कुम्हार की कहानी पंचतंत्र की कहानी (लब्धप्रणाश) | Kumhar Ki Kahani Panchatantra

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम कुम्हार की कहानी पंचतंत्र (Story Of The Potter Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. Kumhar Ki Kahani Panchatantra के तंत्र लब्धप्रणाश से ली गई है. ये एक कुम्हार की है, जो अपने मस्तक की चोट के कारण सेना में उच्च पद प्राप्त करता है. किंतु, जब युद्ध पर जाने का समय आया, तब कुम्हार के साथ क्या हुआ? जानने के लिए पढ़िए : 

Story Of The Potter Panchatantra Story In Hindi

Story Of The Potter Panchatantra Story In Hindi
Story Of The Potter Panchatantra Story In Hindi

पढ़ें पंचतंत्र की संपूर्ण कहानियाँ : click here

>

एक समय की बात है. एक गाँव में युधिष्ठिर नामक कुम्हार रहा करता था. एक दिन वह अपने घर पर एक टूटे हुए घड़े से टकराकर गिर पड़ा.

घड़े के कुछ टुकड़े जमीन पर बिखरे हुए थे. एक नुकीला टुकड़ा कुम्हार के माथे में गहरे तक घुस गया. उस स्थान पर गहरा घाव हो गया. उस घाव को भरने में कई महिनों का समय लगा. जब घाव भरा, तो कुम्हार के माथे पर निशान छोड़ गया.

कुछ दिनों बाद कुम्हार के गाँव में अकाल पड़ गया. खाने के लाले देख कुम्हार गाँव छोड़ दूसरे राज्य चला गया. वहाँ जाकर वह राजा की सेना में भर्ती हो गया.

एक दिन राजा की दृष्टि कुम्हार पड़ी. उसके माथे पर चोट का बड़ा निशान देख राजा ने सोचा कि अवश्य की यह कोई शूर-वीर है. किसी युद्ध के दौरान शत्रु के प्रहार से माथे पर यह चोट लगी है.

पढ़ें : आधी धूप आधी छांव अकबर बीरबल

राजा ने कुम्हार को अपनी सेना में एक उच्च पद प्रदान कर दिया. यह देख राजा के मंत्री और सिपाही कुम्हार से जलने लगे. किंतु वे राजा के आदेश के समक्ष विवश थे. इसलिए इस विषय पर मौन धारण किये रहे. कुम्हार भी बड़े पद की लालसा में चुप रहा.

कुछ माह बीते. अचानक एक दिन पड़ोसी राज्य ने उस राज्य पर आक्रमण कर दिया. राजा ने भी युद्ध का बिगुल बजा दिया. युद्ध की तैयारियाँ प्रारंभ हो गई. ऐसे में युद्धभूमि में प्रस्थान करने के पूर्व राजा में सहसा कुम्हार से पूछ लिया, “वीर! तुम्हारे माथे पर तुम्हारी वीरता का जो प्रतीक चिन्ह है, वह किस युद्ध में किस शत्रु ने तुम्हें दिया है?”

तब तक राजा और कुम्हार में काफ़ी निकटता हो चुकी थी. कुम्हार ने सोचा कि अब राजा को सत्य का ज्ञान हो भी गया, तब भी वे उसे उसके पद से पृथक नहीं करेंगे. उसने अपनी सच्चाई राजा को बता दी, “महाराज! यह घाव युद्ध में किसी हथियार के प्रहार से नहीं लगा है. मैंने तो एक कुम्हार हूँ. एक दिन मदिरापान कर जब मैं घर आया, तो टूटे हुए घड़े से टकराकर गिर पड़ा. उसी घड़े के एक नुकीले टुकड़े से हुए घाव का निशान मेरे माथे पर है.”

पढ़ें : दो सिर वाला पक्षी पंचतंत्र 

यह सुनना था कि राजा आग-बबूला हो गया. उसने कुम्हार को उसके पद से हटाते हुए राज्य से भी निकल जाने का आदेश दे दिया. कुम्हार याचना करता रहा कि वह पूरे पराक्रम से युद्ध लड़ेगा और अपने प्राण तक न्योछावर कर देगा. किंतु राजा ने उसकी एक ना सुनी.

राजा बोला, “भले ही तुम कितने की पराक्रमी हो. किंतु जन्मे तो कुम्भकार कुल में हो, न कि क्षत्रियों के. जिस तरह शेर के मध्य रहकर गीदड़ शेर नहीं बन सकता औत हाथी से युद्ध नहीं कर सकता. उसी तरह क्षत्रिय कुल के साथ रहने भर से तुम शूर-वीर नहीं बन जाते. इसलिए शांति से यह स्थान त्यागकर अपने कुल के लोगों के पास चले जाओ, अन्यथा मारे जाओगे.”

कुम्हार अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया.

सीख (Panchtantra Kumhar Ki Kahani Moral)

अपने प्रयोजन से या केवल दंभ से सत्य बोलने वाला व्यक्ति नष्ट हो जाता है.   

Friends, आपको ‘Story Of The Potter Panchatantra Story In Hindi‘ कैसी लगी? आप अपने comments के द्वारा हमें अवश्य बतायें. ये Kumhar Ki Kahani In Hindi पसंद  पर Like और Share करें. ऐसी ही और Panchtantra Ki Kahani पढ़ने के लिए हमें Subscribe कर लें. Thanks.

Read More Stories In Hindi :

बगुला भगत की कहानी पंचतंत्र

मूर्ख बगुला और नेवला की कहानी पंचतंत्र

दो सिर वाला पक्षी कहानी पंचतंत्र 

दो सिर वाला जुलाहा की कहानी पंचतंत्र

Leave a Comment