मूर्ख साधु और ठग ~ मित्रभेद : पंचतंत्र की कहानी | The Foolish Sage And Swindler Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम पंचतंत्र की कहानी “मूर्ख साधु और ठग” (The Foolish Sage And Swindler Story In Hindi) शेयर कर रहे है. पंचतंत्र के तंत्र (भाग) मित्रभेद ली गई ये कहानी एक मूर्ख ब्राह्मण और एक ठग की है. मंदिर में मिले दान से जमा धन को साधु से चुराने के लिए ठग कैसी जुगत लगाता है? यही इस कहानी में बताया गया है. पढ़िए पूरी कहानी (मूर्ख साधु और ठग की कहानी) : 

The Foolish Sage And Swindler Story In Hindi

The Foolish Sage And Swindler Story In Hindi
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एक गाँव में एक मंदिर था, जिसमें देव शर्मा नामक एक साधु रहता था. गाँव का एकमात्र मंदिर होने के कारण गाँव के सभी लोग वहाँ पूजा करने जाते थे और कई प्रकार का चढ़ावा चढ़ाते थे.

वर्षों से साधु मंदिर में पूजा-पाठ कर रहा था. इसलिए सब लोग उसका बहुत सम्मान करते थे और उसे भी उपहार स्वरुप कई वस्तुएं प्रदान करते थे, जैसे वस्त्र, खाद्य सामग्री, धन इत्यादि.

इस तरह साधु के पास बहुत सारा धन एकत्रित हो गया. वह अपना सारा धन एक पोटली में बांध कर रखता था. उसे अपने धन के चोरी हो जाने का भय था, इसलिए उस पोटली को कभी स्वयं से अलग नहीं करता था.

एक दिन उस गाँव में एक ठग आया. उसे जब साधु की धन की पोटली के बारे में पता चला, तो वह उसे चुराने की योजना बनाने लगा. किंतु, साधु द्वारा सदा धन अपने पास रखने के कारण उसे उपयुक्त अवसर प्राप्त नहीं हो पा रहा था.

अंततः, उसने सोचा कि क्षद्म वेश धारण कर कुछ दिन साधु के आश्रम में रहकर उसकी सेवा की जाए और अवसर प्राप्त होते ही धन चुराकर गाँव से पलायन कर लिया जाये.

अगले ही दिन वह क्षद्म वेश धारण कर साधु के पास गया और उससे निवेदन करने लगा, “मुनिवर, मुझे अपनी शरण में ले लें. मैं आपकी सेवा करना चाहता हूँ और आपके कर-कमलों में रहकर ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ.”

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साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया और अपने साथ आश्रम में रहने की अनुमति प्रदान कर दी. ठग पूरी लगन से मंदिर का काम करने लगा. वह सुबह-सवेरे ही उठ जाता और मंदिर की साफ़-सफाई करता, नदी से पानी भरकर लाता, पेड़-पौधों को पानी देता, भोजन बनाने में सहायता करता और मंदिर के हर कार्य में हाथ बंटाता.

उसकी सेवा भावना से साधु बड़ा प्रसन्न था. वह धीरे-धीरे उसे उस पर विश्वास होने लगा था. अब वह जहाँ जाता, ठग को भी अपने साथ लेकर जाता था.

एक दिन उसे पड़ोसी गाँव में अनुष्ठान के लिए बुलाया गया. वह ठग को साथ लेकर उस गाँव की ओर निकल पड़ा. अपनी धन की पोटली उसने कमर में बांध ली थी.

रास्ते में एक नदी पड़ी. साधु ने सोचा कि अनुष्ठान के पूर्व स्नान कर लेना उचित रहेगा. उसने अपनी दुशाला के नीचे धन की पोटली रखी और ठग से उसकी रखवाली करने को कह नदी में स्नान करने चला गया.

ठग को इसी अवसर की प्रतीक्षा में था. उसने बिना देर किये साधु की धन पोटली उठाई और चलता बना. एक अनजान व्यक्ति पर विश्वास कर साधु ने अपना पूरा धन गंवा दिया.

सीख (Moral of the story)

प्रायः लोग अपना हित साधने के लिए दिखावा कर अपना विश्वास अर्जित करते हैं और अपना हित साध कर निकल जाते हैं. इसलिए बिना पूरी तरह जाँचे-परखे किसी अनजान का विश्वास नहीं करना चाहिए.

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