बंदर और लकड़ी का खूंटा : पंचतंत्र की कहानी (मित्रभेद) | The Monkey And The Wedge Panchatantra Story

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम “बंदर और लकड़ी का खूंटा पंचतंत्र की कहानी” (The Monkey And The Wedge Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. Bandar Aur Lakadi Ka Khunta Panchatantra Ki Kahani पंचतंत्र के भाग – मित्रभेद से ली गई है. यह एक शैतान और हठी बंदर की कहानी है, जो अपनी ख़ुद की शैतानियों के कारण मुसीबत में फंस जाता है. बंदर क्या शैतानी करता है? उस पर क्या मुसीबत आन पड़ती है? जानने के लिए पढ़िए अनाधिकार चेष्टा पंचतंत्र की कहानी (मित्रभेद) :

The Monkey And The Wedge Panchatantra Story In Hindi

The Monkey And The Wedge Panchatantra Story In Hindi
The Monkey And The Wedge Panchatantra Story In Hindi

जंगलों के बीच एक छोटा सा गाँव स्थित था. गाँव के लोग बड़े धार्मिक प्रवृत्ति के थे. उनका पूजा-पाठ में अटूट विश्वास था. गाँव में उन्होंने कई मंदिर बनवा रखे थे. उन्होंने जंगल में भी मंदिर बनवाने का निश्चय किया.

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शीघ्र ही जंगल में मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया. गाँव के कारीगर उस कार्य में लगवाये गए, जो दिन भर काम में जुटे रहते. निर्माण कार्य सुबह से लेकर शाम तक चलता था. सुबह से शाम तक कारीगर वहाँ काम करते. बस दोपहर को भोजन करने गाँव आ जाया करते थे. उस समय में मंदिर में कोई न रहता था.

रोज़ की तरह एक दोपहर सभी कारीगर भोजन करने गाँव आये हुए थे. तभी दूसरे जंगल से आया बंदरों का एक दल उस जंगल में पहुँच गया. इधर-उधर भटकते हुए दल के बंदर निर्माणधीन मंदिर के पास आ धमके और उछल-कूद मचाने लगे. कारीगरों के भोजन के लिए गए होने के कारण उन्हें रोकने-टोकने वाला कोई न था.

मंदिर में उस समय लकड़ी का काम चल रहा है. चीरी हुई शहतूत और अन्य लकड़ियाँ इधर-उधर पड़ी हुई थी. कई शरारती बंदर लकड़ियों पर उछाल-कूद मचाने जाने लगे. तब उनके सरदार ने उन्हें वहाँ जाने से मना किया. किंतु एक बंदर बहुत शरारती और हठी था. उसने सरदार की बात नहीं मानी.

सभी बंदर जहाँ पेड़ पर चढ़ गए, वहीं वह शरारती बंदर शहतूत की लकड़ियों पर धमाचौकड़ी करने लगा. वहाँ शहतूत के कई अधचिरे लठ्ठे रखे हुए थे. उन अधचिरे लठ्ठे के बीच कील फंसी हुई थी. कारीगर भोजन के लिए जाने के पूर्व लठ्ठों के बीच कील फंसाकर जाते थे, ताकि वापस आने के बाद उनमें आरी घुसाने में सुविधा हो.

शरारती बंदर कौतूहलवश एक अधचिरे शहतूत के बीच फंसे कील को देखने लगा. वह खुराफ़ाती दिमाग का था. सोचने लगा कि यदि इस कील को यहाँ से निकाल दिया जाये, तो क्या होगा. फिर उसने देर नहीं लगाई और अधचिरे शहतूत के ऊपर बैठकर कील पर अपनी ज़ोर अजमाइश करने लगा.

बंदरों के सरदार ने जब उसे ऐसा करते देखा, तो उसे रोका और चेतावनी देकर अपने पास बुलाने का प्रयास भी किया. किंतु हठी बंदर नहीं माना.

वह दम लगाकर कील को खींचने लगा. किंतु कील नहीं निकली.  बंदर भी हर मानने वालों में से न था. वह और जोर से कील को खींचने लगा. इस जोर-अजमाइश में उसकी पूंछ पाटों के बीच आ गई. किंतु कील खींचने में लगे बंदर ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और अपनी धुन में लगा रहा.

कुछ देर तक कील को खींचने पर वह थोड़ी हिलने लगी. यह देख बंदर ख़ुश हो गया और दुगुने उत्साह से कील को निकालने में लग गया. अंततः उसका प्रयास सफ़ल रहा और अंत में जोर के झटके के साथ कील बाहर निकल गई.

किंतु जैसे ही कील बाहर निकली, अधचिरे पाट आपस में आ मिले और बंदर की पूंछ उसमें दब गई. बंदर दर्द से चीख उठा. कराहते हुए उसने वहाँ से निकलने का भरसक प्रयास किया. किंतु नाकाम रहा.

वह जितना दम लगाकर वहाँ से निकलने का प्रयास करता, उसकी पूंछ उतनी जख्मी होती जाती. बहुत देर तक वह वहाँ फंसा तड़पता रहा. अन्य बंदर भी उसकी सहायता करने में असमर्थ थे. उन्हें उसे वहीं छोड़कर जाना पड़ा. वहीँ फंसे-फंसे अत्यधिक रक्त बह जाने के कारण बंदर मर गया.

सीख (Bandar Aur Lakdi Ka Khunta Kahani Ki Seekh)

जिस काम की जानकारी नहीं उसमें अनावश्यक हस्तक्षेप करना मूर्खता है. ऐसा करना मुसीबत को बुलावा देना है.

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