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तोड़ों का दृष्टांत बाइबल की कहानी | Parable Of Talents In Bible In Hindi

तोड़ों का दृष्टांत बाइबल की कहानी (The Parable Of Talents In Bible In Hindi) प्रतिभाओं का दृष्टांत बाइबल के नए नियम में “मत्ती 25:14-30″ में वर्णित है। यह कहानी यीशु मसीह द्वारा दी गई शिक्षाओं में से एक है और इसमें एक महत्वपूर्ण सीख छिपी हुई है। यह दृष्टांत जीवन में मिलने वाले अवसरों, उनके सही उपयोग और परिणामों के बारे में गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

कहानी कुछ इस प्रकार है: 

The Parable Of Talents In Bible In Hindi

Table of Contents

The Parable Of Talents In Bible In Hindi

एक बार एक धनी व्यक्ति ने एक लंबी यात्रा पर जाने से पहले अपने तीन सेवकों को बुलाया। वह व्यक्ति अपने पास बहुत धन-संपत्ति रखता था, और वह इसे अपने सेवकों को सौंपना चाहता था ताकि वे इस धन का सही उपयोग कर सकें। उसने प्रत्येक सेवक को उनकी योग्यता और क्षमता के अनुसार धन दिया। इस धन को ‘तोड़ा’ (Talent) कहा गया है, जो कि प्राचीन काल में सोने या चाँदी के वजन का एक माप था। 

उस व्यक्ति ने पहले सेवक को पाँच तोड़े, दूसरे को दो तोड़े4, और तीसरे को एक तोड़ा दी। इसके बाद वह अपने सफर पर निकल गया।

धन मिलने के बाद, तीनों सेवकों ने अपने-अपने तरीके से इस धन का उपयोग किया:

1. पहला सेवक : जिसे पाँच तोड़े दिए गए थे, उसने तुरंत उस धन का उपयोग करके व्यापार किया। उसने मेहनत और बुद्धिमानी से काम किया और जल्द ही पाँच और तोड़े अर्जित कर लीं। इस प्रकार, उसके पास कुल दस तोड़े हो गए।

2. दूसरा सेवक: जिसे दो तोड़े मिले थे, उसने भी पहले सेवक की तरह ही अपने धन का सदुपयोग किया। उसने व्यापार में अपने दो तोड़े का निवेश किया और दो और तोड़े अर्जित किए। इस प्रकार, उसके पास कुल चार तोड़े हो गए।

3. तीसरा सेवक : जिसे एक तोड़ा दिया गया था, वह भयभीत हो गया। उसे लगा कि यदि उसने उस धन का निवेश किया और किसी कारणवश उसे हानि हो गई, तो उसके स्वामी उससे नाराज़ हो जाएंगे। इसलिए उसने वह तोड़ा सुरक्षित रखने के लिए जमीन में गाड़ दिया, ताकि उसका स्वामी लौटने पर उसे वह धन वापस दे सके।

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कुछ समय बाद, स्वामी वापस लौटा और उसने अपने सेवकों से हिसाब-किताब माँगा। 

पहले सेवक ने आगे आकर कहा, “स्वामी, आपने मुझे पाँच तोड़े दिए थे। मैंने उनसे पाँच और अर्जित किए हैं। अब आपके पास दस तोड़े हैं।”

स्वामी ने प्रसन्न होकर कहा, “अच्छा किया, अच्छे और विश्वासी सेवक! तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा, इसलिए मैं तुझे बहुतों का अधिकारी बनाऊँगा। आ, अपने स्वामी के आनंद में भागीदार बन।”

दूसरे सेवक  ने कहा, “स्वामी, आपने मुझे दो तोड़े दिए तू। मैंने उनसे दो और अर्जित किए हैं। अब आपके पास चार तोड़े हैं।”

स्वामी ने उसे भी प्रशंसा करते हुए कहा, “अच्छा किया, अच्छे और विश्वासी सेवक! तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा, इसलिए मैं तुझे बहुतों का अधिकारी बनाऊँगा। आ, अपने स्वामी के आनंद में भागीदार बन।”

तीसरा सेवक डरा हुआ था, लेकिन उसने आगे आकर कहा, “स्वामी, मुझे पता था कि आप एक कठोर व्यक्ति हैं, जो वहां भी काटते हैं, जहां आपने नहीं बोया और वहां से इकट्ठा करते हैं, जहां आपने नहीं छींटा। इसलिए मैं डर गया और आपके दिए तोड़े को जमीन में गाड़ दिया। यहाँ है, आपका तोड़ा।”

स्वामी ने क्रोधित होकर कहा, “दुष्ट और आलसी सेवक! यदि तुझे पता था कि मैं वहां भी काटता हूँ, जहां मैंने नहीं बोया और वहां से इकट्ठा करता हूँ, जहां मैंने नहीं छींटा, तो तू कम से कम मेरे धन को ब्याज पर लगा सकता था। जब मैं लौटता, तो मुझे ब्याज सहित मेरा तोड़ा मिलता।”

स्वामी ने आदेश दिया कि उस सेवक से वह एक तोड़ा भी ले ली जाए और जिसके दस तोड़े थे, उसे दे दी जाए। इसके अलावा, उस आलसी सेवक को अंधकार में फेंक दिया जाए।

सीख

प्रतिभाओं का दृष्टांत हमें जीवन में मिली जिम्मेदारियों, अवसरों और संसाधनों का सदुपयोग करने की प्रेरणा देता है। इस दृष्टांत की प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:

1. अवसर और जिम्मेदारी : हर व्यक्ति को उसके जीवन में कुछ न कुछ अवसर या जिम्मेदारियाँ मिलती हैं। यह दृष्टांत हमें सिखाता है कि हमें उन अवसरों का सही उपयोग करना चाहिए, चाहे वे छोटे हों या बड़े। स्वामी ने सेवकों को उनकी क्षमता के अनुसार धन दिया, और उनसे उनके सही उपयोग की अपेक्षा की। इसका अर्थ है कि हमें अपने संसाधनों और क्षमताओं का पूरी तरह से उपयोग करना चाहिए।

2. विश्वास और कड़ी मेहनत: जो सेवक मेहनती और विश्वासयोग्य थे, उन्होंने अपने स्वामी की अपेक्षाओं पर खरे उतरने के लिए मेहनत की और उसके धन को बढ़ाया। इसके विपरीत, आलसी सेवक ने अपने स्वामी के दिए गए धन को बेकार में रखा। यह हमें सिखाता है कि सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत, प्रयास और विश्वास आवश्यक हैं।

3. डर और निष्क्रियता के परिणाम : तीसरे सेवक का डर और निष्क्रियता उसे नुकसान पहुँचाते हैं। डर के कारण उसने कुछ भी करने का प्रयास नहीं किया और अंततः उसने वह भी खो दिया जो उसके पास था। यह दृष्टांत हमें बताता है कि हमें डर और असफलता के भय को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए, बल्कि साहस और दृढ़ता से काम लेना चाहिए।

4. अधिक जिम्मेदारी और पुरस्कार : जो लोग अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाते हैं, उन्हें और अधिक जिम्मेदारी और पुरस्कार मिलते हैं। पहले और दूसरे सेवक को उनके प्रयासों के लिए पुरस्कृत किया गया, जबकि तीसरे सेवक को उसकी आलस्यता के कारण सजा दी गई। यह सिखाता है कि जब हम अपने कार्यों में सफल होते हैं, तो हमें और बड़े अवसर दिए जाते हैं।

5. प्रतिकूलताओं में भी प्रयास : तीसरे सेवक ने अपने स्वामी को कठोर और अनुचित मानते हुए कोई प्रयास नहीं किया। इसके विपरीत, पहले दो सेवकों ने प्रतिकूलताओं का सामना करते हुए भी अपने कार्यों में सफलता प्राप्त की। यह सिखाता है कि हमें परिस्थितियों के बावजूद अपने प्रयास जारी रखने चाहिए, क्योंकि प्रयासों के बिना कोई भी सफलता नहीं मिल सकती।

निष्कर्ष

प्रतिभाओं का दृष्टांत हमें यह महत्वपूर्ण सीख देता है कि हमें जीवन में मिले अवसरों और संसाधनों का बुद्धिमानी से और पूरी मेहनत के साथ उपयोग करना चाहिए। डर और निष्क्रियता को त्यागकर, हमें अपने कार्यों में विश्वास और प्रयास बनाए रखना चाहिए। जब हम अपनी प्रतिभाओं और अवसरों का सही उपयोग करते हैं, तो न केवल हम अपने लिए सफलता प्राप्त करते हैं, बल्कि ईश्वर की दृष्टि में भी अच्छे और विश्वासयोग्य सेवक साबित होते हैं। इस दृष्टांत के माध्यम से यीशु मसीह ने यह संदेश दिया है कि जीवन में सच्ची खुशी और सफलता उन्हीं को मिलती है, जो अपने कार्यों में निष्ठा, विश्वास और मेहनत से जुटे रहते हैं।

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