वानरराज का बदला : पंचतंत्र की कहानी ~ अपरीक्षितकारक | The Unforgiving Monkey King Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम कहानी “वानरराज का प्रतिशोध” (The Unforgiving Monkey King Story In Hindi) कहानी शेयर कर  रहे हैं. यह पंचतंत्र की कहानी है, जो अंतिम तंत्र (भाग) ‘अपरीक्षितकारक’ से ली गई है. इस कहानी में बुरे कर्मों के प्रतिफल के बारे में वर्णन किया गया है. पढ़ें पूरी कहानी :   

The Unforgiving Monkey King Panchatantra Story 

The Unforgiving Monkey King Story In Hindi
The Unforgiving Monkey King Story In Hindi

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एक नगर में चन्द्र नामक राजा का शासन था. उसके राजमहल के बगीचे में बंदरों का एक समूह रहता था. बगीचे के फलों के अतिरिक्त राजा के सेवकों द्वारा प्रतिदन प्रदान किये जा रहे भोजन का सेवन कर वे बहुत हृष्ट-पुष्ट हो गये थे.

बंदरों का सरदार “वानरराज” एक बूढ़ा बंदर था, जो अति-बुद्धिमान था. समय-समय पर वह अपना परामर्श बंदरों के समूह को दिया करता था. 

राजमहल में दो भेड़ें भी रहती थीं. राजा के पुत्र उनके साथ खेला करते थे. दो भेड़ों में से एक भेड़ बहुत चटोरी थी. जब मन करता, वह रसोईघर में घुस जाती और वहाँ खाने की जो भी चीज़ें पाती, खा जाती.

रसोईया भेड़ की इस हरक़त पर बहुत क्रोधित होता और जो हाथ में आता, वह वस्तु फ़ेंक कर उसे मारता.

एक दिन वानरराज ने रसोईये को भेड़ को एक बर्तन फेंककर मारते हुए देखा. वह सोचने लगा – कहीं रसोईये और भेड़ की यह तना-तनी बंदरों के विनाश का कारण न बन जाए. ये चटोरी भेड़ तो खाने के लोभ में यदा-कदा रसोई घर में जाती रहेगी. यदि किसी दिन क्रोधवश रसोईये ने चूल्हे की जलती हुई लकड़ी उस पर फेंक दी, तो अनर्थ हो जायेगा. भेड़ का ऊन से ढका शरीर आग पकड़ लेगा. भागते हुए भेड़ अस्तबल पहुँच गई, तो सूखी घास से भरा अस्तबल धधक उठेगा. घोड़े जल जायेंगे और फिर वही बंदरों का काल बनेंगे.

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यह विचार मस्तिष्क में आते ही वानरराज ने अपने समूह की सभा बुलाई और अपना संदेह ज़ाहिर किया. उसने परामर्श दिया कि इससे पूर्व कि रसोइये और भेड़ों के बीच की लड़ाई हमारे लिए प्राणघातक सिद्ध हो, हमें राजमहल छोड़ देना चाहिए. अन्यतः हमारा विनाश निश्चित है.”

किंतु, बंदरों ने उसकी की बात नहीं मानी. उन्हें लगा कि उनका सरदार अब बूढ़ा हो चुका है और व्यर्थ का भ्रम पाल रहा है. वे राजमहल के भोजन के आदी हो चुके थे. इसलिए राजमहल छोड़ने को तैयार नहीं हुए. परन्तु, वानरराज ने तत्काल राजमहल छोड़ दिया.

इधर एक दिन फ़िर चटोरी भेड़ रसोईघर में घुस गई और वही हुआ, जिसका बंदरों के सरदार को भय था. रसोइये को और कुछ नहीं मिला, तो उसने जलती हुई लकड़ी का टुकड़ा उठाकर भेड़ पर फ़ेंक दिया.

भेड़ का शरीर, जो ऊन से ढका हुआ था, धधकने लगा. वह इधर-उधर भागने लगी और अस्तबल में घुस गई. आग की लपट अस्तबल में रखी सूखी घास तक पहुँची और पूरा अस्तबल धूं-धूं कर जल उठा.  

कई घोड़े जलकर मर गए. कई घायल हो गये. राजा को यह समाचार मिला, तो उसने वैद्य को बुलाया और उसे घोड़ों का उपचार करने का आदेश दिया.

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वैद्य ने घोड़ों के घाव का परीक्षण किया और बोला, “इनके घावों को शीघ्र ठीक करने का एक ही उपाय है. इन पर बंदरों की चर्बी लगानी पड़ेगी.”

राजा ने सैनिकों को आदेश दिया कि जो भी बंदर दिखे, तो मारकर उसकी चर्बी घोड़ों के उपचार के लिए लाई जाए. राजमहल के सारे बंदर मार दिए गए.

जब वानरराज तक यह बात पहुँची, तो वह बहुत दु:खी हुआ. उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला धधक उठी. किंतु, वह अकेला था. वह युक्ति सोचने लगा, जिससे वह राजा के कुल का भी वैसे ही सर्वनाश कर दे, जैसे उसने उसके कुल का किया है.

एक दिन वह पानी पीने एक झील के पास गया. उस झील में सुंदर कमल  खिले हुए थे. वानरराज ने देखा कि मनुष्यों और जानवरों के पदचिन्ह झील की ओर जाते हुए तो हैं, किंतु वापस आते हुए नहीं हैं. वह समझ गया कि झील में अवश्य कोई राक्षस रहता है जो झील में गए मनुष्यों और जानवरों को खा जाता है.

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उसने चतुराई दिखाते हुए कमल के तने से पानी पी लिया. जब झील में रहने वाले राक्षस ने यह देखा, तो झील से बाहर आ गया. उसने कई आभूषण पहने हुए थे. वह वानरराज से बोला, “जो भी झील में आता है, मैं उसे खा जाता हों. किंतु, तुम तो चतुर निकले. मैं तुम्हारी चतुराई देख प्रसन्न हूँ. मांगों क्या मांगते हो?”

वानरराज बोला, “एक राजा ने मेरे संपूर्ण वंश का नाश कर दिया है. मैं उससे प्रतिशोध लेना चाहता हूँ. आप मेरी सहायता करें, मुझे अपना कंठहार दे दे. मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं आपके आहार के लिए राजा और उसके अनुचरों को इस झील में लाऊंगा.”

राक्षस ने वानरराज को कंठहार दे दिया. वह हार पहनकर बंदरों के सरदार राजा के नगर पहुँचा. वह वहाँ एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर झूलने लगा. जिसकी भी दृष्टि उस पर पड़ती, वह कंठहार देखकर दंग रह जाता.

राजा के सैनिकों की दृष्टि भी उस पर पड़ी और वे उसे पकड़कर राजा के समक्ष ले गए. राजा ने उससे पूछा, “तुम्हें ये कीमती कंठहार कहाँ से प्राप्त हुआ?”

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वानरराज ने उत्तर दिया, “महाराज, यह हार मुझे समृद्धि के देवता द्वारा प्रदान किया गया है. वह जंगल के बीचों-बीच स्थित एक झील में निवास करते हैं. जब सूर्य आधा उदय हुआ होता है, उस समय जो व्यक्ति उस झील में डुबकी लगा ले, तो उसे समृद्धि के देवता का आशीर्वाद और कंठहार प्राप्त होता है.”

राजा उसकी बातों में आ गया. वह अपनी पत्नि और पूरे परिवार सहित उस झील में डुबकी लगाने तैयार हो गया.

वानरराज ने कहा, “कल सुबह की मंगल बेला में पधारिये.”

लोभ में अंधा हो चुका राजा अगली सुबह अपनी पत्नि, पुत्र, परिवारजन, मंत्रियों और सेवकों सहित झील पहुँचा. वानरराज भी उनके साथ था. वह बोला, “महाराज, सबको अलग-अलग स्थानों से झील में उतरना होगा. सबके जाने के बाद आप अंत में झील में उतरिए.”

राजा की पत्नि, पुत्र, परिवारजन, मंत्री, सेवक सभी अलग-अलग स्थानों से झील में उतर गए और राक्षस द्वारा खा लिए गए.

बहुत देर तक जब कोई बाहर नहीं आया, तो राजा ने चिंतित होकर पूछा, “हे वानरराज, मेरे पत्नि, पुत्र, परिवारजन, मंत्री और सेवक बाहर क्यों नहीं आ रहे हैं?”

तब वानरराज एक पेड़ के ऊपर चढ़ गया और राजा से बोला, “अरे दुष्ट, तुम्हारा समस्त परिवार, मंत्री और सेवक राक्षस द्वारा खा लिए गए हैं. तुमने मेरे परिवार को मौत के घाट उतारा था. आज मैंने उसका प्रतिशोध ले लिया है.”

सीख (The Unforgiving Monkey King Story moral) 

बुरा करोगे, तो बुरा फ़ल पाओगे.


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