सुनहरे गोबर की कथा पंचतंत्र की कहानी ~ ककोलूकियम | Tale Of The Golden Droppings In Hindi Panchatantra

(Sunhare Gobar Ki Katha Kahani, The Tale Of The Golden Droppings In Hindi Panchatantra)

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम सुनहरे गोबर की कथा (Tale Of The Golden Droppings In Hindi) शेयर कर रहे हैं. यह कहानी पंचतंत्र के तंत्र (भाग) ककोलूकियम से ली गई है, जो स्वर्ण-कण युक्त बीट करने वाले एक पक्षी की है. इस कहानी में विभिन्न स्तर पर लोगों की मूर्खता का वर्णन किया गया है. पढ़िए  Sunhare Gobar Ki Katha :

Tale Of The Golden Droppings In Hindi

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Panchatantra Tale Of The Golden Droppings In Hindi
Panchatantra Tale Of The Golden Droppings In Hindi

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बहुत समय पहले की बात है. एक पर्वतीय प्रदेश में महाकाय वृक्ष था, जिस पर सिन्धुक नामक पक्षी निवास करता था. उस पक्षी की विशेष बात ये थी कि उसकी विष्ठा में स्वर्ण-कणों का समावेश होता था.

एक दिन एक व्याध उस पर्वतीय प्रदेश में आखेट के लिए आया. उसे ज्ञात नहीं था कि सिन्धुक पक्षी की विष्ठा स्वर्ण-कण युक्त होती है. जब वह महाकाय वृक्ष के निकट से गुजरा, तो उसकी चेष्टा सिन्धुक पक्षी को पकड़ने की नहीं थी. किंतु, जैसे ही वह आगे बढ़ने लगा, सिन्धुक पक्षी के मूर्खता की और उसके सामने ही स्वर्ण-कण युक्त विष्ठा कर दी.

स्वर्ण-कण युक्त विष्ठा देखते ही व्याध में लोभ आ गया और जाल डालकर उसने सिन्धुक पक्षी को पकड़ लिया.

घर आकर उसने उसे एक पिंजरे में बंद कर दिया. किंतु, पूरी रात वह सो नहीं पाया. वह सोचता रहा कि यदि किसी तरह इस सिन्धुक पक्षी पक्षी और इसके स्वर्ण-कण युक्त विष्ठा की बात राज्य के राजा तक पहुँच गई, तो राजा उसे दंडित कर देगा. वह भयभीत हो गया.

दंड से बचने के लिए उसने निर्णय किया कि वह स्वयं ही राजा से भेंटकर सिन्धुक पक्षी के विषय में उन्हें जानकारी दे देगा और उपहार स्वरुप वह पक्षी भी उन्हें दे देगा.

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अगले ही दिन वह राजा से भेंट करने राज-दरबार पहुँच गया. वहाँ उसने सिन्धुक पक्षी प्रस्तुत करते हुए उसकी स्वर्ण-कण युक्त विष्ठा के विषय में राजा को सब कुछ बता दिया. पूरी बात जानकर राजा ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे सिन्धुक पक्षी व्याध से लेकर उसका  विशेष ध्यान रखे. सेवकों ने वैसा ही किया. 

उस समय दरबार में राजा का मंत्री भी उपस्थित था और ये सारा घटनाक्रम देख रहा था. उसे व्याध की बातें मूर्खतापूर्ण लगी. उसने राजा को परामर्श दिया कि ऐसी अनर्गल बातों पर विश्वास करना आपको उपहास का पात्र बना देगा. इसलिए व्याध की बातों में न आये.

राजा ने मंत्री की सलाह मान ली और सेवकों को आदेश दिया कि सिन्धुक पक्षी को स्वतंत्र कर दिया जाये. सेवकों ने आदेश का पालन करते हुए सिन्धुक पक्षी को छोड़ दिया.

पिंजरे से बाहर निकलने के बाद सिन्धुक पक्षी उड़कर राजमहल के प्रवेश द्वार पर बैठ गया और वहाँ से जाने के पूर्व पुनः स्वर्ण-कण युक्त विष्ठा कर गया.

जाने के पूर्ण उसने कहा :

“पूर्वं तावदहं मूर्खो द्वीतीयः पश्बंधकः

ततो राजा च मंत्री च सर्वं वै मूर्खमंडलम”

अर्थात् सबसे पहला मूर्ख मैं था, जिसने व्याध के समक्ष विष्ठा करके अपनी मूर्खता का परिचय दिया. दूसरा मूर्ख व्याध था, जिसने व्यर्थ के भय में उसे राजा के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया. तदोपरांत, राजा और मंत्री तो मूर्खों के मूर्ख निकले, जिन्होंने व्याध के कथन पर विश्वास न कर उसे छोड़ दिया. इस प्रकार इस राज्य में मूर्ख-मण्डली का जमवाड़ा है.


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