फ्रेंड्स, पंचतंत्र की कहानी ‘शेर और मूर्ख गधा‘ (The Lion And The Foolish Donkey Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. यह कहानी पंचतंत्र के तंत्र (भाग) लब्धप्रणाश से ली गई है. इस कहानी में शिकार में असमर्थ घायल शेर और उसका सेवक गीदड़ एक गधे को मूर्ख बनाकर उसका शिकार करने की योजना बनाते हैं. क्या वे अपनी योजना में सफ़ल हो पाते हैं? जानने के लिए पढ़ें पूरी कहानी :
The Lion And The Foolish Donkey Story In Hindi
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एक जंगल में करालकेसर नामक शेर रहता था. धूसरक नामक गीदड़ उसका सेवक था, जो उसकी सेवा-टहल किया करता था और बदले में शेर द्वारा मारे गए शिकार का अंश भोजन के रूप में प्राप्त करता था.
एक बार शेर का हाथी से सामना हो गया. दोनों अपने गर्व में चूर थे. बात बढ़ी और युद्ध तक पहुँच गई. दोनों में युद्ध हुआ, जिसमें हाथी शेर पर हावी रहा. उसने शेर को सूंड से पकड़कर उठाया और धरती पर पटक दिया. शेर के शरीर की कई हड्डियाँ टूट गई.
शेर बुरी तरह चोटिल हो चुका था. ऐसे में शिकार पर जाना उसके लिए दुष्कर था. वह दिन भर एक स्थान बैठा रहता. शिकार न कर पाने के कारण वो और उसका सेवक गीदड़ दोनों भूखे मरने लगे.
एक दिन शेर गीदड़ से बोला, “यदि इसी तरह चला, तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारे प्राण पखेरू उड़ जायेंगे. इस समस्या का कुछ न कुछ समाधान निकालना पड़ेगा.”
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“वनराज! क्या करें? आप तो शिकार पर जा नहीं सकते. मैं ठहरा आपका सेवक. मैं तो आप पर निर्भर हूँ.” गीदड़ ने उत्तर दिया.
“इस स्थिति में मेरा शिकार पर जाना संभव नहीं. लेकिन यदि कोई जानवर मेरे निकट आ गए, तो अब भी मुझमें इतनी शक्ति है कि अपने पंजे के एक वार से उसके प्राण हर सकता हूँ. तुम किसी जानवर को बहला-फुसलाकर मुझ तक ले आओ. मैं उसे मार डालूंगा और फिर हम दोनों छककर उसका मांस खायेंगे.” शेर बोला.
गीदड़ को शेर की बात जंच गई और वह शिकार की खोज में निकल पड़ा. चलते-चलते वह एक गाँव में पहुँचा. वहाँ उसने एक खेत में लम्बकर्ण नामक गधे को चरते हुए देखा. उसे देख वह सोचने लगा कि इस गधे को किसी तरह शेर के पास ले जाऊं, तो कई दिनों के भोजन की व्यवस्था हो जायेगी.
वह गधे के पास गया और स्वर में मिठास भरकर बोला, “अरे मित्र, क्या हाल बना रखा है? पहले कितने हृष्ट-पुष्ट हुआ करते थे. इतने दुबले-पतले कैसे हो गए? लगता है धोबी कुछ ज्यादा ही काम ले रहा है.”
गीदड़ ने गधे की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. गधा दु:खी स्वर में बोला, “सही समझे मित्र. मैं बड़ा दु:खी हूँ. धोबी मुझसे आवश्यकता से अधिक काम लेता है और कुछ गलती हो जाने पर खूब पीटता है. ऊपर से खाने को भी कुछ भी देता. इधर-उधर चरकर कर किसी तरह मैं अपनी भूख शांत करता हूँ. इसलिए मेरा ऐसा हाल हो गया है.”
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गीदड़ ने मौके की नज़ाकत समझ ली और कहने लगा, “मैं तुम्हारा दुःख समझ सकता हूँ मित्र. वैसे तुम चाहो तो मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान पर ले जा सकता हूँ, जहाँ हरी घास का विशाल मैदान है. तुम वहाँ जी भर कर घास खा सकते हो.”
“ये तो बहुत अच्छी बात कही मित्र. किंतु वहाँ जंगली जानवरों का भय होगा. प्राणों पर संकट आ गया तो? मैं यहीं ठीक हूँ. जो भी प्राप्त हो रहा है. कम से कम सुरक्षित तो हूँ.” गधे ने अपनी शंका जताई.
“अरे मित्र, क्या बात कर रहे हो? मेरे होते हुए तुम्हें किस बात का भय? वह पूरा क्षेत्र मेरे अधीन है. वहाँ कोई तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकता. तुम निर्भय होकर वहाँ के घास के मैदानों में चर सकते हो. और एक बात तो मैं तुम्हें बताना ही भूल गया. वहाँ तीन गर्दभ कन्यायें भी रहती हैं, जो अपने लिए वर की खोज में हैं. संभवतः, वहाँ तुम्हारी बात भी बन जाये.” गीदड़ उसे फुसलाते हुए बोला.
गधा उसकी बातों में आकर उसके साथ चलने को तैयार हो गया. गीदड़ उसे लेकर उस स्थान पर पहुँचा, जहाँ शेर बैठा हुआ था. गीदड़ को गधे के साथ आते हुए देख शेर ख़ुश हो गया और अपनी सारी शक्ति जुटाकर उठ खड़ा हुआ, ताकि गधे का शिकार कर सके.
इधर गधे ने जैसे ही शेर को उठते हुए देखा, वह वहाँ से भाग गया. शेर में इतनी शक्ति ही नहीं थी कि वह उसका पीछा कर सके. गीदड़ को शेर पर बहुत क्रोध आया कि हाथ में आया शिकार उसने यूं ही जाने दिया.
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वह बोला, “वनराज, अब मुझे समझ में आया कि हाथी ने आपको युद्ध में पटकनी कैसे दी? आप में तो गधे का शिकार करने का भी सामर्थ्य नहीं है. हाथी तो फ़िर अति बलवान था.”
शेर लज्जित होकर बोला, “क्या करूं? मैं झपट्टा मारता, उसके पहले ही वह भाग गया. मेरे पंजे का एक वार भी लग जाता, तो वह बचकर नहीं जा पाता. तुम उसे किसी तरह एक बार फिर ले आओ. अबकी बार मैं उसे दबोच ही लूँगा.”
“उसे दोबारा लाना बहुत कठिन है. फिर भी मैं यत्न करूंगा. किंतु, इस बार वह आये, तो बचके जाने ना पाए.” गीदड़ बोला.
फ़िर वह गधे की तलाश में निकला पड़ा. कुछ दूर जाने पर उसने देखा कि गधा एक पेड़ के नीचे सुस्ता रहा है. वह उसेक पास गया और बोला, “क्या हुआ मित्र. तुम वहाँ से क्यों भाग आये?”
“अच्छी बात कर रहे हो तुम. तुम मुझे किस भयानक जीव के पास ले गए थे, जो मुझे देखते साथ मेरे पीछे भागा था. आज तो मुझे मौत सामने दिखाई पड़ रही थी. पूरा जोर लगाकर भागा न होता, तो अभी तुमसे बात न कर रहा होता.” गधा हांफते हुए बोला.
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गीदड़ ने फिर से अपना पासा फेंका, “अरे तुमने ध्यान नहीं दिया. वो एक गर्दभी कन्या थी. तुम्हें देख वह उतावली हो गई और तुम्हारे पास आने लगी. किंतु, तुम तो ऐसे भागे की नज़रों से ओझल ही हो गये. अब वो तुमसे पुनः मिलने की आस में बैठी है. मुझे तुम्हें लाने के लिए भेजा है. वो तुमसे मिलना चाहती थी. कदाचित्, वह तुम्हारे प्रेम में पड़ गई है. तुम्हें भी उससे मिलना चाहिए. उसे इस तरह सताना उचित नहीं.”
गधा फिर गीदड़ की बातों में आ गया और उसके साथ फिर जंगल की ओर चल पड़ा. शेर वहाँ घात लगाये बैठा था. इस बार उसने गलती नहीं की. जैसे ही गधा उसके निकट आया, उसके अपने पंजे का शक्तिशाली वार किया और गधे के प्राण हर लिए.
गीदड़ और शेर के भोजन का प्रबंध हो चुका था. दोनों बहुत खुश थे. शेर गीदड़ से बोला, “मैं नदी में स्नान कर आता हूँ, तुम तब तक इसकी निगरानी करो.”
गीदड़ गधे के शव की निगरानी करने लगा. शेर नदी की ओर चला गया. उधर शेर स्नान करने में समय ग्गाया रहा था और इधर गीदड़ भूख से व्याकुल हो रहा था. आखिर, उससे रहा न गया और उसने गधे का कान और दिमाग खा लिया.
शेर जब स्नान कर लौटा, तो गधे के कान और दिमाग को गायब देख गीदड़ पर क्रुद्ध हो गया, “लोभी, मैंने तुझे निगरानी के लिए यहाँ छोड़ा था. किंतु, तुझसे मेरी प्रतीक्षा भी नहीं हुई. तूने इसे जूठा कर दिया. अब क्या मैं तेरी जूठन खाऊँ?”
गीदड बोला, “वनराज, आप गलत ना समझें. इस गधे के कान और दिमाग तो थे ही नहीं. होते तो क्या ये एक बार मौत के मुँह से बचने के बाद दोबारा वापस आता.”
शेर को गीदड़ की बात ठीक लगी. फ़िर क्या था? दोनों ने छककर गधे का मांस खाया और अपनी भूख मिटाई.
शिक्षा (Moral of the story)
१. किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए.
२. लोभ नहीं करना चाहिए.
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