बहुभाषी : अकबर बीरबल की कहानी | The Linguist Akbar Birbal Stories In Hindi

मित्रों, अकबर बीरबल की इस कहानी (The Linguist Akbar Birbal Kahani) में अकबर के दरबार में आये एक बहुभाषी (Linguist) की मातृभाषा को पहचानने की चुनौती को स्वीकार कर बीरबल कैसे उसकी मातृभाषा पहचान पाया, इसका वर्णन है. नीचे पूरी कहानी विस्तार से पढ़िए :

The Linguist Akbar Birbal Kahani 

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The Linguist Akbar Birbal Kahani
The Linguist Akbar Birbal Kahani | Source : Akbar Birbal PNG

पढ़ें : अकबर बीरबल की संपूर्ण कहानियाँ

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बादशाह अकबर अपने विभिन्न प्रांतों में भाषाई विविधता को देखते हुए अपने दरबार में एक बहुभाषिक की आवश्यकता महसूस किया करते थे. वे चाहते थे कि उनके दरबार में एक बहुभाषिक हो, जिसकी मदद से वे अपनी प्रजा से वार्तालाप कर सकें. 

उन्होंने अपने मंत्रियों को ऐसा बहुभाषिक ढूंढने का आदेश दिया, जिसकी विभिन्न भाषाओं पर अच्छी पकड़ हो. मंत्रियों ने सैनिकों की मदद से अकबर का आदेश राज्य के हर कोने में प्रसारित करवाया.
 
कुछ दिनों बाद एक व्यक्ति अकबर के दरबार में उपस्थित हुआ. अकबर को सलाम कर वह बोला, “जहाँपनाह! मैं कई भाषाओँ का अच्छा जानकार हूँ. आप मुझे बहुभाषिक के पद पर नियुक्त कर लीजिये.”
 

अकबर (Akbar) ने उसकी परीक्षा लेने के लिए अपने दरबारियों को उससे अपनी-अपनी भाषाओं में बात करने के लिए कहा. एक-एक कर दरबारी अपनी भाषा में उस बहुभाषी से प्रश्न करने लगे. बहुभाषी ने सभी को उनकी ही भाषा में उत्तर दे दिया. भाषा पर उसकी पकड़ देखकर अकबर बहुत प्रभावित हुए.

 

 
उन्होंने उसे अपने दरबार में बहुभाषी नियुक्त करने का निर्णय कर लिया और उससे बोले, “तुम्हारे भाषा ज्ञान से हम बहुत प्रभावित है. हर भाषा में तुम इतने धाराप्रवाह हो कि लगता है, अपनी ही भाषा बोल रहे हो. हम तुम्हें अपने दरबार का बहुभाषी नियुक्त करते हैं. लेकिन हम ये भी जानने को उत्सुक हैं कि तुम्हारी मातृभाषा क्या है?”
 
इस पर बहुभाषी बोला, “जहाँपनाह! मैंने सुना है कि आपके दरबार में बहुत बुद्धिमान मंत्रिगण हैं. क्या उनमें से कोई बता सकता है कि मेरी मातृभाषा क्या है?”
 
दरबारियों ने अपने अनुमान के आधार पर बहुभाषी की भाषा बताने का प्रयास किया, लेकिन किसी का भी अनुमान सही नहीं निकला.
 
यह देख बहुभाषी हँस पड़ा और बोला, “जहाँपनाह! लगता है मैंने गलत सुना है. यहाँ तो कोई भी बुद्धिमान दिखाई नहीं पड़ता.”
 
इस बात पर अकबर को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई. उन्होंने बीरबल की ओर देखा, जिसने अब तक बहुभाषी की भाषा बताने का प्रयास नहीं किया था.
 

अकबर को अपनी ओर देखता पाकर बीरबल अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और बोला, “जहाँपनाह! मैं कल बता दूंगा कि इस बहुभाषी की भाषा क्या है.”

 

 
उस रात बहुभाषी को शाही अतिथिगृह में ठहराया गया. अगले दिन वह अकबर के दरबार में फिर से उपस्थित हुआ.
 
अकबर से बीरबल से पूछा, “हाँ बताओ बीरबल! क्या है इनकी मातृभाषा?”

इस पर बीरबल (Birbal) बोला, “हुजूर, इनकी मातृभाषा बांग्ला है. आप इनसे पूछ लीजिये.”
 
अकबर ने बहुभाषी से पूछा, तो उसके हामी भर दी. अकबर हैरान थे कि बीरबल ने उसकी मातृभाषा को कैसे पहचान लिया.
 
पूछे जाने पर बीरबल ने बताया, “महाराज! कल रात मैंने शाही अतिथि गृह के बाहर अपना एक सेवक भेजा. वह सेवक वहाँ जोर-जोर से चिल्लाने लगा. उस समय ये महाशय सो रहे थे. चीखने की आवाज़ सुनकर इनकी नींद खुल गई और बाहर आकर ये गुस्से में चिल्लाने लगा. उस समय ये जो भाषा बोल रहा था, वह बांग्ला थी. मैं पास ही के कक्ष में छुपकर सब सुन रहा था. मैं समझ गया कि इनकी भाषा बांग्ला है क्योंकि व्यक्ति कितनी ही भाषों का ज्ञाता क्यों ना हो. जब गुस्से में होता है या मुसीबत में पड़ जाता है, तो अपनी ही भाषा में चिल्लाता है.”
 

बहुभाषिये ने बीरबल की बुद्धिमत्ता का लोहा मान लिया. अकबर शर्मिंदगी से बच गए.


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