सोई हुई राजकुमारी की कहानी | Sleeping Beauty Fairy Tale In Hindi

फ्रेंड्स, परियों की कहानी श्रृंखला में हम सोई हुई राजकुमारी की कहानी (Sleeping Beauty Fairy Tale Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. ये एक पुरानी लोकप्रिय परी कथा (Fairy Tale In Hindi) है और आज भी बच्चों को बहुत पसंद आती है. ये कहानी ये ख़ूबसूरत राजकुमारी पर है. पढ़िए राजकुमारी की ये कहानी (Princess Story In Hindi)  : 

Sleeping Beauty Fairy Tale In Hindi

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Sleeping Beauty Fairy Tale Story In Hindi
Sleeping Beauty Fairy Tale In Hindi | Sleeping Beauty Fairy Tale Story

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एक खुशहाल राज्य में एक राजा और रानी रहा करते थे. सारी खुशियाँ होने के बावजूद वे दु:खी थे, क्योंकि विवाह को वर्षों बीत जाने बाद भी उनकी कोई संतान नहीं थी. वे हर समय भगवान से प्रार्थना करते कि उन्हें संतान प्राप्ति हो जाये.

एक सुबह रानी राजमहल के सरोवर के किनारे हाथ जोड़कर सूर्यदेवता से प्रार्थना कर रही थी, कि तभी एक चमत्कार हुआ. सूर्य की उजली किरण सरोवर के किनारे रखे पत्थर पर पड़ी और वह पत्थर एक मेंढक में परिवर्तित हो गया. मेंढक ने भविष्यवाणी की कि १ वर्ष के भीतर रानी एक बच्ची को जन्म देनी और ठीक वैसा ही हुआ.

१ वर्ष बाद रानी ने एक ख़ूबसूरत बच्ची को जन्म दिया. उस बच्ची के मुख पर सूर्य की किरणों सी चमक थी. उसका नाम ‘रोज़ामंड’ रखा गया.

पुत्री के जन्म की ख़ुशी में राजा-रानी ने एक बहुत बड़ा जश्न आयोजित किया, जिसमें राज्य की पूरी प्रजा को बुलाया गया. राज्य के बाहरी छोर पर स्थित सुनहरे वन में तेरह परियाँ रहा करती थी. राजा-रानी ने उनमें से बारह परियों को तो जश्न में बुलाया. किंतु वे तेरहवीं परी को बुलाना भूल गए.

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जश्न के दिन पूरे राजमहल में उल्लास का वातावरण था. मधुर संगीत, नृत्य, रंगा-रंग कार्यक्रमों के साथ ही एक बड़े भोज का आयोजन किया गया था. नन्हीं राजकुमारी ‘रोज़ामंड’ सोने के पालने पर लेटी हुई थी. एक-एक सभी मेहमान राजकुमारी के पास आकर उसे उपहार के साथ आशीर्वाद भी दे रहे थे.  

परियों ने भी रोज़ामंड को बेशकीमती उपहार दिए. उपहारों के साथ ही उन्होंने कई आशीर्वाद भी रोज़ामंड को दिए. किसी ने उसे सुंदरता का, तो किसी ने दयालुता का आशीर्वाद दिया. किसी ने अपार धन का तो किसी ने सुंदर मन का आशीर्वाद दिया. यह सिलसिला ग्यारहवीं परी तक चला. बारहवीं परी के आशीर्वाद देने के पहले ही तेरहवीं परी वहाँ आ गई. वह जश्न में न बुलाये जाने के कारण बहुत क्रोधित थी.

उसने रोज़ामंड को श्राप दे दिया कि अपने सोलहवें जन्मदिन के दिन उसे एक सुई चुभेगी और वह मर जायेगी. श्राप देकर तेरहवीं परी वहाँ से चली गई.

जश्न में उपस्थित सभी लोग अवाक् रह गए. राजा-रानी बहुत दु:खी थी. वे परियों से प्रार्थना करने लगे कि किसी तरह रोज़ामंड को दिए गए श्राप को समाप्त कर दें. किंतु यह संभव नहीं था.

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परियों ने बताया कि किसी भी श्राप को समाप्त नहीं किया जा सकता. यह सुनकर रानी विलाप करने लगी. बारहवीं परी का आशीर्वाद शेष था. रानी को विलाप करता देख वह बोली, “तेरहवीं परी का श्राप समाप्त तो नहीं किया जा सकता. किंतु मैं अपने आशीर्वाद से उसे कम कर सकती हूँ.”

उसने रोज़ामंड को आशीर्वाद दिया कि अपने सोलहवें जन्मदिन पर सुई चुभने पर वह मरेगी नहीं, बल्कि सौ वर्षों के लिए गहरी नींद में सो जाएगी.”

यह सुनकर राजा-रानी का दु:ख कुछ कम अवश्य हुआ. उन्होंने बारहवीं परी को धन्यवाद दिया. राजा-रानी की इच्छा रोज़ामंड का विवाह देखने की थी. वे परियों से बोले, “आपने तेरहवीं परी का श्राप कम कर दिया. इस बात की हमें बेहद ख़ुशी है. किंतु दुःख ये है कि हम लोग रोज़ामंड का विवाह नहीं देख  पाएंगे. जव सौ वर्षों एक बाद वह सोकर उठेगी, तब तक हम मर चुके होंगे.”

तब बारहवीं परी बोली, “जैसे ही रोज़ामंड सौ वर्षों के लिए सोयेगी. राजा-रानी सहित पूरी प्रजा भी सो जाएगी. रोज़ामंड के जागने पर ही सब जागेंगे और रोज़ामंड नींद से तब जागेगी, जब एक सच्चा प्यार करने वाला राजकुमार उसे चूम लेगा.”

इसके बाद सभी परियाँ राजमहल से चली गई. परियों के जाने के बाद राजा-रानी ने सेवकों से कहकर राजमहल के सारे चरखे और सुईयाँ नष्ट करवा दी. वे किसी भी सूरत में रोज़ामंड को दुष्ट परी के श्राप से बचाना चाहते थे.

दिन बीतने लगे और रोज़ामंड बड़ी होने लगी. वह बहुत सुंदर और दयालु होने के साथ ही बुद्धिमान भी थी. समस्त प्रजा उससे बहुत प्रेम करती थी.

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आखिरकार, रोज़ामंड का सोलहवां जन्मदिन आ ही गया. राजा-रानी ने इस अवसर को धूम-धाम से मनाने के लिए शाम को एक बड़े जश्न और भोज का आयोजन किया था. किंतु वे चिंतित भी थे. उन्हें दुष्ट परी के श्राप के सच हो जाने की आशंका ने घेर रखा था. किंतु पूरा दिन बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ. 

शाम को एक सेवक रानी के पिता का पत्र लेकर आया, जिसमें लिखा था कि रानी के पिता की तबियत बहुत ख़राब है. राजा-रानी तुरंत रानी के पिता से मिलने निकल पड़े. राजमहल से जाने के पहले उन्होंने अपनी विश्वासपात्र दासी डायना को हिदायत दी कि वह रोजामांड का ख्याल रखे और उसे राजमहल से बाहर जाने न दे. डायना ने भी उन्हें आश्वासन दिया कि वह रोजामांड को कुछ नहीं होने देगी.

राजा-रानी के जाने के बाद डायना साये की तरह रोजामांड के साथ रही. लेकिन जब वह भोजन बनाने में व्यस्त हुई, तो रोजामांड छुपकर बगीचे में आ गई और वहाँ पक्षियों के साथ खेलने लगी. खेलते-खेलते उसे एक फूल पर बैठी सुनहरी तितली नज़र आई. उसे पकड़ने जैसे ही रोजामांड ने हाथ बढ़ाया, वह उड़ गई. रोजामांड उसके पीछे भागने लगी.  

उड़ते-उड़ते तितली एक मीनार के सामने पहुँच गई. वह एक पुरानी मीनार थी और बहुत ऊँची थी. रोजामांड के मीनार के सामने पहुँचने पर तितली मीनार के भीतर चली गई. रोजामांड भी तितली के पीछे मीनार में चली गई.

मीनार में गोलाकार सीढ़ियाँ बनी हुई थी. रोजामांड तितली के पीछे जाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगी. तितली उड़ते-उड़ते मीनार के सबसे ऊपरी मंज़िल पर पहुँच गई और उसके पीछे रोजामांड भी. मीनार के उस हिस्से पर एक छोटा सा कमरा था. तितली के पीछे रोजामांड उस कमरे में चली गई. वहाँ एक बूढ़ी औरत चरखा चला रही थी.

रोजामांड ने कभी चरखा (Spinning Wheel) नहीं देखा था. वह आश्चर्य से उसे देखने लगी. बूढ़ी औरत ने जब सिर उठाकर रोजामांड  को देखा, तो रोजामांड ने पूछा, “आप ये क्या कर रही हैं?”

“मैं इस चरखे से सूत काट रही हूँ. क्या तुम भी सूत कातना चाहोगी?” बूढ़ी औरत ने उत्तर दिया.

  रोजामांड ने कभी चरखा नहीं देखा था. इसलिए उसका मन सूत कातने मचल उठा. वह चरखे के पास बैठ गई और चरखा चलाने लगी. बूढ़ी औरत उसे देखकर कुटिलता से मुस्कुराने लगी. वह बूढ़ी औरत और कोई नहीं बल्कि दुष्ट तेरहवीं परी थी.

बूढ़ी चरखा चलाते हुए बहुत ख़ुश थी, लेकिन अचानक ही एक नुकीली सुई उसकी उंगली में आ घुसी और वह गिर पड़ी. गिरते साथ ही वह गहरी नींद में सो गई. दुष्ट तेरहवीं परी का श्राप पूरा हो चुका था. वह हँसते हुए वहाँ से चली गई.

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इधर राजा-रानी जब वापस लौटे, तो रोजामांड को महल में न पाकर चिंतित हो उठे. डायना भी उन्हें कुछ बता नहीं पाई. राजा ने सैनिकों को रोजामांड को ढूंढने के लिए भेजा. वे स्वयं भी उसे ढूंढने लगा. पूरा महल तलाशा गया, किंतु रोजामांड नहीं मिली.

खोजते-खोजते सैनिकों के साथ राजा-रानी मीनार में पहुँचे. वहाँ ऊपरी मंजिल के कमरे में उन्होंने रोजामांड को सोते हुए पाया. पास ही चरखा भी रखा हुआ था. वे समझ गए कि दुष्ट परी के श्राप ने अपना काम कर दिया है.

रानी दुःख के मारे विलाप करने लगी. तब राजा ने उसे समझाया कि हमें रोजामांड को लेकर महल चलना चाहिए क्योंकि कुछ ही देर में हम सब भी सो जायेंगे.

रोजामांड को राजमहल ले जाया गया और उसे तैयार कर मखमली बिछौने वाले एक बिस्तर पर लिटा दिया गया. सोती हुई रोजामांड बहुत ही सुंदर लग रही थी. कुछ ही देर में राजा-रानी, दरबारी और राज्य की पूरी प्रजा सो गई. काला बादल राज्य के ऊपर छा गया और पूरा राज्य अंधेरे में डूब गया. समय बीतने के साथ राज्य के चारों ओर कंटीली झाड़ियाँ उग गई और राज्य उसके पीछे छुप गया.

अब वह राज्य राज्य बस किस्से-कहानियों में रह गया था. वहाँ की सोयी हुई राजकुमारी के किस्से दूर-दूर तक सुनाये जाते थे. राजकुमारी को देखने की आस में कई राजकुमार उस राज्य में जाने का प्रयास करते, किंतु कंटीली झाड़ियों को पार नहीं कर पाते. कई घायल होकर वापस लौट आते, तो कई उनमें फंसकर मर जाते. राजकुमारों की मौत की ख़बर फैलने के बाद सबने वहाँ जाना छोड़ दिया.

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ऐसे ही १०० वर्ष बीत गए. एक दिन इवान नामक राजकुमार ने सोयी हुई राजकुमारी की कहानी सुनी. कहानी सुनकर वह उसे चाहने लगा. उसने तय किया कि वह उसे एक बार देखने अवश्य जायेगा और उसे नींद से जगाने का प्रयास करेगा. ख़तरे को देखते हुए सबने उसे वहाँ जाने से मना किया. किंतु वह नहीं माना और रोजामांड की खोज में निकल पड़ा.

कई दिनों की लंबी यात्रा के बाद वह कंटीली झाड़ियों के पीछे छुपे उस राज्य के पास पहुँच गया, जहाँ रोजामांड सोई हुई थी. जिस दिन वह वहाँ पहुँचा, तब तक रोजामांड को सोये सौ वर्ष पूरे हो चुके थे. राजकुमार इवान ने कंटीली झाड़ियों को किसी तरह अपनी तलवार से काटकर पार किया और राज्य में घुस गया.

राज्य के अंदर जाने पर उसने देखा कि पूरी प्रजा सोयी हुई है. वह राजमहल के पास पहुँचा, तो दरबानों को भी सोता हुआ पाया. महल के अंदर प्रवेश कर वह राजदरबार में पहुँचा. वहाँ राजा-रानी सहित सारे दरबारी सो रहे थे. महल में घूमता हुआ वह अंततः उस कक्ष में पहुँच गया, जहाँ रोजामांड सोई हुई थी.

सोई हुई राजकुमारी रोजामांड को देखकर राजकुमार का उसके प्रति प्रेम और बढ़ गया. वह रोजामांड के पास गया और उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर चूम लिया. जैसे ही उसके रोजामांड को चूमा दुष्ट परी का श्राप समाप्त हो गया और रोजामांड नींद की नींद टूट गई.

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आँखें खोलते ही उसने एक सुंदर राजकुमार को अपने सामने पाया. वह जान गई कि यही वो सच्चा प्रेम करने वाला राजकुमार है, जिसने उसे सौ वर्षों की गहरी नींद से जगाया है. राजकुमार ने रोजामांड को बताया कि वह उससे प्रेम करता है और उससे विवाह करना चाहता है. रोजामांड ने उसका यह विवाह प्रस्ताव ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर लिया.

दोनो उस अकमरे से निकलकर राजदरबार पहुँचे, तो देखा कि राजा-रानी और सभी दरबारी भी नींद से जाग चुके हैं. सबने  रोजामांड और राजकुमार इवान का स्वागत किया. रोजामांड  ने राजा-रानी को राजकुमार से मिलवाया.

 राजा-रानी राजकुमार से मिलकर बहुत ख़ुश हुए. राजकुमार ने उनसे रोजामांड का हाथ मांगा और राजा-रानी ने ख़ुशी-ख़ुशी रोजामांड का हाथ राजकुमार इवान के हाथ में दे दिया.

राजमहल के ऊपर छाये काले बदल हट गए और वहाँ सूर्य फिर से चमकने लगा. सबने मिलकर सूर्य देवता की प्रार्थना की और उन्हें धन्यवाद दिया. उसी दिन रोजामांड और राजकुमार का विवाह कर दिया गया.

जब रोजामांड और राजकुमार का विवाह हुआ, तो सूर्य से आग का एक गोला निकला और दूर जंगल में बनी एक झोपड़ी पर जा गिरा. वह झोपड़ी में दुष्ट तेरहवीं परी की थी. झोपड़ी के साथ वह भी जलकर मर गई.

रोजामांड और राजकुमार इवान ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे.


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