आधे रास्ते को मंज़िल न समझें : धैर्य पर कहानी | Short Story On Patience In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम धैर्य पर कहानी (Short Story On Patience In Hindi) प्रस्तुत कर रहे हैं. धैर्य के महत्व का वर्णन करती ये कहानी बतलाती है कि सफ़लता की राह में एक बड़ा रोड़ा धैर्य खो देना भी है. इसलिए जीवन में सफलता प्राप्त करना है, तो अंतिम समय तक धैर्य ना खोयें. पढ़िए Wisdom Story About Patience In Hindi

Short Story On Patience In Hindi

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Short Story On Patience In Hindi
Short Story On Patience In Hindi | Short Story On Patience In Hindi

जंगल के किनारे एक छोटा सा गाँव था. जंगल में जंगली जानवरों की बहुतायत थी. इसलिए गाँव के लोगों को पेड़ पर चढ़ने का ज्ञान होना अति-आवश्यक था, ताकि जंगली जानवरों से सामना होने पर वे पेड़ पर चढ़कर अपनी जान बचा सकें.

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जो लोग जंगल में लकड़ियाँ काटने जाते थे, उनके जंगली जानवरों से दो-चार होने की अधिक संभावना थी. इसलिए वे लोग पेड़ पर चढ़ना अवश्य सीखते थे. 

उस गाँव में एक बुजुर्ग सज्जन रहा करते थे. सब लोग उन्हें ‘बाबा’ बुलाते थे. वे पेड़ पर चढ़ने की विधा में माहिर थे और लोगों को पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण दिया करते थे. गाँव के अधिकांश लोग उनसे ही प्रशिक्षण प्राप्त करने जाया करते थे.

एक दिन बाबा ने उन युवकों के समूह को बुलाया, जिन्हें वे पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण दे रहे थे. वह उस समूह के प्रशिक्षण का अंतिम दिन था.

बाबा उन्हें एक पेड़ के पास लेकर गए. वह एक ऊँचा और चिकना पेड़ था, जिस पर चढ़ना बेहद कठिन था.

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बाबा युवकों से बोले, “आज तुम्हारे प्रशिक्षण का अंतिम दिन है. मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुम लोग पेड़ पर चढ़ने में माहिर हो गए हो. इसलिए मैं तुम्हें इस चिकने और ऊँचे पेड़ पर चढ़ने की चुनौती दे रहा हूँ. यदि तुम सब इस पेड़ पर चढ़ने में सफ़ल रहते हो, तो दुनिया के किसी भी पेड़ पर आसामी से चढ़ सकते हो.”

बाबा की बात सुनकर सभी युवक उत्त्साहित हो गये. वे पेड़ पर चढ़ने के लिए एक पंक्ति में खड़े हो गए. सबसे पहला युवक पेड़ पर चढ़ने लगा. वह बड़ी ही आसानी से पेड़ पर चढ़ा और फिर नीचे उतरने लगा. उतरते समय जब वह आधे रास्ते में था, तब बाबा बोले, “सावधान…आराम से संभलकर उतरो. कोई जल्दी नहीं है.”

उस युवक ने वैसा ही किया. वह आराम से सावधानी से नीचे उतरा. उसके बाद एक-एक कर सारे युवक पेड़ पर चढ़ने लगे. जब वे पेड़ पर चढ़ते, तब तो बाबा उन्हें कुछ नहीं कहते. लेकिन जब वे पेड़ से उतरते समय आधे रास्ते पर होते या बस नीचे पहुँचने वाले होते, तो बाबा कहते, “सुनो, आराम से, थोड़ा संभलकर और पूरी सावधानी से उतरो. किसी प्रकार की कोई जल्दी नहीं है.”

सभी युवकों ने बाबा की बात मानी और पेड़ पर चढ़कर नीचे उतरने में सफ़ल हुए.

सब बड़े ख़ुश थे. लेकिन एक बात उन्हें खटक रही थी और वह यह थी कि बाबा ने उन्हें पेड़ से उतरते समय ही सावधान रहने को क्यों कहा. पेड़ पर चढ़ते समय क्यों नहीं?

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उन्होंने बाबा से पूछ ही लिया, “बाबा इस पेड़ की सबसे ऊपरी शाखा पर चढ़ना सबसे कठिन था. लेकिन आपने उस पर चढ़ते समय हमें संभलकर रहने नहीं कहा. लेकिन पेड़ से उतरते समय जब जमीन तक की दूरी बहुत कम रह गई थी, तब आपने हमें संभलकर और सावधान रहने को कहा. ऐसा क्यों?”

बाबा बोले, “देखो, पेड़ की सबसे ऊपरी शाखा पर चढ़ना बहुत कठिन है. ये मैं भी जानता हूँ और तुम भी. इसलिए मेरे बिना बोले ही तुम पहले से ही सतर्क थे. ऐसा हर किसी के साथ होता है. कार्य के प्रारंभ में सब सतर्कता से ही आगे बढ़ते हैं. किंतु सतर्कता और सावधानी में चूक तब होती है, जब हम मंजिल के समीप होते हैं. तब हमें लगने लगता है कि हमारा काम तो पूरा होने को है. मंजिल अब दूर नहीं और वहाँ हमारा ध्यान भटक जाता है और हम गलती कर जाते हैं. इसलिए हमेशा याद रखो कि मंजिल के नज़दीक पहुँचने और यथार्थ में मंजिल पर पहुँचने में  बहुत फ़र्क है.”

युवकों को बाबा की इस बात से जीवन की एक बहुत बड़ी सीख प्राप्त हुई.

मित्रों, हमारी जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि किसी काम को पूरा करने के कगार पर होकर भी हम उसे पूरा नहीं कर पाते. अंतिम क्षणों में कुछ गड़बड़ हो जाती है और हम पछताते रह जाते हैं. अंतिम क्षणों की ज़रा सी असावधानी से हमारा पूरा काम बिगड़ देती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मंजिल के करीब पहुँचकर हम अपना धैर्य खो देते हैं. धैर्य खो देने के कारण हमसे चूक हो जाती है. इसलिए जब तक  मंजिल तक न पहुँचे, धैर्य बनाकर रखें. कार्य के प्रारंभ में जितना धैर्य और सावधानी आवश्यक है, कार्य समाप्ति तक भी आवश्यक है. इसलिए कार्य पूर्ण होने तक धैर्य न खोएं. उतने ही सावधान रहें, जितने प्रारंभ. कहीं धैर्य खो देना लक्ष्य खो देने का कारण न बन जाए.


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