3 पारिवारिक शिक्षाप्रद कहानियाँ | 3 Short Family Stories In Hindi

पारिवारिक शिक्षाप्रद कहानियाँ, Short Family Stories In Hindi, Paiwar Par Kahani, Family Moral Story In Hindi 

फ्रेंड्स, परिवार जीवन का वो आधार स्तंभ है, जो हमें प्रेम, अपनापन, भावनात्मक सहारा प्रदान करता था. जीवन के कठिन दौर में जब दुनिया हमसे रूठ जाए, तब परिवार ही है, जो आगे बढ़कर हमें अपने गले लगा लेता है और हर तरह से हमारा साथ देता है. इसलिए सफ़लता प्राप्ति की राह में ऐसा न हो कि परिवार कहीं पीछे छूट जाये.

परिवार बंधन नहीं, बल्कि हमारा सहारा है. हमें ये याद रखना है और परिवार को साथ लेकर चलना चाहिए. इस लेख में हम परिवार का महत्त्व बतलाती तीन कहानियाँ शेयर कर रहे हैं. पढ़िये 3 Heart Touching Family Story In Hindi  :

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Family Stories In Hindi


Moral Story On Family In Hindi 1 # पिता और बेटा

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शाम का समय था. ऑफिस से घर आने के बाद पिता फिर से ऑफिस की फाइल्स में उलझा हुआ था. तभी उसका ८ साल का बेटा पास आया और बोला, “पापा! क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ?”

“हाँ, पूछो.” फाइल से नज़र हटाये बगैर पिता ने जवाब दिया.

“आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं?” बेटा ने पूछा.

इस अजीब सवाल पर पिता को कुछ गुस्सा आया. उसने जवाब दिया, “तुम्हें इससे क्या मतलब? क्यों बेकार के सवाल पूछकर मेरा समय ख़राब कर रहे हो? देखते नहीं, मैं काम में बिज़ी हूँ.”

“पापा! मैं बस जानना चाहता हूँ. प्लीज बताइये ना, आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं?” बेटा ज़िद करने लगा.

“५०० रुपये.” पिता ने जवाब दिया और काम में लग गया.

“ओह!” बेटा सिर झुकाकर कुछ सोचने लगा. फिर सिर उठाकर बोला, “पापा! आप मुझे ३०० रुपये उधार दे सकते हैं.”

यह सुनना था कि पिता का गुस्सा बढ़ गया. वह बेटे को झिड़कते हुए बोला, “अच्छा, तो तुम इसलिए मुझसे मेरी सैलरी पूछ रहे थे. तुम्हें खिलौना या कोई फ़ालतू सी चीज़ खरीदनी है. अब एक शब्द कहे बगैर सीधे अपने कमरे में जाओ और सो जाओ. मैं इतनी मेहनत से पैसे इसलिए नहीं कमाता कि तुम्हारी हर फ़ालतू मांग पूरी कर सकूं.”

बेटे का चेहरा उतर गया. भारी क़दमों से वह वहाँ से चला गया. पिता कुछ देर तक तो बेटे की बात पर नाराज़ रहा, फिर काम में लग गया. काम खत्म होने तक उसकी नाराज़गी भी खत्म हो चुकी थी. अब उसे बेटे के प्रति अपने ख़ुद के व्यवहार पर दुःख होने लगा. वह सोचने लगा कि हो सकता है बेटे को सच में किसी ज़रूरी चीज़ के लिए ३०० रुपये की ज़रुरत हो. वो वैसे भी हर समय पैसे नहीं मांगता.

वह बेटे के कमरे में गया. देखा, बेटा बिस्तर पर लेटा हुआ था. उसने पूछा, “सो गए क्या?”

बेटा तुरंत उठकर बैठ गया और बोला, “नहीं पापा. मैं जगा हुआ हूँ.”

“बेटा, मैं काम की वजह से परेशान था और मेरा काम का गुस्सा तुम पर निकल गया. मुझे तुम पर गुस्सा नहीं करना चाहिए था. ये लो ३०० रुपये, जो उस समय तुम मुझसे मांग रहे थे.” पिता बेटे के पास बैठते हुए बोला.

“थैंक यू पापा.” बेटा चहक उठा. ३०० रुपये एक तरफ रख उसने अपने तकिये के नीचे दबे कुछ नोट निकाले और उन्हें गिनने लगा.

यह देख पिता को फिर से गुस्सा आने लगा. वह गुस्से में बोला, “जब तुम्हारे पास पहले से ही पैसे थे, तो तुम और पैसे क्यों मांग रहे थे?”

“क्योंकि मेरे पास पूरे पैसे नहीं थे पापा, अब हैं.” बेटे ने मासूमियत से जवाब दिया, “पापा ये लीजिये ५०० रुपये. क्या इससे मैं आपका १ घंटा ख़रीद सकता हूँ? प्लीज कल आप घर जल्दी आ जाना, मैं आपके साथ डिनर करना चाहता हूँ.”

बेटे की बात सुनकर पिता अवाक् रह गया.

सीखहम पैसे कमाने की ज़द्दोजहद में इतने ज्यादा व्यस्त हो जाते हैं कि हमारा परिवार पीछे छूट जाता है. हमारे पास अपने परिवार और प्रियजनों के साथ बिताने के लिए समय ही नहीं होता. समय धीरे-धीरे हमारे हाथ से फिसलता चला जा रहा है और बीता समय कभी वापस नहीं आएगा. ऑफिस में हमारा रिप्लेसमेंट बड़ी ही आसानी से ढूंढ लिया जायेगा. लेकिन परिवार का कोई रिप्लेसमेंट नहीं है. अपने परिवार को महत्त्व दें.


Emotional Story About Family In Hindi 2 # पैसा और परिवार

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रमेश का एक छोटा सा परिवार था, जिसमें एक ख़ूबसूरत पत्नि और दो प्यारे बच्चे थे. उसकी पत्नि और बच्चे हर हाल में ख़ुश थे. लेकिन रमेश उन्हें ज़िंदगी के सारे ऐशो-आराम देना चाहता था और इसके लिए वह प्रतिदिन १६ घंटे से भी अधिक काम किया करता था. दिनभर ऑफिस में काम करने के साथ-साथ वह सुबह और शाम ट्यूशन सेंटर में ट्यूशन भी पढ़ाया करता था.

वह सुबह-सुबह घर से निकल जाता और आधी रात के बाद घर लौटता था. बच्चों के लिए उसका चेहरा देखना मुहाल था, क्योंकि सुबह-सवेरे उसके घर से निकलते समय बच्चे सोते रहते और देर रात घर में कदम रखने के पहले ही सो चुके होते. हाँ, रविवार को ज़रूर वह घर पर होता. लेकिन उस दिन भी वह किसी न किसी काम में व्यस्त रहता और उसका समय परिवार के साथ न बीतकर काम करते हुए  बीतता. परिवार उसके साथ क्वालिटी टाइम बिताने का बस इंतजार करता रह जाता.

पत्नि अक्सर उससे कहा करती कि उसे घर में वक़्त बिताना चाहिए. बच्चे उसे बहुत मिस करते हैं. उस वक़्त वह यही जवाब देता कि ये सब मैं उनके लिए ही तो कर रहा हूँ. बढ़ते घरेलू खर्च और स्कूल खर्च के लिए मेरा ज्यादा काम करना ज़रूरी है. मैं उन्हें एक अच्छी ज़िंदगी देना चाहता हूँ.

रमेश की यह दिनचर्या वर्षों जारी रही. वह यूं ही परिवार को अनदेखा कर कड़ी मेहनत करता रहा. इसका प्रतिफल भी उसे मिला. उसे पदोन्नति प्राप्त हुई, आकर्षक वेतन मिलने लगा. परिवार अब बड़े घर में रहने लगा. खाने-पीने और अन्य सुविधाओं की उन्हें कोई कमी न रह गई. लेकिन रमेश का यूं ही काम करना जारी रहा.

वह अधिक से अधिक पैसे कमाना चाहता था. पत्नि पूछती कि आप पैसे के पीछे क्यों भाग रहे हैं? हमारे पास जो है, हम उसमें खुश रह सकते हैं. तो उसका जवाब होता कि मैं तुम्हें और बच्चों को दुनिया-जहाँ की खुशियाँ देना चाहता हूँ. बस कुछ साल और मुझे मेहनत करने दो. पत्नि चुप हो जाती.

दो साल और बीते. इन दो सालों में रमेश बमुश्किल अपने परिवार के साथ समय बिता पाया. बच्चे अपने पिता को देखने, उससे बातें करने तरस गए. इस बीच एक दिन रमेश की किस्मत खुल गई. उसके दोस्त ने उसे अपने व्यवसाय में हिस्सेदारी की पेशकश की और इस तरह रमेश एक व्यवसायी बन गया. 

व्यवसाय अच्छा निकला और रमेश को पैसे की कोई कमी नहीं रह गई थी. उसका परिवार अब शहर के सबसे अमीर परिवारों में से एक था. उनके पास सभी सुख-सुविधाएं और विलासिता थी. लेकिन अपने बच्चों से मिलने का समय उसके पास अब भी नहीं था. अब तो वह बमुश्किल घर पर रह पाता. उसका अधिकांश समय गहर से दूर बिज़नस टूर में बीतता.

साल गुजरने के साथ उसके बच्चे बड़े हो गए. अब वे किशोरावस्था में पहुँच गए थे. रमेश ने भी इन सालों में इतना पैसा कमा लिया था कि उसकी अगली पांच पीढ़ियाँ शानदार जीवन जी सकती थी.

एक दिन रमेश के परिवार ने छुट्टी बिताने समुद्र तट स्थित अपने घर जाने की योजना बनाई. बेटी ने उससे पूछा, “पापा! क्या आप एक दिन हमारे साथ बिताएंगे?”

रमेश ने जवाब दिया, “हाँ ज़रूर. कल तुम लोग जाओ. मैं कुछ काम निपटाकर दो दिन में वहाँ पहुँचता हूँ. उसके बाद का मेरा पूरा समय तुम लोगों का है.”

पूरा परिवार बहुत खुश हो गया. वे समुद्र तट स्थित अपने घर पर चले गए. दो दिन बाद रमेश वहाँ पहुँचा. लेकिन उस दिन उसके साथ समय बिताने कोई नहीं था. दुर्भाग्य से वे सभी उस दिन सुबह आई सुनामी में बह गए थे.

रमेश अपनी पत्नि और बच्चों को कभी नहीं देख सकता था. करोड़ों की संपत्ति होने के बाद भी वह उनके साथ का एक पल नहीं ख़रीद सकता है. वह पछताने लगा. पत्नि के कहे शब्द उसे याद आने लगे : “आप पैसों के पीछे क्यों भाग रहे हैं?  हमारे पास जो है, हम उसमें खुश रह सकते हैं.”

सीखपैसा सब कुछ नहीं खरीद सकता. इसलिए पैसों के लिए अपने परिवार को महत्त्व देना कम मत करें. पैसा खो देने के बाद फिर से कमाया जा सकता है. लेकिन अपनों को खो देने के बाद दोबारा वापस नहीं पाया जा सकता.


Pariwar Par Kahani  # 3 पतंग और डोरी 

Story About Family In Hindi
Story About Family In Hindi | Family Story In Hindi

एक बार एक व्यक्ति अपने बेटे के साथ पतंग उत्सव (kite festival) में गया. वहाँ लोग रंग-बिरंगी पतंगें उड़ा रहे थे. आसमान में उड़ती रंग-बिरंगी पतंगों को देख बेटा भी पतंग उड़ाने मचल उठा.

उसने अपने पिता से कहा, “पापा, मैं भी पतंग उड़ाना चाहता हूँ. प्लीज मेरे लिए एक पतंग ख़रीद दीजिये.”

बेटे की इच्छा पूरी करने पिता पास ही की एक दुकान में गया. वहाँ से एक सुंदर सी पतंग और डोरी वह अपने बेटे के लिए ख़रीद लाया. बेटा पतंग पाकर ख़ुशी से झूम उठा.  

कुछ देर बाद वह भी डोर थामे पतंग उड़ा रहा था. उसकी पतंग ऊँचे आसमान में उड़ रही थी. लेकिन वह ख़ुश नहीं था. वह चाहता था कि उसकी पतंग और ऊँची उड़े. वह पिता से बोला, “पापा, ऐसा लग रहा है कि डोर की वजह से पतंग ऊँची नहीं उड़ पा रही है. क्यों न इसकी डोर काट दी जाये? इससे पतंग आज़ाद होकर और भी ऊँची उड़ने लगेगी. प्लीज, आप इसकी डोर काट दो.”

बेटे की बात मानकर पिता ने पतंग की डोर काट दी. डोर काटते ही पतंग ऊपर जाने लगी. यह देख बेटा बहुत ख़ुश हुआ.

लेकिन कुछ देर बाद पतंग ऊपर जाने के बजाय नीचे आने लगी और एक मकान की छत पर जा गिरी. बेटा यह देख हैरत में पड़ गया. उसने यह सोचकर पतंग की डोर काटी थी कि पतंग आसमान में और ऊँचा उड़ने लगेगी. लेकिन वह तो नीचे गिर पड़ी.

उसने पिता से पूछा, “पापा, ये क्या हुआ? पतंग आसमान में और ऊँची जाने के बजाय नीचे क्यों गिर पड़ी?”

पिता बोला, “बेटा! तुम्हें लग रहा था कि डोर पतंग को ऊँचा उड़ने से रोक रही है. जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था. डोर तो पतंग का सहारा थी. हवा की गति अनुसार तुम डोर खींचकर या उसे ढील देकर पतंग को ऊँचा उड़ने में मदद कर रहे थे. लेकिन जब डोरी रुपी सहारा कट गया, तो पतंग को मदद मिलनी बंद हो गई और वह नीचे गिर पड़ी. ऐसा जीवन में भी होता है. जीवन की ऊँचाईयों पर पहुँचकर हमें लगने लगता है कि परिवार, रिश्ते और दोस्त हमें बांध रहे हैं और सफ़लता के शिखर पर पहुँचने से रोक रहे हैं. लेकिन हम भूल जाते हैं कि वे हमें ऊँचाइयों पर ले जाने वाली डोर है. उनके नैतिक बल के बिना सफ़लता की उड़ान मुश्किल है.”

बेटे को अपनी गलती समझ आ गई.

सीखकई बार हम सोचते हैं कि हम अपने जीवन में जल्दी प्रगति कर लेंगे या जीवन की नई ऊंचाइयों को पा लेंगे, यदि हम अपने घर और परिवार के बंधनों से मुक्त हो जायेंगे. लेकिन हम भूल जाते हैं कि हमारा परिवार और प्रियजन हमें जीने में और जीवन में आगे बढ़ने में मदद करते हैं. बुरे समय में परिवार और प्रियजन हमारा सहारा बनते हैं और हमें प्रेरित करते हैं. वे हमें बंधनों में नहीं जकड़ते, बल्कि सहारा देते हैं. इसलिए उन्हें कभी भी खुद से दूर मत करो.  

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