Zen Katha

पैसे के साथ क्या करें जेन कथा | Zen story About Money In Hindi

पैसे के साथ क्या करें जेन कथा| What To Do With Money Zen story About Money In Hindi

हम सब जीवन में पैसे की तलाश में दौड़ते हैं—उसे कमाते हैं, बचाते हैं, खर्च करते हैं, और फिर खोने से डरते हैं। लेकिन क्या हमने कभी रुककर यह सोचा है कि पैसे का असली काम क्या है? क्या यह सिर्फ सुख-सुविधा का साधन है, या कोई और गहरा अर्थ भी है?

ज़ेन परंपरा में, पैसे की बात भी उतनी ही सच्चाई और सादगी से होती है, जितनी आत्मा की। यह Zen story about money in Hindi एक ऐसे ज़ेन गुरु की है, जो अपने शिष्य को पैसे का मर्म केवल एक घटना से समझा देते हैं — बिना उपदेश, बिना भाषण।

What To Do With Money Zen story In Hindi

What To Do With Money Zen story In Hindi

बहुत समय पहले की बात है। जापान के एक छोटे से गाँव में एक प्रसिद्ध ज़ेन मास्टर रहते थे — गेट्सु आन।

लोग दूर-दूर से उनके पास जीवन के सवाल लेकर आते थे—कुछ मोक्ष की तलाश में, कुछ शांति की।

लेकिन एक दिन एक बेहद अलग आगंतुक उनके पास आया।

वह था रायोशी — एक धनाढ्य व्यापारी।

शानदार रेशमी कपड़े पहने, उसकी अंगुलियों में सोने की अंगूठियाँ थीं।

वह एक भारी थैले के साथ मास्टर के आश्रम में पहुँचा।

गेट्सु आन उस समय बाग़ में पौधों को पानी दे रहे थे।

रायोशी ने झुककर कहा, “गुरुदेव, मैं आपके लिए कुछ दान लाया हूँ।”

गेट्सु आन ने उसकी ओर देखा, मुस्कुराए, लेकिन कुछ नहीं बोले।

रायोशी ने वह थैला ज़मीन पर रखा — उसमें चाँदी और सोने के सिक्के भरे थे।

“यह सब आपके मठ के लिए है… आप जैसे तपस्वियों के लिए,” उसने कहा।

गेट्सु आन ने थैले को एक नज़र देखा, फिर पौधों की ओर ध्यान वापस ले लिया।

रायोशी थोड़ा परेशान हुआ।

“गुरुदेव, मैंने अपना वर्षों का अर्जित धन आपके चरणों में रखा है… क्या आप यह नहीं पूछेंगे कि मैं यह क्यों लाया?”

गेट्सु आन ने बड़ी शांति से कहा—

“मैं पूछ सकता हूँ, पर क्या तुमने ख़ुद से कभी पूछा है — तुम इस पैसे के साथ करना क्या चाहते हो?”

रायोशी चुप हो गया।

गेट्सु आन बोले, “क्या तुमने यह पैसे इस उम्मीद में लाए हो कि इससे पुण्य मिलेगा? या इसलिए कि तुम्हारा मन हल्का हो?”

रायोशी ने धीरे से कहा— “मैं… मैं नहीं जानता। शायद इसलिए कि मेरे पास बहुत है… और मैं चाहता था कि कुछ हिस्सा अच्छे काम में लगे।”

गेट्सु आन मुस्कराए।

“तब यह जान लो—पैसे का मूल्य उसके संग्रह में नहीं, उसके बहाव में है। वह नदी की तरह है—रुक जाए तो सड़ने लगता है।”

फिर उन्होंने वह थैला उठाया, और उसे वहीं पास में रखकर बोले—

“क्या तुम जानते हो, इस मठ को इन पैसों की आवश्यकता नहीं है। हम जो भी खाते हैं, वही उगाते हैं। जो पहनते हैं, वह खुद बुनते हैं। पर अगर यह धन किसी भूखे को भोजन दे, किसी बच्चे को शिक्षा, या किसी रोगी को दवा — तब यह वास्तव में धन कहलाएगा।”

रायोशी अब असहज हो उठा।

उसने कहा, “गुरुदेव, मैं व्यापार करता हूँ। कभी-कभी बहुत कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। मैं यह सब पैसा अपने संघर्ष से लाया हूँ। इसे यूँ ही दान में देना आसान नहीं…”

गेट्सु आन ने उसकी ओर देखा, और कहा—

“यही तो समझना है। पैसा एक माध्यम है, लेकिन उसके साथ जुड़ा हुआ तुम्हारा लगाव, तुम्हें बाँध देता है। यही बंधन, तुम्हें उसकी शक्ति से वंचित कर देता है।”

उन्होंने एक छोटे से लकड़ी के बक्से से तीन सिक्के निकाले।

“ये तीन सिक्के मैंने पिछले तीन महीनों में लोगों से मिले दान से बचाए थे,” उन्होंने कहा।

फिर वे रायोशी को लेकर गाँव के उस कोने में गए जहाँ एक विधवा अपने बच्चों के साथ रहती थी।

गेट्सु आन ने तीनों सिक्के उस स्त्री को दिए, और कहा—

“अब अपने बेटे की दवा खरीद लेना, और बेटी की स्कूल फीस भर देना।”

उस स्त्री की आँखों में आँसू थे।

गेट्सु आन ने पीछे देखा — रायोशी वहाँ स्तब्ध खड़ा था।

उसके होंठ हिले, लेकिन आवाज़ नहीं निकली।

अंततः वह थैला उठाकर गेट्सु आन के सामने फिर से रखता है।

“अब मैं समझा,” उसने कहा। “अब आप इस धन का उपयोग करें… जैसे आप चाहें।”

गेट्सु आन ने थैले को उसी स्त्री की ओर बढ़ा दिया।

“इसे गाँव के लोगों में बाँट दो… और सीखो कि असली सम्पत्ति केवल संग्रह नहीं, सेवा है।”

रायोशी के चेहरे पर हल्कापन था — जो शायद वर्षों से गायब था।

सीख (Moral Of The Story)

पैसे का अर्थ उसका आकार नहीं, उसका उद्देश्य है।

ज़ेन हमें सिखाता है कि धन कोई पाप नहीं है। पर जब वह अहंकार, डर, या लगाव से जुड़ जाता है, तब वह बोझ बन जाता है।

सच्चा ज़ेन दृष्टिकोण कहता है:

पैसा एक साधन है, न कि लक्ष्य।

उसका सबसे श्रेष्ठ उपयोग तब होता है जब वह किसी और की आवश्यकता बन जाए, न कि केवल हमारी सुविधा।

जैसे जल बहता रहे तो वह जीवन देता है, वैसे ही पैसा बहता रहे — सेवा में, सहारे में, सच्चे उपयोग में — तब वह धन कहलाता है।

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