सियार न्यायधीश जातक कथा (Siyar Nyayadhish Jataka Katha) जातक कथाएँ बौद्ध साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ हैं। इनमें नैतिक और व्यावहारिक शिक्षा छुपी होती है, जो जीवन में सही मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। ये कथाएँ सरल भाषा में होती हैं और जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाने के लिए कल्पनात्मक ढंग से प्रस्तुत की जाती हैं। प्रस्तुत कथा “सियार न्यायधीश” भी एक ऐसी ही कहानी है, जो लालच, मित्रता, और समझदारी के महत्व को उजागर करती है।
Siyar Nyayadhish Jataka Katha
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किसी नदी के किनारे घने वन में एक सियार अपनी पत्नी के साथ रहता था। एक दिन उसकी पत्नी ने इच्छा व्यक्त की कि वह रोहित मछली (एक प्रकार की बड़ी मछली) खाना चाहती है। सियार अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था और उसने वादा किया कि वह उसे उसी दिन मछली लाकर खिलाएगा। यह वादा पूरा करने के लिए वह नदी के किनारे चल पड़ा, ताकि कोई मौका मिले और वह मछली पकड़ सके।
कुछ देर बाद सियार ने नदी किनारे दो ऊदबिलावों, अनुतीरचारी और गंभीरचारी को देखा। वे दोनों नदी के किनारे बड़े ध्यान से बैठे थे, जैसे किसी मौके की तलाश में हों। अचानक एक विशाल रोहित मछली नदी के किनारे आ गई और अपनी दुम हिलाने लगी। यह मौका देखकर गंभीरचारी ने बिना देरी किए नदी में छलांग लगाई और मछली की दुम को कसकर पकड़ लिया। लेकिन मछली का वजन गंभीरचारी से कहीं अधिक था, इसलिए वह उसे खींचने लगी और लगभग पानी के भीतर ले जाने लगी।
गंभीरचारी ने महसूस किया कि वह अकेले मछली को बाहर नहीं खींच सकता, इसलिए उसने अनुतीरचारी को बुला लिया। दोनों मित्र मिलकर मछली को खींचने लगे और आखिरकार बड़ी मेहनत से मछली को तट पर लाकर मार डाला। मछली के मारे जाने के बाद, अब समस्या यह थी कि मछली का कौन सा हिस्सा किसे मिलेगा। दोनों ऊदबिलावों के बीच यह विवाद शुरू हो गया कि मछली का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा किसके पास जाएगा।
सियार, जो अब तक दूर से यह सब देख रहा था, मौके का फायदा उठाने के लिए आगे आया। उसने दोनों ऊदबिलावों से कहा कि वे इस विवाद को समाप्त करने के लिए उसे न्यायाधीश मान लें। ऊदबिलावों ने सोचा कि यह एक अच्छा सुझाव है, और उन्होंने सियार को अपना न्यायाधीश मान लिया।
सियार ने अपने न्यायाधीश होने का परिचय देते हुए कहा कि वह मछली के हिस्से बाँटने में निष्पक्ष रहेगा। उसने मछली का सिर और पूँछ अलग कर दिए और कहा:
– अनुतीरचारी को मछली की पूँछ मिलेगी।
– गंभीरचारी को मछली का सिर मिलेगा।
– और बाकी का हिस्सा, यानी मछली का पूरा धड़, न्यायाधीश को जाएगा, क्योंकि न्याय करने का यह शुल्क है।
इस निर्णय के बाद, सियार ने मछली का बड़ा हिस्सा, यानी धड़, अपने कब्जे में ले लिया और खुशी-खुशी अपनी पत्नी के पास चला गया। वह अपनी पत्नी से किए वादे को पूरा करने में सफल हो गया और उसे स्वादिष्ट मछली खिलाई।
दूसरी ओर, दोनों ऊदबिलाव, जो शुरू में मछली के बड़े हिस्से के लिए लड़ रहे थे, अब बहुत दुखी हो गए। उनके हाथ केवल मछली का सिर और पूँछ आई, जो खाने के लिए लगभग बेकार थे। दुख और पछतावे के साथ दोनों ने कहा, “अगर हम आपस में न लड़ते तो हमें पूरी मछली मिलती। लेकिन हम लड़ते रहे और सियार ने हमारी पूरी मछली ले ली। अब हमारे पास केवल यह छोटा सिर और सूखी पूँछ ही बची है।”
पास के एक पेड़ पर बैठे एक पक्षी ने यह सब देखा और एक गीत गाया:
“होती है लड़ाई जब शुरु
लोग तलाशते हैं मध्यस्थ
जो बनता है उनका नेता
लोगों की समपत्ति है लगती तब चुकने
किन्तु लगते हैं नेताओं के पेट फूलने
और भर जाती हैं उनकी तिजोरियाँ।”
सीख
- जब भी दो लोग या पक्ष किसी छोटी बात पर लड़ते हैं, तो इसका फायदा कोई तीसरा व्यक्ति उठा सकता है। अनुतीरचारी और गंभीरचारी की तरह हम भी अगर छोटी-छोटी बातों पर आपस में विवाद करते हैं, तो अंत में हमारे हाथ केवल पछतावा ही आता है। यदि वे दोनों आपस में समझदारी से मछली का बंटवारा करते, तो उन्हें सियार की चालाकी का शिकार नहीं होना पड़ता।
- लालच और आपसी मतभेद के कारण न केवल हम अपनी संपत्ति खो सकते हैं, बल्कि धोखे का शिकार भी हो सकते हैं। इसलिए, हमें मिलकर और समझदारी से काम लेना चाहिए, न कि लड़ाई-झगड़े में समय बर्बाद करना चाहिए। सत्ता और न्याय के नाम पर कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए कैसे फायदा उठाते हैं। सियार ने अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए ऊदबिलावों की लड़ाई का फायदा उठाया और खुद मछली का सबसे बड़ा हिस्सा ले गया। इसलिए, हमें किसी भी स्थिति में सही और गलत की पहचान करनी चाहिए और धोखाधड़ी से बचना चाहिए।
इस प्रकार, “सियार न्यायाधीश” जातक कथा न केवल बच्चों को बल्कि सभी उम्र के लोगों को सिखाती है कि आपसी सहयोग और समझदारी से ही किसी समस्या का समाधान संभव है, न कि लड़ाई-झगड़े से।
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