तूफान में मौन जेन कथा | Tufan Mein Maun Zen Katha Story In Hindi
जेन (Zen) परंपरा का मूल उद्देश्य है — आत्मज्ञान की प्राप्ति, आंतरिक शांति और जागरूकता। जेन कथाएँ अक्सर सामान्य प्रतीत होने वाले अनुभवों के माध्यम से गहरी आध्यात्मिक सीख देती हैं। “तूफान में भी मौन” एक ऐसी ही कथा है जो हमें बताती है कि बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, यदि हमारा अंतर्मन शांत है तो कोई भी तूफान हमें विचलित नहीं कर सकता। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चा ध्यान, सच्चा मौन – बाहर नहीं, भीतर होता है।
Tufan Mein Maun Zen Katha
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जापान के एक दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र में एक विख्यात जेन मठ था, जिसे वर्ष भर शांति और एकांतप्रिय साधकों के लिए जाना जाता था। इस मठ का प्रमुख गुरु मास्टर शिनजो एक प्रतिष्ठित जेन गुरु थे, जिनकी ख्याति दूर-दूर तक थी। लोग उनके पास ध्यान सीखने, अपने प्रश्नों के उत्तर पाने और आंतरिक शांति का मार्ग जानने आते थे।
मठ में एक दिन एक युवा साधक आया। उसका नाम था कोजो। वह अपने जीवन से ऊब चुका था — भागदौड़, इच्छाएँ, असंतोष, सबने उसे घेर लिया था। वह सच्चा मौन और शांति पाना चाहता था, इसलिए वह मास्टर शिनजो के पास पहुँचा और नम्रता से बोला,
“गुरुदेव, मुझे शांति नहीं मिलती। मेरा मन लगातार चंचल रहता है। कृपया मुझे सच्चे मौन की शिक्षा दें।”
मास्टर शिनजो ने मुस्कराते हुए कहा, “कोजो, मौन केवल शब्दों का अभाव नहीं है। मौन वह स्थिति है जब तूफान के बीच भी तुम अंदर से अडिग और शांत रह सको। क्या तुम तैयार हो इस मौन को जानने के लिए?”
कोजो ने उत्साह से कहा, “हाँ, गुरुदेव! मैं तैयार हूँ।”
मास्टर ने कोजो को मठ में रहने की अनुमति दी और कहा कि वह हर दिन ध्यान करेगा, पर साथ ही उसे आश्रम के छोटे कामों में भी भाग लेना होगा। कोजो हर दिन ध्यान करता, साधना करता, लेकिन उसे लगता कि उसका मन शांत नहीं होता। उसके विचार बार-बार भटकते। वह सोचता, “मौन कहाँ है? शांति कहाँ है?”
एक दिन अचानक पर्वतीय क्षेत्र में एक भीषण तूफान आया। तेज हवाएँ, बारिश, बिजली — पूरा क्षेत्र प्रकृति के रौद्र रूप में डूब गया। सभी साधक अपने कक्षों में दुबक गए। पर मास्टर शिनजो बाहर मंदिर प्रांगण में अपने सामान्य आसन में बैठे थे — आँखें बंद, चेहरा शांत।
कोजो यह देखकर चकित रह गया। उसने डरते हुए मास्टर से कहा, “गुरुदेव! तूफान बहुत भयंकर है। आप भीतर क्यों नहीं आते? यह सुरक्षित नहीं है।”
मास्टर ने आँखें खोलीं और शांति से कहा, “क्या यह तूफान तुम्हारे भीतर भी है, कोजो?”
कोजो चुप हो गया। मास्टर ने कहा, “तूफान तो प्रकृति का हिस्सा है। पर यदि तूफान तुम्हारे भीतर भी है, तो वही असली खतरा है। मौन वह शक्ति है जो इस तूफान को भी तुम्हारे पास आने नहीं देती। आओ, बैठो, और इसे अनुभव करो।”
डरते-डरते कोजो भी उनके पास बैठ गया। वह काँप रहा था — हवा के झोंके उसके शरीर से टकरा रहे थे, पर मास्टर के चेहरे पर गहन मौन और स्थिरता थी।
धीरे-धीरे कोजो ने मास्टर के मौन को अनुभव करना शुरू किया। वह बाहर के शोर को सुन तो रहा था, पर अब वह उसके भीतर शोर नहीं बन रहा था। पहली बार उसने खुद को शांत महसूस किया।
तूफान के बीच कोजो को समझ आया — मौन कोई परिस्थिति नहीं, बल्कि एक स्थिति है।
अगली सुबह तूफान शांत हो चुका था। कोजो मास्टर के चरणों में बैठा और बोला, “गुरुदेव, कल पहली बार मुझे लगा कि मैं अपने भीतर मौन को छू सका।”
मास्टर मुस्कराए और बोले, “शब्दों का मौन सच्चा मौन नहीं है। जब तुम्हारा मन किसी भी परिस्थिति में स्थिर रहे, वही मौन है। यह तूफान बार-बार आएगा — बाहर भी और भीतर भी। पर सच्चा साधक वही है जो तूफान में भी अचल और मौन बना रहे।”
कथा से सीख:
1. मौन केवल चुप रहना नहीं है – यह एक आंतरिक स्थिति है, जहाँ मन के विचार भी शांत हो जाते हैं।
2. बाहरी परिस्थितियाँ कभी स्थायी नहीं होतीं – लेकिन यदि हम उनसे प्रभावित हो जाएँ, तो हम अपनी आंतरिक शक्ति खो बैठते हैं।
3. सच्ची साधना कठिन समय में होती है – शांति के समय मौन रहना सरल है, पर तूफान में मौन रहना ही सच्ची साधना है।
4. साक्षी भाव अपनाओ – तूफान को देखो, अनुभव करो, पर उसके साथ बहो मत। यही साक्षी भाव हमें भीतर की शक्ति से जोड़ता है।
5. ध्यान का सार यही है – परिस्थिति कैसी भी हो, तुम जैसे हो, वैसे ही रहो — शांत, अडिग, मौन।
“तूफान में भी मौन” केवल एक कथा नहीं, एक जीवन-दर्शन है। यह हमें हमारी भीतरी शक्ति की याद दिलाती है। हम जीवन में कितने भी तूफानों से गुजरें, अगर हम भीतर से मौन हैं, तो कोई भी स्थिति हमें नहीं हिला सकती। यही है जेन का सार – पूर्ण जागरूकता, गहन मौन और अडिग शांति।
आशा है आपको ये Hindi Zen Story पसंद आई होगी। अन्य जेन कथा पढ़िए।
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