स्वप्न-वृक्ष : बिहार की लोक-कथा | Swapna Vriksh Bihar Ki Lok Katha

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम स्वप्न-वृक्ष – बिहार की लोक-कथा (Swapna Vriksh Bihar Ki Lok Katha) शेयर कर रहे है.  Swapna Vriksh Bihar Folk Tale In Hindi  एक राजा के स्वप्न में दिखे अद्भुत वृक्ष की कथा है. उसके चार पुत्र इस वृक्ष को खोज में निकलते हैं . क्या वे स्वप्न वृक्ष ला पाते हैं, जानने के लिए पढ़िये पूरी कहानी : 

Swapna Vriksh Bihar Ki Lok Katha

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Swapna Vriksh Bihar Ki Lok Katha
Swapna Vriksh Bihar Ki Lok Katha

एक राज्य में एक शूरवीर और दयालु राजा का शासन था। उसकी दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी का एक पुत्र था और छोटी रानी के तीन पुत्र थे। बड़ी रानी सरल और मृदु स्वभाव की थी। उसकी छत्रछाया में उसका पुत्र अर्थात बड़ा राजकुमार भी सरल और सहज बना। छोटी रानी स्वार्थी और चालाक थी। उसके तीनों पुत्रों ने यही गुण अपनी माँ से ग्रहण किया था। तीनों छोटे राजकुमार धूर्त, चालाक और स्वार्थी थे।

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बड़े राजकुमार के सरल स्वभाव के कारण राजा का उसके प्रति विशेष स्नेह था। ये देख तीनों छोटे राजकुमार उससे ईर्ष्या किया करते थे।

एक रात राजा को एक अद्भुत स्वप्न आया। स्वप्न में उसने देखा कि एक वृक्ष धीरे-धीरे बड़ा हो रहा। जब वृक्ष ने आकार लिया, तो उसकी जड़ और तना चांदी के, शाखायें सोने की और पत्ते हीरों से निर्मित थे। उस वृक्ष पर फलों स्थान पर मोतियों के गुच्छे लटक रहे थे और उस पर एक सुंदर तोता बैठा हुआ था। वह तोता जब प्रसन्न होता, तो उसकी प्रसन्नता देख वृक्ष की हर शाखायें प्रफुल्लित होकर झूमने लगती। जब वह उदास होता, तो उसकी उदासी से पेड़ भी मुरझा जाता।

इस स्वप्न से राजा की नींद टूट गई और वह सुबह तक स्वप्न में दिखे उस अद्भुत वृक्ष के बारे में सोचता रहा। वह इस वृक्ष से इतना प्रभावित हो चुका था कि उसे प्राप्त करना चाहता था।

अगले दिन उसने अपने चारों पुत्रों को बुलवाया और उन्हें अपने स्वप्न के बारे में बताकर कहा, “पुत्रों! तुममें से जो कोई भी वह वृक्ष लेकर आयेगा, वही इस राजपाट का उत्तराधिकारी होगा। मैं इस कार्य के लिए तुम लोगों की दो वर्ष का समय देता हूँ।”

तीनों छोटे राजकुमारों ने जाकर यह बात अपनी माँ को ये बात बताई। चालाक छोटी रानी उनसे बोली, “राजपाट तुम लोगों के हिस्से ही आना चाहिए। मैं तुम्हें ढेर सारा धन देती हूँ। पास ही एक नगर में तुम्हें अच्छे कारीगर मिल जायेंगे। उनमें से किसी से वैसा ही वृक्ष बनवाकर ले आना।”

तीनों राजकुमार अपनी माँ से ढेर सारा धन लेकर उस नगर की ओर चल पड़े। वहाँ उन्होंने एक अच्छा कारीगर ढूंढा और स्वप्न वृक्ष बनवाने लगे। स्वप्न वृक्ष बनने में समय लगने वाला था। इसलिए तीनों राजकुमार उसी गाँव में रहने लगे।

उधर बड़ा राजकुमार भी स्वप्न वृक्ष की खोज में निकला। वह उस नगर से गुजरा, जहाँ तीनों छोटे राजकुमार ठहरे हुए थे। जब तीनों राजकुमारों ने उसे जाते हुए देखा, तो छल से उसे जंगल के एक कुएं के पास ले गए और उसमें ढकेलकर वापस नगर लौट आये।

संयोगवश वह सूखा कुआं था। बड़ा राजकुमार बच गया और वहाँ से निकलने के लिए आवाज़ लगाने लगा। जंगल से गुजरते चरवाहे ने उसकी पुकार सुन ली और कुएं में रस्सी डालकर उसे बाहर निकाल लिया। बाहर आकर बड़े राजकुमार ने चरवाहे का धन्यवाद किया और उसे अपने पिता के स्वप्न के बारे में बताकर स्वप्न वृक्ष के बारे में पूछा।

चरवाहे को उस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उसने उत्तर दिया, “मैं तो इस बारे में कुछ नहीं जानता। किंतु हो सकता है, कुछ दूर समाधि डाले बैठे साधु इस बारे में आपको कुछ बता सकें। किंतु आपको उनके समाधि से उठने की प्रतीक्षा करनी होगी।”

राजकुमार जंगल में आगे बढ़ा और उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ साधु समाधि में लीन था। उसके चारों ओर ढेर सारी झाड़ियाँ उग आई थीं। राजकुमार ने झाड़ियों को साफ किया और वहीं रहकर साधु की करते हुए उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगा।

लगभग एक माह बाद साधु की समाधि टूटी। उन्होंने पाया कि एक सुकुमार उनकी सेवा में लीन है। वे बहुत प्रसन्न हुए और से बोले, “मैं तुमसे प्रसन्न हूँ पुत्र। कहो क्या वरदान मांगते हो।”

राजकुमार ने उनसे सोने-चांदी वाले स्वप्न वृक्ष की मांग की। वह देना साधु के बस में नहीं था। उन्होंने राजकुमार को अपने गुरु के पास जाने को कहा, जो दूसरे जंगल में रहते थे।

राजकुमार ने दूसरे जंगल की यात्रा प्रारंभ की। कुछ दिनों में वह उस स्थान पर पहुँच गया, जहां पहले साधु के गुरु रहते थे। उनकी विशेषता ये थी कि वे एक साल तक सोते थे।

एक साल तक राजकुमार उनकी सेवा करता रहा। जब वे जागे, तो प्रसन्न होकर वरदान देने को तत्पर हुए। राजकुमार ने वही स्वप्न वृक्ष मांगा। राजकुमार की मांग सुनकर साधु ने कहा, “मैं तो तुम्हें ये वृक्ष नहीं दे सकता। किंतु कुछ दूर घने जंगल में मेरे गुरु रहते हैं। उन्हें दैवीय शक्ति प्राप्त है। संभव है वे तुम्हें स्वप्न वृक्ष प्रदान कर सकें।”

राजकुमार घने जंगल में आगे बढ़ा और तीसरे साधु के पास पहुँचा। उनसे भी उसने स्वप्न वृक्ष की मांग की, किंतु उस साधु के लिए भी स्वप्न वृक्ष प्रदान करना संभव नहीं था। वे बोले, “मैं तो तुम्हारी मनोकामना पूर्ण नहीं कर सकता। हो सकता है, उस सामने स्थित मंदिर के देवता तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करें। वहाँ जाकर देवता की पूजा करो। प्रसन्न होने पर वे तुम्हें एक मणि प्रदान करेंगे। वो मणि तुम्हें पाताल लोक पहुँचा देगी, जहाँ ढेर सारी परियाँ रहती हैं। वे परियाँ ही तुम्हारी मनोकामना पूरी कर पायेंगी।”

राजकुमार ने मंदिर में जाकर देवता की आराधना की और उसे मणि प्राप्त हो गई। मणि के बल पर वह पाताल लोक पहुँचा। पाताल लोक के द्वार पर पहरी पहरा दे रहे थे। बड़े राजकुमार ने उसे देवता की मणि दिखाई, तो उन्होंने द्वार खोल दिये।

राजकुमार अंदर गया। वहाँ उसे कई महल दिखाई दिए। उन महलों में कई परियाँ निवास करती थीं। राजकुमार पहले महल में गया, जो चांदी का बना था। उसमें महल में ‘चांदी परी’ निवास करती थी। अंदर जाने पर राजकुमार को सिंहासन पर बैठी चांदी परी दिखाई दी। राजकुमार को देखते ही वह बोली, “आओ राजकुमार, मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी।”

यह सुनकर राजकुमार आश्चर्य में पड़ गया। वह बोला, “तुम मेरी प्रतीक्षा क्यों कर रही हो?”

“क्योंकि मैं जानती हूँ कि तुम किस प्रयोजन से आए हो और वह प्रयोजन मैं सिद्ध कर सकती हूँ।” चांदी परी ने उत्तर दिया।

“तो क्या तुम मुझे स्वप्न वृक्ष प्रदान कर सकती हो?” राजकुमार ने पूछा।

चांदी परी ने कहा, “मैं तुम्हें चांदी की जड़ और चांदी का तना बनाकर दे सकती हूँ।”

राजकुमार के कहने पर उसने उसे चांदी की जड़ और तना बनाकर दिखाया। राजकुमार उससे फिर मिलने की बात कहकर दूसरी परियों के महल में चला गया।

अगला महल सोने का था, जहाँ ‘सोना परी’ रहा करती थी। राजकुमार जब सोना परी के पास पहुँचा, तो सोना परी ने बताया कि वह सोने की डालियाँ बना सकती है।

सोना परी से आज्ञा लेकर राजकुमार अगले महल में महल में पहुँचा, जो हीरे का था। वहाँ ‘हीरा परी’ रहती थी, जो हीरे की पत्तियाँ बना सकती थी। अगला महल मोती का था, जहाँ ‘मोती परी’ रहती थी। मोती परी वृक्ष की डालियों पर फलों के रूप में मोतियों के गुच्छे भर देती थी।

वहाँ से निकलकर राजकुमार अगले महल में पहुँचा, जो ‘तोता महल’ था। उस महल में ‘तोता परी’ रहती थी, जो उस अद्भुत वृक्ष पर तोता बनकर बैठा करती थी। तोते के प्रसन्न रहने पर पेड़ का हर हिस्सा खिलखिला रहता और तोते के उदास होते ही पेड़ मुरझाने लगता। राजकुमार समझ गया कि इन पारियों के बल पर वह अपने पिता को स्वप्न वृक्ष बनाकर दिखा सकता है।

उसने सभी परियों से साथ चलने का निवेदन किया और सभी पारियाँ उसके साथ पृथ्वीलोक जाने को तैयार हो गई। देवता की दी गई मणि के सहारे सभी पाताल लोक से पृथ्वी लोक पहुँचे।

पृथ्वी लोक वापस आकर राजकुमार सबसे पहले देवता के मंदिर में गया और वहाँ वह मणि देवता को वापस कर दी। वहाँ से निकलकर वह परियों के साथ उस साधु के पास पहुँचा, जिसने उसे मंदिर का रास्ता बताया था। उसने साधु का धन्यवाद किया, तो साधु ने उसे एक रस्सी और लाठी दी।

साधु ने उससे कहा, “पुत्र इस रस्सी और लाठी के सहारे तुम अपनी और परियों की रक्षा कर सकोगे और सही सलामत महल पहुँच सकोगे। इस रस्सी और लाठी से तुम कभी भी किसी को अपने पास बुला सकते हो।”

उनका धन्यवाद कर राजकुमार परियों सहित आगे बढ़ा और उस साधु से मिला, जो साल भर तक सोते रहा करते थे। उसने उनका भी धन्यवाद किया। साधु ने उसे एक चमत्कारी कटोरा दिया, जो मांगने पर स्वादिष्ट भोजन प्रदान करता था। उनका धन्यवाद कर राजकुमार आगे बढ़ा और सबसे पहले साधु के पास पहुँचा, जो समाधि में लीन रहा करते थे। उस समय वे समाधि में नहीं थे। राजकुमार ने उन्हें अपनी सारी बातें बताई। साधु को एकदम से राजकुमार की बात पर विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने स्वप्न वृक्ष बनाकर को कहा।

राजकुमार ने परियों से कहकर सोने, चांदी और हीरे मोतीयों का वृक्ष बना दिया। उस वृक्ष को देखकर साधु को लोभ आ गया। उसने सभी परियों का अपने पास रख लिया और राजकुमार को डरा धमका कर भगा दिया। राजकुमार जब जंगल से बाहर निकला, तो दुखी था। मगर तभी उसे लाठी और रस्सी याद आई।

उसने लाठी और रस्सी से कहा, “जाओ सभी परियों को साधु से छीनकर मेरे पास आओ।”

वैसा ही हुआ। कुछ ही पल में सभी परियाँ राजकुमार के पास आ चुकी थीं। उन्हें लेकर राजकुमार अपने नगर की ओर बढ़ा। राजा का दिया दो वर्ष का समय भी अब समाप्त होने को था। उसके पहले उसे उनके पास पहुँचना था।

रास्ते में उसकी मुलाकात तीनों छोटे राजकुमारों से हो गई। वे सभी सोने चांदी का महल बनवाकर वापस लौट रहे थे। बड़े राजकुमार को जीवित देखकर वे चकित रह गए और उससे उसका हाल पूछा। बड़े राजकुमार ने उन्हें सारी बात बता दी। असली स्वप्न वृक्ष की बात जानकर तीनों राजकुमार ने सभी परियों को अपने कब्जे में लिया और बड़े राजकुमार को उसी सूखे कुए में धक्का देकर महल की ओर रवाना हो गये।

महल पहुँचकर वे तीनों राजा के पास पहुँचे और उन्हें बताया कि वह स्वप्न वृक्ष लेकर आ गए हैं। राजा ने उनसे स्वप्न वृक्ष बनाकर दिखाने को कहा। तीनों राजकुमारों ने परियों से बहुत आग्रह किया, किंतु वे टस से मस नहीं हुई और स्वप्न वृक्ष बनाकर नहीं दिखाया। तब तीनो राजकुमारों ने कारीगरों से बनवा कर लाए हुए सोने चांदी का वृक्ष राजा को दिखाया। उस वृक्ष को देख कर राजा बोले, “यह स्वप्न वृक्ष नहीं है। मैंने जो वृक्ष देखा था, उसे बनते हुए देखा था और उस पर तोता बैठा था। मुझे मेरे सामने स्वप्न वृक्ष बनाकर दिखाओ।”

तीनों राजकुमार हताश हुए। राजा बड़े राजकुमार की प्रतीक्षा करने लगा।

उधर कुएं में गिरे राजकुमार को एक बार फिर उसी चरवाहे ने बचाया। राजकुमार ने उसका धन्यवाद दिया। चरवाहा बहुत गरीब था। राजकुमार ने चमत्कारी कटोरे की मदद से उसके और उसके परिवार को भरपूर भोजन करवाया और वह कटोरा उसे देकर महल चला आया।

राजकुमार महल तो चला आया, किंतु उसके पास पारियाँ नहीं थी, जिससे वह स्वप्न वृक्ष बनाकर राजा को दिखा पाता। उसे लग रहा था कि तीनों राजकुमारों ने राजा को स्वप्न वृक्ष बना कर दिखा दिया होगा। किंतु महल पहुँचने पर उसे सारी घटना का पता चला। फिर उसने लाठी और रस्सी के सहारे सभी परियों को अपने पास बुलवा लिया और उन्हें लेकर राजा के पास पहुँचा।

राजा को उसने अपने छोटे भाइयों की सारी कारस्तानी बताई। फिर परियों को स्वप्न वृक्ष बनाने को कहा। परियों ने सोने-चांदी और हीरे-मोतियों का स्वप्न वृक्ष बना दिया, जो बिल्कुल राजा के सपने में दिखे वृक्ष की तरह था। ‘तोता परी’ वृक्ष पर तोता बन कर बैठ गई और उसके खुश होते ही पेड़ की डालियाँ झूमने लगी। यह दृश्य देख कर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बड़े राजकुमार को अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाया और तीनों राजकुमार को काल कोठरी में डाल दिया।

(मूल रचना – उषा सिंह)

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