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श्राविका चंदनबाला की कथा | Shravika Chandanbala Ki Katha

श्राविका चंदनबाला की कथा  (Shravika Chandanbala Ki Katha Jain Story In Hindi)

जैन धर्म में करुणा, त्याग, और अहिंसा को सर्वोपरि माना गया है। जैन धर्म के इतिहास में महिलाओं का भी उतना ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। श्राविका चंदनबाला की कथा इसी बात का उदाहरण है। यह कथा हमें दिखाती है कि कैसे एक महिला ने कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन को सार्थक बनाया। 

Shravika Chandanbala Ki Katha

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Shravika Chandanbala Ki Katha

चंदनबाला का जन्म एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में हुआ था। उनका असली नाम वसुमति था। वे अपने गुणों, सुंदरता, और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध थीं। उनका जीवन सुख और समृद्धि से भरा था, लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था।  

एक दिन, उनके राज्य पर दुश्मनों ने आक्रमण किया। युद्ध के दौरान उनके पिता की हत्या कर दी गई, और वे बंदी बना ली गईं। चंदनबाला को दासियों के साथ बेच दिया गया। वह एक क्रूर व्यापारी के हाथों में पड़ गई, जिसने उन्हें बहुत कष्ट दिए।  

चंदनबाला के लिए वह समय अत्यंत कठिन था। लेकिन कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को अपनाए रखा। वे शांत, संयमी, और धर्म के प्रति समर्पित रहीं।  

एक दिन, उस व्यापारी ने उनकी सुंदरता को देखकर सोचा कि वह उन्हें किसी राजा को बेच देगा। उसने चंदनबाला को एक सुंदर वस्त्र पहनाकर महल में प्रस्तुत करने की तैयारी की। लेकिन चंदनबाला ने शर्त रखी कि वह केवल उसी व्यक्ति की दासी बनेगी, जो धर्म के नियमों का पालन करता हो और अहिंसा का अनुयायी हो।  

इस बीच, भगवान महावीर स्वामी अपने धर्म प्रचार के दौरान उस नगर में आए। उनकी ख्याति सुनकर चंदनबाला को आशा की एक किरण मिली। उन्होंने सोचा कि भगवान महावीर जैसे दयालु और धर्मात्मा व्यक्ति ही उन्हें इस बंधन से मुक्त कर सकते हैं।  

भगवान महावीर स्वामी ने नगर में उपदेश दिया और लोगों को धर्म का मार्ग दिखाया। चंदनबाला ने उनकी उपस्थिति के बारे में सुना और उनकी शरण में जाने की ठानी।  

चंदनबाला के संकल्प और उनकी धर्म निष्ठा से प्रभावित होकर, एक सज्जन व्यक्ति ने उन्हें दासता से मुक्त कर दिया। वे भगवान महावीर के दर्शन के लिए गईं और उनके चरणों में समर्पित हो गईं।  

चंदनबाला ने भगवान महावीर से जैन धर्म के सिद्धांतों की शिक्षा ली। उन्होंने भगवान महावीर से श्राविका बनने की दीक्षा ली और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।  

भगवान महावीर स्वामी के धर्म प्रचार के दौरान, उन्होंने एक बार यह संकल्प लिया कि वे उसी दिन भोजन करेंगे, जब उन्हें किसी श्राविका द्वारा घर में बनी भोजन सामग्री से भोजन कराया जाएगा।  

यह सुनकर, चंदनबाला ने भगवान महावीर के लिए भोजन तैयार किया। उनके समर्पण और धर्म निष्ठा से भगवान महावीर प्रसन्न हुए। चंदनबाला ने भगवान महावीर को अपने हाथों से भोजन कराया।  

इस घटना ने चंदनबाला को अन्नपूर्णा के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। वे धर्म के प्रति समर्पण और सेवा का प्रतीक बन गईं।  

सीख

1. धैर्य और सहनशीलता: कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और धर्म का पालन करना ही सच्चा साहस है।  

2. अहिंसा का महत्व: किसी भी परिस्थिति में अहिंसा और करुणा का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।  

3. धर्म के प्रति निष्ठा: धर्म के प्रति अटूट विश्वास और समर्पण से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।  

4. सच्ची सेवा: धर्म के मार्ग पर चलकर दूसरों की सेवा करना जीवन को सार्थक बनाता है।  

श्राविका चंदनबाला की कथा हमें यह सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, धर्म का मार्ग कभी नहीं छोड़ना चाहिए। उनका जीवन करुणा, त्याग और सेवा का प्रतीक है। उन्होंने अपने त्याग और समर्पण से न केवल अपने जीवन को सफल बनाया, बल्कि हमें भी धर्म और मानवता का सच्चा मार्ग दिखाया।

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