मेंढक राजकुमार : परी कथा | The Frog Prince Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम “The Frog Prince Story In Hindi” शेयर कर रहे हैं. ये बहुत ही लोकप्रिय और ख़ूबसूरत परी कथा (Fairy Tale In Hindi) है. ज़िद्दी और अड़ियल राजकुमारी और मेंढक की ये कहानी आपको ज़रूर पसंद आएगी. पढ़िए “The Princess And The Frog Story In Hindi” : 

The Frog Prince Story In Hindi

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The Frog Prince Story In Hindi
The Frog Prince Story In Hindi | The Frog Prince Story In Hindi

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एक राज्य में एक दयालु राजा का शासन था. उसकी एक बहुत सुंदर बेटी थी. उजला रंग, तीखे नैन-नक्श और सुनहरे बालों के साथ वह परी सी लगती थी. राजा उससे बहुत प्रेम करता था.

राजकुमारी जितनी सुंदर थी, उतनी ही जिद्दी और अड़ियल भी थी. बात-बात पर वह किसी का निरादर कर देती या कटु शब्द कह देती थी. राजा सदा उसे नम्र और दयालु बनने की सीख दिया करता, उसे बहुत समझाता. किंतु राजकुमारी उन सीखों और समझाईशों को अनसुना कर देती थी. उस पर कोई असर न होता देख राजा ने सब समय पर छोड़ दिया.

राजकुमारी के १६वें जन्मदिवस के दिन राजा ने उसे बुलाया और उपहार में एक सुनहरी गेंद दी. साथ ही यह हिदायत भी दी कि इस गेंद को मत गुमाना. उपहार  पाकर राजकुमारी बहुत ख़ुश हुई. वह दौड़कर बाग़ में चली गई और गेंद से खेलने लगी. खेलते-खेलते अचानक वह गेंद उछलकर बाग़ के कोने में स्थित कुएं में जा गिरी.

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राजकुमारी दौड़कर कुएं के पास पहुँची और मुंडेर पर खड़ी होकर अंदर झांकने लगी. गेंद कुएं के पानी पर तैर रही थी, किंतु उसे उस गहराई से बाहर निकाल पाना राजकुमारी के लिए असंभव था. वह दु:खी होकर रोने लगी.

तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी, “राजकुमारी! क्या बात है? क्यों रो रही हो?”

राजकुमारी चौंक गई और इधर-उधर देखने लगी.

“नीचे कुएं में देखो. मैं यहाँ रहने वाला मेंढक हूँ.” वह आवाज़ फिर से गूंजी.

राजकुमारी ने ध्यान दिया, तो उसे कुएं की दीवार से चिपका एक मेंढक दिखाई पड़ा.

मेंढक ने फिर से पूछा, “क्यों रो रही हो राजकुमारी? बताओ ना!”

“मेरी सुनहरी गेंद कुएं में गिर गई है. समझ नहीं आ रहा कि उसे कैसे निकालूं.”

“बस इतनी सी बात. मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ और तुम्हारी गेंद कुएं से बाहर निकालकर तुम्हें दे सकता हूँ.”

“सच” राजकुमारी चहकते हुए बोली.

“बिल्कुल सच. लेकिन पहले तुम ये बताओ कि यदि मैं तुम्हारी मदद करूंगा, तो बदले में तुम मेरे लिए क्या करोगी?”

“जो तुम बोलो.” राजकुमारी ने उत्तर दिया, “मैं तुम्हें अपना सोने का हार, मोतियों की माला और अपना हीरों का मुकुट देने तैयार हूँ. बस तुम मेरी सुनहरी गेंद कुएं से बाहर निकाल दो.”

“मैं इस सब चीज़ों का क्या करूंगा? मुझे ये सब नहीं चाहिए. मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे अपना दोस्त बना लो और मुझे अपने साथ महल ले चलो. मेरे साथ खेलो, एक ही थाली में भोजन करो और मुझे अपने साथ अपने बिस्तर पर सुलाओ. यदि तुम ये करने का वचन देने तैयार हो, तो मैं तुम्हारी गेंद अभी बाहर निकाल देता हूँ.”

राजकुमारी को किसी भी सूरत में अपनी सुनहरी गेंद वापस चाहिए थी. इसलिये उसने बेमन से वचन दे दिया. मेंढक ने तुरंत राजकुमारी की गेंद कुएं से बाहर फेंक दी. गेंद मिलते ही राजकुमारी भागकर महल के भीतर चली गई. इधर मेंढक उसे पुकारता रह गया.

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रात को राजा, रानी और राजकुमारी एक साथ भोजन करने बैठे. उन्होंने भोजन करना प्रारंभ ही किया था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई. राजा ने राजकुमारी से कहा, “देखो दरवाज़े पर कौन है?”

राजकुमारी उठकर दरवाज़ा तक गई और दरवाज़ा खोलकर बाहर देखने लगी. उसे कोई नज़र नहीं आया. वह दरवाज़ा बंद करने को हुई, तो मेंढक के टर्र-टर्र की आवाज़ उसके कानों में पड़ी. राजकुमारी ने चौंककर जमीन की ओर देखा. वहाँ वही कुएं वाला मेंढक खड़ा था. वह बोला, “राजकुमारी, तुम मुझे छोड़कर क्यों चली आई? भूल गई, तुमने मुझे क्या वचन दिया था.”

राजकुमारी चिढ़कर बोली, “तुम जैसे घिनौने और बदसूरत मेंढक को मैं नहीं देखना चाहती. मैं अपना वचन भूल गई हूँ. तुम भी भूल जाओ और भागो यहाँ से.”

गुस्से में दरवाज़ा बंदकर राजकुमारी अंदर चली आई. उसे विश्वास नहीं हो रहा था  कि वह अदना सा मेंढक उसके पीछे-पीछे महल तक चला आया है.

अंदर आकर मेज पर बैठकर वह खाना खाने लगी. राजा ने पूछा, “दरवाज़े पर कौन है?”

“एक बदसूरत और घिनौना मेंढक.” राजकुमारी ने उत्तर दिया. फिर उसने गेंद के कुएं में गिरने की घटना और मेंढक को दिए वचन के बारे में राजा को बताया.

राजा बोला, “हर मनुष्य को अपना वचन निभाना चाहिए. तुम तो राजकुल की हो, तुम्हारी ज़िम्मेदारी दूसरों से ज्यादा है. तुरंत जाओ और दरवाज़ा खोलो. मेंढक को अंदर लेकर आओ और अपना वचन निभाओ.”

न चाहते हुए भी राजकुमारी उठी और दरवाज़ा खोलकर मेंढक को अंदर ले आई. अंदर आकर मेंढक कूदकर खाने की मेज़ पर राजकुमारी की थाली के पास बैठ गया और बोला, “राजकुमारी, मुझे भूख लगी है. अपनी थाली में से मुझे भी भोजन कराओ.”

“गंदे मेंढक, मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगी.” राजकुमारी नाक-भौं सिकोड़ते हुए बोली.

राजकुमारी के उत्तर पर राजा क्रोधित हो गए और बोले, “तुमने मेंढक को वचन दिया है. इसलिए तुम्हें इसे अपनी थाली में से खाना खिलाना पड़ेगा.”

बेमन से राजकुमारी ने मेंढक को अपनी थाली में से भोजन कराया. मेंढक ख़ुश हो गया. भर पेट भोजन करने के बाद मेंढक बोला, “अब मुझे नींद आ रही है. मुझे अपने कमरे में ले चलो. मैं तुम्हारे नरम बिस्तर पर सोऊंगा.”

राजकुमारी मेंढक को छूना नहीं चाहती थी. किंतु राजा के डर से वह उसे उठाकर अपने कमरे में ले गई. वहाँ जाकर उसे एक कोने में छोड़कर ख़ुद नरम बिस्तर पर लेट गई.

मेंढक बोला, “राजकुमारी! मैं भी थका हुआ हूँ. मुझे भी अपने बिस्तर पर सोने दो.” राजकुमारी का गुस्सा बढ़ चुका था. वह उठी और उसने मेंढक को उठाकर दीवार पर फेंक दिया और बोली, “तुम ऐसे ही चुप रहोगे.”

दीवार से टकराकर मेंढक नीचे गिर पड़ा. उसकी हलचल बंद हो गई. यह देखकर राजकुमारी डर गई. उसे लगा कि मेंढक मर गया है. वह अपने किये पर पछताने लगी. वह मेंढक के पास ज़मीन पर बैठ गई और रोने लगी. रोते-रोते उसने मेंढक को उठाया और चूमते हुए बोली, “मुझे माफ़ कर दो मेंढक. मुझे तुमसे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था.”

तभी अचानक एक चमत्कार हुआ और मेंढक एक राजकुमार में बदल गया. अपने सामने राजकुमार को देख राजकुमारी चकित रह गई. राजकुमार ने उसे बताया कि वनदेवी के श्राप के कारण वह मेंढक बन गया था. आज वह श्राप टूट गया और वह अपने असली रूप में आ पाया है.

राजकुमार ने राजकुमारी को अपने मेंढक की कहानी सुनाई, “मैं बहुत कठोर स्वभाव का था. निरीह प्राणियों के शिकार में मुझे बहुत आनंद आता था. एक दिन वन में शिकार करते समय वनदेवी ने मुझे रोका, तो मैंने उनका निरादर कर दिया. तब वनदेवी ने श्राप देकर मुझे मेंढक बना दिया. वह जानती थी कि निरीह प्राणियों पर क्या गुजरती है, मैं वह तब समझ सकूंगा, जब सांप जैसे जीवों के कारण खुद मेरी जान पर बन आएगी. मैं पछताने लगा और क्षमा मांगने लगा. तब वनदेवी ने श्राप का तोड़ बताया कि जब किसी जिद्दी, अड़ियल और कठोर हृदय राजकुमारी का स्वभाव तुम्हारे वजह से बदल जायेगा और वह चूमेगी, तब तुम अपने असली रूप में वापस आ पाओगे.”

“आज तुम्हारा ह्रदय मेरे प्रति दया से भर उठा और तुमने मेरे लिए आंसू बहाते हुए मुझे चूमा, तो मैं अपने असली रूप में आ गया. तुम्हारा बहुत धन्यवाद. आशा है, अब से तुम दयालु और कोमल ह्रदय ही रहोगी.”

राजकुमार की कहानी सुनकर राजकुमारी की आँखें खुल गई और उसने निश्चय किया कि वह कभी किसी का निरादर नहीं करेगी और दयालु बनेगी.

राजकुमार राजकुमारी से प्रेम करने लगा था. उसने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. राजकुमारी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. राजा-रानी के आशीर्वाद से दोनों का विवाह हुआ और दोनों ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे.


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