सुकुमारी तेलंगाना की लोक कथा | Sukumari Telangana Folk Tale In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम सुकुमारी तेलंगाना की लोक कथा (Sukumari Telangana Folk Tale In Hindi) शेयर कर रहे हैं। Sukumari Tegangana Ki Lok Katha एक राजा की तीन पत्नियों की कहानी है, जो बेहद नाजुक और कोमल है। तीनों में से सबसे ज्यादा कोमल कौन थी? जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी : 

Sukumari Telangana Folk Tale In Hindi

Sukumari Telangana Folk Tale In Hindi

भोजन के बाद सभी मुसाफिर ठंडी चाँदनी के नीचे सराय के आँगन में बैठे बातें कर रहे थे। उन्होंने कई राज्यों और देशों के बारे में बातें की। सभी एक दूसरे को अपनी यात्रा की जानकारी दे रहे थे। अगले दिन की यात्रा के लिए भी तैयारी की गई। गरीबिन ताई, जो कि साठ साल की थी, रसोई का काम समाप्त करके आई। उसके पति गुज़र गए थे। वह सराय चलाकर अपना गुजर-बसर करती थी। उसका व्यापार भी अच्छी तरह से चल रहा है।

>

वरहा गाँव में ताई दिन-रात सराय में काम करती, यात्रियों को भोजन कराती और भोजन के बाद उन्हें फल भी देती थी। वह यात्रियों को कहानियाँ भी सुनाती थी, जिससे यात्रियों का मनोरंजन होता था। 

यात्रियों को उसकी कहानी सुनकर आनंद प्राप्त होता था, इसलिए वे अक्सर उससे कोई कहानी सुनाने का अनुरोध किया करते थे। 

“कोई कहानी तो सुनाओ ताई!” एक यात्री ने आँगन में बैठी ताई से अनुरोध किया।

“हाँ ताई, कोई कहानी सुनाओ। तुम कहानी सुनाती हो, तो यूं लगता है कोई वीणा बजा रहा है।“ दूसरे यात्री ने कहा।

“हाँ ताई! मुरली की धुन जैसी है तुम्हारी वाणी। सुनते ही नींद आ जाती है। सुनाओ ना कहानी।“ तीसरे यात्री ने कहा।

ताई मुस्कुराकर कहानी सुनाने लगी –  

एक समय की बात है। कौशल राज्य के राजा आर्यक का शासन था। उनकी तीन पत्नियाँ थी – सूर्यकला, चंद्रकला और शशिकला। तीनों बहुत रूपवती भी थी और कोमल भी। लोग उनके रूप की तुलना सात चमेलियों से करते थे।

एक दिन आर्यक राजा सूर्यकला के साथ बगीचे में टहल रहे थे। कुछ देर टहलने के बाद वे तालाब के किनारे बैठ गए। तालाब कमल के फूलों से भरा था और बहुत मनोहर लग रहा था। राजा ने तालाब में से एक कमल का फूल तोड़ा और स्नेहवश सूर्यकला के सिर पर धीरे से मारा। सूर्यकला चीख उठी। उसके सिर पर गांठ बन गई और वह बेहोश हो गई। सारा परिवार वहाँ इकठ्ठा हो गया। 

“महाराज, सूर्यकला को क्या हुआ?” उसकी सखी ने राजा आर्यक से पूछा। 

राजा ने घटना का वर्णन कर दिया।

“ओह महाराज, आपने क्या किया! क्या आपको ध्यान नहीं कि सूर्यकला बहुत नाजुक और कोमल है।” सखी ने कहा।

रथ पर डालकर सूर्यकला को अंतःपुर ले जाया गया। वहाँ राजचिकित्सकों ने उसकी चिकित्सा शुरू की और विभिन्न प्रकार की मंजरियों, मलहम, तेल आदि का उपयोग करके उसे स्वस्थ किया। उसके प्राण बच गए। राजा ने उसे विश्राम करने की सलाह दी और उसका सिर कोमलता से सहलाकर अपनी दूसरी पत्नी चंद्रकला के पास जा पहुँचा।

चंद्रकला ने देखा कि राजा आर्यक उदास हैं, तो वह उसे प्रसन्न करने का प्रयास करने लगी। चंद्रकला की हँसी से आर्यक की मनःस्थिति में थोड़ा सा बदलाव आया। दोनों झरोखे के पास बैठे थे। चंद्रकला ने आर्यक के हृदय पर सिर रखा हुआ था।

“महाराज, बताइए आज रात आपकी क्या इच्छा है, जो मैं पूरी कर सकती हूँ?” उसने पूछा।

राजा आर्यक ने चंद्रकला के मुख की ओर देखा। वह कुछ कहने ही वाला था कि बादलों में छुपा चाँद निकल आया। झरोखे से चाँदनी की किरणें चंद्रकला पर पड़ी और वह मूर्छित होकर गिर पड़ी। राजा आर्यक चिंतित हो गया और चिल्लाकर पूछा, ‘कौन है वहाँ?’ 

एक सेविका भागती हुए आई और पूछने लगी, ‘क्या हुआ महाराज,?’ 

राजा ने उत्तर में खिड़की की ओर इशारा किया। 

‘चंद्रमा!’ सेविका बोली और खिड़की के पट बंद करने लगी।

“चंद्रकला अत्यंत नाजुक है महाराज। बहुत कोमल है। चाँदनी को वह सहन नहीं कर पाती। इसी वजह से महल के सभी दरवाजे बंद रखे जाते हैं महाराज, झरोखे भी। आज यह झरोखा किसने खोल दिया।?” सेविका बोली।

सेवकों को बुलाया। उन्होंने चिकित्सकों को सूचित कर दिया। चिकित्सा शुरू की गई। चंद्रकला को मलाई लगाई गई, फूलों की पंखुड़ियाँ लगाई गईं। उसकी सेहत ठीक की गई। चंद्रकला को होश आ गया। उसने महाराज की ओर देखने के लिए अपनी आँखें खोली। राजा आर्यक ने धीरे से मुस्कुराये। उन्होंने उसके गालों को धीरे से सहलाया और अपनी तीसरी पत्नी शशिकला के पास चले गए।

शशिकला को मंदिर जाना था। राजा उसे मंदिर पहुँचाने के लिए गए।

राजा आर्यक घोड़े पर सवार थे और शशिकला पालकी पर। चांदनी रात थी। दूर कहीं धान की कुटाई हो रही थी, जिसका स्वर वातावरण में गूंज रहा था। राजा को धन कूटने का स्वर संगीत क तरह मधुर प्रतीत हो रहा था। 

राजा मंदिर पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही कुछ सेवक दौड़ते हुए उसके पास आये और बोले, “रानी के हाथ में घाव हुआ है।”

“घाव? कैसे हुआ है?” राजा ने पूछा।

“महाराज! दूर कोई मूसलों से धान कूट रहा था। उसकी ध्वनि रानी शशिकला सहन नहीं कर पाई और रानी की हथेलियाँ कुम्हालकर लाल हो गई। घाव बनकर खून बहने लगा।” सेवकों ने बताया।

राजा आर्यक आश्चर्यचकित हुए। दौड़कर वह शशिकला के पास पहुँचे। शशिकला ने हाथों को देखते हुए उसकी आँखों में आँसू भर आये।”

“शशि” राजा ने पुकारा।

“महाराज” कहते हुए शशिकला आर्यक के ह्रदय से लग गई। राजा ने उसके हाथों को पकड़ा हुआ था। शशिकला के हाथों में सूजन था, घाव था और खून बह रहा था। शशिकला की सखियाँ दौड़ती हुईं आईं। वे चाँदी की कटोरियों में चंदन और सोने की कटोरियों में दूध ले आई। शशिकला के हाथों को दूध से साफ करके उन्हें फूल की पँखुड़ियों से चंदन लगाया गया। राजा ने सैनिकों को भेजकर धान की कुटाई बंद करवाई।

ताई ने कहानी को समाप्त किया।

“कहानी कैसी लगी?” ताई ने पूछा। 

“अच्छी थी।” यात्रियों ने उत्तर दिया।

“अच्छी है, कहने से क्या होता है? सूर्यकला, चंद्रकला और शशिकला, इन तीनों में से असल में सुकोमल कौन थी, ये तो बताओ।” ताई ने पूछा। 

सभी यात्री सोच में डूब गए। वे आपस में चर्चा करने लगे। थोड़ी देर बाद उन्हें उत्तर मिला और कहने लगे—

“सूर्यकला को फूल से चोट लग गई। चंद्रकला चाँदनी से कुम्हला गई। शशिकला के साथ हुआ हुआ, वह परोक्ष था। दूर से एक आवाज सुनाई दी और वह घायल हो गई थी। इसलिए शशिकला ही वास्तव में सबसे नाज़ुक, कोमल और सुकुमारी थी।”

“ठीक कहा!” ताई ने प्रशंसा की।

“अब सो जाओ!” उन्होंने कहा। 

यात्री अंगड़ाई लेकर सोने के लिए चले गए।

आशा है आपको “Sukumari Short Story Of Telangana In Hindi” पसंद आई होगी। “Sukumari Folk Story Of Telangana In Hindi” पसंद आने पर Like और Share करें. ऐसी ही अन्य “Folk Tales In Hindi” पढ़ने के लिए हमें Subscribe करना न भूलें. Thanks.

बुद्धिमान काज़ी कश्मीर की लोक कथा

धान की कहानी उत्तर प्रदेश की लोक कथा

टिपटिपवा की कहानी यूपी की लोक कथा 

Leave a Comment