मस्तक पर चक्र : पंचतंत्र की कहानी ~ अपरीक्षितकारक | The Four Treasure Seekers Panchatantra Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम पंचतंत्र की कहानी ‘मस्तक पर चक्र’  (The Four Treasure Seekers Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. यह कहानी पंचतंत्र के अंतिम तंत्र (भाग) अपरीक्षितकारक से ली गई है. यह कहानी चार ऐसे ब्राह्मणों की है, जो धन की ख़ोज में निकलते हैं. वहाँ उन्हें तांबे, चाँदी, सोने और हीरे की खान प्राप्त होती है. क्या उनकी धन की खोज समाप्त हो पाती है?  धन उनके जीवन पर क्या प्रभाव डालता है? यही इस कहानी में बताया गया है. पढ़िए पूरी कहानी : 

The Four Treasure Seekers Story In Hindi

The Four Treasure Seekers Panchatantra Story In Hindi
The Four Treasure Seekers Panchatantra Story In Hindi

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एक नगर में चार युवा ब्राह्मण रहते थे. धन उपार्जित करने के उद्देश्य से उन्होंने दूसरे नगर जाने का विचार किया और अवंती चले आये. वहाँ क्षिप्रा नदी में स्नान कर उन्होंने मंदिर में भगवान शिव की आराधना की.

मंदिर में उनकी भेंट आराधक भैरवानंद से हुई. भैरवानंद ने उन चारों को अपने आश्रम में आमंत्रित किया और वे उसके साथ आश्रम चले आये. पूरा दिन उन्होंने आश्रम में व्यतीत किया. वहाँ उन्हें ज्ञात हुआ कि भैरवानंद को अनेक सिद्धियाँ प्राप्त है.

वे उससे अनुनय करने लगे, “मान्यवर, आपको अनेक सिद्धियाँ प्राप्त हैं. कृपा कर हमारा कल्याण करें. हमें धन उपार्जन का मार्ग बताएं.”

उनका अनुनय सुन भैरवानंद को दया आ गई और उसने चारों को सूत से बनी एक-एक बत्ती देकर कहा, “तुम चारों इन बत्तियों को अपने हाथ में लेकर हिमालय की ओर प्रस्थान करो. वहाँ की तराई में स्थित वन में तब तक चलते जाओ, जब तक बत्ती किसी स्थान पर गिर न पड़े. जहाँ बत्ती गिरे, उस स्थान की खुदाई करो. तुम्हें गड़ा धन प्राप्त होगा.”

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अगली सुबह बत्तियाँ लेकर चारों ब्राह्मणों ने हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान किया. कई दिनों की यात्रा पश्चात् वे हिमालय की तराई में पहुँचे. वहाँ घने जंगल से गुजरते हुए एक ब्राह्मण की बत्ती गिर गई. उसने जब उस स्थान की खुदाई की, तो उसे ताम्बे की खान प्राप्त हुई.

उसने दूसरे ब्राह्मणों से कहा, “आओ, जितना ताम्बा इकठ्ठा कर सकते हो, कर लो और वापस चलो.”

लेकिन सबने मना कर दिया और बोले, “मूर्ख, हमने बहुत सारा ताम्बा इकट्ठा कर भी लिया, तब भी हमारी दरिद्रता समाप्त नहीं होगी. इसलिए हमें आगे बढ़ना चाहिए.”

पहला ब्राह्मण ताम्बा पाकर संतुष्ट था. इसलिए वह ताम्बा लेकर घर लौट गया. शेष तीन आगे बढ़ गए.

कुछ दिन चलते रहने के बाद एक स्थान पर दूसरे ब्राह्मण के हाथ की बत्ती गिर गई. उसने उस स्थान की भूमि को खोदना प्रारंभ किया. वहाँ उसे चाँदी की खान प्राप्त हुई.  

वह दूसरे ब्राह्मणों से बोला, “आओ, जितनी चांदी उठा सकते हो, उठा लो और घर वापस चलो.”

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लेकिन उन्होंने मना कर दिया और बोले, “मूर्ख. बहुत सारी चाँदी इकट्ठी कर लेने पर भी हमारी दरिद्रता समाप्त नहीं होगी. आगे हमें अवश्य सोने की खान प्राप्त होगी. इसलिए आगे चलो.”

किन्तु, दूसरा ब्राहमण चाँदी पाकर संतुष्ट था. उसे चाँदी इकट्ठी की और घर लौट गया. शेष दो ब्राहमण आगे बढ़ गए.

कुछ दिन चलते रहने के बाद तीसरे ब्राह्मण की बत्ती गिर गई. उस स्थान को खोदा गया, तो वहाँ सोने की खान निकली.

वह अपने साथी से बोला, “आओ. तुम भी जितना सोना चाहते हो, ले लो और घर वापस चलो. इससे आगे जाने की क्या आवश्यकता है?”

चौथे ब्राह्मण ने कहाँ “मूर्ख, तुममें बुद्धि है या नहीं. आगे अवश्य हमें हीरों की खान मिलेगी. हमें आगे बढ़ना चाहिए.”

किन्तु तीसरा ब्राह्मण सोना पाकर संतुष्ट था. वह सोना लेकर घर लौट गया. चौथा ब्राहमण अपनी यात्रा अकेले ही जारी रखते हुए आगे बढ़ता रहा. गर्मी और भूख-प्यास से उसका बुरा हाल था. अब उसे रास्ता भी समझ नहीं आ रहा था. वह इधर-उधर भटकने लगा.

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भटकते-भटकते वह एक स्थान पर पहुँचा, वहाँ उसने एक व्यक्ति को देखा. उसका शरीर खून से लथपथ था और उसके सिर पर एक चक्र घूम रहा था. ब्राहमण उसे देख अचरज में पड़ गया.  

वह उस व्यक्ति के पास गया और पूछने लगा, “आप कौन है और आपके सिर पर ये चक्र क्यों घूम रहा है?”

उसी क्षण व्यक्ति के सिर पर घूम रहा चक्र ब्राह्मण के सिर पर घूमने लगा. ब्राहमण चीख उठा, “यह क्या हुआ?”

वह व्यक्ति बोला, “इन्हीं परिस्थितियों में यह चक्र मेरे सिर पर घूमने लगा था.”

ब्राहमण को उस चक्र से बहुत कष्ट हो रहा था. उसने उस व्यक्ति से पूछा, “मुझे इससे कब मुक्ति मिलेगी?”

व्यक्ति ने उत्तर दिया, “जब कोई यह जादू की बत्ती लेकर आएगा और तुमसे बात करने लगेगा. तब तुम्हारे सिर से चक्र उतरकर उस व्यक्ति के सिर पर घूमने लगेगा.”

इतना कहकर वह व्यक्ति चला गया और ब्राह्मण सिर पर घूमते चक्र के साथ वहाँ अकेला रह गया.

कई दिन बीत गए और ब्राह्मण घर नहीं लौटा, तो उसके सुवर्णसिद्धि नामक मित्र को उसकी चिंता हुई. वह उसके पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए उस स्थान पर पहुँच गया.

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वहाँ उसने देखा कि उसका ब्राह्मण मित्र खून से लथपथ है और उसके सिर पर एक चक्र घूम रहा है. यह देख वह चकित रह गया. उसने पूछा, “मित्र यह तुम्हें क्या हुआ है?”

चक्रधारी ब्राह्मण बोला, “भाग्य मेरे साथ नहीं है मित्र. यह उसी का परिणाम है.”

फिर उसने अपने मित्र को घूमते चक्र की सारी कहानी सुना दी. जब उसने कहानी समाप्त की, तब मित्र बोला, “मित्र, तुम बहुत विद्वान हो, परन्तु तुममें विवेक-बुद्धि की कमी है. अब तक तुम्हें समझ नहीं आया कि यह चक्र तुम्हारे लोभ का परिणाम है. यदि तुम अधिक लोभ न कर वापस लौट आते, तो सुख का जीवन व्यतीत कर रहे होते.”

शिक्षा (Moral of the story)

लोभ में बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है.


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