Bible Story In Hindi

एलियाह नबी की कहानी | Story Of Elijah In Hindi 

एलियाह नबी की कहानी बाइबल (Story Of Elijah In Hindi Bible) एलियाह नबी, बाइबल के पुराने नियम में एक महान पैगंबर थे, जिन्हें ईश्वर के द्वारा विशेष मिशन के लिए चुना गया था।

वे 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व में इस्राएल के समय के दौरान जीवनयापन करते थे, जब इस्राएल के लोग भगवान के मार्ग से भटक गए थे। उस समय की रानी, ईज़ेबेल, विदेशी देवताओं की पूजा कर रही थी और इस्राएल के लोगों को भी भटका रही थी। एलियाह का उद्देश्य इस्राएल को एक सच्चे ईश्वर के प्रति जागरूक करना और उन्हें गलत मार्ग से वापस सही रास्ते पर लाना था। एलियाह की कहानी में विश्वास, धैर्य, और ईश्वर पर अडिग विश्वास की एक अद्भुत मिसाल देखने को मिलती है।

Story Of Elijah In Hindi

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Story Of Elijah In Hindi

एलियाह एक साधारण व्यक्ति थे, जिन्हें ईश्वर ने एक असाधारण मिशन के लिए चुना। वे गिलाद के पर्वतीय क्षेत्र में पैदा हुए थे और उन्होंने अपना जीवन ईश्वर की सेवा में समर्पित कर दिया था। एक दिन, ईश्वर ने एलियाह से कहा कि वे इस्राएल के राजा अहाब को संदेश दें। उस समय राजा अहाब और उसकी पत्नी ईज़ेबेल इस्राएल पर शासन कर रहे थे, और दोनों ही विदेशी देवता बाल की पूजा में लगे हुए थे। उनके प्रभाव से इस्राएल की जनता भी सच्चे ईश्वर को भूलकर बाल की पूजा करने लगी थी।

एलियाह ने राजा अहाब से मिलने का निश्चय किया। जब वे राजा के दरबार में पहुँचे, उन्होंने अहाब को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया: “ईश्वर के आदेश से, आने वाले समय में इस्राएल में बारिश नहीं होगी, जब तक मैं इसके लिए प्रार्थना न करूं।” राजा अहाब और रानी ईज़ेबेल ने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन एलियाह जानते थे कि ईश्वर उनके माध्यम से इस्राएल को सबक सिखाना चाहते हैं।

जल्द ही, इस्राएल में बारिश बंद हो गई। सूखा और अकाल का सामना करना पड़ा, जिससे लोग भूखे मरने लगे। इस संकट के समय में, ईश्वर ने एलियाह को निर्देशित किया कि वे केरिथ नामक एक घाटी में छिप जाएं। ईश्वर ने कहा कि वहां एक जलधारा होगी और कौवे उन्हें भोजन लाकर देंगे। एलियाह ने ईश्वर के निर्देश का पालन किया और वह घाटी में रहने लगे, जहां उन्हें कौवे रोटी और मांस लाकर देते थे, और वे जलधारा से पानी पीते थे। कुछ समय बाद, जब जलधारा भी सूख गई, तो ईश्वर ने उन्हें निर्देश दिया कि वे सिदोन की यात्रा करें, जहां एक विधवा उनका पालन-पोषण करेगी।

एलियाह सिदोन पहुँचे और एक गरीब विधवा से मिले। उस विधवा के पास बहुत कम आटा और तेल बचा था, और वह अपने बेटे के साथ अंतिम भोजन की तैयारी कर रही थी। एलियाह ने उस विधवा से कहा, “डरो मत, पहले मुझे रोटी बना दो, और फिर तुम अपने और अपने बेटे के लिए भोजन बनाओ। ईश्वर कहता है कि जब तक बारिश नहीं होगी, तुम्हारा आटा और तेल खत्म नहीं होगा।”

विधवा ने ईश्वर के पैगंबर की बात मानी और उसे भोजन दिया। आश्चर्यजनक रूप से, आटा और तेल कभी खत्म नहीं हुआ और तीनों ने सूखे के दौरान खूब जीविका पाई।

कुछ समय बाद विधवा का बेटा गंभीर रूप से बीमार हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। विधवा ने दुःख में आकर एलियाह से कहा, “हे प्रभु के व्यक्ति, क्या तुम यहाँ आकर मेरे पापों को उजागर करने और मेरे बेटे की जान लेने के लिए आए हो?”

एलियाह ने ईश्वर से प्रार्थना की और विधवा के बेटे को पुनः जीवित किया। इस घटना से विधवा का विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि एलियाह वास्तव में ईश्वर का सच्चा सेवक था।

इसी बीच इस्राएल में सूखा अपने चरम पर था। तीन साल के बाद, ईश्वर ने एलियाह से कहा कि अब समय आ गया है कि वे राजा अहाब से फिर से मिलें और इस्राएल के लोगों को सच्चे ईश्वर के सामने लाएं। एलियाह ने राजा अहाब को चुनौती दी कि वह बाल के 450 पुजारियों को माउंट कार्मल पर्वत पर इकट्ठा करें, और वहां एक प्रतियोगिता हो। अहाब ने यह चुनौती स्वीकार की और लोग माउंट कार्मल पर इकट्ठे हुए।

एलियाह ने कहा, “हम एक बलिदान चढ़ाएंगे, एक बाल के लिए और एक सच्चे ईश्वर के लिए। जो भी देवता आग से बलिदान को स्वीकृत करेगा, वही सच्चा ईश्वर होगा।”

बाल के पुजारियों ने बलिदान चढ़ाया और पूरे दिन बाल से प्रार्थना करते रहे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कोई आग नहीं आई। फिर, एलियाह ने ईश्वर के लिए बलिदान चढ़ाया। उन्होंने बलिदान के चारों ओर पानी डलवाया ताकि यह और भी मुश्किल लगे, और फिर ईश्वर से प्रार्थना की। तभी अचानक आकाश से आग गिरी और बलिदान पूरी तरह जल गया। लोग चकित रह गए और चिल्लाने लगे, “यहोवा ही सच्चा ईश्वर है!” 

इस अद्भुत चमत्कार के बाद, एलियाह ने बारिश के लिए प्रार्थना की। कुछ समय बाद आकाश में बादल छा गए और इस्राएल में जोरदार बारिश होने लगी। इस प्रकार, ईश्वर ने सूखे को समाप्त कर दिया और इस्राएल के लोगों को अपने सच्चे ईश्वर की महानता दिखाई।

लेकिन एलियाह का संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। रानी ईज़ेबेल इस घटना से क्रोधित हो गई और उसने एलियाह को मारने की धमकी दी। डर से एलियाह रेगिस्तान में भाग गए और एक झाड़ी के नीचे बैठकर ईश्वर से अपने जीवन की समाप्ति की प्रार्थना की। लेकिन ईश्वर ने एक दूत भेजा, जिसने उन्हें खाना और पानी दिया, और उन्हें 40 दिन और रातों तक होरब पर्वत पर चलने की शक्ति दी। वहाँ ईश्वर ने उन्हें प्रकट किया, लेकिन न किसी बड़े तूफान में, न आग में, बल्कि एक धीमी और शांत आवाज़ में। ईश्वर ने एलियाह से कहा कि वे अपने मिशन को जारी रखें और भविष्य के नेताओं और पैगंबरों को नियुक्त करें।

एलियाह का संदेश यह था कि ईश्वर सच्चे, जीवित और सर्वशक्तिमान हैं। उन्होंने इस्राएल के लोगों को चेतावनी दी कि अगर वे गलत मार्ग पर चलते रहेंगे, तो उनके जीवन में परेशानियाँ आएंगी। बाल और अन्य झूठे देवता लोगों को कुछ नहीं दे सकते थे, लेकिन ईश्वर, जो सृष्टि के निर्माता हैं, वे सब कुछ नियंत्रित करते हैं। जब लोग सच्चे ईश्वर की ओर लौटे और अपने पापों के लिए प्रायश्चित किया, तब ईश्वर ने उनकी समस्याओं का समाधान किया और उन्हें बरकत दी।

सीख

  • एलियाह की कहानी हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाती है। पहला, सच्चे विश्वास और धैर्य का महत्व। एलियाह ने कठिनाइयों और खतरों का सामना किया, लेकिन उन्होंने ईश्वर पर अपने विश्वास को कभी नहीं खोया। उन्होंने हमेशा ईश्वर की इच्छा का पालन किया, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विकट क्यों न हों।
  • दूसरा सबक यह है कि सच्ची भक्ति के बिना जीवन में स्थायी शांति और समृद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती। इस्राएल के लोग जब झूठे देवताओं की पूजा करने लगे, तो उनके जीवन में विपत्तियाँ आईं, लेकिन जब उन्होंने सच्चे ईश्वर को पहचाना और उसकी ओर लौटे, तब उन्हें सुख और समृद्धि मिली।

अंततः, हमें यह समझने की ज़रूरत है कि ईश्वर हमें कठिनाइयों में छोड़ते नहीं हैं। वे हमें सहारा देते हैं, हमारी ज़रूरतों को पूरा करते हैं, और हमें आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। एलियाह की तरह, हमें भी कठिन समय में ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि वे हमेशा हमारे साथ होते हैं।

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