मनुष्य की कीमत कहानी (Manushya Ki Keemat Ki Kahani) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। पढ़िए मनुष्य का मोल बताती कहानी :
Manushya Ki Keemat Kahani
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एक शहर में एक लोहार रहता था। उसका एक सोलह सत्रह बरस का बेटा था। दोनों साथ मिलकर दुकान में काम करते थे। एक दिन काम करते-करते बेटे ने अपने पिता से पूछा, “पिताजी मनुष्य की कीमत क्या है?”
बेटे का यह सवाल सुनकर पिता पहले चकित हुआ, फिर शांत भाव से सोचते हुए बोला, “बेटा! मनुष्य का तो कोई मोल नहीं, वह तो अनमोल है। उसकी कीमत कैसे आंकोगे?”
बेटा पिता के इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने फिर सवाल किया, “पिताजी! क्या सभी मनुष्य अनमोल हैं?”
“हां बेटा!” पिता ने उत्तर दिया।
“यदि ऐसा है, तो सभी मनुष्य बराबर क्यों नहीं। कोई गरीब है, तो कोई अमीर! कोई मनुष्य समाज में अधिक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, तो कोई अपमान का घूंट पीता है। ऐसा क्यों?” बेटे ने पूछा।
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पिता ने बेटे का सवाल सुनकर कहा, “बेटा! मेरे हाथ में ये लोहे की छड़ देख रहे हो। यदि मैं इस बाजार जाकर बेचूं, तो इसकी कीमत क्या होगी?”
“यही कोई डेढ़ दो सौ रुपए!”
“और यदि मैं इससे छोटी छोटी कीलें बनाकर उनका सौ – सौ का पैक बाजार में बेचूं, तब उनकी कीमत क्या होगी?”
“1000 रुपए के आसपास!”
“और यदि मैं इससे लोहे के स्प्रिंग बनाकर बेचूं, तब उनकी कीमत क्या होगी?”
“अलग अलग तरह के स्प्रिंग की कीमत अलग अलग होगी। मगर कीलों से काफ़ी ज्यादा।”
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“बिलकुल ठीक। इसी तरह इस लोहे की छड़ से मैं अलग अलग वस्तुएं बनाकर बेचूं, तो उन सबकी कीमत अलग अलग होगी। यही बात मनुष्यों पर भी लागू होती है। मनुष्य जो भी रहा हो, वह जीवन में जैसी शिक्षा प्राप्त करता है, जैसे गुणों का विकास करता है और स्वयं को उनके अनुसार ढाल कर जो बन जाता है, वही उसकी कीमत होती है। इसलिए तुम समाज में अमीर गरीब मनुष्यों को देखते हो; कुछ को अधिक सम्मानित देखते हो, तो कुछ को कम। यदि तुम्हें अपनी कीमत बढ़ानी है, तो खुद के गुणों को निखारो और सबकी दृष्टि में अमूल्य बन जाओ।”
सीख
आपके गुण ही आपको मोल निर्धारित करते हैं। इसलिए अपने गुणों को निखारो।
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