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कृतघ्न राजा की कहानी | The Ungrateful King Story In Hindi

ungrateful king story in hindi कृतघ्न राजा की कहानी | The Ungrateful King Story In Hindi
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कृतघ्न राजा की कहानी (The Ungrateful King Story In Hindi) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। ये कहानी कृतज्ञ रहने की सीख देती है।

The Ungrateful King Story In Hindi

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The Ungrateful King Story In Hindi

बहुत समय पहले की बात है, एक विशाल राज्य का एक राजा था। वह बहुत ही पराक्रमी और प्रजा का हितैषी था। राजा का जीवन राजसी ठाट-बाट में बीत रहा था, लेकिन एक दिन अचानक उसकी त्वचा में एक अजीब सी बीमारी हो गई। पूरे शरीर में लाल चकत्ते और खुजली होने लगी। वह बहुत परेशान हो गया। राज्य के सभी वैद्य, हकीम, और चिकित्सक बुलाए गए, परंतु कोई भी राजा की बीमारी का इलाज नहीं कर सका। राजा का स्वास्थ्य दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था।

राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी उसे इस बीमारी से ठीक करेगा, उसे वह बहुत बड़ा इनाम देगा। परंतु, महीनों बीत गए और कोई इलाज सफल नहीं हुआ। राजा निराश हो गया और उसे लगने लगा कि उसकी बीमारी कभी ठीक नहीं हो पाएगी।

एक दिन एक अजनबी वैद्य राजा के दरबार में आया। वह एक साधारण वस्त्र पहने हुए था, लेकिन उसके चेहरे पर आत्मविश्वास और शांत मुस्कान थी। उसने दरबार में आते ही राजा से निवेदन किया, “महाराज, मैंने सुना है कि आपकी त्वचा की बीमारी का कोई इलाज नहीं ढूंढ पाया है। मैं वचन देता हूँ कि एक दिन में आपको पूरी तरह से ठीक कर दूंगा।”

राजा ने चौंकते हुए कहा, “इतने बड़े वैद्य, हकीम और चिकित्सक मुझे ठीक नहीं कर पाए, और तुम कहते हो कि एक दिन में मेरा इलाज कर दोगे? तुममें ऐसा क्या है जो दूसरों में नहीं?”

वैद्य ने निश्चिंत स्वर में कहा, “महाराज, मेरी विद्या कुछ अलग है। अगर आप मुझे एक मौका देंगे, तो मैं आपका यह रोग दूर कर दूंगा।”

राजा के पास खोने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उसने वैद्य को मौका देने का निर्णय लिया। वैद्य ने अगले दिन तक इंतजार करने का निवेदन किया और कहा कि वह अगली सुबह इलाज शुरू करेगा।

अगले दिन वैद्य एक लकड़ी का छोटा सा टुकड़ा लेकर आया, जिसमें उसने एक छेद कर रखा था। वह उसमें एक विशेष दवा भरने लगा और फिर छेद में एक दूसरी पतली लकड़ी को फंसा दिया। जब लकड़ी को उसने पूरा कर लिया, तो वह दिखने में बिल्कुल पोलो की स्टिक जैसा लग रहा था। वैद्य ने उसे राजा को दिखाते हुए कहा, “महाराज, यह विशेष उपकरण मैंने आपके लिए तैयार किया है। आपको इसे लेकर पोलो खेलना होगा, तब तक जब तक कि आपको पसीना न आ जाए। यह पसीना ही आपकी बीमारी का असली इलाज है।”

राजा ने थोड़े संदेह के साथ वैद्य की बात मानी। उसने पोलो खेलना शुरू किया। खेलते-खेलते राजा का शरीर पसीने में तर-बतर हो गया। जैसे ही पसीना आया, राजा की खुजली कम होने लगी और कुछ ही घंटों में उसकी त्वचा पर से सारे चकत्ते गायब हो गए। राजा को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसकी त्वचा एकदम स्वस्थ हो गई थी।

राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उस वैद्य को बुलाया और कहा, “तुमने मेरा जीवन बचाया है। तुम्हारे पास ऐसी अद्भुत विद्या है, जो आज तक किसी के पास नहीं थी। मैं तुम्हें अपना राज वैद्य घोषित करता हूँ।”

वैद्य ने राजा का धन्यवाद किया और सम्मानपूर्वक राज वैद्य का पद स्वीकार किया। दरबार में सभी ने उसे बधाई दी, लेकिन कुछ मंत्रियों के मन में जलन उत्पन्न हो गई। वे नहीं चाहते थे कि एक साधारण वैद्य इतने ऊँचे पद पर पहुंचे। मंत्रियों ने सोचा, “अगर यह वैद्य राजा के और करीब आ गया, तो हमारा महत्व कम हो जाएगा। इसे किसी भी तरह से दरबार से हटाना होगा।”

मंत्रियों ने राजा के कान भरने शुरू कर दिए। वे कहने लगे, “महाराज, यह वैद्य तो बहुत चालाक लगता है। इसे इतनी जल्दी राजवैद्य बनाना सही नहीं था। कौन जानता है कि यह भविष्य में किस प्रकार के खेल खेलेगा?” 

धीरे-धीरे राजा के मन में भी शक के बीज बो दिए गए। राजा अब उस वैद्य से थोड़ा दूरी बनाने लगा। एक दिन मंत्रियों ने राजा को पूरी तरह से उकसा दिया, “महाराज, अगर आप इस वैद्य को अपने दरबार से नहीं निकालते, तो वह भविष्य में आपके लिए खतरा बन सकता है। उसे खत्म कर देना ही सबसे अच्छा विकल्प है।”

राजा अब मंत्रियों की बातों में आ गया और उसने निर्णय लिया कि वैद्य को मरवा देना चाहिए। उसने वैद्य को दरबार में बुलवाया और उसे मौत की सजा सुनाने की योजना बनाई।

जब वैद्य को राजा के निर्णय के बारे में पता चला, तो उसने धैर्य नहीं खोया। वह राजा के सामने उपस्थित हुआ और बोला, “महाराज, आप मुझे मौत की सजा देना चाहते हैं, यह आपका अधिकार है। परंतु मेरी आपसे एक आखिरी विनती है। मैंने एक ग्रंथ लिखा है, जिसमें मैंने अपनी सारी विद्या और रहस्य लिख रखे हैं। अगर आप मुझे मार देंगे, तो वह विद्या भी खो जाएगी।”

राजा ने वैद्य से पूछा, “तुम्हारे पास ऐसी कौन सी विद्या है जो इतनी महत्वपूर्ण है?”

वैद्य ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, इस ग्रंथ में एक विशेष विद्या है, जिससे यदि आप मेरा सिर काट भी देंगे, तो मैं तब भी कुछ देर तक आपसे बात कर सकूंगा। आप मेरे कटे हुए सिर से बात कर सकेंगे।”

राजा यह सुनकर चकित हो गया। उसे यह विद्या जानने की उत्सुकता हुई और उसने वैद्य से कहा, “मैं इस विद्या के बारे में जानना चाहता हूँ। वह ग्रंथ मुझे तुरंत मंगवाओ।”

वैद्य ने अपने घर से वह ग्रंथ मंगवाया। राजा ने जैसे ही ग्रंथ को देखा, उसे खोलने लगा। लेकिन वह ध्यान नहीं दे रहा था कि ग्रंथ के पन्ने एक-दूसरे से चिपके हुए थे। पन्ने पलटने में मुश्किल हो रही थी, इसलिए राजा ने अपनी उंगली पर हल्का सा थूक लगाकर पन्ने पलटना शुरू किया। वह यह नहीं जानता था कि पन्नों पर जहर लगा हुआ था।

कुछ ही देर में राजा को हल्की बेचैनी महसूस होने लगी। उसने वैद्य की ओर देखा और पूछा, “यह कैसा ग्रंथ है? मुझे अच्छा महसूस नहीं हो रहा।”

वैद्य ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “महाराज, यह वही फल है जो हर कृतघ्न व्यक्ति को मिलता है। आपने मुझ पर संदेह किया और मुझे मरवाने का निर्णय लिया, जबकि मैंने आपकी जान बचाई थी। इस ग्रंथ में वह विद्या नहीं है, बल्कि यह आपको आपकी गलतियों का एहसास कराने का उपाय है। इसमें लगे जहर से अब आपका अंत निकट है।”

राजा को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। जहर पूरे शरीर में फैल चुका था और कुछ ही क्षणों में राजा की मृत्यु हो गई।

इस प्रकार, एक कृतघ्न राजा, जिसने अपने सेवक के प्रति दुष्टता का मार्ग चुना, उसे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। वैद्य ने न केवल राजा को सबक सिखाया, बल्कि उस समय यह साबित कर दिया कि ज्ञान का उपयोग सदैव विवेकपूर्ण होना चाहिए। 

सीख

जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करता है, उसके साथ विश्वासघात करने से न केवल नैतिक पतन होता है, बल्कि उसका परिणाम भी भयानक हो सकता है।

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