सबसे अधिक सुकुमार कौन? : विक्रम बेताल की आठवीं कहानी | Vikram Betal Eighth Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम विक्रम बेताल की आठवीं कहानी (Vikram Betal Ki Aathvi Kahani) शेयर कर रहे हैं। Vikram Betal Eighth Story In Hindi में बेताल रास्ता काटने के लिए राजा विक्रम को आठवीं कहानी सुनाता है। ये कहानी तीन ब्राह्मण पुत्रों की है, जिनमें से एक भोजन दक्ष, एक नारी दक्ष और एक शैय्या दक्ष था। तीनों में से सबसे अधिक योग्य कौन था? यह जानने के लिए पढ़िए बेताल पच्चीसी की आठवीं कहानी

Vikram Betal Ki Aathvi Kahani

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Vikram Betal Ki Aathvi Kahani
Vikram Betal Ki Aathvi Kahani

बहुत समय पहले की बात है। अंगदेश में ब्राह्मणों का एक गाँव था, जिसका नाम वटवृक्ष था। वह गाँव ब्राह्मणों को दान में मिला हुआ था। उस गाँव में एक बुद्धिमान अग्निहोत्री ब्राह्मण रहता था, जिसका नाम विष्णु स्वामी था। उसके तीन पुत्र थे। तीनों योग्य, बुद्धिमान और दक्ष थे।

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एक बार ब्राह्मण ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसके लिए उसे एक कछुए की आवश्यकता थी। उसने अपने तीनों पुत्रों को बुलाया और कहा, “पुत्रों इस यज्ञ के निमित्त मुझे एक कछुए की आवश्यकता है। शीघ्र जाओ और एक कछुआ लेकर आओ।”

पिता की आज्ञा पाकर तीनों भाई चल पड़े। एक लंबी यात्रा कर वे तीनों समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक कछुआ दिखाई दिया। कछुए को देखकर बड़ा भाई नाक-भौं सिकोड़ता हुआ बोला, “बंधुओं! तुम दोनों में से कोई इस कछुए को उठाकर पिताजी तक पहुँचा दो। मैं इसे नहीं उठा सकता। इसकी ये दुर्गंध मैं सहन नहीं कर सकता। मुझे इससे घृणा हो रही है।”

इस पर दोनों छोटे भाई बोले, “भ्राता! यदि आपको इस कच्छुए से घृणा हो रही है, तो हमें भी हो रही है। हम भी इसे नहीं उठा सकते।”

“यदि तुम लोगों ने ऐसे नहीं उठाया और पिताश्री तक नहीं पहुँचाया, तो उनका यज्ञ अपूर्ण रह जायेगा। ऐसे में जो पाप लगेगा, उसके तुम दोनों भागी बनोगे। इसलिए शीघ्र इस कछुए को उठाओ और पिताश्री के पास ले जाओ।”

“भ्राता! पाप के भागी मात्र हम दोनों नहीं बनेंगे। आप भी बनेंगे।” दोनों छोटे भाइयों ने कहा।

बड़े भाई बोला, “मैं एक दक्ष पुरुष हूँ। मुझे दुर्गंध से घृणा है। मैं इस दुर्गंध युक्त कछुए को कदापि नहीं उठा सकता।”

इस पर मंझला भाई बोला, “तो मैं भी कोई कम दक्ष नहीं। इसलिए मैं भी से नहीं उठा सकता।”

यह कहकर वे दोनों सबसे छोटे भाई को देखने लगे। छोटे भाई ने कहा, “आप लोग मुझे कुछ कम दक्ष न समझें। मैं भी एक दक्ष ब्राह्मण पुत्र हूँ और इस कछुए को नहीं छू सकता।'”

तीनों भाइयों में विवाद होने लगा। बहुत देर हो गई, किंतु कोई समाधान न निकला। अंतत: तीनों राज्य के राजा के पास पहुँचे और अपनी समस्या बताई।

समस्या सुनकर राजा बहुत चकित हुआ। फिर बोला, “आर्य! मैं आप तीनों की परीक्षा लूंगा और तय करूंगा कि आप तीनों में से सबसे दक्ष कौन है?”

तीनों भाई वहीं ठहर गये।

उनके लिए राज-रसोइये द्वारा भोजन परोसा गया। गर्मा-गर्म स्वादिष्ट भोजन देखकर दोनों छोटे भाई भोजन पर टूट पड़े। किंतु सबसे बड़ा भाई, जो भोजन दक्ष था, उसने भोजन को हाथ नहीं लगाया। यह देख राजा ने पूछा, “आर्य! आप भोजन क्यों नहीं कर रहे? क्या भोजन में कोई दोष है?”

“इस भोजन को मैं नहीं खा सकता। इन चांवलों में मुर्दे के धुएं की गंध है। इसे मेरे सामने से हटा दो।”

चकित राजा के तत्काल रसोइये को बुलाया और भोजन को हटवा दिया। इस संबंध में जानकारी जुटाने पर ज्ञात हुआ कि जिस खेत के ये चांवल है, उसके पास ही शमशान घाट है। वहाँ जलाये जाने वाले मुर्दों की गंध भोजन-दक्ष ब्राह्मण को चांवल में महसूस हुई थी। उसकी योग्यता देख राजा चकित भी हुआ और प्रसन्न भी। उसके लिए दूसरा भोजन मंगवाया गया।

जब तीनों भोजन कर चुके, तो उन्हें आराम करने अलग-अलग शयन कक्षों में भेजा गया।

उस राजमहल में एक अति रूपवती गणिका था, जिसके रूप पर राज्य के सभी पुरुष मुग्ध थे। उसे दूसरे भाई के कक्ष में भेजा गया, जो कि नारी-दक्ष था।

उस चंद्रमुखी गणिका द्वारा चंदन, कपूर जैसे कई उपटनों से श्रृंगार किया था। उसके तन से भीनी-भीनी महक आ रही थी। किंतु जैसे ही उसने कक्ष में प्रवेश किया, तो दूसरे भाई ने नाक-भौं सिकोड़ ली और बोला, “इसे मुझसे दूर ले जाओ, अन्यथा मैं मूर्छित हो जाऊंगा। इसके शरीर से बकरी के दूध की दुर्गंध आ रही गई।”

गणिका को तत्काल राजा के पास ले जाया गया। राजा ने उससे पूछा, तो गणिका बोली, “महाराज! बचपन माता की मृत्यु उपरांत मुझे बकरी का दूध पिलाकर पाला गया था।”

राजा दूसरे भाई की योग्यता से अति प्रभावित हुआ।

अब तीसरे भाई की बारी आई। वह शय्या दक्ष था। उसके कहे अनुसार ही उसे शैय्या प्रदान की गई थी। सात गद्दों पर मखमली चादर बिछाई गई और उस पर वह सोया। किंतु आधी रात ही बीती थी कि वह कराहते हुए जाग गया।

अनुचरों ने उससे कारण पूछा, तो वह बोला, “कोई वस्तु मेरी पीठ पर चुभ रही हैं।”

अनुचरों ने देखा कि उसकी पीठ पर वास्तव में किसी वस्तु का गहरा निशान बन गया था।

वे भागे-भागे राजा के पास पहुँचे और उन्हें पूरी बात बताई। राजा विस्मित हुआ कि सात गद्दे होने के बाद आर्य को क्या चुभ सकता है?

वह स्वयं अनुचरों के साथ उस कक्ष में गया और गद्दों का परीक्षण करने का आदेश दिया। सातों गद्दों का परीक्षण किया गया। छह गद्दों में तो कुछ न मिला। किंतु जब अंतिम गद्दे को हटाया गया, तो उसके नीचे एक केश दबा हुआ मिला। वही केश दूसरे भाई को गड़ रहा था और उसका दाग उसकी पीठ पर पड़ गया था।

राजा ने उसके सोने का दूसरा प्रबंध करवाया और अपने कक्ष में आ गया। वह तीनों की योग्यता देखकर चकित था। रात भर वह उन तीनों की योग्यताओं के बारे में सोचता रहा।

अगले दिन उसने तीनों को दरबार में बुलवाया और उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें हीरे जवाहरात, स्वर्ण मुद्रायें देकर सम्मानित किया और समुद्र से कछुवा निकालकर उसे उसने पिता के यज्ञ हेतु भिजवा दिया।

इतनी कहानी सुनकर बेताल ने विक्रम से पूछा, “बता राजन! उन तीनों में से सबसे योग्य और दक्ष कौन था? यदि उत्तर जानते हुए भी तूने नहीं बताया, तो तेरे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे।”

विक्रम बोला, “तीनों में शय्या-दक्ष ही अधिक योग्य और दक्ष था, क्योंकि उसकी योग्यता स्पष्ट थी और उसके पीठ पर पड़ा केश का दाग उसका प्रमाण था। अन्य दो की बातें तो कही-सुनी भी हो सकती है। हो सकता है, वे बातें उन्हें पहले से ही मालूम हो और उन्होंने वह राजा के सामने अपनी योग्यता दर्शाने के लिए प्रदर्शित की हो।”

विक्रम का उत्तर सुनकर बेताल बोला, “सही कहा तूने राजन। किंतु तू बोला और में चला।”

यह कहकर वह विक्रम कि पीठ से उड़ गया और फिर से जाकर मसान के पेड़ पर लटक गया। विक्रम उसके पीछे-पीछे मसान में गया और उसे पेड़ से उतारा। फिर से उसे अपनी पीठ पर लादकर वह चलने लगा। बेताल रास्ता काटने के लिए उसे फिर से नई कहानी सुनाने लगा।

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