तेनाली राम और झूठा व्यापारी कहानी (Tenaliram Aur Jhutha Vyapari Kahani)
तेनाली राम, विजयनगर साम्राज्य के महान राजा कृष्णदेवराय के दरबार के सबसे चतुर और चहेते मंत्री थे। उनकी कहानियों में चतुराई, हाजिरजवाबी और बौद्धिक कौशल का अद्भुत प्रदर्शन होता है। उनकी हर कहानी से हमें जीवन के किसी न किसी पहलू की सीख मिलती है। आज हम आपके लिए एक नई कहानी लेकर आए हैं, जिसमें तेनाली राम ने अपनी चतुराई से न केवल एक कठिन परिस्थिति से बचाव किया, बल्कि एक महत्वपूर्ण संदेश भी दिया।
Tenaliram Aur Jhutha Vyapari Kahani
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विजयनगर साम्राज्य के बाजार में दूर-दूर से व्यापारी आते थे। एक दिन एक धनी व्यापारी नामदेव शहर में आया। वह खुद को बहुत ईमानदार और परोपकारी व्यक्ति के रूप में पेश करता था। उसने राजा कृष्णदेवराय के दरबार में अपनी दानवीरता का प्रदर्शन करने के लिए सोने और चांदी के सिक्के दान करने की घोषणा की। राजा ने उसकी उदारता से प्रभावित होकर उसकी खूब प्रशंसा की।
लेकिन तेनाली राम को उस व्यापारी की हरकतों में कुछ अजीब लगा। वह हमेशा किसी न किसी से व्यापार के नाम पर उधार लेता और वादा करता कि जल्दी ही सारा कर्ज चुका देगा। तेनाली ने फैसला किया कि वह व्यापारी की सच्चाई का पता लगाएंगे।
एक दिन तेनाली राम ने अपने एक मित्र से व्यापारी के बारे में जानकारी इकट्ठा की। उन्हें पता चला कि नामदेव व्यापार के नाम पर लोगों को धोखा देता है। वह अमीर दिखने के लिए कुछ सोने-चांदी के आभूषण साथ रखता था और अपनी ईमानदारी की झूठी छवि बनाकर लोगों को ठगता था।
तेनाली ने सोचा कि इस व्यापारी की चालाकी को उजागर करना जरूरी है, ताकि वह विजयनगर के लोगों को धोखा न दे सके।
अगले दिन तेनाली राम व्यापारी के पास पहुंचे और कहा,
“नामदेव जी, मैंने आपकी उदारता और व्यापारिक कौशल के बारे में बहुत सुना है। मैं खुद आपके साथ साझेदारी करना चाहता हूं।”
नामदेव को तेनाली राम की बात सुनकर खुशी हुई। उसने सोचा, “अगर तेनाली राम जैसा होशियार व्यक्ति मेरे साथ काम करेगा, तो मुझे दरबार में और भी मान-सम्मान मिलेगा।”
तेनाली राम ने प्रस्ताव रखा, “हम दोनों एक योजना पर काम करेंगे, लेकिन पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पास पर्याप्त पूंजी हो। आप अपनी तरफ से 1000 स्वर्ण मुद्राएं लाएं, और मैं भी इतनी ही रकम दूंगा। इससे हमारा व्यापार शुरू हो जाएगा।”
नामदेव ने झूठा नाटक करते हुए कहा, “बिलकुल, मुझे आपका प्रस्ताव पसंद आया। मैं कल ही स्वर्ण मुद्राएं लेकर आता हूं।”
लेकिन नामदेव के पास इतनी रकम नहीं थी। उसने सोचा कि वह किसी और से उधार लेकर तेनाली राम को प्रभावित करेगा और बाद में रकम वापस नहीं करेगा।
अगले दिन नामदेव दरबार में आया और एक बक्सा लेकर तेनाली राम के पास पहुंचा। उसने कहा, “यह 1000 स्वर्ण मुद्राएं हैं। अब आप अपनी रकम दिखाएं।”
तेनाली राम मुस्कुराए और बोले, “पहले मैं यह देखना चाहता हूं कि आपकी मुद्राएं असली हैं या नहीं।” उन्होंने दरबार के सिपाही को बुलाकर कहा, “इस बक्से को राजा के खजाने में जमा करवा दीजिए।”
नामदेव घबरा गया। उसने जल्दी से कहा, “नहीं-नहीं, मुझे यह बक्सा अभी वापस चाहिए। यह मेरी निजी संपत्ति है।”
तेनाली राम ने गंभीर स्वर में कहा, “नामदेव जी, अगर यह संपत्ति आपकी है, तो इसे खजाने में जमा करवाने में आपको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। लेकिन आपकी घबराहट बता रही है कि आप झूठ बोल रहे हैं। इस बक्से में या तो नकली मुद्राएं हैं या फिर किसी और से उधार ली गई संपत्ति।”
तेनाली राम ने राजा को सारा मामला समझाया। उन्होंने बताया कि नामदेव ने कई व्यापारियों और नागरिकों को ठगने की योजना बनाई थी।
सीख
राजा कृष्णदेवराय ने नामदेव को कड़ी सजा दी और तेनाली राम की प्रशंसा की। उन्होंने दरबारियों से कहा, “हमेशा याद रखें, झूठ और छल का पर्दाफाश अंततः हो ही जाता है। सच्चाई और ईमानदारी ही इंसान की सबसे बड़ी संपत्ति है।”
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि झूठ और धोखे से अर्जित की गई संपत्ति या प्रतिष्ठा ज्यादा समय तक टिक नहीं सकती। तेनाली राम की चतुराई और सत्य के प्रति उनकी निष्ठा हमें यह संदेश देती है कि जीवन में ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं है।
तेनाली राम और महाराज की वाहवाही