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सियार की रणनीति : पंचतंत्र की कहानी ~ लब्धप्रणाश | The Jackal’s Strategy Panchatantra Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में पंचतंत्र की कहानी ‘सियार की रणनीति’ (The Jackal’s Strategy Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. पंचतंत्र के तंत्र (भाग) लब्धप्रणाश से ली गई इस कहानी में जंगल में भटकते सियार को एक मरा हुआ हाथी मिल जाता है. उसके कई दिनों दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जाती है. किंतु, उसकी मोटी चमड़ी फाड़ने में असमर्थ होने के कारण वह उसे खा नहीं पाता है. अपनी इस समस्या का समाधान वह कैसे करता है? क्या वह हाथी का मांस खा पाता है? कैसे वह अन्य जानवरों से अपना भोजन बचा पाता है? यही इस कहानी में बताया गया है. पढ़िए पूरी कहानी :    

The Jackal’s Strategy Panchatantra Story In Hindi

The Jackal's Strategy Panchatantra Story In Hindi

The Jackal’s Strategy Panchatantra Story In Hindi

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एक जंगल में महाचतुरक नामक एक सियार रहता था. एक दिन वह भोजन की तलाश में निकला. भटकते-भटकते एक स्थान पर उसे मरा हुआ हाथी मिल गया, जिससे उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. उसके कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो गई थी.

वह हाथी के मृत शरीर के पास गया और उस पर अपने दांत गड़ा दिए. लेकिन, हाथी की चमड़ी मोटी थी. बहुत प्रयासों के बाद भी वह उसे चीरने में असफ़ल रहा. तब वह वहीं बैठकर किसी तरह हाथी की चमड़ी चीरने का उपाय सोचने लगा.

कुछ देर में उसे जंगल का राजा सिंह आता हुआ दिखाई पड़ा, जिसे देख उसने सोचा कि क्यों न इससे ही किसी तरह हाथी की मोटी चमड़ी चिरवाई जाए.

जैसे ही सिंह पास आया, वह उसका स्वागत करते हुए बोला, “वनराज! आपके इस सेवक ने आपके लिए इस हाथी का भोजन तैयार रखा है. कृपया इसे ग्रहण कर मुझ पर उपकार कीजिये.”

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सिंह जंगल का राजा था, वह किसी दूसरे के द्वारा मारे गए जानवर को भला क्यों खाता?

“मैं जंगल का राजा हूँ और मैं अपना शिकार ख़ुद करता हूँ. इसे तुम ही खाओ.” साफ़ इंकार करते हुए वह बोला और चला गया.

सियार बहुत ख़ुश हुआ कि अब इस हाथी पर पूर्णतः मेरा अधिकार है. परन्तु,  समस्या अब भी जस की तस थी.

थोड़ी देर बाद वहाँ से एक बाघ गुजरा. मृत हाथी पर दृष्टि पड़ते ही उसकी लार टपकने लगी. जीभ लपलपाते हुए वह मृत हाथी की ओर बढ़ा, तो सियार ने उसकी मंशा भांप ली.

वह बोला, “अरे बाघ भाई! बड़े दिनों बाद आपके दर्शन हुए. सब कुशल-मंगल तो है?”

“मैं ठीक हूँ. तुम कैसे हो? और इस मृत हाथी के पास क्या कर रहे हों?” बाघ ने पूछा.

सियार बोला, “मैं यहाँ इस मृत हाथी के रखवाली कर रहा हूँ. सिंह ने इसका शिकार किया है और मुझे इसकी रखवाली की ज़िम्मेदारी देकर नदी में स्नान करने गया है. वैसे आप भी इस हाथी का मांस चख सकते थे. लेकिन सिंह तो आपका बैरी ठहरा. उसे पता चल गया कि आपने उसका भोजन जूठा कर दिया है, तो फिर न वो आपको छोड़ेगा ना ही मुझे. खैर इसी में है कि आप उसके आने के पहले ही यहाँ से चले जाओ.”

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सियार की बात सुनकर बाघ वहाँ से भाग गया.

कुछ देर बाद वहाँ से एक चीता गुजरा. चीते के दांत तेज होते हैं. सियार ने सोचा कि कोई ऐसी जुगत लगानी होगी कि ये चीता हाथी की चमड़ी भी फाड़ दे और बिना मांस खाए ही यहाँ से चलता बने.

उसने चीते से कहा, “मित्र, आओ आओ. देखो ये मृत हाथी. ये सिंह का शिकार है. मैं इसकी निगरानी कर रहा हूँ. तुम भूखे जान पड़ते हो. चाहो तो तुम इसका कुछ मांस खा सकते हो. जैसे ही मैं सिंह को आता हुआ देखूंगा, तुम्हें बता दूंगा. तुम तत्काल भाग जाना.”

पहले तो चीता ने सिंह के डर से हाथी का मांस खाने से इंकार कर दिया. किंतु, सियार के विश्वास दिलाने पर वह राज़ी हो गया. उसने कुछ ही देर में हाथी की मोटी चमड़ी फाड़ दी.

जब सियार ने देखा कि उसका काम हो गया, तो वह चीते से बोला, “भागो शेर आ गया.”

बिना एक क्षण गंवाए चीता भाग गया. सियार ने मजे से हाथी का मांस कई दिनों तक खाया. इस प्रकार उसने अपनी चतुराई और सूझबूझ से अपनी समस्या का समाधान निकाला.

सीख (Moral Of The Story)

किसी भी समस्या के समाधान के लिए सूझबूझ से काम लो.


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