पर्यावरण पर कहानी (Story On Environment In Hindi With Moral) Paryavaran Par Kahani प्रकृति हमारी मित्र है, और इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम आज से ही अपने पर्यावरण का ध्यान रखना शुरू करेंगे, तो भविष्य में हमें एक सुंदर और स्वस्थ जीवन मिलेगा। इस पोस्ट में Story On Environment In Hindi With Moral शेयर की जा रही है।
Story On Environment In Hindi
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रवि और उसके दोस्त हमेशा अपने गांव के पास की नदी के किनारे खेलने जाया करते थे। नदी का पानी साफ और शीतल होता था, और आस-पास के पेड़ों की ठंडी छांव उन्हें गर्मियों में सुकून देती थी। गांव के लोग भी इसी नदी से पानी पीते थे और इसकी पवित्रता का ध्यान रखते थे। लेकिन वक्त के साथ-साथ चीजें बदलने लगीं।
गांव के लोग अब अपने कामों में इतने व्यस्त हो गए थे कि उन्हें नदी और उसके आसपास के वातावरण की परवाह नहीं रही। धीरे-धीरे नदी का पानी गंदा होने लगा, पेड़ कटने लगे, और गांव का सौंदर्य मानो मिट्टी में मिलने लगा। यही से रवि की कहानी शुरू होती है, जो पर्यावरण को बचाने के लिए एक साहसी कदम उठाता है।
एक दिन रवि और उसके दोस्त नदी के किनारे खेलने गए। लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग था। पानी में कचरा तैर रहा था, और आसपास बदबू फैल रही थी। रवि ने देखा कि नदी का पानी अब पीने लायक नहीं रहा। गांव के कुछ लोग नदी के किनारे कचरा फेंकने लगे थे, और फैक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा पानी भी अब नदी में मिलने लगा था। ये देखकर रवि को बहुत दुख हुआ।
वह घर आकर अपनी दादी से बोला, “दादी, हमारी नदी तो पहले कितनी साफ हुआ करती थी। अब इसका पानी गंदा हो गया है। लोग इसमें कचरा क्यों डाल रहे हैं?”
दादी ने बताया, “बेटा, पहले लोग प्रकृति का सम्मान करते थे। लेकिन अब लोगों को सिर्फ अपने आराम की फिक्र है। उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि उनके कामों से पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है।”
रवि ने ठान लिया कि वह कुछ करेगा। उसने अपने दोस्तों से इस बारे में बात की, लेकिन किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तब उसने सोचा कि अगर वह अकेला कुछ नहीं कर सकता, तो उसे गांव के बड़े-बूढ़ों और बच्चों को भी इस काम में शामिल करना होगा।
रवि ने गांव के सरपंच से मुलाकात की और उन्हें नदी की स्थिति के बारे में बताया। सरपंच ने कहा, “हमें तो पता है कि नदी गंदी हो रही है, लेकिन इसमें क्या किया जा सकता है? लोग अब अपनी सहूलियत देखते हैं, पर्यावरण का ख्याल कौन रखता है?”
रवि ने जवाब दिया, “अगर हम सब मिलकर कोशिश करें, तो हम अपनी नदी को फिर से साफ कर सकते हैं। हमें कचरा फेंकना बंद करना होगा, और लोगों को जागरूक करना होगा कि कैसे उनके छोटे-छोटे काम पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं।”
सरपंच ने रवि की बातें सुनीं और उसकी समझदारी को देखकर उसे गांव की सभा में बोलने का मौका दिया। सभा में रवि ने सबको बताया कि अगर हम इसी तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते रहेंगे, तो आने वाले समय में हमें पीने के लिए साफ पानी भी नहीं मिलेगा। उन्होंने सबको प्रेरित किया कि हमें पेड़ लगाने चाहिए, और नदी में कचरा नहीं फेंकना चाहिए।
रवि की बातों का गांव के कुछ लोगों पर असर हुआ। उन्होंने मिलकर एक योजना बनाई कि गांव के हर परिवार को महीने में कम से कम एक पेड़ लगाना होगा। इसके अलावा, गांव के बच्चों और बड़ों ने मिलकर एक टीम बनाई जो गांव में सफाई अभियान चलाएगी। हर शनिवार को वे नदी के किनारे सफाई करते और गांव वालों को समझाते कि कचरा फेंकने से पर्यावरण को कितना नुकसान होता है।
रवि और उसके दोस्तों ने एक छोटी सी नदी बचाओ समिति बनाई और गांव में पोस्टर और बैनर लगाए। उन्होंने हर घर जाकर लोगों से कहा कि वे अपने कचरे को नदी में न फेंकें और उसकी साफ-सफाई का ध्यान रखें। धीरे-धीरे लोग जागरूक होने लगे और नदी में कचरा फेंकना बंद कर दिया।
लेकिन नदी की समस्या सिर्फ गांव वालों के कचरे तक सीमित नहीं थी। गांव के पास की फैक्ट्रियां भी अपना गंदा पानी नदी में बहा रही थीं। रवि को यह बात खटकने लगी। उसने सरपंच और गांव के अन्य लोगों के साथ मिलकर फैक्ट्री मालिकों से मिलने का फैसला किया।
फैक्ट्री मालिकों से मिलते वक्त रवि ने उन्हें समझाया कि उनके द्वारा छोड़ा गया गंदा पानी न सिर्फ नदी को बल्कि पूरे गांव के पानी को भी दूषित कर रहा है। फैक्ट्री के मालिक पहले तो तैयार नहीं हुए, लेकिन जब गांव के लोगों ने मिलकर फैक्ट्री के खिलाफ आंदोलन करने की धमकी दी, तब वे मान गए। फैक्ट्री ने अपने कचरे को ठीक से निपटाने के लिए एक योजना बनाई, और धीरे-धीरे नदी का पानी फिर से साफ होने लगा।
रवि जानता था कि सिर्फ नदी को साफ करना ही काफी नहीं है, हमें पेड़ों को भी बचाना होगा। उसने गांव में एक “पेड़ लगाओ, जीवन बचाओ” अभियान शुरू किया। बच्चों और बड़ों ने मिलकर गांव के खाली पड़े इलाकों में पेड़ लगाए। रवि और उसकी टीम ने हर पेड़ की देखभाल की जिम्मेदारी ली। धीरे-धीरे गांव का वातावरण हरा-भरा होने लगा।
पेड़ों से न सिर्फ गांव की हवा साफ हुई, बल्कि पक्षियों की चहचहाहट भी लौट आई। गांव के लोग अब खुद को प्रकृति के करीब महसूस करने लगे।
कुछ महीनों बाद गांव पूरी तरह बदल चुका था। नदी का पानी फिर से साफ और शीतल हो गया था। पेड़-पौधे अब गांव की पहचान बन चुके थे। लोग अपने घरों के आसपास सफाई रखने लगे और कचरा फैलाने की बजाय सही जगह पर फेंकने लगे। गांव में एक सकारात्मक बदलाव आ चुका था, और इसका श्रेय रवि और उसकी पर्यावरण के प्रति जागरूकता को जाता है।
सीख
रवि की यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर हम पर्यावरण का ख्याल नहीं रखेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। छोटे-छोटे कदम उठाकर भी हम बड़े बदलाव ला सकते हैं। जैसे रवि ने गांव के लोगों को जागरूक किया, वैसे ही हमें भी अपने आसपास के लोगों को पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाना होगा।
प्रकृति हमारी मित्र है, और इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है। अगर हम आज से ही अपने पर्यावरण का ध्यान रखना शुरू करेंगे, तो भविष्य में हमें एक सुंदर और स्वस्थ जीवन मिलेगा।
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