हाथियों के झुण्ड के ऊपर कूद पड़ा. लेकिन उनके सिर के ऊपर गिरने के स्थान पर वह उनके पैरों में जा गिरा. मदमस्त हाथी अपनी ही धुन में उसे कुचलते हुए निकल गए.

इस तरह सियार के प्राण-पखेरू उड़ गए. पहाडी के ऊपर खड़ा सिंह अपने मित्र सियार की दशा देख बोला, “होते हैं जो मूर्ख और घमण्डी, होती है उनकी ऐसी ही गति.”

सीख (Moral Of The Story)

घमंड विनाश का कारण बनता है. जब घमंड सिर चढ़कर बोलता है, तो मूर्खता हावी होने लगती है और उस दशा में किये गए कर्म विनाश की ओर ले जाते हैं. 


Jungle Ki Kahani Sher Ki : 2 # शेर, ऊँट, सियार और कौवा 

एक वन में मदोत्कट नामक सिंह (Lion) निवास करता था. उसके बाघ, गीदड़, कौवे जैसे कई अनुचर थे. ये दिन-रात सिंह की सेवा करते और सिंह के मारे शिकार के अवशेष से अपना पेट भरते थे.

एक दिन एक ऊँट कहीं से भटकता हुआ उस वन में आ गया. जब सिंह की दृष्टि ऊँट पर पड़ी, तो उसने अपने अनुचरों से पूछा, “ये कौन सा जीव है? हमने पहली बार ऐसा जीव अपने वन में देखा है. यह वन्य प्राणी है या ग्राम्य?”

कौवे ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सिंह को बताया, “वनराज! यह ऊँट है और यह ग्राम्य जीव है. भाग्य इसे आपका भोजन बनाकर ही यहाँ लाया है. आप इसे मारकर खा जाइये.”

“नहीं, मैं ऐसा नहीं करूंगा. यह तो हमारा अतिथि है. अतिथि को मैं कैसे मार सकता हूँ? यह तो पाप होगा. मैं उसे अभयदान देता हूँ. जाओ, उसे आदरपूर्वक मेरे पास लेकर आओ. मैं उससे मिलना चाहता हूँ.” सिंह ने कौवे को आदेश दिया.

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कौवा कुछ अनुचरों के साथ ऊँट के पास गया और उसे सिंह का संदेश सुनाते हुए बोला, “मित्र, वनराज सिंह ने तुम्हें अभयदान प्रदान किया है. वन के राजा होने के नाते वे तुमसे मिलना चाहते हैं.” अभयदान की बात सुन ऊँट कौवे और अन्य अनुचरों के साथ सिंह के पास आ गया.

सिंह ने उससे परिचय और वन में आने का कारण पूछा, तो ऊँट दु:खी होकर बोला, “महाराज, मेरा नाम कथनक है. मैं अपने साथियों संग भ्रमण करते हुए वन में पहुँचा और उनसे बिछुड़ गया. अब मैं यहाँ अकेला रह गया हूँ.”

उसे दु;खी देख सिंह धीरज बंधाते हुए बोला, “कथनक! तुम हमारा आतिथ्य स्वीकार करो. इस वन में जहाँ चाहे विचरण करो और हरी-भरी घास का सेवन करो.”

कथनक सिंह की आज्ञा का पालन कर वहीं रहने लगा. हरी-भरी घास खाकर वह कुछ ही दिनों में हृष्ट-पुष्ट हो गया. बाघ, गीदड़, सियार आदि वन जीव जब भी उसे देखते, उनकी लार टपकने लगती. किंतु वे वन के राजा सिंह के आदेश के समक्ष विवश थे.

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एक दिन कहीं से एक जंगली हाथी वन में आ गया. अपने अनुचरों की रक्षा के लिए सिंह को उससे युद्ध करना पड़ा. दोनों के मध्य घमासान युद्ध हुआ. युद्ध के दौरान हाथी ने सिंह को उठाकर जमीन पर पटक दिया और अपने नुकीले दांत उसके शरीर में गड़ा दिए. किसी तरह सिंह युद्ध में विजयी हो गया, किंतु वह बुरी तरह घायल था.

घायल अवस्था में उसके लिए शिकार पर जाना दुष्कर हो गया. जिससे वह स्वयं तो भूखा रहने लगा. साथ ही उसके अनुचर, जो उसके शिकार के अवशेष से अपना पेट भरते थे, वे भी भूखे रहने लगे. अपनी दुर्दशा देख और अपने अनुचरों की परेशानी देख सिंह दु:खी था.

एक दिन उसने अपने अनुचरों की सभा बुलाई. सभा में सबको संबोधित कर वह बोला, “अनुचरों! मेरी अवस्था से आप सभी अवगत हो. मैं चाहता हूँ कि आप कोई ऐसा जीव तलाश करो, जिसे मैं इस अवस्था में भी मार सकूं. इस तरह हम सभी की भोजन की समस्या का निराकरण हो जायेगा.”

सिंह की आज्ञा पाकर सभी अनुचर विभिन्न दिशाओं में शिकार की तलाश में गए, किंतु किसी के हाथ कुछ न लगा. सबके हताश वापस लौटने के बाद कौवा, गीदड़ और बाघ आपस में मंत्रणा करने लगे. उनकी दृष्टि कई दिनों से कथनक ऊँट पर थी.

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“मित्रों! कथनक इस वन में रहकर कितना हृष्ट-पुष्ट हो गया है. जब भी उसको देखता हूँ, तो मुँह में पानी आ जाता है. तुम लोगों का क्या विचार है? क्यों न इसे ही मारकर अपनी भूख मिटाई जाये. इधर-उधर भटकने का क्या लाभ?” गीदड़ बोला.

“कह तो तुम ठीक रहे हो गीदड़ भाई. किंतु वनराज ने उसे अभयदान दिया है. वे उसे नहीं मारेंगे. अब तुम ही बताओ कि उन्हें कैसे मनायें?” कौवा बोला.

गीदड़ इसका उपाय पहले ही सोच चुका था. उसके अपनी योजना कौवे और बाघ को बता दी. दोनों ने उस योजना के लिए हामी भर दी. साथ ही अन्य अनुचरों को भी योजना के बारे में अच्छी तरह समझा दिया.

इसके बाद वे सिंह के पास पहुँचे. गीदड़ आगे आकार बोला, “वनराज! हम सबने आपके लिए शिकार की बहुत खोज की. किंतु हमें कोई न मिला. कथनक शारीरिक रूप से विशाल है और अब तो वह हृष्ट-पुष्ट भी हो गया है. यदि आप उसका शिकार करें, तो हमारे कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जायेगी.”

“मैंने उसे अभयदान दिया है. मैं उसे नहीं मार सकता.” सिंह ने दो टूक उत्तर दिया.

“यदि कथनक स्वयं को आपकी भूख मिटाने प्रस्तुत करे तो? तब तो आपको कोई आपत्ति नहीं होगी.” गीदड़ बोला.

“नहीं, तब तो कोई आपत्ति नहीं है. किंतु क्या वह ऐसा करेगा?” सिंह अचरज में बोला.

“वनराज! कथनक क्या? आपके भूख मिटाने तो इस वन के समस्त प्राणी तत्पर है. आप आज्ञा करें.” इस तरह गीदड़ ने अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से सिंह को मना लिया.

उसके बाद वह कथनक के पास पहुँचा और उसे बोला, “शाम को वनराज ने एक सभा रखी है. जिसमें तुम्हें भी बुलाया गया है.”

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शाम को सिंह की सभा में वन के सभी जीव उपस्थित थे. कथनक भी उपस्थित हुआ. गीदड़ ने भरी सभा में कहा, “वनराज, हम सभी आपकी अवस्था देख बहुत दु:खी है. आज हम सभी यहाँ उपस्थित हुए हैं, ताकि आपके भोजन के लिए स्वयं को समर्पित कर सकें.”

इसके बाद एक-एक कर सभी जीव सामने आकर स्वयं को सिंह के भोजन के लिए प्रस्त्तुत करने लगे. किंतु गीदड़ उनमें कोई न कोई कमी निकाल देता और सिंह उन्हें खाने से मना कर देता. इस तरह किसी को छोटा, किसी के शरीर पर बाल, किसी के तेज नाखून होना आदि बहाने बनाकर गीदड़ उन्हें बचाता गया.

जब कथनक की बारी आई और उसने देखा कि सारे जीव स्वयं को सिंह के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं और सिंह किसी को भी नहीं मार रहा, तो सबकी देखा-देखी उसने भी स्वयं को सिंह के सामने प्रस्तुत कर दिया, “वनराज, आपके मुझ पर बहुत उपकार है. अब जब आपको आवश्यकता आ पड़ी है, तो मैं स्वयं को आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ. कृपया मुझे मारकर अपनी भूख मिटा लीजिये.”

कथनक को विश्वास था कि अन्य जीवों की तरह सिंह उसको भी नहीं मारेगा. किंतु जैसे ही कथनक की बात पूरी हुई, गीदड़ और बाघ (Tiger) उस पर टूट पड़े और उसे मार डाला.

सीख – इस कहानी से सीख मिलती है कि लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों में कभी नहीं आना चाहिए. स्वामी जब बुद्धिहीन हो और उसके साथी धूर्त, तो चौकन्ना और सावधान रहना आवश्यक है.

Lion Ki Kahani In Hindi : 3 # शेर और ख़रगोश की कहानी

एक जंगल में भारसुक नामक बलशाली शेर (Lion) रहा करता था. वह रोज़ शिकार पर निकलता और जंगल के जानवरों का शिकार कर अपनी भूख शांत करता था. एक साथ वह कई-कई जानवरों को मार देता. ऐसे में जंगल में जानवरों की संख्या दिन पर दिन कम होने लगी.

डरे हुए जानवरों ने इस समस्या से निपटने के लिए सभा बुलाई. वहाँ निर्णय लिया गया कि शेर से मिलकर इस विषय पर बात की जानी चाहिए. इसके लिए जानवरों का एक दल बनाया गया. अगले दिन वह दल शेर से मिलने पहुँचा. शेर ने जब इतने सारे जानवरों को अपनी गुफ़ा की ओर आते देखा, तो आश्चर्य में पड़ गया.

वह गुफ़ा से बाहर आया और गरजकर जानवरों के दल से वहाँ आने का कारण पूछा. दल का मुखिया डरते-डरते बोला, “वनराज! आप तो वन के राजा हैं. हम सभी आपकी प्रजा है. आज आपकी प्रजा आपसे एक विनती करने आई है.”

“कैसी विनती?” शेर ने पूछा.

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“वनराज! आप रोज़ शिकार पर निकलते हैं और कई जानवरों को मार देते हैं. आप उन सभी मरे हुए जानवरों का भक्षण भी नहीं कर पाते. हम सबका विचार था कि आपकी भूख मिटाने यदि रोज़ एक जानवर आपके पास भेज दिया जाये, तो आपको भी आराम रहेगा और हम भी भयमुक्त रहेंगे.”

शेर को बिना मेहनत शिकार प्राप्त हो रहा था, इसलिए उसने यह निवेदन स्वीकार कर लिया. किंतु साथ ही चेतावनी भी दी कि जिस दिन उसके पास जानवर नहीं पहुँचेगा, उस दिन वह सबको मार डालेगा.”

उस दिन के बाद से प्रतिदिन एक जानवर का चुनाव कर उसे शेर के पास भेजा जाने लगा. अब शेर दिन भर गुफ़ा में पड़ा आराम करता रहता. परिणामस्वरुप अन्य जानवर जंगल में सुकून से जीवन जीने लगे.

एक दिन शेर का भोजन बनने की एक ख़रगोश (Hare) की बारी आई. ख़रगोश शेर की गुफ़ा की ओर चल तो पड़ा, किंतु मृत्यु निकट होने के कारण वह अत्यंत भयभीत था. वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ चला जा रहा था. साथ ही किसी तरह अपने प्राण बचाने का उपाय भी सोचता जा रहा था.  

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चलते-चलते रास्ते में एक कुआं पड़ा. कुएं के पास जाकर जब ख़रगोश ने उसमें झांका, तो उसे अपनी परछाई दिखाई पड़ी. उसी क्षण ख़रगोश को अपनी जान बचाने का एक उपाय सूझ गया.  

उपाय सूझते ही ख़रगोश में एक नए जोश का संचार हो गया. उसे शेर के पास जाने की कोई जल्दी नहीं थी. कुछ देर कुएं के पास आराम करने के बाद वह शेर के पास पहुँचा.

इधर भूखा शेर अपने भोजन के आने में हो रही देरी से क्रोध में लाल-पीला हुआ जा रहा था. जैसे ही उसने एक पिद्दी से ख़रगोश को देखा, उसका क्रोध और बढ़ गया. वह गरजकर खरगोश से बोला, “पिद्दी खरगोश, मैं कबसे प्रतीक्षा कर रहा हूँ और तू अब आया है. अब मेरी भूख बढ़ चुकी है. तुझ अकेले से मेरा क्या होगा? तुझ पिद्दी को किस बेवकूफ ने मेरे पास भेजा है तुझे? तेरे बाद अब मैं उसे भी मारकर खा जाऊंगा.”

खरगोश हाथ जोड़कर गिपड़ड़ाया, “वनराज! देरी के लिए मुझे क्षमा करें. विश्वास करिए इसमें न मेरा दोष है, न ही मुझे भेजने वाले का. हम तो पाँच ख़रगोश आपका भोजन बनने निकले थे. किंतु रास्ते में एक दूसरे शेर ने हमें रोक लिया. जब हमने उसे बताया कि हम अपने राजा का भोजन बनने जा रहे है, तो वह चार खरगोशों को मारकर खा गया और मुझे आपके पास यह संदेश देने भेजा कि अब से वह जंगल का राजा है.”

“ऐसा कहा उसने?” शेर गुस्से में दहाड़ा.

“जी वनराज! उसने आपको लड़ाई के लिए ललकारा है. उसने कहा है कि वह आपको मारकर इस जंगल में एकक्षत्र राज करेगा.”

ये सुनना था कि शेर गरजता हुआ बोला, “मुझे अभी इसी समय उसके पास ले चल. मैं उसे बताता हूँ कि इस जंगल का राजा कौन है? आज तो उसकी खैर नहीं.”

ख़रगोश तुरंत तैयार हो गया और शेर को लेकर कुँए के पास आ गया. कुएं को दिखाते हुए वह बोला, “वनराज, ये उस शेर का दुर्ग है. वह इसी दुर्ग में रहता है. आप दुर्ग के द्वार से उसे ललकारिये.”

शेर ने कुएं में झांककर देखा, तो उसे अपनी परछाई नज़र आई. परछाई देखकर उसने सोचा कि अवश्य ही वह दूसरा शेर है और जोर से दहाड़ते हुए उसे ललकारने लगा. कुएं की दीवारों से टकराकर आती हुई अपनी ही दहाड़ की प्रतिध्वनि सुनकर  और अपनी परछाई देखकर उसे लगा कि दूसरा शेर भी दहाड़ते हुए उसे ललकार रहा है. उस ललकार का उत्तर देते हुए उसने कुएं में छलांग लगा दी. कुएं की दीवारों से टकराता हुआ वह पानी में गिरा और डूबकर मर गया.

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शेर के मरने के बाद ख़रगोश ख़ुशी-ख़ुशी वापस लौटा और जंगल के अन्य जानवरों को खुशखबरी सुनाई. सुनकर सभी बहुत खुश हुए और सबने ख़रगोश की ख़ूब प्रशंसा की.

सीख (Moral Of Story)

बुद्धि बल सबसे बड़ा बल होता है. इसलिए मुश्किल घड़ी में सदा बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए. बुद्धि का इस्तेमाल कर हर समस्या का समाधान किया जा सकता है.

Sher Ki Kahani : 4 # पिंजरे में बंद शेर  

एक गाँव के निकट एक घना जंगल था. उस जंगल में रहने वाले एक शेर ने पूरे गाँव में आतंक मचा रखा था. वह रोज़ गाँव में घुस आता और मुर्गियों, बकरियों और अन्य पालतू पशुओं को मार कर खा जाता. शाम को जंगल से गुजरने वाले राहगीर भी उसका शिकार बन जाते. उसके डर से अंधेरा होने के बाद से गाँव वालों ने अपने घरों से बाहर निकलना छोड़ दिया था.

एक दिन गाँव के साहसी युवकों ने शेर के आने वाले रास्ते में पिंज़रा रखकर उसे पकड़ लिया. रात हो चली थी, इसलिए वे पिंजरे को वहीं छोड़कर अपने घर वापस आ गए.

इधर पिंजरे में बंद शेर ने पिंजरे से बाहर निकलने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सफ़ल न हो सका. उसने मदद के लिए काफ़ी शोर मचाया, किंतु वहाँ कोई सुनने वाला नहीं था. वह थक-हार कर पिंजरे में बैठ गया.

कुछ देर बाद उस रास्ते से एक ब्राह्मण गुजरा. वह दूसरे गाँव में पूजा करके वापस लौट रहा था. शेर ने जब उसे देखा, तो आवाज़ लगाकर उसे अपने पास बुलाया और गिड़गिड़ाते हुए बोला, “ब्राह्मणदेव, मुझे इस पिंजरे से बाहर निकालिए. मैं आपका जीवन भर आभारी रहूंगा.”

ब्राहमण डरते-डरते बोला, “मैंने तुम्हें पिंजरे से बाहर निकाला, तो तुम मुझे मारकर खा जाओगे.”

“मैं वचन देता हूँ ब्राहमणदेव कि मैं आपको नहीं मारूंगा और चुपचाप जंगल चला जाऊंगा. मुझ पर विश्वास करें.” शेर ने विनती की.

ब्राह्मण एक दयालु व्यक्ति था. उसे शेर पर दया आ गई और उसने पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़ा खुलते ही शेर पिंजरे से बाहर आ गया और ब्राह्मण पर झपटने लगा.

यह देख ब्राह्मण डर के मारे पीछे हटते हुए बोला, “तुमने मुझे वचन दिया था कि तुम मुझे नहीं मारोगे. तुम अपना वचन कैसे तोड़ सकते हो? मुझे यहाँ से जाने दो.”

“मैं कई दिनों से भूखा हूँ और मेरा शिकार मेरे सामने है. मैं तुम्हें जाने क्यों दूं? तुम्हें खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊँगा.” शेर दहाड़ते हुए बोला.

पेड़ पर बैठा एक बंदर ये सारा नज़ारा देख रहा था. वह शेर की धूर्तता से वाकिफ़ था. ब्राह्मण के बचाव के लिए वह पेड़ से नीचे उतरा और बोला, “क्या बात है? आप लोगों के बीच क्या बहस चल रही है?”

पुजारी ने उसे पूरी बात बता दी, जिसे सुनकर बंदर हंस पड़ा, “क्या मज़ाक कर रहे हो, ब्राह्मणदेव? जंगल का राजा इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजरे में कहा समा सकता है? मैं तो ये मान ही नहीं सकता.”

इस पर शेर बोला, “ये बिल्कुल सच है.”

“अपनी आँखों से देखे बिना मैं आपकी बात भी नहीं मान सकता वनराज.” बंदर शेर से बोला.

“मैं अभी तुम्हें इस पिंजरे में जाकर दिखाता हूँ.” कहकर शेर पिंजरे के अंदर चला गया.

“लेकिन ये पिंजरा तो खुला हुआ है. आप तो इससे खुद ही बाहर आ सकते थे.” बंदर बोला..

बंदर की इस बात पर शेर चिढ़ गया और बोला, “इसका दरवाज़ा बाहर से बंद था.”

बंदर ब्राह्मण से बोला, “ज़रा दिखाओ तो ये दरवाज़ा कैसे बंद था?”

ब्राह्मण ने आगे बढ़कर पिंजरे का दरवाज़ा बंद कर दिया. शेर फिर से पिंजरे में बंद हो चुका था.

बंदर ब्राह्मण से बोला, “इस धूर्त शेर को यहीं बंद रहने दो. अपना वचन तोड़ने का फल इसे मिलना चाहिए.”

इसके बाद बंदर और ब्राह्मण वहाँ से चलते बने. अगले दिन गाँव वालों ने आकर शेर का काम-तमाम कर दिया.

सीख  – धूर्तता का परिणाम बुरा होता है. 

Lion Wali Story : 5 # आलसी बूढ़ा शेर और राहगीर की कहानी

एक जंगल में एक बूढ़ा शेर रहता था. बुढ़ापे के कारण उसका शरीर जवाब देने लगा था. उसके दांत और पंजे कमज़ोर हो गए थे. उसके शरीर में पहले जैसी शक्ति और फुर्ती नहीं बची थी. ऐसी हालत में उसके लिए शिकार करना दुष्कर हो गया था. वह दिन भर भटकता, तब कहीं कोई छोटा जीव शिकार कर पाता. उसके दिन ऐसे ही बीत रहे थे.

एक दिन वह शिकार की तलाश में भटक रहा था. पूरा दिन निकल जाने के बाद भी उसके हाथ कोई शिकार न लगा. चलते-चलते वह एक नदी के पास पहुँचा और पानी पीकर सुस्ताने के लिए वहीं बैठ गया. 

वह वहाँ बैठा ही था कि उसकी दृष्टि एक चमकती चीज़ पर पड़ी. पास जाकर उसने देखा, तो पाया कि वह एक सोने का कंगन था. सोने का कंगन देखते ही उसके दिमाग में शिकार को अपने जाल में फंसाने का एक उपाय सूझ गया.

वह सोने का कंगन हर आने-जाने वाले राहगीर को दिखाता और उसे यह कहकर अपने पास बुलाता, “मुझे ये सोने का कंगन मिला है. मैं इसका क्या करूंगा? मेरे जीवन के कुछ ही दिन शेष है. सोचता हूँ इसका दान कर कुछ पुण्य कमाँ लूं. ताकि कम से कम मरने के बाद मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो. मेरे पास आओ और ये कंगन ले लो.”

शेर जिसे ख़तरनाक जानवर का भला कौन विश्वास करता? कोई उसके पास नहीं आया और दूर से ही भाग खड़ा हुआ. बहुत देर हो गई और कोई सोने के कंगन के लालच में उसके पास नहीं आया. शेर को लगने लगा कि उसका उपाय काम नहीं करने वाला है. तभी नदी के दूसरी किनारे पर उसे एक राहगीर दिखाई पड़ा.

शेर सोने का कंगन हिलाते हुए जोर से चिल्लाया, “महानुभाव! मैं ये सोने का कंगन दान कर रहा हूँ. क्या आप इसे लेकर पुण्य प्राप्ति में मेरी सहायता करेंगे?”

शेर की बात सुनकर राहगीर ठिठक गया. सोने के कंगन की चमक से उसका मन लालच से भर उठा. किंतु उसे शेर का भी डर था. वह बोला, “तुम एक ख़तरनाक जीव हो. मैं तुम्हारा विश्वास कैसे करूं? तुम मुझे मारकर खा गए तो?”

इस पर शेर बोला, “अपने युवा काल में मैंने बहुत शिकार किया है. लेकिन अब मैं वृद्ध हो चला हूँ. मैंने शिकार करना छोड़ दिया है. मैं पूरी तरह शाकाहारी हो गया हूँ. बस अब मैं पुण्य कमाना चाहता हूँ. आओ मेरे पास आकर ये कंगन ले लो.”

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राहगीर सोच में पड़ गया. लेकिन लालच उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर चुका था. शेर तक पहुँचने के लिए उसने नदी में छलांग लगा दी. वह तैरते-तैरते दूसरे किनारे पहुँचने ही वाला था कि उसने अपना पैर कीचड़ में धंसा पाया. वहाँ एक दलदल था.

दलदल से बाहर निकलने वह जितना हाथ-पैर मारता, उतना ही उसमें धंसता चला जाता. ख़ुद को बचाने के लिए उसने शेर को आवाज़ लगाई. शेर तो इसी मौके की तलाश में था. उसने अपने पंजे में दबोचकर राहगीर को दलदल से बाहर खींच लिया और उसके सोचने-समझने के पहले ही उसका सीना चीर दिया. इस तरह सोने के कंगन के लालच में राहगीर अपनी जान गंवा बैठा.

सीख – लालच बुरी बाला है.  

Sher Wali Kahani : 6 # शेर, चूहा और बिल्ली की कहानी

बहुत समय पहले की बात है. दुर्दांत नाम का एक बलिष्ट सिंह अर्बुदशिखर नामक पर्वत की गुफ़ा में निवास करता था. प्रतिदिन वह शिकार हेतु वन में जाता और वापस गुफ़ा में आकर विश्राम किया करता था. एक दिन कहीं से एक चूहा उस गुफा में आ गया धमका और बिल बनाकर रहने लगा.

जब भी सिंह विश्राम कर रहा होता, चूहा बिल से निकलता और सिंह के केशों को कुतर जाता. जागने के उपरांत सिंह की जब अपने कुतरे हुए केशों पर दृष्टि जाती, तो वह क्रोध से आग-बबूला हो जाता. बलशाली होने के बावजूद भी उसका चूहे जैसे छोटे से जीव पर बस नहीं था. जब भी वह उसे पकड़ने के प्रयास करता, वह चपलता से अपने बिल में घुस जाता और सिंह क्रोधवश दांत पीसता रह जाता.

एक दिन सिंह ने सोचा कि इस छोटे से जीव पर अपनी ऊर्जा व्यर्थ करने का कोई औचित्य नहीं है. इसके विनाश के लिए इसका ही कोई परम शत्रु लाना चाहिए और वह गाँव जाकर बहला-फ़ुसलाकर एक बिल्ली ले आया.

प्रतिदिन सिंह बिल्ली के लिए ताज़ा मांस लाया करता और प्रेम से उसे खिलाता. बदले में बिल्ली सिंह के विश्राम के समय चौकसी करती. बिल्ली की उपस्थिति में चूहा डर के मारे बिल में घुसा रहता. सिंह अब निश्चिंत होकर सोने लगा. बिल्ली रोज़ ताज़ा मांस प्राप्त कर हृष्ट-पुष्ट होने लगी.

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इधर चूहा बिला में घुसा-घुसा कमज़ोर हो चला था. सिंह के केश उसका आहार थे. आखिर, कब तक वह भूखे-प्यासे बिल में पड़ा रहता? एक दिन व्याकुल होकर वह अपने बिल से निकल ही गया.

सिंह उस समय विश्राम कर रहा था और बिल्ली पास ही बैठकर मांस का भक्षण कर रही थी. चूहा बिल्ली को चकमा देकर सिंह के पास जाने का प्रयास करने लगा, किंतु बिल्ली चपल थी. उसने चपलता से चूहे को अपने पंजे में दबोच लिया और मारकर खा गई.

बिल्ली प्रसन्न थी कि उसने अपने स्वामी की चिंता का सदा के लिए अंत कर दिया. उसे विश्वास था कि प्रसन्न होकर सिंह अवश्य उसे और स्वादिष्ट मांस लाकर देगा.

सिंह के जागने पर बिल्ली ने उसे चूहे को मार डालने की बात बता दी. सिंह की परेशानी का कारण समाप्त हो चुका था. वह बड़ा प्रसन्न हुआ. किंतु अब बिल्ली उसके किसी प्रयोजन की नहीं रही रही थी. उसने उसे भोजन देना बंद कर दिया. बिना भोजन के बिल्ली कमज़ोर होने लगी. उसे समझ में आ गया कि चूहे को मारकर उसने अपनी उपयोगिता समाप्त कर दी है. इसलिए सिंह उसकी उपेक्षा करने लगा लगा है. अंततः वह गुफ़ा छोड़कर चली गई.

सीखप्रयोजन सिद्ध हो जाने के उपरांत पूछ-परख समाप्त हो जाती है. इसलिए अपनी उपयोगिता बनाये रखें.

Lion Story In Hindi : 7 # गीदड़ गीदड़ ही रहता है 

जंगल की एक गुफ़ा में शेर-शेरनी का जोड़ा रहता था. उनके दो बच्चे थे. शेर प्रतिदिन जंगल जाकर शिकार करता और उसे लेकर गुफ़ा आ जाता. गुफ़ा में दोनों मिलकर शिकार के मांस का भक्षण किया करते थे.

एक दिन पूरा जंगल छान मारने के बाद भी शेर के हाथ कोई शिकार नहीं लगा. निराश होकर वह वापस लौट रहा था कि रास्ते में उसे एक गीदड़ का बच्चा दिखाई पड़ा. बच्चा जानकार वह उसे मार नहीं पाया और जीवित ही मुँह में दबाकर गुफ़ा ले आया.

उसे शेरनी को सौंपते हुए वह बोला, “प्रिये! आज कोई शिकार मेरे हाथ नहीं लगा. वापस लौटने हुए ये गीदड़ का बच्चा दिखाई पड़ा, तो मैं इसे उठा ले आया. मैं तो इस बच्चे को दयावश खा नहीं पाया. यदि तुम चाहो, तो इसे खाकर अपनी भूख मिटा लो.”

शेरनी बोली, “जिसे बच्चा जानकार तुम नहीं मार पाए, उसे मैं कैसे मार सकती हूँ? इस निरीह बच्चे को देखकर मेरा हृदय भी ममता से भर उठा है. आजसे यह मेरी तीसरी संतान है. अपने बच्चे की तरह ही मैं इसका पालन-पोषण करूंगी.”

उस दिन के बाद से गीदड़ का बच्चा शेर-शेरनी की गुफ़ा में ही पलने लगा. शेरनी  उसे अपना दूध पिलाती और अपने बच्चे की तरह देखभाल करती थी. गीदड़ का बच्चा शेर-शेरनी को ही अपने माता-पिता समझता और उनके दोनों बच्चों को अपने भाई. वे सभी प्रेम-पूर्वक एक साथ रहते थे.

समय बीतने लगा और शेर-शेरनी के बच्चे बड़े होने लगे. एक दिन वे तीनों जंगल में खेल रहे थे कि एक मद-मस्त हाथी (Elephant) आ गया. हाथी को देखते ही शेर के दोनों बच्चे गुर्राते हुए उसकी ओर लपके. किंतु गीदड़ का बच्चा डर गया. उसने शेर के दोनों बच्चों को समझाया, “बंधुओं! हाथी हमारा शत्रु है और बहुत बलशाली है. हम उसका सामना करने में सक्षम नहीं है. इसलिए हमें उससे दूरी बनाकर रखनी चाहिये, अन्यथा जान से हाथ धोना पड़ जायेगा. आओ भाग चले.”

शेर के बच्चे उसकी बात मानकर गुफ़ा चले आये. वहाँ उन्होंने शेरनी को जंगल की घटना के बारे में बताया कि कैसे हाथी को देखकर गीदड़ का बच्चा डर गया और कायरता दिखाते हुए हम दोनों को भी भागने को विवश कर दिया. वे दोनों मिलकर गीदड़ के बच्चे का उपहास करने लगे.

अपना उपहास गीदड़ के बच्चे से सहन नहीं हुआ और वह क्रोधित होकर शेर के बच्चों को भला-बुरा कहकर झगड़ने लगा. शेरनी बीच-बचाव करते हुए गीदड़ के बच्चे को समझाने लगी, “ये दोनों तेरे बंधु हैं. इनकी बातों का बुरा मत मान और झगड़ा बंद कर प्रेम से रह.”

किंतु गीदड़ का बच्चा तैश में था. वह बोला, “ये सदा मेरा उपहास करते हैं. बताओ मैं इनसे किस मामले में कम हूँ. मैं भी बहादुर हूँ. मैं चाहूँ, तो अभी इन दोनों को मज़ा चखा सकता हूँ. आज ये मेरे हाथों से बचेंगे नहीं.”

गीदड़ की बातें सुनकर शेरनी समझ गई कि अब उसे वास्तविकता बताने का समय आ गया है. वह बोली, “पुत्र! मेरी बात ध्यान से सुन. तुम बहादुरी में किसी से कम नहीं हो. किंतु जिस कुल में तुम्ह जन्मे हो, वहाँ हाथी से शत्रुता मोल नहीं ली जाती. वास्तव में तुम गीदड़ हो. मैंने तुम्हें अपना दूध पिलाकर अपने बच्चे की तरह पाला है. लेकिन गीदड़ होने के कारण तुममें गीदड़ के ही गुण हैं. अब तुम्हारा भला इसी में है कि तुम अपने कुल में जाकर मिल जाओ. यदि यह बात तुम्हरे दोनों भाइयों को पला चल गई, तो मारे जाओगे.”

शेरनी की बात सुनकर गीदड़ वहाँ से भाग खड़ा हुआ और गीदड़ों के दल में जाकर मिल गया.

Aalsi Sher Ki Kahani : 8 # लोमड़ी और बीमार शेर  की कहानी

जंगल का राजा शेर बूढ़ा हो चला था. उसकी शक्ति क्षीण हो गई थी. उसमें इतना बल शेष नहीं था कि जंगल में जाकर शिकार कर सके. इस स्थिति में उसके समक्ष भूखे मरने की नौबत आ गई थी.

एक दिन अपनी गुफ़ा में बैठा भूखा शेर सोचने लगा कि यदि यही स्थिति रही, तो उसकी मृत्यु निकट है. उसे कोई न कोई उपाय सोचना होगा, ताकि बैठे-बिठाये ही भोजन की व्यवस्था हो जाये. वह सोचने लगा और कुछ ही देर में उसे एक उपाय सूझ गया.

एक चिड़िया की सहायता से उसने पूरे जंगल में अपने बीमार होने की खबर फैला दी. जंगल के राजा शेर के बीमार होने की ख़बर सुनकर जंगल के जानवर उसका हाल-चाल पूछने उसके पास पहुँचने लगे. शेर इसी ताक में था. जैसे ही कोई जानवर उससे मिलने गुफ़ा में प्रवेश करता, वह उसे दबोच कर मार डालता और छककर उसका मांस खाता.

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हर दिन कोई न कोई जानवर उसे देखने आता रहता और शेर को गुफ़ा में ही शिकार हाथ लग जाता. उसके दिन बड़े आराम से गुजरने लगे. अब उसे भोजन के लिए जंगल में भटकने की आवश्यकता नहीं रह गई थी. बिना मेहनत के उसे अपनी ही गुफ़ा में भरपेट भोजन मिलने लगा था. कुछ ही दिनों में वह अच्छा मोटा हो गया.

एक सुबह एक लोमड़ी उसे देखने आई. लोमड़ी चालाक थी. वह गुफ़ा के अंदर नहीं गई, बल्कि गुफ़ा के द्वार पर खड़ी हो गई. वहीं से उसने शेर से पूछा, “वनराज! आपकी तबियत कैसी है? क्या अब आप अच्छा महसूस कर रहे हैं?”

“कौन हो मित्र? अंदर तो आओ. मैं बीमार बूढ़ा शेर बाहर तक तुमसे मिलने नहीं आ सकता. मेरी दृष्टि भी कमज़ोर है. मैं तुम्हें यहाँ से ठीक से देख भी नहीं सकता. आओ मेरे पास आओ. मुझसे आखिरी बार मिल लो. मैं कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ.” शेर ने फ़ुसलाकर लोमड़ी को गुफ़ा के अंदर बुलाने का प्रयत्न किया.

शेर के बोलते समय लोमड़ी बड़े ही ध्यान से गुफ़ा के आस-पास का नज़ारा ले रही थी. शेर की बात ख़त्म होते ही वह बोली, “वनराज! मुझे क्षमा करें. मैं अंदर नहीं आ सकती. आपकी गुफ़ा में अंदर जाते हुए जानवरों के पैरों के निशान तो हैं, किंतु बाहर आते हुए नहीं. इसका अर्थ मैं समझ गई हूँ. सब कुछ जानते-बूझते हुए भी यदि मैं अंदर आ गई, तो उस जानवरों की तरह मारी जाऊंगी, जिनके पैरों के ये निशान हैं. इसलिए मैं जा रही हूँ.”

लोमड़ी ने जंगल में जाकर बूढ़े शेर की करतूत सभी जानवरों को बता दी. उसके बाद कोई भी जानवर शेर से मिलने नहीं गया. इस तरह अपनी बुद्धिमानी से लोमड़ी ने न सिर्फ़ अपनी जान बचाई, बल्कि जंगल के अन्य जानवरों को भी शेर के हाथों मरने से बचा लिया.

सीख – बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों की गलतियों से सबक लेते हैं.

Sher Chuha Aur Shikari Ki Kahani : 9 # शेर और चूहा की कहानी

जंगल का राजा शेर खा-पीकर आराम से एक पेड़ की छाँव में सो रहा था. तभी कहीं से एक नटखट चूहा वहाँ आ पहुँचा और खेलने लगा. खेलते-खेलते वह शेर के ऊपर चढ़ गया.

कभी वह शेर की पीठ पर दौड़ता, तो कभी सिर पर चढ़ जाता. कभी वह उसके कान पर झूलता, तो कभी पूंछ से खेलता. उसे बड़ा मज़ा आ रहा है और उसकी उछल-कूद बढ़ती जा रही थी.

नटखट चूहे की धमा-चौकड़ी से शेर की नींद टूट गई. आँख खोलकर उसने देखा कि एक छोटा सा चूहा उसके ऊपर खेल रहा है. उसे बहुत गुस्सा आया और उसने चूहे को अपने पंजे में दबोच लिया.

शेर के पंजे में आते ही चूहे डर गया और थर-थर कांपने लगा. शेर बोला, “बदमाश चूहे, तेरी इतनी हिम्मत की तू जंगल के राजा शेर की नींद में खलल डाले. अब तेरी खैर नहीं. मरने के लिए तैयार हो जा. अब मैं तुझे मारकर खा जाऊंगा.”

मौत सामने देख चूहा गिड़गिड़ाने लगा, “वनराज, मुझे क्षमा कर दें. मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई. मुझ जैसे छोटे से प्राणी को खाकर आपको क्या मिलेगा? आपका पेट तो भर नहीं पायेगा. कृपा कर मुझे छोड़ दीजिये. अवसर आने पर मैं अवश्य आपके काम आऊंगा.”

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चूहे की बात सुनकर शेर हँसने लगा और बोला, “मैं जंगल का राजा हूँ. मुझसे बलशाली इस पूरे जंगल में कोई नहीं. तू छोटा सा चूहा मेरे क्या काम आएगा? लेकिन फिर भी मैं दया करके तुझे प्राणदान देता हूँ. मेरी नज़रों से दूर हो जा और आइंदा कभी मेरी नींद में खलल मत डालना.”

चूहा धन्यवाद कहकर वहाँ से चला गया.  

कुछ दिन बीते. एक दिन शेर जंगल में शिकार के लिए घूम रहा था कि वह शिकारी द्वारा बिछाए जाल में फंस गया. उसने बहुत प्रयत्न किया, किंतु जाल से बाहर नहीं आ पाया. वह मदद के लिए दहाड़ने लगा.

शेर की दहाड़ वहाँ से गुज़र रहे एक चूहे के कानों में पड़ी. यह वही चूहा था, जिसे शेर ने दया कर प्राणदान दिया था. चूहे दहाड़ की दिशा में गया, तो शेर को जाल में फंसा हुआ पाया. उसने फ़ौरन अपने नुकीले दांतों से जाल काट दिया. शेर आज़ाद हो गया.

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उसने चूहे को धन्यवाद दिया, तो चूहा बोला, “वनराज, आप शायद मुझे भूल गए हैं. मैं वही चूहा हूँ, जिसे अपने प्राणदान दिया था. मैंने आपको कहा था कि किसी दिन मैं अवश्य आपके काम आऊंगा. देखिये आज मैं आपके काम आ ही गया.”

शेर को वह दिन याद आ गया और उस दिन की अपनी सोच पर बहुत पछतावा हुआ कि जिस चूहे को उसने तुच्छ समझा था, उसी की सहायता से वह शिकारी से बच पाया है.

सीख –

१. बाहरी स्वरुप देखकर किसी की योग्यता का आंकलन नहीं करना चाहिए.

२. उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता. किसी न किसी रूप में उसका फ़ल अवश्य प्राप्त होता है.

Sher Aur Shikari Ki Kahani : 10 # शेर और बंदर की कहानी 

एक बार की बात है. जंगल के राजा शेर और बंदर में विवाद हो गया. विवाद का विषय था – ‘बुद्धि श्रेष्ठ है या बल’ (Wisdom Is Better Than Strength).

शेर की दृष्टि में बल श्रेष्ठ था, किंतु बंदर की दृष्टि में बुद्धि. दोनों के अपने-अपने तर्क थे. अपने तर्क देकर वे एक-दूसरे के सामने स्वयं को सही सिद्ध करने में लग गये.

बंदर बोला, “शेर महाराज, बुद्धि ही श्रेष्ठ है. बुद्धि से संसार का हर कार्य संभव है, चाहे वह कितना ही कठिन क्यों न हो? बुद्धि से हर समस्या का निदान संभव है, चाहे वह कितनी ही विकट क्यों न हो? मैं बुद्धिमान हूँ और अपनी बुद्धि का प्रयोग कर किसी भी मुसीबत से आसानी से निकल सकता हूँ. कृपया यह बात मान लीजिये.”

बंदर का तर्क सुन शेर भड़क गया और बोला, “चुपकर बंदर, तू बल और बुद्धि की तुलना कर बुद्धि को श्रेष्ठ बता रहा है. बल के आगे किसी का ज़ोर नहीं चलता. मैं बलवान हूँ और तेरी बुद्धि मेरे बल के सामने कुछ भी नहीं. मैं चाहूं, तो इसी क्षण इसका प्रयोग कर तेरे प्राण ले सकता हूँ.”

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बंदर कुछ क्षण शांत रहा और बोला, “महाराज, मैं अभी तो जा रहा हूँ. किंतु मेरा यही मानना है कि बुद्धिं बल से श्रेष्ठ है. एक दिन मैं आपको ये प्रमाणित करके दिखाऊंगा. मैं अपनी बुद्धि से बल को हरा दूंगा.”

“मैं उस दिन की प्रतीक्षा करूंगा, जब तुम ऐसा कर दिखाओगे. उस दिन मैं अवश्य तुम्हारी इस बात को स्वीकार करूंगा कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ है. किंतु, तब तक कतई नहीं.” शेर ने उत्तर दिया.

इस बात को कई दिन बीत गए. बंदर और शेर का आमना-सामना भी नहीं हुआ.

एक दिन शेर जंगल में शिकार कर अपनी गुफ़ा की ओर लौट रहा था. अचानक वह पत्तों से ढके एक गड्ढे में जा गिरा. उसके पैर में चोट लग गई. किसी तरह  वह गड्ढे से बाहर निकला, तो पाया कि एक शिकारी उसके सामने बंदूक ताने खड़ा है. शेर घायल था. ऐसी अवस्था में वह शिकारी का सामना करने में असमर्थ था.

तभी अचानक कहीं से शिकारी पर पत्थर बरसने लगे. शिकारी हड़बड़ा गया. इसके पहले कि वो कुछ समझ पाता, एक पत्थर उसके सिर पर आकर पड़ा. वह दर्द से तिलमिला उठा और अपने प्राण बचाने वहाँ से भाग गया.

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शेर भी चकित था कि शिकारी पर पत्थरों से हमला किसने किया और किसने उसके प्राणों की रक्षा की. वह इधर-उधर देखते हुए ये सोच ही रहा था कि सामने एक पेड़ पर बैठे बंदर की आवाज़ उसे सुनाई दी, “महाराज, आज आपके बल को क्या हुआ? इतने बलवान होते हुए भी आज आपकी जान पर बन आई.”

बंदर को देख शेर ने पूछा, “तुम यहाँ कैसे?”

“महाराज, कई दिनों से मेरी उस शिकारी पर नज़र थी. एक दिन मैंने उसे गड्ढा खोदते हुए देखा, तो समझ गया था कि वह आपका शिकार करने की फ़िराक में है. इसलिए मैंने थोड़ी बुद्धि लड़ाई और ढेर सारे पत्थर इस पेड़ पर एकत्रित कर लिए, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग शिकारी के विरुद्ध कर सकूं.”

बंदर ने शेर के प्राणों की रक्षा की थी. वह उसके प्रति कृतज्ञ था. उसने उसे धन्यवाद दिया. उसे अपने और बंदर में मध्य हुआ विवाद भी स्मरण हो आया. वह बोला, “बंदर भाई, आज तुमने सिद्ध कर दिया कि बुद्धि बल से श्रेष्ठ होती है. मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है. मैं समझ गया हूँ कि बल हर समय और हर परिस्थिति में एक सा नहीं रहता, लेकिन बुद्धि हर समय और हर परिस्थिति में साथ रहती है.”

बंदर ने उत्तर दिया, “महाराज, मुझे प्रसन्नता है कि आप इस बात को समझ गए. आज की घटना पर ध्यान दीजिये. शिकारी आपसे बल में कम था, किंतु बावजूद इसके उसने अपनी बुद्धि से आप पर नियंत्रण पा लिया. उसी प्रकार मैं शिकारी से बल में कम था, किंतु बुद्धि का प्रयोग कर मैंने उसे डराकर भगा दिया. इसलिए हर कहते हैं कि बुद्धि बल से कहीं श्रेष्ठ है.”

सीख – बुद्धि का प्रयोग कर हर समस्या का निराकरण किया जा सकता है. इसलिए बुद्धि को कभी कमतर न समझें. 

Sher Ki Kahani : 11 # गधा, लोमड़ी और शेर की कहानी

एक बार जंगल में रहने वाली चालाक लोमड़ी की मुलाकात सीधे-सादे गधे से हुई. उसने गधे के सामने मित्रता का प्रस्ताव रखा. गधे का कोई मित्र नहीं था. उसने लोमड़ी की मित्रता स्वीकार कर ली. दोनों ने एक-दूसरे को वचन दिया कि वे सदा एक-दूसरे की सहायता करेंगे.

उस दिन के बाद से दोनों अपना अधिकांश समय एक-दूसरे के साथ गुजारने लगे. वे जंगल में घूमा करते, घंटों एक-दूसरे से बातें किया करते थे. गधा लोमड़ी का साथ पाकर बहुत ख़ुश था.

एक दिन दोनों जंगल के तालाब किनारे बातें कर रहे थे. तभी वहाँ जंगल का राजा शेर पानी पीने आया. उसने जब गधे को देखा, तो उसके मुँह में पानी आ गया.

लोमड़ी को शेर की मंशा भांपते देर नहीं लगी. वह सोचने लगी कि क्यों न शेर से एक समझौता किया जाए. मैं उसे गधे को मारने में सहायता करूंगी. इस तरह मेरे भोजन की भी व्यवस्था को जायेगी.

वह शेर के पास गई और मधुर स्वर में बोली, वनराज! यदि आप उस गधे का मांस खाना चाहते हैं, तो आपकी सहायता कर सकती हूँ. बस आप मुझे वचन दें कि आप मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचायेंगे और थोड़ा मांस मुझे भी दे देंगे.”

शेर भला सामने से आ रहे प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार करता? वह मान गया. अगले दिन योजना अनुसार लोमड़ी गधे को भोजन ढूंढने के बहाने जंगल में एक ऐसे स्थान पर ले गई, जहाँ एक गहरा गड्ढा था.

लोमड़ी की बातों में उलझे गधे की दृष्टि गड्ढे पर नहीं पड़ी और वह उसमें गिर पड़ा. लोमड़ी ने तुरंत पेड़ के पीछे छुपे शेर को इशारा कर दिया. शेर भी इसी अवसर की ताक में था.

उसने पहले लोमड़ी पर हमला किया और उसे मारकर छककर उसका मांस खाया. बाद में उसने गधे को मारकर उसके मांस की दावत उड़ाई.

शिक्षा – मित्र को धोखा देने वाले का परिणाम बुरा होता है.

Sher Ki Kahani : 12 # चार ब्राहमण और शेर 

एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था. उसके चार पुत्र थे. तीनों बड़े ब्राह्मण पुत्रों द्वारा शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया गया था, परन्तु बुद्धि की उनमें कमी थी. चौथे ब्राह्मण पुत्र को शास्त्र-ज्ञान नहीं था, परन्तु वह बुद्धिमान था.

एक दिन चारों भाई भविष्य की चर्चा करने लगे. बड़ा भाई बोला, “हमने इतनी विद्या अर्जित की है. किंतु, जब तक इसका उपयोग न किया जाये, यह व्यर्थ है. सुना है, हमारे राज्य के राजा विद्वानों का बड़ा सम्मान करते हैं. क्यों न हम राज-दरबार जाकर उन्हें अपने ज्ञान से प्रभावित करें? पुरूस्कार स्वरुप वह अवश्य हमें अपार धन-संपदा प्रदान करेंगे.”

सभी भाइयों को यह बात उचित प्रतीत हुई और अगले ही दिन वे राजा से मिलने चल पड़े. उन्होंने आधा रास्ता ही पार किया था कि बड़ा भाई कुछ सोचते हुए बोला, “हममें से तीन के पास विद्या है. हम राजा के पास जाकर उनसे धन अर्जित करने के पात्र हैं. किंतु, सबसे छोटा बुद्धिमान तो है, पर उसके पास विद्या नहीं है. मात्र बुद्धि के बल पर राजा से धन का अर्जन संभव नहीं है. हम इसे अपने हिस्से में से कुछ नहीं देंगे. इसका घर लौट जाना ही उचित होगा.”

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दूसरे भाई ने भी बड़े भाई का समर्थन किया, किंतु तीसरा भाई बोला, “यह हमारा भाई है. हम सब साथ पले-बढ़े हैं. इसलिए इसके साथ ऐसा व्यवहार अनुचित होगा. इसे साथ चलने देना चाहिए. मैं अपना कुछ धन इसे दे दूंगा.”

अंत में, सभी सहमत हो और आगे की यात्रा प्रारंभ की.

मार्ग में एक घना जंगल पड़ा. जंगल से गुजरते हुए उन्हें शेर की हड्डियों का ढेर दिखाई पड़ा. उसे देखकर बड़ा भाई बोला, “भाइयों, आज अपनी विद्या का परीक्षण करने का समय आ गया है. देखो, इस मृत शेर को. हमें अपनी-अपनी विद्या का प्रयोग कर इसे जीवित करना चाहिए.”

सबसे बड़े भाई ने शेर की हड्डियों को इकट्ठा कर उसका ढांचा बना दिया. दूसरे भाई ने अपनी सिद्धि से हड्डियों के ढांचे पर मांस चढ़ाकर रक्त का संचार कर दिया. तीसरा भाई अपनी विद्या से शेर में प्राणों का संचार करने आगे बढ़ा, तो चौथे भाई ने उसे रोक दिया और बोला, “भैया, कृपा कर ऐसा अनर्थ मत कीजिये. यदि यह शेर जीवित हुआ, तो हम सबके प्राण हर लेगा.”

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यह सुनकर तीसरा भाई क्रोधित हो गया, वह बोला, “मूर्ख, तुम्हारे साथ चलने का समर्थन कर कदाचित् मैंने त्रुटि कर दी है. तुम चाहते हो कि मैं अपनी विद्या नष्ट कर दूं. किंतु, ऐसा कतई नहीं होगा. मैंने इस शेर को अवश्य जीवित करूंगा.”

चौथा भाई बोला, “क्षमा करें भैया. मेरा अर्थ यह कतई नहीं था. आपको जो उचित लगे करें. बस मुझे किसी वृक्ष पर चढ़ जाने दें.”

यह कहकर वह एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ गया. तीसरे भाई ने अपने विद्या से शेर को जीवित कर दिया. परन्तु, जैसे ही शेर जीवित हुआ, उसने तीनों भाइयों पर आक्रमण कर उन्हें मार डाला.

चौथा भाई, जिसने बुद्धि का प्रयोग किया था, वह वृक्ष पर बैठा यह सब देख रहा था. वह वृक्ष से तब तक नहीं उतरा, जब तब शेर चला नहीं गया. सिंह के जाने के बाद वह वृक्ष से उतरा और गाँव लौट गया.

शिक्षा –  बुद्धि सदैव विद्या से श्रेष्ठ होती है. शास्त्रों में निपुण होने पर भी लोक-व्यवहार न जानने वाला व्यक्ति हमेशा उपहास का पात्र बनता है या समस्या को आमंत्रित करता है.

Lion Ki Kahani In Hindi : 13 # शेर और जंगली सूअर की कहानी

एक जंगल में एक शेर रहता था. एक दिन उसे बहुत ज़ोरों की प्यास लगी. वह पानी पीने एक झरने के पास पहुँचा. उसी समय एक जंगली सूअर भी वहाँ पानी पीने आ गया.

शेर और जंगली सूअर दोनों स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझते थे. इसलिए पहले पानी पीकर एक-दूसरे पर अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे. दोनों में ठन गई और लड़ाई शुरू हो गई.

उसी समय कुछ गिद्ध आसमान से उड़ते हुए गुजरे. शेर और जंगली सूअर की लड़ाई देख उन्होंने सोचा कि आज तो दावत पक्की है. इन दोनों की लड़ाई में कोई-न-कोई तो अवश्य मरेगा. फिर छककर उसका मांस खाएंगे. वे वहीं मंडराने लगे.

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इधर शेर और जंगली सूअर के बीच लड़ाई जारी थी. दोनों पर्याप्त बलशाली थी. इसलिए पीछे हटने कतई तैयार नहीं थे. लड़ते-लड़ते अचानक शेर की दृष्टि आसमान में मंडराते गिद्धों पर पड़ी. वह फ़ौरन सारा माज़रा समझ गया.

लड़ना बंद कर वह जंगली सूअर से बोला, “ऊपर आसमान में देखो. गिद्ध मंडरा रहे हैं. वे हम दोनों में से किसी एक की मौत की प्रतीक्षा में है. लड़ते-लड़ते मरने और फिर गिद्धों की आहार बनने से अच्छा है कि हम आपस में मित्रता कर लें और शांति से पानी पीकर अपने घर लौटें.”

जंगली सूअर को शेर की बात जंच गई. दोनों मित्र बन गए और साथ में झरने का पानी पीकर अपने निवास पर लौट गए.

शिक्षा – आपसी शत्रुता में तीसरा लाभ उठाता है. इसलिए एक-दूसरे के साथ मित्रवत रहें.

Sher Ki Kahani : 14 # शेर और मच्छर की कहानी

जंगल के राजा शेर को अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था. वह स्वयं को सबसे शक्तिमान समझता था. इसलिए, जंगल के हर जानवरों पर अपनी धौंस जमाता रहता था. जंगल के जानवर भी क्या करते? अपने प्राण सबको प्रिय थे. इसलिए, न चाहकर भी शेर के सामने नतमस्तक हो जाते.

एक दिन दोपहर के समय शेर एक पेड़ के नीचे सो रहा था. वहीं एक मच्छर भिनभिना रहा था, जिससे शेर की नींद में खलल पड़ रहा था. वह एक मच्छर से बोला, “ए मच्छर, देखता नहीं मैं सो रहा हूँ. भाग यहाँ से, नहीं तो मसल कर रख दूंगा.”

मच्छर बोला, “क्षमा करें वनराज, मेरे कारण आपकी नींद में व्यवधान उत्पन्न हुआ. किंतु, आप मुझे ये बात नम्रता से भी कह सकते हैं. आखिर, मैं भी इस धरती का जीव हूँ.”

“अच्छा, तो तू छोटा सा मच्छर मुझसे जुबान लड़ाएगा. और क्या ग़ल कहा मैंने? तुम मच्छर हो ही ऐसे कि कोई भी तुम्हें यूं मसल दें. मैं तो ये बार-बार कहूंगा. क्या बिगाड़ लोगे तुम मेरा?”

मच्छर को शेर की बात और व्यवहार बहुत बुरा लगा. वह अपने साथी मच्छरों के पास गया और उन्हें सारी बताई. सभी मच्छरों को शेर की बात चुभ गई. उन्होंने तय किया कि इस संबंध में एक बार सब मिलकर शेर से बात करेंगे.
सभी मच्छर शेर के पास पहुँचे और बोले, “वनराज, हमें आपसे बात करनी है.”

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“जल्दी बोलो, मुझे तुम जैसों से बात करने की फ़ुर्सत नहीं है.” शेर बोला.

“वनराज, आप होंगे बहुत शक्तिशाली. किंतु, इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि आप अन्य जीवों और प्राणियों का मज़ाक उड़ायें या उन्हें नीचा दिखाएं.” मच्छर बोले.

“मैंने जो कहा, सच कहा. मैं सबसे शक्तिशाली हूँ और मुझे कोई हरा नहीं सकता.” घमंड में चूर शेर गरजा.

“ऐसा नहीं है. अगर आप शक्तिशाली हैं, तो हममें भी इतना सामर्थ्य है कि आवश्यकता पड़ने पर हम किसी का भी सामना कर सकते हैं और उसे हरा सकते हैं. हम आपको भी हरा सकते हैं.” मच्छर भी चुप न रहे.

यह सुनकर शेर हँसते हुए बोला, “तुम लोग मुझे हराओगे? तुम लोगों की इतनी हिम्मत कि मेरे सामने आकर ये बात कहो. मेरी शक्ति का अंदाज़ा नहीं है तुम्हें. अन्यथा, ऐसा कभी नहीं कहते. अभी भी समय है, भाग जाओ यहाँ से, नहीं तो कोई नहीं बचेगा.”

शेर के घमंड ने मच्छरों को क्रुद्ध कर दिया. उन्होंने ठान लिया कि इस शेर को मज़ा चखा कर ही रहेंगे. वे सारे एकजुट हुए और शेर पर टूट पड़े. वे जगह-जगह उसे काटने लगे. वह दर्द से कराह उठा. इतने सारे मच्छरों का सामना करना उसके बस के बाहर हो गया.

वह दर्द से चीखता हुआ वहाँ से भागा. लेकिन मच्छरों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. वह जहाँ भी जाता, वे भी उसके पीछे जाते और उसे काटते. आखिरकार, शेर को झुकना पड़ा. उसने हार मान ली. वह मच्छरों के सामने गिपड़गिड़ाने लगा, “मुझे बख्श दो. मुझसे गलती हो गई, जो मैंने तुम्हें तुच्छ समझकर तुम्हारा मज़ाक उड़ाया और तुमसे बुरा व्यवहार किया. आज तुमने मेरा घमंड तोड़ दिया है. अब मैं कभी किसी को नीचा नहीं दिखाऊंगा.”

मच्छरों ने शेर को सबक सिखा दिया था. इसलिए उन्होंने उसे काटना बंद कर दिया. वे बोले, “घमंडी का घमंड कभी न कभी अवश्य टूटता है. आज तुम्हारा टूटा है. घमंड करना छोड़ दो, अन्यथा, एक दिन ये तुम्हें ले डूबेगा. और कभी किसी प्राणी को नीचा मत समझो, हर किसी का अपना सामर्थ्य और शक्ति होती है.”

शेर तौबा करते हुए वहाँ से भाग गया.

शिक्षा (Moral of the story)

घमंडी का सिर नीचा.

Lion Story In Hindi : 15 # शेर और मूर्ख गधा की कहानी

एक जंगल में करालकेसर नामक शेर रहता था. धूसरक नामक गीदड़ उसका सेवक था, जो उसकी सेवा-टहल किया करता था और बदले में शेर द्वारा मारे गए शिकार का अंश भोजन के रूप में प्राप्त करता था.

एक बार शेर का हाथी से सामना हो गया. दोनों अपने गर्व में चूर थे. बात बढ़ी और युद्ध तक पहुँच गई. दोनों में युद्ध हुआ, जिसमें हाथी शेर पर हावी रहा. उसने शेर को सूंड से पकड़कर उठाया और धरती पर पटक दिया. शेर के शरीर की कई हड्डियाँ टूट गई.

शेर बुरी तरह चोटिल हो चुका था. ऐसे में शिकार पर जाना उसके लिए दुष्कर था. वह दिन भर एक स्थान बैठा रहता. शिकार न कर पाने के कारण वो और उसका सेवक गीदड़ दोनों भूखे मरने लगे.

एक दिन शेर गीदड़ से बोला, “यदि इसी तरह चला, तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारे प्राण पखेरू उड़ जायेंगे. इस समस्या का कुछ न कुछ समाधान निकालना पड़ेगा.”

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“वनराज! क्या करें? आप तो शिकार पर जा नहीं सकते. मैं ठहरा आपका सेवक. मैं तो आप पर निर्भर हूँ.” गीदड़ ने उत्तर दिया.

“इस स्थिति में मेरा शिकार पर जाना संभव नहीं. लेकिन यदि कोई जानवर मेरे निकट आ गए, तो अब भी मुझमें इतनी शक्ति है कि अपने पंजे के एक वार से उसके प्राण हर सकता हूँ. तुम किसी जानवर को बहला-फुसलाकर मुझ तक ले आओ. मैं उसे मार डालूंगा और फिर हम दोनों छककर उसका मांस खायेंगे.” शेर बोला.

गीदड़ को शेर की बात जंच गई और वह शिकार की खोज में निकल पड़ा. चलते-चलते वह एक गाँव में पहुँचा. वहाँ उसने एक खेत में लम्बकर्ण नामक गधे को चरते हुए देखा. उसे देख वह सोचने लगा कि इस गधे को किसी तरह शेर के पास ले जाऊं, तो कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जायेगी.

वह गधे के पास गया और स्वर में मिठास भरकर बोला, “अरे मित्र, क्या हाल बना रखा है? पहले कितने हृष्ट-पुष्ट हुआ करते थे. इतने दुबले-पतले कैसे हो गए? लगता है धोबी कुछ ज्यादा ही काम ले रहा है.”

गीदड़ ने गधे की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. गधा दु:खी स्वर में बोला, “सही समझे मित्र. मैं बड़ा दु:खी हूँ. धोबी मुझसे आवश्यकता से अधिक काम लेता है और कुछ गलती हो जाने पर खूब पीटता है. ऊपर से खाने को भी कुछ भी देता. इधर-उधर चरकर कर किसी तरह मैं अपनी भूख शांत करता हूँ. इसलिए मेरा ऐसा हाल हो गया है.”

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गीदड़ ने मौके की नज़ाकत समझ ली और कहने लगा, “मैं तुम्हारा दुःख समझ सकता हूँ मित्र. वैसे तुम चाहो तो मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान पर ले जा सकता हूँ, जहाँ हरी घास का विशाल मैदान है. तुम वहाँ जी भर कर घास खा सकते हो.”

“ये तो बहुत अच्छी बात कही मित्र. किंतु वहाँ जंगली जानवरों का भय होगा. प्राणों पर संकट आ गया तो? मैं यहीं ठीक हूँ. जो भी प्राप्त हो रहा है. कम से कम सुरक्षित तो हूँ.” गधे ने अपनी शंका जताई.

“अरे मित्र, क्या बात कर रहे हो? मेरे होते हुए तुम्हें किस बात का भय? वह पूरा क्षेत्र मेरे अधीन है. वहाँ कोई तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकता. तुम निर्भय होकर वहाँ के घास के मैदानों में चर सकते हो. और एक बात तो मैं तुम्हें बताना ही भूल गया. वहाँ तीन गर्दभ कन्यायें भी रहती हैं, जो अपने लिए वर की खोज में हैं. संभवतः, वहाँ तुम्हारी बात भी बन जाये.” गीदड़ उसे फुसलाते हुए बोला.

गधा उसकी बातों में आकर उसके साथ चलने को तैयार हो गया. गीदड़ उसे लेकर उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ शेर बैठा हुआ था. गीदड़ को गधे के साथ आते हुए देख शेर ख़ुश हो गया और अपनी सारी शक्ति जुटाकर उठ खड़ा हुआ, ताकि गधे का शिकार कर सके.

इधर गधे ने जैसे ही शेर को उठते हुए देखा, वह वहाँ से भाग गया. शेर में इतनी शक्ति ही नहीं थी कि वह उसका पीछा कर सके. गीदड़ को शेर पर बहुत क्रोध आया कि हाथ में आया शिकार उसने यूं ही जाने दिया.

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वह बोला, “वनराज, अब मुझे समझ में आया कि हाथी ने आपको युद्ध में पटकनी कैसे दी? आप में तो गधे का शिकार करने का भी सामर्थ्य नहीं है. हाथी तो फ़िर अति बलवान था.”

शेर लज्जित होकर बोला, “क्या करूं? मैं झपट्टा मारता, उसके पहले ही वह भाग गया. मेरे पंजे का एक वार भी लग जाता, तो वह बचकर नहीं जा पाता. तुम उसे किसी तरह एक बार फिर ले आओ. अबकी बार मैं उसे दबोच ही लूँगा.”

“उसे दोबारा लाना बहुत कठिन है. फिर भी मैं यत्न करूंगा. किंतु, इस बार वह आये, तो बचके जाने ना पाए.” गीदड़ बोला.

फ़िर वह गधे की तलाश में निकला पड़ा. कुछ दूर जाने पर उसने देखा कि गधा एक पेड़ के नीचे सुस्ता रहा है. वह उसेक पास गया और बोला, “क्या हुआ मित्र. तुम वहाँ से क्यों भाग आये?”

“अच्छी बात कर रहे हो तुम. तुम मुझे किस भयानक जीव के पास ले गए थे, जो मुझे देखते साथ मेरे पीछे भागा था. आज तो मुझे मौत सामने दिखाई पड़ रही थी. पूरा जोर लगाकर भागा न होता, तो अभी तुमसे बात न कर रहा होता.” गधा हांफते हुए बोला.

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गीदड़ ने फिर से अपना पासा फेंका, “अरे तुमने ध्यान नहीं दिया. वो एक गर्दभी कन्या थी. तुम्हें देख वह उतावली हो गई और तुम्हारे पास आने लगी. किंतु, तुम तो ऐसे भागे की नज़रों से ओझल ही हो गये. अब वो तुमसे पुनः मिलने की आस में बैठी है. मुझे तुम्हें लाने के लिए भेजा है. वो तुमसे मिलना चाहती थी. कदाचित्, वह तुम्हारे प्रेम में पड़ गई है. तुम्हें भी उससे मिलना चाहिए. उसे इस तरह सताना उचित नहीं.”

गधा फिर गीदड़ की बातों में आ गया और उसके साथ फिर जंगल की ओर चल पड़ा. शेर वहाँ घात लगाये बैठा था. इस बार उसने गलती नहीं की. जैसे ही गधा उसके निकट आया, उसके अपने पंजे का शक्तिशाली वार किया और गधे के प्राण हर लिए.

गीदड़ और शेर के भोजन का प्रबंध हो चुका था. दोनों बहुत खुश थे. शेर गीदड़ से बोला, “मैं नदी में स्नान कर आता हूँ, तुम तब तक इसकी निगरानी करो.”

गीदड़ गधे के शव की निगरानी करने लगा. शेर नदी की ओर चला गया. उधर शेर स्नान करने में समय ग्गाया रहा था और इधर गीदड़ भूख से व्याकुल हो रहा था. आखिर, उससे रहा न गया और उसने गधे का कान और दिमाग खा लिया.

शेर जब स्नान कर लौटा, तो गधे के कान और दिमाग को गायब देख गीदड़ पर क्रुद्ध हो गया, “लोभी, मैंने तुझे निगरानी के लिए यहाँ छोड़ा था. किंतु, तुझसे मेरी प्रतीक्षा भी नहीं हुई. तूने इसे जूठा कर दिया. अब क्या मैं तेरी जूठन खाऊँ?”

गीदड बोला, “वनराज, आप गलत ना समझें. इस गधे के कान और दिमाग तो थे ही नहीं. होते तो क्या ये एक बार मौत के मुँह से बचने के बाद दोबारा वापस आता.”

शेर को गीदड़ की बात ठीक लगी. फ़िर क्या था? दोनों ने छककर गधे का मांस खाया और अपनी भूख मिटाई.

शिक्षा (Moral of the story)  

१. किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए.

२. लोभ नहीं करना चाहिए.


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