दो भिक्षुक और एक स्त्री जेन कथा | Two Monks And A Woman Zen Story In Hindi
ज़ेन कहानियाँ अक्सर हमारे जीवन की गहरी जटिलताओं को सरलतम रूप में प्रस्तुत करती हैं। इनका उद्देश्य हमें जीवन की सच्चाई, वर्तमान क्षण का महत्व और मन की शांति को समझाना होता है। इनमें सादगी के माध्यम से गहराई तक पहुंचने की शक्ति होती है। “दो भिक्षुक और एक स्त्री” एक ऐसी ही कहानी है, जो हमें सिखाती है कि कैसे हमें अनावश्यक मानसिक बोझ से मुक्त होकर अपने जीवन को सहज और स्वतंत्र बनाना चाहिए। यह कहानी न केवल सरल है, बल्कि इसकी शिक्षा हर परिस्थिति में लागू होती है।
Two Monks And A Woman Zen Story In Hindi
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कभी प्राचीन जापान के एक छोटे से गांव में, दो ज़ेन भिक्षुक रहते थे। एक का नाम था तंजान, जो उम्र में बड़ा और अनुभवी था। दूसरा एक युवा भिक्षुक था, जिसका नाम एकिडो था। दोनों भिक्षुक अनुशासन और ध्यान का जीवन जीते थे और अपने आश्रम से बाहर केवल जरूरत पड़ने पर ही निकलते थे।
एक दिन उन्हें अपने आश्रम से पास के एक गांव तक जाने की ज़रूरत पड़ी। उस दिन बारिश हो रही थी और कच्चे रास्ते कीचड़ से भर गए थे। दोनों भिक्षुक चुपचाप यात्रा कर रहे थे, ध्यान की स्थिति में चलते हुए।
चलते-चलते वे एक बड़ी नदी के किनारे पहुंचे। नदी में पानी तेज़ बह रहा था, और किनारे पर एक सुंदर युवती खड़ी थी। वह नदी पार करना चाहती थी, लेकिन तेज़ पानी और कीचड़ के कारण उसे डर लग रहा था।
युवती ने दोनों भिक्षुओं को देखा और उनसे मदद मांगी।
एकिडो तुरंत पीछे हट गया। उसने सोचा, “हम भिक्षुक हैं, हमें स्त्रियों से दूरी रखनी चाहिए। यह हमारे अनुशासन के विरुद्ध है।”
लेकिन तंजान बिना कुछ कहे आगे बढ़ा। उसने युवती को देखा और कहा, “मैं तुम्हारी मदद करूंगा।” उसने युवती को अपनी बाहों में उठाया, उसे नदी पार कराई और दूसरी ओर सुरक्षित उतार दिया।
युवती ने तंजान को धन्यवाद कहा और अपना रास्ता पकड़ लिया।
दूसरी ओर, एकिडो चुपचाप खड़ा देखता रहा। तंजान ने मुस्कुराते हुए उसे देखा और कहा, “चलो, हमें आगे बढ़ना चाहिए।”
दोनों भिक्षुक फिर से अपने रास्ते पर चलने लगे। लेकिन एकिडो अब शांत नहीं था। वह इस घटना के बारे में लगातार सोच रहा था। लगभग दो घंटे बाद, जब वे अपने आश्रम के पास पहुंचे, तो एकिडो ने आखिरकार अपना गुस्सा जाहिर किया।
“तंजान,” उसने कहा, “हम भिक्षुक हैं। हमें महिलाओं से दूर रहना सिखाया गया है। आपने उस युवती को नदी पार क्यों कराया? यह हमारे नियमों के खिलाफ है।”
तंजान ने शांत स्वर में जवाब दिया, “मैंने उस युवती को नदी पार कराकर वहीं छोड़ दिया। लेकिन ऐसा लगता है कि तुम अब तक उसे अपने साथ ढो रहे हो।”
यह छोटी लेकिन गहरी कहानी हमारे जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डालती है। तंजान और एकिडो के बीच का अंतर हमें बताता है कि कैसे हम अनावश्यक मानसिक बोझ उठाकर खुद को परेशान करते हैं।
1. भूतकाल को छोड़ना:
तंजान ने युवती को नदी पार करने में मदद की और फिर तुरंत उसे अपने विचारों से बाहर निकाल दिया। एकिडो, दूसरी ओर, युवती के साथ अपनी मानसिक असहमति को घंटों तक अपने मन में ढोता रहा। यह हमें सिखाता है कि बीती बातों को छोड़ना चाहिए, अन्यथा वे हमें मानसिक रूप से जकड़ सकती हैं।
2. अनावश्यक नियम और विचारधाराएं:
एकिडो ने भिक्षु जीवन के नियमों का अंधाधुंध पालन किया, जबकि तंजान ने नियमों की सच्ची भावना को समझा। ज़ेन में, दया और करुणा सबसे बड़े नियम हैं। तंजान ने उन नियमों का पालन किया जो सच्चे अर्थों में उपयोगी थे, जबकि एकिडो व्यर्थ की परंपराओं में फंसा रहा।
3. वर्तमान क्षण का महत्व:
तंजान ने वर्तमान क्षण में काम किया और उससे बाहर आ गया। यह हमें सिखाता है कि हर पल का सम्मान करें, लेकिन उसे अपने मन पर हावी न होने दें।
4. मन की स्वतंत्रता:
हमारी समस्याएं अक्सर बाहरी नहीं होतीं, बल्कि हमारे मन में जमी होती हैं। तंजान की स्वतंत्रता और एकिडो का मानसिक बोझ यह स्पष्ट करता है कि असली जंजीरें हमारे अपने विचार हैं।
“दो भिक्षुक और एक स्त्री” एक ऐसी ज़ेन कहानी है, जो हमें अपने मन के बोझ को पहचानने और उससे मुक्त होने की प्रेरणा देती है। जीवन में हम कई बार ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं, जहां हम उन चीजों को पकड़े रहते हैं, जिन्हें हमें छोड़ देना चाहिए।
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि करुणा और मदद का कोई नियम या सीमा नहीं होती। हमें उन नियमों का पालन करना चाहिए, जो वास्तव में सही और उपयोगी हैं, न कि उन परंपराओं का, जो केवल दिखावे के लिए हैं।
सच तो यह है कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य, शांति और खुशी इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम अपने मन के अंदर कितना बोझ ढोते हैं। जब हम सीख जाते हैं कि उस बोझ को कैसे छोड़ा जाए, तभी हम सच्चे अर्थों में आज़ाद और शांत हो सकते हैं।
इस कहानी की सादगी में जो गहराई छिपी है, वह हमें हर बार पढ़ने पर कुछ नया सिखाती है।
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