जारूल महाराष्ट्र की लोक कथा | Jarul Maharashtra Ki Lok Katha

जारूल महाराष्ट्र की लोक कथा (Jarul Maharashtra Ki Lok Katha) Jarul Maharashtra Folk Tale In Hindi 

जारूल महाराष्ट्र की एक प्राचीन लोक कथा है, जो बलिदान, प्रेम और विश्वास की महत्ता को दर्शाती है। यह कथा कुछ इस प्रकार है:

Jarul Maharashtra Ki Lok Katha

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Jarul Maharashtra Ki Lok Katha

बहुत समय पहले महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में जारूल नाम का एक किसान रहता था। जारूल बहुत ही ईमानदार, मेहनती और दयालु व्यक्ति था। वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करता था। उसके पास एक छोटा सा खेत था, जहाँ वह दिन-रात मेहनत करके खेती करता था।

जारूल का खेत गाँव के पास ही स्थित एक पहाड़ी के नीचे था। पहाड़ी के ऊपर एक प्राचीन मंदिर था, जहाँ गाँव के लोग पूजा करने जाते थे। मंदिर के पास ही एक पवित्र कुंड था, जिसमें पहाड़ी से बहता हुआ पानी आता था। यह कुंड गाँववालों के लिए पानी का मुख्य स्रोत था।

एक दिन गाँव में अचानक पानी की कमी हो गई। पहाड़ी से आने वाला पानी धीरे-धीरे सूखने लगा और कुंड में पानी का स्तर कम हो गया। गाँव के लोग बहुत चिंतित हो गए और उन्होंने सोचा कि अगर पानी की कमी ऐसे ही बनी रही तो उनकी फसलें और पशु मर जाएंगे।

गाँव के बुजुर्गों ने मिलकर यह निर्णय लिया कि उन्हें पहाड़ी के ऊपर जाकर पानी के स्रोत का पता लगाना चाहिए। जारूल को उनकी चिंता देखकर बहुत दुःख हुआ और उसने स्वयं पानी के स्रोत की खोज करने का निश्चय किया। वह पहाड़ी पर चढ़ा और पानी के स्रोत तक पहुंचा। उसने देखा कि पानी का स्रोत पत्थरों और चट्टानों के बीच कहीं खो गया है।

जारूल ने पूरी लगन और मेहनत से पत्थरों को हटाना शुरू किया। उसने कई दिन और रातें मेहनत की, लेकिन उसे पानी का स्रोत नहीं मिल सका। एक दिन थकान और भूख से बेहाल होकर जारूल ने भगवान से प्रार्थना की, “हे भगवान, कृपया मेरी मदद करें। मेरे गाँव के लोग प्यासे हैं और उन्हें पानी की सख्त जरूरत है।”

अचानक जारूल को एक दिव्य आवाज सुनाई दी, “जारूल, अगर तुम अपने जीवन का बलिदान करोगे, तो पानी का स्रोत पुनः जीवित हो जाएगा और तुम्हारे गाँव के लोगों की प्यास बुझ जाएगी।” जारूल ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने जीवन का बलिदान देने का निश्चय किया।

जारूल ने अपने अंतिम प्रार्थना की और फिर अपनी जान देकर पहाड़ी के उस हिस्से को हटा दिया, जहाँ पानी का स्रोत बंद हो गया था। उसके बलिदान से पहाड़ी से पानी की एक तेज धारा बहने लगी और कुंड फिर से पानी से भर गया। गाँव के लोगों की प्यास बुझ गई और उनकी फसलें और पशु बच गए।

गाँववाले जारूल के इस बलिदान को कभी नहीं भूल सके। उन्होंने पहाड़ी के नीचे एक स्मारक बनाया और उसे जारूल का नाम दिया। आज भी गाँव के लोग जारूल की कहानी सुनते हैं और उसके बलिदान को याद करते हैं। जारूल की यह कथा हमें सिखाती है कि निस्वार्थ प्रेम और बलिदान की महत्ता क्या होती है।

सीख

इस कहानी का संदेश है कि निस्वार्थ प्रेम, बलिदान और समर्पण से हम दूसरों की भलाई कर सकते हैं। जारूल ने अपने गाँव के लोगों की भलाई के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया और उसकी यह कहानी सदियों तक लोगों को प्रेरित करती रहेगी।

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