भगवान पर भरोसा कहानी | Bhagwan Par Bharosa Kahani

भगवान पर भरोसा कहानी (Bhagwan Par Bharosa Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है, जो भगवान पर भरोसा करना सिखाती है।

Bhagwan Par Bharosa Kahani

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Bhagwan Par Bharosa Kahani

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एक समय की बात है। एक छोटे से गाँव में एक गरीब किसान रहता था जिसका नाम राघव था। राघव मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था, लेकिन उसके जीवन में कई मुश्किलें थीं। वह और उसकी पत्नी, सुमन, दिन-रात खेतों में मेहनत करते थे ताकि वे अपने बच्चों को बेहतर जीवन दे सकें। उनके दो बच्चे थे, बेटा रोहित और बेटी आर्या, जो दोनों ही स्कूल जाते थे और पढ़ाई में बहुत अच्छे थे।

राघव का खेत बहुत छोटा था और फसल भी बहुत कम होती थी। फिर भी, वह और सुमन हार नहीं मानते थे। वे हमेशा अपने बच्चों को सिखाते थे कि ईश्वर पर भरोसा रखो और ईमानदारी से मेहनत करते रहो। मेहनत और ईमानदारी से काम करते वालों की ईश्वर किसी न किसी रूप में मदद अवश्य करता है।

एक दिन गाँव में भयंकर तूफान आया जिसने राघव के खेत को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। अब उनके पास खाने के लिए भी अनाज नहीं बचा था। यह देखकर राघव और सुमन बहुत दुखी हुए, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों के सामने हार नहीं मानी।

एक दिन जब राघव अपने टूटे हुए खेत में बैठे थे, एक अजनबी उनके पास आया। वह एक बुजुर्ग व्यक्ति था, जिसने साफ-सुथरे कपड़े पहने थे और उसके चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कान थी। उसने राघव से पूछा, “क्या हुआ, भाई? तुम इतने उदास क्यों हो?”

राघव ने अपनी स्थिति उस बुजुर्ग को बताई। बुजुर्ग व्यक्ति ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “मेरे पास कुछ बीज हैं। ये साधारण बीज नहीं हैं, ये जादुई बीज हैं। इन्हें अपने खेत में बोओ और देखो क्या होता है।”

राघव ने थोड़ी संकोच के साथ उन बीजों को लिया और अपने खेत में बो दिया। कुछ ही दिनों में, खेत में हरी-भरी फसल लहलहाने लगी। राघव और सुमन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

उस साल राघव की फसल बहुत अच्छी हुई। उसने अनाज बेचकर काफी पैसा कमाया और अपने परिवार की सभी जरूरतें पूरी कीं। अब उनके पास न केवल खाने के लिए पर्याप्त अनाज था, बल्कि वे अपने बच्चों की शिक्षा और भविष्य के लिए भी पैसे जमा कर पा रहे थे। रोहित और आर्या ने भी अपने माता-पिता की मेहनत को देखकर और अधिक मेहनत करने का संकल्प लिया।

कुछ महीनों बाद, राघव ने सोचा कि वह उस बुजुर्ग अजनबी को धन्यवाद कहेगा, जिसने उसकी मदद की थी। वह उस बुजुर्ग को ढूंढने के लिए गाँव भर में घूमता रहा, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। गाँव के लोगों ने भी बताया कि उन्होंने कभी ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं देखा। यह सुनकर राघव को समझ में आया कि वह बुजुर्ग व्यक्ति शायद कोई साधारण इंसान नहीं था, बल्कि ईश्वर का कोई रूप था जिसने उसकी मदद की थी।

राघव ने उस दिन सीखा कि जब हम सच्चे दिल से मेहनत और ईमानदारी से काम करते हैं, तो ईश्वर भी हमारी मदद के लिए किसी न किसी रूप में आते हैं। उसने अपने बच्चों को भी यही सिखाया कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए और सच्चे दिल से मेहनत करनी चाहिए।

राघव और सुमन का परिवार अब खुशहाल था। रोहित और आर्या ने अपनी पढ़ाई पूरी की और अच्छे नौकरियों में लगे। वे अपने माता-पिता का गर्व बने। राघव ने अपने जीवन की सबसे बड़ी सीख को कभी नहीं भूला और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था।

 नैतिक शिक्षा

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कठिनाइयों के बावजूद हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। सच्ची मेहनत, ईमानदारी और विश्वास से हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं। जब हम सच्चे दिल से मेहनत करते हैं, तो ईश्वर भी हमारी मदद के लिए किसी न किसी रूप में आते हैं।

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