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गणगौर पूजा की कहानी | Gangaur Puja Ki Kahani 

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गणगौर व्रत प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है। गण का अर्थ है शिव और गौर का अर्थ है पर्वती। इस दिन विवाहित महिलाएं गणगौर माता यानी माता पार्वती की पूजा करती हैं और पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। ये व्रत वे अपने पतियों से छुपाकर रखती हैं। इस दिन को गौरी तृतीया (Gauri Tritiya) भी कहा जाता है। 

पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि गणगौर व्रत करने से विवाहित महिलाओं के सुहाग की रक्षा होती है। साथ ही पति पत्नी के बीच प्रेम में बढ़ोत्तरी होती है। गणगौर पूजा की कहानी भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी हुई है।

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Gangaur Puja Ki Kahani

Gangaur Puja Ki Kahani

गणगौर पूजा की कहानी | Gangaur Puja Ki Kahani 

गणगौर व्रत कथा से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को माता पार्वती भगवान शिव के साथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकली। उनके साथ नारद मुनि भी थे। भ्रमण करते करते वे एक गांव में पहुंचे। यह बात पूरे गांव में फैल गई।

यह पता चलने पर कि गांव की धरती पर भगवान शिव और माता पार्वती के शुभ कदम पड़े हैं, गांव की निर्धन महिलाएं उनके दर्शन के लिए पहुंचने लगी। उन्होंने उनकी सेवा में फल फूल और जल अर्पित किया। 

उनकी भक्ति और सेवाभाव से भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रभावित हुए। माता पार्वती ने सुहाग रस उन पर छिड़क कर आशीर्वाद दिया कि उनका सुहाग सदा बना रहेगा। गांव की महिलाएं प्रसन्न होकर वहां से लौटीं।

जब गांव की धनी महिलाओं को ये बात पता चली, तो वे ना ना प्रकार के पकवानों के साथ भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंची। उनकी सेवा के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा, “अब तुम इन महिलाओं को क्या दोगी, सुहाग जल द्वारा सारा सुहाग रस तो तुमने निर्धन महिलाओं को दे दिया।”

माता पार्वती बोली, “उन महिलाओं को मैंने सुहाग जल द्वारा सुहाग अटल रहने का आशीर्वाद दिया था। इन महिलाओं को मैं अपने रक्त द्वारा सुहाग का आशीर्वाद दूंगी।”

माता पार्वती ने अपनी उंगली चीरकर उससे बहने वाला रक्त उन धनी महिलाओं पर छिड़क दिया। जिन महिलाओं पर रक्त की बूंद गिरी, वे सुहाग का आशीर्वाद पाकर लौटी।

इस प्रकार निर्धन और धनी दोनों महिलाओं को चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि पर माता पार्वती ने सुहाग बांटा।

इसके बाद माता पार्वती स्नान के लिए गांव की एक नदी पर गईं। वहां स्नान के बाद उन्होंने नदी किनारे बालू से एक शिवलिंग तैयार किया और उसकी पूजा प्रदक्षिणा की। 

भगवान शिव शिवलिंग पर प्रकट हुए और माता पार्वती को आशीर्वाद देकर बोले, “जो भी सुहागन महिलाएं चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन शिव और गौरी पूजा संपन्न करेगी, वे अटल सुहाग की प्राप्ति करेंगी।”

बहुत देर तक माता पार्वती शिवलिंग की पूजा अर्चना करती रहीं। फिर पूजा भगवान शिव के पास लौट आईं। उनकी प्रतीक्षा कर रहे भगवान शिव ने इतनी देर से आने का कारण पूछा, तो माता पार्वती ने कहा कि उन्हें नदी तट पर उनके भाई और भावज मिल गए थे। उन्होंने उन्हें दूध भात खिलाया। इसलिए देर हो गई।

भगवान शिव माता पार्वती की इस बात पर मुस्कुराने लगे। वे समझ गए थे कि माता पार्वती उन्हें बहला रही हैं। उन्होंने उनसे कहा कि वे भी उनके भाई और भावज से मिलना चाहते हैं और दूध भात खाना चाहते हैं। वे उन्हें अपने भाई और भावज के पास ले चलें।

माता पार्वती अब क्या करती? उन्होंने तो भगवान शिव से झूठ कहा था। उन्हें भगवान शिव और नारद मुनि के साथ नदी की ओर जाना पड़ा। जाते जाते वे मन ही मन प्रार्थना कर रही थीं कि उनकी बातों की लाज रह जाए।

जब वे नदी किनारे पहुंचे, तो उन्हें वहां एक भवन दिखाई पड़ा। वे भवन में गए, तो वहां माता पार्वती के भाई और भावज मिले। उनसे भेंट कर भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए। उनके साथ बातें करते समय का पता ही नहीं चला। काफी समय हो जाने के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव से कैलाश पर्वत चलने को कहा। भगवान शिव वहां कुछ समय और रहना चाहते थे। किंतु माता पार्वती कैलाश चलने की जिद्द करने लगी। भगवान शिव के न मानने पर वे स्वयं को कैलाश पर्वत जाने के लिए निकल पड़ीं। विवश होकर भगवान शिव को भी उनके पीछे जाना पड़ा। नारद मुनि भी उनके साथ ही थे।

आधे रास्ते पहुंचने पर भगवान शिव ने कहा कि वे अपनी माला तो भाई और भावज के भवन में ही भूल गए। नारद मुनि उनकी माला लेने नदी तट पर लौट गए। 

जब नारद मुनि नदी के तट पर पहुंचे, तो चकित रह गए। वहां कोई भवन नहीं था, न ही माता पार्वती के भाई और भावज थे। भगवान शिव की माला एक पेड़ पर लटकी हुई थी। वे माला लेकर भगवान शिव और माता पार्वती के पास लौट आए और बोले –

“कैसी माया थी प्रभु, नदी तट पर न कोई भवन था, न ही माता के भाई और भावज? माला तो एक पेड़ पर टंगी हुई थी।”

भगवान शिव मुस्कुराते हुए बोले, “सब देवी पार्वती की माया है।”

इस पर देवी पार्वती बोली, “ये सब शिवजी की माया है।”

नारद मुनि ने हाथ जोड़ लिए और कहा, “आप दोनों की माया आप दोनों ही जानें। जो भी आपकी पूजा भक्ति भाव से करेगा, उनके बीच आपके जैसा प्रेम सदैव बना रहेगा।”

उस दिन से चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन अटल सुहाग की प्राप्ति के लिए विवाहित महिलाएं गणगौर व्रत रखती हैं। 

गणगौर पूजा का महत्व | Importance Of Gangaur Puja In Hindi 

गणगौर पूजा भारत का एक लोकप्रिय पर्व है, जो राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तरी प्रांतों में मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं और कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर गणगौर माता अर्थात माता पार्वती की पूजा करती हैं।

महिलाओं के लिए यह पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन जो कन्याएं व्रत रखकर गणगौर पूजा करती हैं, उन्हें उनका मनपसंद वर प्राप्त होता है और महिलाएं द्वारा यह पूजा करने पर उनका सुहाग बना रहता है और पति पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है। 16 दिन रखने वाले इस व्रत में गौर तैयार कर उसकी पूजा की जाती है और व्रत पति से छुपा कर किया जाता है। गणगौर व्रत पूजा द्वारा स्त्रियां सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त करती हैं।

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