फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम पंचतंत्र की कहानी “कबूतर का जोड़ा और शिकारी” (The Hunter And The Doves Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे है. पंचतंत्र के तंत्र (भाग) काकोलीकीयम से ली गई ये कहानी कबूतरों के जोड़े है. इस कहानी में दर्शाया गया है कि कैसे उनका प्रेम एक शिकारी का ह्रदय परिवर्तन कर देता है. पढ़िए पूरी कहानी (Hunter And Pigeon Story In Hindi) :
The Hunter And The Doves Story In Hindi
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एक निर्जन स्थान में एक व्याध रहता था उसके परिजनों और सगे-संबंधियों ने उसका त्याग कर दिया था. वे उसके जीव-हत्या के कार्य से अप्रसन्न थे. उन्होंने उससे कई बार जीव हत्या का त्याग करने की प्रार्थना की. किंतु, व्याध नहीं माना. अंततः वे सब उससे दूर हो गए.
व्याध को शिकार में बड़ा आनंद आता था. वह अपना अधिकांश समय पशु-पक्षियों के शिकार में व्यतीत किया करता था. दिन भर वह जाल और लाठी लेकर वन में भटकता रहता था. वह दिन पर दिन निर्दयी और क्रूर होता जा रहा था.
एक दिन उसने जाल बिछाकर एक कबूतरी को फांस लिया. उसे लेकर प्रसन्नतापूर्वक वह अपने घर की ओर प्रस्थान करने लगा कि बीच रास्ते में बादल घिर आये और वर्षा होने लगी. वर्षा के जल से व्याध पूर्णतः भीग गया. वह सर्दी से ठिठुरने लगा.
वह वर्षा से बचने के लिए आश्रय ढूंढने लगा कुछ ही दूर पर उसे पीपल का क वृक्ष दिखाई पड़ा. उसमें एक बड़ा सा खोल था, जिसमें एक मनुष्य घुसकर बैठ सकता था. व्याध ने सोचा कि कुछ देर के लिए यहाँ शरण लेना उचित होगा.
वह खोल में घुस गया और बोला, “इस खोल में रहने वाले जीव मैं यहाँ कुछ देर आश्रय ले रहा हूँ. आशा है तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. इस सहायता के लिए मैं आजीवन तुम्हारा ऋणी रहूंगा.”
उस खोल उस कबूतरी का पति रहता था, जिसे व्याध ने पकड़ लिया था. वह अपने पत्नी के बिछड़ जाने के कारण दु:खी था और विलाप कर रहा था.
कबूतरी ने जब स्वयं के प्रति अपने पति का प्रेम देखा, तो भावुक हो गई. वह मन ही मन सोचने लगी कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ, जो मुझे इस जीवन में ऐसा प्रेम करने वाला पति मिला. इन्हें पाकर मेरा जीवन धन्य हो गया.
वह अपने पति से बोली, “स्वामी! विलाप मत करो. मैं यहीं हूँ. इस व्याध ने मुझे जाल में पकड़ लिया है. कदाचित ये मेरे कर्मों का फ़ल है. किंतु, आप मेरी चिंता में व्याकुल ना हो. अपना कर्तव्य निभाते हुए शरण में आये अतिथि की सेवा-सत्कार करो. अन्यथा, तुम पाप के भागी बनोगे.
कबूतरी की बात मानकर कबूतर व्याध से बोला, “वधिक, आपका स्वागत है. आप यहाँ निःसंकोच विश्राम करें. यदि आपको किसी प्रकार का कष्ट हो, तो मुझे बताएं. मैं उसके निवारण का हर संभव प्रयास करूंगा.”
व्याध बोला, “मैं वर्षा के जल में भीग गया हुआ. मुझे ठंड लग रही है. कुछ ताप की व्यवस्था कर दो.”
कबूतर ने लकड़ियाँ जमा की और उसे जला दिया. अतिथि आग सेंकने लगा और उसकी ठंड दूर हो गई.
फिर कबूतर ने सोचा कि अतिथि अवश्य भूखा होगा. मुझे इसके लिए भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए. किंतु, उस समय उसके पास अन्न का एक दाना नहीं था. वह विचार करने लगा कि क्या करूं कि अतिथि की भूख शांत कर सकूं.
कुछ देर विचार करने के बाद उसने निर्णय लिया कि अब तो कबूतरी भी मेरे साथ नहीं है. मैं जीवित रहकर क्या करूंगा? मुझे अपने ही शरीर त्याग कर व्याध का भोजन बन जाना चाहिए. यह सोचकर वह आग में कूद गया.
उसका ये बलिदान देख, व्याध की आत्मा व्याकुल हो गई. वह आत्म-ग्लानि में डूब गया और मन ही मन स्वयं को धिक्कारने लगा. उसी क्षण उसने कबूतरी को मुक्त कर दिया.
कबूतरी ने जब अपने पति को आग में जलता हुआ देखा, तो विलाप करने लगी और कहने लगी कि ये मेरे कर्मों का फल है, जिसकी सजा आपको मिली. अब मैं अकेली इस संसार में जीकर क्या करूंगी?
कबूतरी ने भी आग में कूदकर अपने प्राणों का त्याग कर दिया. कबूरत और कबूतरी का ये बलिदान देख व्याध की आँखें खुल गई. उसने उसी समय जीव-हत्या त्याग देने का प्रण किया.
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