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सीता माता की नितनेम की कहानी | Sita Mata Ki Nitnem Ki Kahani

सीता माता की नितनेम की कहानी (Sita Mata Ki Nitnem Ki Kahani) 

भारतीय संस्कृति में धर्म और निष्ठा का गहरा महत्व है। नित्य नियम या नितनेम, आत्मिक उन्नति और मानसिक शांति का आधार है। यह केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और अनुशासन का प्रतीक है। सीता माता, जिन्हें आदर्श नारी और भक्ति की मूर्ति माना जाता है, ने अपने जीवन में नितनेम का पालन करते हुए हर कठिनाई का सामना किया। उनकी नितनेम की कहानी हमें यह सिखाती है कि कैसे सच्चे मन से की गई प्रार्थना जीवन के सभी संकटों को हर सकती है।

Sita Mata Ki Nitnem Ki Kahani

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Sita Mata Ki Nitnem Ki Kahani

सीता माता बचपन से ही धर्मपरायण थीं। राजा जनक की पुत्री होते हुए भी वे अत्यंत सरल और ईश्वर के प्रति समर्पित थीं। उनका जीवन सदैव नितनेम का पालन करते हुए बीता। उनके नितनेम में भगवान विष्णु की आराधना, तुलसी पूजा, और नियमित ध्यान शामिल था। वे सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करतीं और भगवान का स्मरण करतीं। यही नियम उन्होंने अपने जीवन के हर पड़ाव में निभाया, चाहे वे जनकपुर के महलों में रही हों या वनवास के कष्टदायक दिनों में।  

वनवास के समय, जब श्रीराम और लक्ष्मण के साथ उन्हें जंगल में रहना पड़ा, तब भी उन्होंने नितनेम को कभी नहीं छोड़ा। दंडकारण्य के जंगल, जहां हर तरफ खतरनाक जानवर और राक्षस थे, वहां भी सीता माता का नितनेम नियमित चलता रहा। उनका यह नियम न केवल उनकी आत्मा को बल देता था, बल्कि श्रीराम और लक्ष्मण के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता था।  

एक दिन की बात है, जब श्रीराम और लक्ष्मण जंगल में लकड़ियां और फल इकट्ठा करने के लिए गए हुए थे। सीता माता कुटिया में अकेली थीं। हमेशा की तरह उन्होंने सुबह उठकर स्नान किया, पूजा की थाली सजाई, और भगवान का स्मरण करते हुए अपने नितनेम की शुरुआत की।  

जंगल की यह सुबह बाकी दिनों से अलग थी। आसमान में हल्की धुंध थी और पक्षी असामान्य रूप से चुप थे। सीता माता ने इसे प्रकृति का सामान्य बदलाव मानते हुए अपने ध्यान में मन लगाया। तभी अचानक, कुटिया के पास अजीब आवाजें आने लगीं। राक्षसों का एक दल, जो जंगल में शिकार की तलाश में था, कुटिया के पास आ गया।  

राक्षसों ने सीता माता को अकेला देखकर उन्हें डराने और अपमानित करने की योजना बनाई। वे कुटिया के पास आकर जोर-जोर से अट्टहास करने लगे और डरावनी बातें कहने लगे। लेकिन सीता माता ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। वे अपने नितनेम में मग्न रहीं।  

राक्षसों को यह देखकर और अधिक क्रोध आया कि उनकी धमकियों का कोई प्रभाव नहीं हो रहा है। उन्होंने कुटिया के अंदर आकर उपद्रव करने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही वे कुटिया में कदम रखते, उन्हें अदृश्य शक्ति रोक देती। सीता माता की भक्ति और उनके उच्चारित मंत्रों का प्रभाव इतना शक्तिशाली था कि राक्षस कुटिया के अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहे थे। 

सीता माता ने अपने नितनेम में भगवान विष्णु के साथ श्रीराम का भी स्मरण किया। उनका विश्वास था कि ईश्वर सच्चे भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं। उनकी आंखें बंद थीं, लेकिन मन पूर्णत: स्थिर और भगवान के चरणों में समर्पित था।  

राक्षसों ने सीता माता को भयभीत करने की आखिरी कोशिश की। लेकिन जैसे ही वे उनके निकट पहुंचे, अचानक तेज प्रकाश फैल गया। यह प्रकाश भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा का प्रतीक था। राक्षसों की शक्ति क्षीण हो गई, और वे डर के मारे वहां से भाग गए।  

श्रीराम और लक्ष्मण जब जंगल से लौटे, तो उन्होंने यह चमत्कार देखा। कुटिया के चारों ओर पवित्र प्रकाश और तुलसी की सुगंध फैली हुई थी। उन्होंने सीता माता को नितनेम करते हुए पाया। जब सीता माता ने उन्हें पूरा प्रसंग सुनाया, तो श्रीराम ने गर्व से कहा, “हे सीता, तुम्हारी भक्ति और नितनेम ने हमें यह सिखाया कि सच्चे मन से किया गया ईश्वर का स्मरण हर संकट को दूर कर सकता है। तुम्हारी भक्ति केवल तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि पूरी सृष्टि के लिए एक आदर्श है।”  

सीख

सीता माता की नितनेम की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि ईश्वर के प्रति सच्चा विश्वास और नियमित साधना जीवन के कठिनतम समय में भी आत्मबल प्रदान करती है। नितनेम केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के मन, आत्मा और शरीर को शुद्ध करने का माध्यम है।  

सीता माता के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अनुशासन और ईश्वर के प्रति समर्पण ही सच्ची भक्ति है। जब हम नियमित रूप से ईश्वर का स्मरण करते हैं, तो हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह ऊर्जा हमें हर परिस्थिति में साहस और धैर्य प्रदान करती है।  

सीता माता की नितनेम की यह कहानी पवित्रता, भक्ति, और आत्मबल का अद्भुत उदाहरण है। यह हमें यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, हमें अपने जीवन में धर्म और नित्य नियम का पालन करना चाहिए। जब हमारा मन और आत्मा शुद्ध होते हैं, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।  

सीता माता का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायक है। उनका नितनेम न केवल उनके लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक आदर्श है। यही कारण है कि आज भी भारतीय संस्कृति में नित्य नियम और साधना को इतना महत्व दिया जाता है।

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