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सिद्धार्थ और हंस की कहानी | Siddhartha And The Swan Story In Hindi

सिद्धार्थ और हंस की कहानी (Siddhartha And The Swan Story In Hindi) Devadatta And Siddhartha Story In Hindi इस पोस्ट में शेयर की जा रही है।

प्राचीन भारत के कपिलवस्तु राज्य में राजा शुद्धोधन और रानी माया के पुत्र सिद्धार्थ का जन्म हुआ। सिद्धार्थ ने अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में ही करुणा और अहिंसा के गुण दिखाना शुरू कर दिया था। उनकी संवेदनशीलता और करुणा की एक कहानी विशेष रूप से प्रसिद्ध है—सिद्धार्थ और हंस की कहानी (Siddhartha Aur Hans Ki Kahani)

Siddhartha And The Swan Story In Hindi

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Siddhartha And The Swan Story In Hindi

सिद्धार्थ जब छोटे थे, तो वे अपने दोस्तों के साथ बगीचे में खेला करते थे। एक दिन वे सभी बगीचे में आनंद ले रहे थे कि अचानक एक हंस आकाश में उड़ते हुए आया और घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा। हंस के गिरने का कारण सिद्धार्थ के चचेरे भाई देवदत्त का तीर था। देवदत्त ने खेल-खेल में हंस पर तीर चलाया था।

सिद्धार्थ तुरंत हंस के पास गए और उसे अपनी गोद में उठा लिया। हंस के पंखों से खून बह रहा था और वह दर्द में था। सिद्धार्थ ने हंस की देखभाल की, उसके पंखों से तीर निकाला, और उसे आराम देने का प्रयास किया। उन्होंने हंस के घाव को धोया और उसे सुरक्षित रखा।

इस बीच देवदत्त वहां पहुंचा और उसने हंस को वापस मांगा। उसने कहा, “यह हंस मेरा है क्योंकि मैंने इसे मारा है।” लेकिन सिद्धार्थ ने देवदत्त की बात मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने उत्तर दिया, “हंस को मारने का अधिकार तुम्हें हो सकता है, लेकिन उसे बचाने का अधिकार मुझे है। यह हंस अब मेरी जिम्मेदारी है।”

देवदत्त ने जोर देकर कहा, “मैंने इसे तीर से मारा है, इसलिए यह हंस मेरा है।”

सिद्धार्थ ने शांतिपूर्वक कहा, “अगर तुमने इसे मारा है, तो इसे जीवित करने का अधिकार भी तुम्हारा होना चाहिए। लेकिन जब तक यह जीवित है, इसे बचाने का अधिकार मेरा है।”

इस विवाद को सुलझाने के लिए वे दोनों राजा शुद्धोधन के पास पहुंचे। राजा ने दोनों की बातें सुनीं और फिर अपने मंत्रियों से सलाह ली। अंततः, राजा ने कहा, “जीवन की रक्षा करने का अधिकार हमेशा हत्या करने के अधिकार से बड़ा होता है। इसलिए, यह हंस सिद्धार्थ का है क्योंकि उसने इसकी जान बचाई है।”

सिद्धार्थ की करुणा और उनके न्यायप्रियता ने सभी को प्रभावित किया। उन्होंने हंस की देखभाल जारी रखी और जब हंस पूरी तरह से स्वस्थ हो गया, तो उसे स्वतंत्र कर दिया। इस घटना ने सिद्धार्थ के जीवन में करुणा और अहिंसा के महत्व को और भी गहरा कर दिया।

सीख

  • सिद्धार्थ ने इस घटना से एक महत्वपूर्ण सीख ली कि हर जीव के जीवन का महत्व है और उसे बचाना हमारा कर्तव्य है। यही करुणा और अहिंसा का सिद्धांत आगे चलकर गौतम बुद्ध के शिक्षाओं का मूल आधार बना। उन्होंने संपूर्ण जीवन में इसी करुणा और अहिंसा का प्रचार किया और लोगों को सिखाया कि सच्ची शांति और संतोष तभी मिल सकता है जब हम दूसरों की भलाई के लिए कार्य करें।
  • इस कहानी का महत्व केवल सिद्धार्थ और हंस तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें भी सिखाती है कि करुणा और अहिंसा हमारे जीवन के महत्वपूर्ण गुण हैं। जब हम दूसरों की पीड़ा को समझकर उनकी मदद करते हैं, तब ही हम सच्ची मानवता का पालन करते हैं। सिद्धार्थ की यह कहानी आज भी हमें प्रेरणा देती है कि हम अपने जीवन में करुणा और अहिंसा को अपनाएं और दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करें।

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