उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानी (Urvashi Pururava Love Story In Hindi) उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानी भारतीय पौराणिक साहित्य का एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें प्रेम, वियोग, और पुनर्मिलन के साथ-साथ मानवता और अमरत्व का टकराव भी देखने को मिलता है। यह कहानी न केवल प्रेम की गहराई को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि प्रेम कभी-कभी त्याग और समझौते की मांग करता है। उर्वशी, एक अप्सरा और स्वर्गलोक की अद्वितीय नायिका, और पुरुरवा, पृथ्वी के महान योद्धा और चंद्रवंशी राजा, के बीच का यह प्रेम संबंध उनके सामाजिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक परिवेश के बावजूद पनपता है और आगे चलकर अमरता प्राप्त करता है।
Urvashi Pururava Love Story In Hindi
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यह उस समय की बात है, जब उर्वशी स्वर्गलोक में रहती थी, जहाँ उसकी सुंदरता और नृत्यकला की सराहना इंद्र समेत सभी देवता किया करते थे। उर्वशी इतनी आकर्षक थी कि उसके रूप के कारण देवता, गंधर्व, और ऋषि सभी उसकी ओर आकृष्ट होते थे। उर्वशी को उसके सौंदर्य और नृत्य का गर्व था, और वह अपने नियमों और स्वतंत्रता के साथ स्वर्ग में निवास करती थी। एक दिन, जब वह गंधर्वों के साथ एक सुंदर उद्यान में विचरण कर रही थी, तभी उसकी दृष्टि अचानक एक मानव पर पड़ी—चंद्रवंशी राजकुमार पुरुरवा पर।
पुरुरवा, जो कि एक शक्तिशाली राजा था, अपने साहस और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध था। वह जितना वीर और पराक्रमी था, उतना ही ह्रदय में कोमल और प्रेममय था। उसके शौर्य और यश की चर्चा स्वर्गलोक में भी थी। कहते हैं कि पुरुरवा देवताओं के कार्यों में सहायक होते थे, इसलिए देवताओं का आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त था। जब उर्वशी ने पहली बार उसे देखा, तो उसकी आँखें पुरुरवा पर ठहर गईं। उसे महसूस हुआ कि यह कोई साधारण मनुष्य नहीं है।
इस प्रकार उनकी पहली मुलाकात हुई, और दोनों एक-दूसरे की ओर खिंचते चले गए। स्वर्गलोक में होते हुए भी उर्वशी का मन पुरुरवा की स्मृतियों में बसने लगा। उर्वशी के दिल में प्रेम का बीज अंकुरित हो चुका था। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह कैसा आकर्षण है जो उसे पुरुरवा की ओर खींच रहा है। एक दिन, उसने अपनी सहेलियों से यह बात साझा की। उसकी सहेलियाँ उसे कहने लगीं कि यह एक स्वाभाविक आकर्षण है, जो कभी-कभी अप्सराओं को पृथ्वी के राजाओं के प्रति हो जाता है, लेकिन उर्वशी जानती थी कि यह आकर्षण नहीं, बल्कि प्रेम था।
उधर पुरुरवा भी उर्वशी को अपनी स्मृतियों में संजोए हुए था। एक दिन जब पुरुरवा एक यज्ञ में भाग लेने इंद्रलोक गया, तो उर्वशी ने उससे अपनी भावनाओं का इज़हार किया। उसने कहा, “राजन, मैंने आपके रूप में, आपकी भव्यता में एक अद्वितीय आकर्षण देखा है, और मुझे अनुभव हुआ है कि यह प्रेम केवल एक नश्वर आकर्षण नहीं है।”
पुरुरवा ने भी अपनी भावनाएं प्रकट कीं और कहा, “उर्वशी, तुम्हारा सौंदर्य और कोमलता मेरे ह्रदय को स्पर्श करती है। तुम्हारे बिना अब मुझे अपने जीवन में कुछ अधूरा सा लगता है।”
उन दोनों ने एक-दूसरे से वादा किया कि वे एक-दूसरे के साथ रहेंगे, चाहे कुछ भी हो। लेकिन उर्वशी, जो स्वर्गलोक की अप्सरा थी, और पुरुरवा, जो पृथ्वी का एक साधारण राजा था, उनके प्रेम में कई कठिनाइयाँ थीं। देवताओं ने उर्वशी को चेतावनी दी कि एक नश्वर के साथ संबंध बनाना उसके लिए उचित नहीं है, क्योंकि एक अप्सरा का कार्य केवल स्वर्ग में नृत्य और देवताओं का मनोरंजन करना है।
लेकिन प्रेम की गहराई में डूब चुकी उर्वशी ने देवताओं की चेतावनी को नज़रअंदाज़ किया। उसने पुरुरवा के साथ पृथ्वी पर जाने का निर्णय लिया और दोनों का विवाह हुआ। उर्वशी ने पुरुरवा से एक शर्त रखी कि वह कभी भी बिना वस्त्रों के उसे नहीं देखेगा, अन्यथा वह उसे छोड़ कर स्वर्ग लौट जाएगी। पुरुरवा ने इस शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया और वे सुखपूर्वक जीवन बिताने लगे।
उनके प्रेम के कारण उनके राज्य में भी समृद्धि और शांति आई। दोनों एक-दूसरे के साथ समय बिताते, बातें करते, और हर क्षण को प्रेम से भरते। पुरुरवा और उर्वशी का प्रेम अद्वितीय था, और उनकी भव्यता और सौंदर्य का मेल देखने लायक था।
कई वर्षों तक दोनों ने सुखपूर्वक जीवन बिताया, लेकिन एक दिन देवताओं ने सोचा कि उर्वशी को स्वर्ग में वापस लाना चाहिए। उन्होंने एक चाल चली और रात्रि में गंधर्वों को भेजा। गंधर्वों ने योजनाबद्ध तरीके से पुरुरवा को बिना वस्त्रों के बाहर आने पर मजबूर किया। जैसे ही उसने उर्वशी को इस अवस्था में देखा, उसकी शर्त टूट गई। उसी क्षण उर्वशी को छोड़कर स्वर्ग वापस जाना पड़ा।
पुरुरवा का ह्रदय टूट चुका था। उर्वशी के बिना उसका जीवन जैसे सूना हो गया। वह उदास और अकेला रहने लगा। उसके जीवन में अब न वह पहले जैसी खुशी थी और न ही उत्साह। वह हर समय उर्वशी की स्मृतियों में डूबा रहता। वह उसे वापस पाने की आस में तप और साधना करने लगा। उर्वशी भी स्वर्ग में रहकर पुरुरवा को बहुत याद करती थी।
कुछ समय बाद, पुरुरवा ने उर्वशी को पाने के लिए देवताओं से प्रार्थना की। देवताओं ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उर्वशी को कुछ समय के लिए पृथ्वी पर आने की अनुमति दी। उर्वशी वापस आई और पुरुरवा को देखकर उसकी आँखों में आंसू आ गए।
इस बार दोनों ने अपने प्रेम को नए रूप में स्वीकार किया। उन्हें समझ में आ गया था कि उनके बीच प्रेम का बंधन अमर है, भले ही वे अलग-अलग लोकों के वासी हों। देवताओं की कृपा से पुरुरवा और उर्वशी को समय-समय पर मिलने का अवसर मिलता रहा, और उनका प्रेम इसी तरह पवित्र और अमर बना रहा।
सीख
यह प्रेम कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्रेम किसी भी परिस्थिति में अमर रहता है। चाहे दूरी कितनी भी हो, प्रेम का बंधन टूटता नहीं है। पुरुरवा और उर्वशी का प्रेम उस अमर प्रेम की मिसाल है, जो न समय की सीमा देखता है, न लोकों की। उनके प्रेम में एक अप्सरा और एक नश्वर के बीच का विभाजन मिट गया था, और उनका मिलन युगों-युगों तक याद रखा गया।
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