मेंढक और बैल की कहानी, The Frog And The Ox Story In Hindi, Mendhak Aur Bail Ki Kahani
फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम मेंढक और बैल की शिक्षाप्रद कहानी (The Frog And The Ox Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. ईसप की दंतकथा (Aesop’s Fables In Hindi) से की गई इस कहानी में मेंढक के बच्चे जब पहली बार बैल को देखते हैं, तो उसकी विशाल काया से डर जाते हैं. जब वे मेंढक को उस बारे में बताते हैं, तो अहंकार में चूर मेंढक इस बात का कतई नहीं मानता कि उससे भी विशाल जीव इस दुनिया में हो सकता है. उसके बाद वह क्या हरक़त करता है? उसका क्या परिणाम होता है? यह इस कहानी में वर्णन किया गया. पढ़िए पूरी कहानी :
The Frog And The Ox Story In Hindi
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गहरे हरे जंगल के किनारे, जहाँ चिड़ियों की चहचहाहट और हवा की सरसराहट एक मधुर संगीत रचती थी, वहीं एक मेंढक अपने तीन नन्हे बच्चों के साथ एक शांत सी नदी के किनारे रहता था। उनका जीवन बहुत सरल था—हर सुबह सूरज की किरणों से जागना, नदी में तैरना, कीड़े-मकोड़े खाना और शाम होते ही पेड़ों के नीचे आराम करना।
मेंढक अपने बच्चों की आंखों में हीरो था। उसका शरीर बाकी मेंढकों की तुलना में थोड़ा बड़ा था, और इसीलिए वह अपने आपको सबसे शक्तिशाली समझता था। वह रोज़ बच्चों को अपने साहसिक किस्से सुनाता—कैसे उसने सांप से मुकाबला किया, कैसे उसने एक बगुले को चकमा दिया। बच्चे हर बार आंखें फैलाकर सुनते और ताली बजाते। और हर बार मेंढक के चेहरे पर एक गर्व भरी मुस्कान फैल जाती।
“दुनिया में मुझसे बड़ा कोई नहीं।” वह अक्सर कहता, “मैं इस जंगल का राजा हूँ।”
बच्चों की दुनिया सिर्फ इस जंगल और नदी तक सीमित थी। उन्होंने कभी जंगल से बाहर कदम नहीं रखा था। बाहरी दुनिया उनके लिए एक कल्पना मात्र थी। मगर बच्चे जिज्ञासु थे। उनके भीतर जानने की, देखने की, और समझने की तड़प थी।
एक दिन, जब मेंढक किसी चट्टान की छांव में सो रहा था, उसके तीनों बच्चे धीरे-धीरे नदी किनारे से आगे निकलते हुए जंगल की सीमा पार कर गए। चलते-चलते वे एक ऐसे स्थान पर पहुँच गए जहाँ हरे-भरे खेत फैले हुए थे और हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू घुली थी। यह गाँव का इलाका था।
तभी उनकी नजर एक विशालकाय जीव पर पड़ी। वह एक बैल था, जो खेत में मस्त होकर चारा खा रहा था। उसकी चमकदार काली खाल, ऊँचा माथा, बड़ी-बड़ी आंखें और विशाल शरीर—सब कुछ उन छोटे मेंढकों के लिए चौंकाने वाला था। उन्होंने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। बैल ने अचानक सिर उठाकर ज़ोर से “हूँहूँ” की आवाज़ निकाली तो वे डर के मारे काँप गए और दौड़ते हुए जंगल की ओर भागे।
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घर लौटकर वे सीधे अपने पिता के पास पहुँचे, जो अब भी अपनी नींद पूरी कर रहा था। बच्चों के चेहरे पर भय और हैरानी थी।
“क्या हुआ?” मेंढक ने आंखें मलते हुए पूछा।
बड़े बेटे ने कहा, “आज हमने एक ऐसा जीव देखा जो… जो आपसे कई गुना बड़ा था।”
“क्या?” मेंढक ने चौंककर कहा। उसके चेहरे पर तुरंत गंभीरता छा गई।
“हां!” दूसरे बेटे ने कहा, “उसके चार बड़े-बड़े पैर थे, पीठ पर उभार और दो तीखे सींग। उसका शरीर तो इतना बड़ा कि अगर आप उसके सामने खड़े हो जाएँ, तो नज़र भी न आएं।”
छोटे बेटे ने मासूमियत से जोड़ा, “हमें लगा था कि आप दुनिया के सबसे बड़े और ताकतवर जीव हैं… मगर वो तो… वो तो पहाड़ जैसा था।”
मेंढक का चेहरा उतर गया। वह जो हमेशा खुद को बच्चों के लिए नायक समझता था, अब खुद को उनके सामने छोटा महसूस करने लगा। उसकी छाती में अहंकार की चुभन उठी।
“वो कितना बड़ा था?” मेंढक ने पूछा, और साथ ही धीरे से हवा खींचते हुए अपने शरीर को थोड़ा फुला लिया।
“उससे भी बड़ा।” बच्चों ने कहा।
मेंढक ने और हवा भरी, उसका शरीर अब सामान्य आकार से दोगुना हो गया। “क्या इतना?”
“नहीं इससे भी ज्यादा!” बच्चे बोले।
अब मेंढक की आंखों में एक ज़िद सी चमकने लगी। वह अपनी श्रेष्ठता को बच्चों की नज़रों में बनाए रखना चाहता था। उसे बैल की असली ताकत या आकार का अंदाज़ा नहीं था, पर अपने ‘अहम’ की रक्षा के लिए वह हर सीमा पार करने को तैयार था।
उसने और हवा खींची। अब उसका शरीर एक छोटे से बास्केटबॉल की तरह गोल और भारी हो गया। उसके शरीर की त्वचा तनी हुई थी, मगर वह रुका नहीं।
“अब बताओ! क्या वो इतना बड़ा था?”
“नहीं पापा, उससे भी…”
बच्चे अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि मेंढक ने एक लंबी सांस ली और इतनी अधिक हवा भर ली कि उसके शरीर की कोशिकाएं उसे संभाल न सकीं। एक तेज़ धमाके जैसी आवाज़ हुई, और मेंढक का शरीर फट गया। वह वहीं ज़मीन पर निढाल गिर पड़ा—बिलकुल शांत, बिलकुल स्थिर।
तीनों बच्चे अवाक रह गए। वे समझ ही नहीं पाए कि यह क्या हो गया।
उनका नायक, उनका पिता… सिर्फ यह साबित करने की ज़िद में कि वह दुनिया का सबसे बड़ा जीव है, अपनी जान गंवा बैठा।
बच्चों की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने जाना कि सिर्फ बड़ा दिखना ही सब कुछ नहीं होता। ज़िंदगी में ज़रूरी है सच को स्वीकार करना, न कि अपने अहम में आकर खुद को नष्ट कर लेना।
सीख
अहंकार इंसान को अंधा कर देता है। जो अपने अहम में सच को नकारता है, वह खुद को ही नुकसान पहुँचाता है।
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