मुल्ला नसरुद्दीन की 15 कहानियाँ | Mulla Nasruddin Ki 15 Kahaniyan

Mulla Nasruddin Ki Kahaniyan

Mulla Nasruddin Ki Kahaniyan

Mulla Nasruddin Ki Kahaniyan

1 :  पेड़ पर चढ़ा आदमी

एक दिन एक राहगीर मुल्ला नसरुद्दीन के गाँव आया. दिन भर गाँव में इधर-उधर घूमते हुए उसे भूख लग आई, तो वह एक बगीचे में घुस गया.

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वहाँ ना-ना प्रकार के फ़लों के पेड़ थे, जिसे देखकर उसने मुँह में पानी आ गया. वह झटपट एक पेड़ पर चढ़ा और फ़ल तोड़कर खाने लगा.

उसने जी भर फ़ल खाए. लेकिन, जब पेड़ से उतरने की बारी आई, तो उसकी हालत पतली हो गई.

फलों के लोभ में वह पेड़ पर चढ़ तो गया था, लेकिन उसे पेड़ से उतरना नहीं आता था. डर के मारे वह वहीं बैठा रहा और मदद का इंतज़ार करने लगा. कुछ देर में बगीचे का मालिक वहाँ आयाया.

राहगीर ने उससे पेड़ से उतरने में मदद मांगी. अपने बगीचे में चोरी से घुसकर फ़ल खाने पर पहले तो बगीचे का मालिक बहुत नाराज़ हुआ और राहगीर पर बहुत चिल्लाया. फ़िर उसे उस पर दया आ गई और वह कुछ लोगों को बुला लाया.

लेकिन, किसी को समझ नहीं आया कि राहगीर को पेड़ से उतारे कैसे? सब वहीं खड़े होकर उसे उतारने का उपाय सोचने लगे. तभी टहलता हुआ मुल्ला नसरुद्दीन भी वहाँ आ गया.

एक पेड़ के नीचे लोगों को जमघट देख वह उत्सुकतावश वहाँ पहुँचा और पूछने लगा, “क्या बात है? आप लोगों ने यहाँ भीड़ क्यों लगा रखी है?”

बगीचे के मालिक ने मुल्ला को सारा माज़रा बताया. तब मुल्ला मुस्कुराते हुए बोला, “अरे, इतनी सी बात है. मैं अभी चुटकियों में इसे पेड़ से उतारे देता हूँ. ज़रा एक रस्सी तो मंगवाना.”

बगीचे के मालिक ने बिना देर किये एक रस्सी मंगवा ली. मुल्ला ने रस्सी के एक छोर पर गांठ लगाईं और उसे पेड़ पर चढ़े राहगीर की ओर फेंकते हुए कहा, “इस रस्सी को अपनी कमर में कसकर बांध लो.”

एक-दो प्रयासों के बाद राहगीर ने रस्सी पकड़ ली और उसे अपनी कमर पर बांध लिया.

मुल्ला ने तसल्ली करने के लिए उससे पूछा, “क्यों भाई रस्सी ठीक से बांध ली ना?”

“हाँ हाँ, मैंने रस्सी अपने कमर पर एकदम कसकर बांध ली गई.” राहगीर ने जवाब दिया.

इतना सुनना था कि मुल्ला ने एक झटके में रस्सी खींच दी और राहगीर धड़ाम से नीचे आ गिरा. सभी लोग हक्के-बक्के रह गए. बगीचे का मालिक बोला, “अरे ये कौन सा तरीका है किसी आदमी को पेड़ से नीचे उतारने का?”

मुल्ला बड़ी ही शांति से बोला, “इसी तरीके से एक बार मेरी भी जान बचाई गई थी. इसलिए तो मैंने यह तरीका अपनाया.”

“कब बचाई गई थी तुम्हारी जान?” इस बार जमीन पर पड़ा राहगीर कराहते हुए बोला.

“जब मैं कुएं में गिर पड़ा था.” कहकर मुल्ला वहाँ से चलता बना.


2: आलसी की दावत 

मुल्ला नसरुद्दीन के गाँव में एक आलसी आदमी रहता था. वह आदमी काम तो कुछ नहीं करता, बस हर समय इस प्रयास में रहता कि किसी तरह दूसरे से अपना काम करवा ले. इसके लिए वह अक्सर लोगों के पीछे पड़ जाया करता था.

लोग भी उसे समझने लगे थे. इसलिए उसे देखते ही कन्नी काट लेते थे. लेकिन फिर भी आलसी आदमी अपनी आदत से बाज़ नहीं आता था. 

मुल्ला नसरुद्दीन ने भी लोगों से आलसी आदमी के बारे में सुन रखा था और उसकी आलस की आदत से वाकिफ़ हो चुका था. लोग अक्सर मुल्ला से गुज़ारिश करते थे कि उसे को सबक सिखायें.

मुल्ला भी उसे सबक सिखाने की फ़िराक में था. लेकिन बद्किस्माती से उसे ऐसा मौका मिल नहीं पा रहा था.

किस्मत से एक दिन मुल्ला का आलसी आदमी से सामना हो गया. मुल्ला ने उसका हाल-चाल पूछा, सलीके से बात की और कहा, “दोस्त! कभी खाने पर घर आओ.”

“तो क्या इसे मैं दावत का निमंत्रण समझूं?” आलसी आदमी बोला.

“हाँ…हाँ…बिल्कुल. ऐसा करो. कल शाम मेरे घर दावत पर आ जाओ.” मुल्ला बोला.

आलसी आदमी ख़ुश हो गया. ज़िन्दगी में पहली बार उसे किसी ने दावत पर बुलाया था. वरना, तो सब उससे कन्नी काटा करते थे.

मुल्ला से विदा लेने के बाद अपने घर जाकर भी वह दावत के बारे में ही सोचता रहा. अगली सुबह भी उसके दिमाग में कई तरह के पकवान नाच रहे थे. उसने पूरे दिन कुछ नहीं खाया, ताकि शाम को मुल्ला की दावत में डटकर खा सके.

शाम को वह तैयार होकर मुल्ला के घर पहुँच गया. मुल्ला के घर के बाहर खड़े होकर वह चिल्लाया, “मुल्ला, मैं आ गया हूँ.”

मुल्ला घर से बाहर आया, तो आलसी आदमी बोला, “खाने के पहले हाथ धो लेता हूँ. ज़रा पानी ले आओ.”

मुल्ला पानी ले आया और उसके हाथ पर पानी डालता हुआ कहने लगा, “माफ़ करना भाई. आज मैं तुम्हें दावत नहीं दे पाऊंगा.”

“क्यों क्या हुआ?” आलसी आदमी ने चौंककर पूछा.

“सामान तो तैयार है. पर एक चीज़ की कमी है.” मुल्ला ने बताया.

“कौन सी चीज़ की?” आलसी आदमी ने पूछा.

“काम करने वाले दो हाथ की.” मुल्ला मुस्कुराते हुए बोला.

आलसी आदमी सुबह का भूखा था. उसके पेट में चूहे कूद रहे थे. सुबह से उसने तरह-तरह के पकवानों के सपने देखे थे, सब मिट्टी में मिल चुके थे.

वह समझ गया कि मुल्ला ने उसे सबक सिखाने के लिए ऐसा किया है. उसने गुस्से से मुल्ला को देखा और चलता बना. उसके बाद वह जब भी मुल्ला को देखता, भाग जाता

3: अनोखा नुस्खा 

मुल्ला नसरुद्दीन एक अच्छा हक़ीम भी था. गाँव के लोग अक्सर अपने मर्ज़ का इलाज कराने उसके पास आया करते थे.

एक बार एक मोटा सेठ उसके पास आया और बोला, “मुल्ला! मैं अपने मोटापे से बड़ा परेशान हूँ. मेरा पूरा शरीर चर्बी से लद गया है. मुझे अपना वजन घटाना है. क्या तुम ऐसा कुछ कर सकते हो कि मेरे शरीर पर कोई चर्बी ही न रहे और मैं दुबला-पतला हो जाऊं?”

“ज़रूर कर सकता हूँ सेठ जी.” मुल्ला अपनी नज़रों से सेठ के शरीर का मुआइना करते हुए बोला.

सेठ ख़ुश होकर बोला, “यदि तुम ऐसा कर दो, तो मैं तुम्हें मुँह-मांगा इनाम दूंगा. लेकिन, मेरी एक शर्त तुम्हें माननी होगी. बोलो तैयार हो?”

“सेठ जी पहले शर्त तो बताओ?” मुल्ला बोला.

“शर्त ये है कि अपना वजन घटाने के लिए मैं कोई दवाई नहीं खाऊंगा. तुम दवाई के अलावा कोई और नुस्खा आज़मा सकते हो. मुझे कोई आपत्ति नहीं है. बस तुम्हें किसी भी तरह मेरा मोटापा कम करना है.”

“ठीक है सेठ जी.” मुल्ला बोला, “मैं इस कागज़ में एक नुस्का लिख रहा हूँ. इसे घर जाकर पढ़ लेना.”

मुल्ला ने कागज़ पर एक नुस्खा लिखा और उसे मोड़कर सेठ को थमा दिया.

घर जाकर सेठ ने जब कागज़ खोला, तो उसमें लिखा था – ‘आप १५ दिन में मर जायेंगे.’

ये पढ़ने के बाद सेठ के होश उड़ गए. उसका दिमाग काम करना बंद हो गया. उस दिन के बाद से मौत के डर से

उसका खाना-पीना छूट गया. अब वह दिन भर पलंग पर पड़ा रहता और अपनी मौत के बारे में सोचता रहता.

बिना खाए-पिए पड़े रहने के कारण १५ दिन में उसके शरीर की सारी चर्बी गायब हो गई. शरीर के नाम पर वह कंकाल मात्र रह गया.

१५वें दिन जब उसके देखा कि वह तो ज़िन्दा है, तो उसे मुल्ला पर बहुत गुस्सा आया.

वह जैसे-तैसे मुल्ला के घर पहुँचा और मरियल आवाज़ में चिल्लाया, “मुल्ला…मुल्ला बाहर निकल.”

मुल्ला बाहर आया और सेठ को देख मुस्कुराते हुए बोला, “अरे वाह सेठजी, मेरा नुस्खा काम कर गया. आपके शरीर की तो सारी चर्बी गायब हो गई. अब कोई नहीं कह सकता कि आप मोटे हैं. लाइए मेरा इनाम.”

सेठ मुल्ला को देखता रह गया.


4 : सेठ का आदेश 

यह वाक़या मुल्ला नसरुद्दीन के बचपन का है. घर की माली हालत ठीक न होने के कारण छोटी उम्र से ही वह इधर-उधर काम किया करता था.

उन दिनों वह गाँव के एक सेठ के घर साफ़-सफ़ाई का काम किया करता था. बदले में सेठ उसे भोजन, कपड़ा तो दे देता, लेकिन जहाँ तक वेतन की बात थी, तो वो साल खत्म होने के बाद ही देता. उसमें भी वह ताक़ में रहता कि किसी तरह मुल्ला का वेतन ना देना पड़े या वह उसमें किसी तरह की कटौती कर दे.

एक बार साल के अंतिम दिन सेठ ने सुबह-सवेरे ही मुल्ला को बुलावा लिया. उसका इरादा मुल्ला को बेफकूफ बनाना था, ताकि उसे वेतन न देना पड़े.

वह मुल्ला से बोला, “मुल्ला, चलो शुरू हो जाओ और पूरे घर की साफ़-सफ़ाई करो. पर एक बात का ध्यान रहे, सफ़ाई करते समय तुम एक भी बूंद पानी का इस्तेमाल नहीं करोगे. लेकिन हाँ, सफ़ाई के बाद आँगन गीला सा लगना चाहिए. ऐसा न कर पाने पर तुम्हारी इस साल की तनख्वाह काट ली जायेगी और तुम नौकरी से निकाल दिए जाओगे.”

इसके बाद सेठ नए साल की तैयारी के लिए सामान ख़रीदने बाज़ार चला गया.

मुल्ला शांति से सेठ के घर की साफ़-सफ़ाई करने लगा. पूरा घर साफ़ करने के बाद आंगन की बारी आई. आंगन में झाड़ू मारकर वह सेठ के गोदाम में गया और वहाँ से तेल का पीपा उठा लाया. उसने पीपे का तेल पूरे आंगन में उड़ेल दिया.

इसके बाद वह एक कोने में बैठकर सेठ का इंतज़ार करने लगा.

कुछ देर बाद जब सेठ बाज़ार से लौटा, तो अपने आंगन में तेल देख भड़क गया, ”मुल्ला….गधे…..तूने मेरा सारा तेल आंगन में उड़ेल दिया. अब दे इसका मुआवजा.”

“गुस्सा क्यों कर रहे हो सेठ?” मुल्ला बोला, “मैंने तो आपके आदेश का पालन किया है. देखिये, क्या मैंने आपका आंगन साफ़ करने में एक भी बूंद पानी का इस्तेमाल नहीं किया है? नहीं ना!! लेकिन फिर भी ये गीला-गीला लग रहा है.”

यह सुनकर सेठ अवाक् रह गया. मुल्ला कहता गया, “सेठजी, आपके हिसाब से काम किया है, तो वेतन तो पूरा बनता है. रही बात आगे आपके घर काम करने की, तो अब आप चाहे मेरी कितनी ही ख़ुशामद करें, मैं काम पर आने वाला नहीं हूँ.”

सेठ के पास कोई चारा नहीं था. उसे मुल्ला को पूरा वेतन देना पड़ा. उसके बाद मुल्ला ने कभी उस सेठ के घर काम नहीं किया.


5 : मुल्ला नसरुद्दीन का भाषण 

एक बार की बात है. मुल्ला नसरुद्दीन के गाँव में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. गाँव के लोगों ने सोचा कि क्यों ना मुल्ला नसरुद्दीन को मुख्य अतिथि के तौर पर भाषण देने बुलाया जाये.

कार्यक्रम आयोजित करने वाले कुछ लोग मुल्ला के घर पहुँचे और बोले, “मुल्ला साहब, हमारे कार्यक्रम में आप मुख्य अतिथि हैं. आपको वहाँ मौज़ूद लोगों को संबोधित करना होगा. आमंत्रण स्वीकार करें.”

मुल्ला तैयार हो गया. नियत तिथि और समय पर वह कार्यक्रम में पहुँच गया. जब भाषण देने की बारी आई, तो वह वहाँ मौज़ूद लोगों से बोला, “क्या आप लोग जानते हैं कि मैं आपको क्या बताने वाला हूँ?”

“नहीं.” एकस्वर में कार्यक्रम में मौज़ूद लोगों ने कहा.

“जब आप लोगों को इस बात का कोई अंदाज़ा ही नहीं कि मैं आपको क्या बताने जा रहा हूँ. तो मेरा यहाँ कुछ भी कहने का कोई फ़ायदा नहीं. मैं जा रहा हूँ.” नाराज़गी भरे स्वर में मुल्ला बोला और कार्यक्रम से चला गया.

लोगों को लगा कि उनकी वजह से मुल्ला नाराज़ होकर चला गया है. इसलिए उन्होंने माफ़ी मांगकर उसे अगले दिन फिर से बुला लिया.

अलगे दिन मुल्ला ने सबको संबोधित करते हुए फिर से वही पूछा, “क्या आप लोग जानते हैं कि मैं आप लोगों को क्या बताने वाला हूँ?”

“नहीं.” इस बार लोगों ने अपनी गलती सुधार ली.

यह सुनकर मुल्ला बोला, “जब आपको पहले से ही मालूम है कि मैं आपको क्या बताने वाला हूँ, तो मेरे बताने का क्या फ़ायदा? मैंने जा रहा हूँ.”

ये कहकर मुल्ला वहाँ से चला गया.

लोग हैरान रह गये. उन्हें मुल्ला का व्यवहार अजीब भी लगा. कई लोग मुल्ला से खफ़ा भी हो गए. लेकिन उन्होंने फिर से उसे कार्यक्रम में बुलाने का निश्चय किया. लेकिन, आपस में सलाह-मशवरा कर उन्होंने पहले ही तय कर लिया कि इस बार आधे लोग “हाँ” कहेंगे और आधे लोग “ना”.

अगले दिन मुल्ला ने फिर से पूछा, “क्या आप लोग जानते हैं कि मैं आपको क्या बताने वाला हूँ?”

जैसा तय था, वैसे ही आधे लोगों ने “हाँ” कहा और आधे लोगों ने “ना”.

“यदि आधे लोगों को मालूम है कि मैं क्या बताने वाला हूँ, तो वे बाकी आधे लोगों को बता दें.” कहकर मुल्ला कार्यक्रम से चला गया.

कार्यक्रम में बैठे लोगों को काटो तो खून नहीं. उसके बाद उन्होंने कभी मुल्ला को किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया.


6 : फ़क़ीर का बचाव 

मुल्ला नसरुद्दीन के गाँव की मस्ज़िद एक तालाब के किनारे स्थित थी. इबादत के लिए आने वाले लोग पहले तालाब में अपने पांव धोते, फिर मस्ज़िद में घुसते थे.

एक दिन एक फ़क़ीर मस्ज़िद आया और तालाब में पांव धोने गया. वहाँ अचानक उसका पांव फिसला और वह तालाब में गिर पड़ा. तैरना न जानने के कारण वह डूबने लगा.

बचने के लिए वह अपने हाथ-पांव मारने लगा और चिल्लाने लगा, “बचाओ…बचाओ….मेरी मदद करो. मैं डूब रहा हूँ.”

उसकी पुकार सुनकर मस्ज़िद में आये लोगों में से कुछ लोग तालाब की ओर भागे और उसे बचाने के लिए हाथ बढ़ाकर कहने लगे, “हम तुम्हारी मदद के लिए आयें हैं. अपना हाथ दो. हम तुम्हें बाहर खींच लेंगे.”

इधर लोग फ़क़ीर को उसका हाथ देने के लिए कहते रहे और फ़कीर था कि उनकी बात पर ध्यान न देकर बस चिल्ला रहा था.

मुल्ला नसरूद्दीन भी उस दिन मस्ज़िद में मौज़ूद था. उसने तालाब के किनारे भीड़ देखी, तो वह भी वहाँ चला आया. फ़कीर को डूबता देख उसने भी हाथ बढ़ाया और बोला, “मेरा हाथ लो और बाहर आ जाओ.”

फ़क़ीर ने झट से मुल्ला का हाथ पकड़ लिया और मुल्ला ने उसे बाहर खींच लिया.

वहाँ मौज़ूद लोग हैरान थे. वे मुल्ला से पूछने लगे, “हमने भी फ़क़ीर की ओर हाथ बढ़ाया था, लेकिन उसने हाथ बढ़ाकर हमारा हाथ नहीं पकड़ा. लेकिन तुम्हारा हाथ झट से पकड़ लिया. ऐसा क्या कहा तुमने?”

मुल्ला बोला, “तुम लोगों ने इससे कहा था ‘अपना हाथ दो’, इसलिए इसने अपना हाथ नहीं दिया था. लेकिन, मैं कहा था ‘मेरा हाथ लो’, इसलिए इसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया. एक बात हमेशा याद रखना कि फ़क़ीर बस लेना जानते हैं, देना नहीं.”


7 : लोगों की राय 

एक बार मुल्ला नसरुद्दीन अपने पुत्र के साथ किसी काम से दूसरे गाँव गया था. साथ में वह गधा भी लेकर गया था. दोपहर तक काम निपटाकर वे सब लौटने लगे. गधा साथ था, लेकिन मुल्ला और उसका पुत्र पैदल चल रहे थे.

कुछ दूर चलने के बाद मुल्ला का पुत्र थक गया और हांफने लगा. उसे हांफता देखा मुल्ला बोला, “बेटा! तुम थके हुए जान पड़ते हो. ऐसा करो, गधे पर बैठ जाओ.”

पुत्र गधे पर बैठ गया और मुल्ला साथ-साथ पैदल ही चलने लगा. आगे बढ़ने पर एक पेड़ के नीचे उन्हें कुछ लोग झुंड बनाकर बातें करते हुए नज़र आये. जब उन लोगों ने मुल्ला को पैदल और उसके पुत्र को गधे पर सवार देखा, तो कहने लगे –

“कैसा लड़का है? इसे अपने पिता की कोई चिंता नहीं. हट्टा-कट्ठा होकर भी ख़ुद गधे पर सवार है और बेचारा बूढ़ा पिता पैदल चल रहा है. बड़ों को इज्ज़त देने का ज़माना ही लद गया है.”

मुल्ला के पुत्र को ये बात बुरी लगी. वह गधे से उतर गया और मुल्ला से बोला, “अब्बा! मैं बहुत देर गधे पर बैठ लिया. अब आप गधे पर बैठ जाइये. मैं पैदल चलूंगा.”

मुल्ला तैयार हो गया और गधे पर बैठ गया. पुत्र पैदल चलने लगा. वे लोग कुछ दूर ही आगे बढ़े थे कि उन्हें फिर कुछ लोग मिल गए. मुल्ला को गधे पर बैठा देख वे कहने लगे, “ऐसा निर्दयी बाप हमने कभी नहीं देखा. इसमें अपने बेटे के लिए कोई प्रेम नहीं है. ख़ुद को मज़े से गधे पर सवार है और अपने बेटे को पैदल चला रहा है.”

यह सुनकर मुल्ला को बुरा लगा. उसने अपने पुत्र से कहा, “बेटा! तुम भी गधे पर बैठ जाओ.”

दोनों ने गधे पर बैठकर अपनी यात्रा ज़ारी रखी. वे कुछ दूर ही आगे बढ़े थे कि उन्हें फिर कुछ लोग मिल गए. मुल्ला और उसके पुत्र को गधे पर सवार देख वे बोले, “कितने निष्ठुर लोग है? बेचारे गधे पर दोनों बैठ गए हैं. गधे का क्या हाल हो रहा है, इसकी इन्हें कोई चिंता ही नहीं है.”

यह सुनकर मुल्ला और पुत्र को फिर बुरा लगा. वे दोनों गधे से उतर गए और पैदल ही चलने लगे. जब वे अपने गाँव पहुँचे, तो वहाँ मुल्ला को एक परिचित व्यक्ति मिला.

गधे के होते हुए भी मुल्ला और उसके पुत्र को पैदल चला आता देख वह बोला, “मुल्ला! मूर्खता की हद होती है. तुम्हारे पास अच्छा-ख़ासा गधा है. फिर भी दोनों पैदल चले आ रहे हो. अरे, उस पर बैठकर आराम से नहीं आ सकते थे? अपना दिमाग तो इस्तेमाल किया करो.”

यह सुनकर मुल्ला सोचने लगा कि आप कुछ भी करो, लोग कुछ न कुछ कहते रहेंगे और आपको नासमझ बताते रहेंगे. इसलिए लोगों की बातों पर कान नहीं देना चाहिए.


8 : मुल्ला नसरुद्दीन और भिखारी 

एक भिखारी मुल्ला नसरुद्दीन के मुहल्ले में भीख मांग रहा था. घूमते-घूमते वह मुल्ला के घर के सामने आया और दरवाज़ा खटखटाने लगा. अपने घर की ऊपरी मंजिल पर बैठे मुल्ला ने जब दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ सुनी, तो ऊपर से ही खिड़की खोलकर नीचे झांककर देखा.

वहाँ एक व्यक्ति को खड़ा देख उसने पूछा, “क्या चाहिए?”

“नीचे आइये ना जनाब, फिर बताता हूँ.” भिखारी बोला.

मुल्ला ने सोचा कि शायद उस व्यक्ति को कुछ काम होगा. वह नीचे चला आया और दरवाज़ा खोलकर पूछा, “हाँ अब बताओ भाई क्या चाहते हो?”

“कुछ पैसे दे दो. अल्लाह आपको जन्नत बख्शेगा.” भिखारी फरियाद करते हुए बोला.

यह सुनकर मुल्ला खीझ गया और बिना कुछ कहे ही दनदनाते हुए ऊपर चला गया. फिर वहाँ से खिड़की खोलकर नीचे झांकते हुए भिखारी से बोला, “सुनो, ज़रा ऊपर तो आना.”

भिखारी कुछ मिलने की आस में जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर गया और मुल्ला के सामने जाकर खड़ा हो गया. तब मुल्ला बोला, “मेरे पास चिल्हर नहीं है. इसलिए अभी तो मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता.”

ये सुनना था कि भिखारी तिलमिला गया. कहने लगा, “ये बात तो आप मुझे खिड़की से ही बता देते. यहाँ इतनी सीढ़ियाँ चढ़वाकर ऊपर बुलाने की क्या ज़रूरत थी?”

“तुम भी तो मुझे नीचे से ही चिल्लाकर बता सकते थे कि तुम्हें क्या चाहिए था. मुझे भी नीचे बुलाने की क्या ज़रूरत थी.” मुल्ला बोला.

भिखारी क्या करता? दांत पीसता हुआ चला गया.


9 : मुल्ला नसरुद्दीन और उसका पड़ोसी

मुल्ला नसरुद्दीन का पड़ोसी अक्सर कुछ न कुछ मांगने उसके घर आ जाया करता था. मुल्ला उसकी मांगने की आदत से परेशान हो चुका था. लेकिन, पड़ोसी बाज़ नहीं आता था.

हमेशा की तरह एक दिन वह पड़ोसी मुल्ला के घर पहुँचा और दरवाज़े पर खड़ा होकर आवाज़ देने लगा, “मुल्ला….मुल्ला….बाहर तो आओ.”

मुल्ला बाहर आया और पड़ोसी से पूछा, “क्यों भाई कैसे आना हुआ?”

“मुल्ला! एक ज़रूरत पड़ गई है. मुझे कुछ सामान लेकर शहर जाना है. क्या तुम अपना गधा एक दिन के लिए मुझे दे सकते हो?” पड़ोसी बोला.

“अरे भाई! तुमने तो देर कर दी. मैंने सुबह ही अपना गधा किसी और को दे दिया है.” मुल्ला बोला. वास्तव में ऐसा कुछ नहीं था. बस मुल्ला अपना गधा उस पड़ोसी को नहीं देना चाहता था. इसलिए उसने बहाना बनाया था.

यह बात सुन पड़ोसी जाने को हुआ कि घर के अंदर से मुल्ला के गधे के रेंकने की आवाज़ आने लगी. पड़ोसी समझ गया कि मुल्ला ने बहाना बनाया है.

वह बोला, “मुल्ला, तुम तो कह रहे थे कि तुमने अपना गधा किसी को दे दिया है. लेकिन उसके रेंकने की आवाज़ तो तुम्हारे घर के अंदर से आ रही है.”

“तुम्हें किस पर यकीन है मुझ पर या गधे पर?” मुल्ला तुकनकर बोला और अंदर चला गया.

पड़ोसी मुँह लटकाकर वापस चला गया और फिर कभी मुल्ला से कुछ मांगने नहीं आया.


10 : बेईमान काज़ी 

एक दिन की बात है. मुल्ला नसरुद्दीन बाज़ार में टहल रहा था कि अचानक एक आदमी उसके सामने आया और उसके गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया.

अचानक हुई इस हरक़त से मुल्ला सकपका गया. इसके पहले कि वह कोई प्रतिक्रिया दे पाता, तमाचा जड़ने वाला आदमी उसके सामने नतमस्तक हो गया और माफ़ी मांगने लगा.

वह कहने लगा, “भाईसाहब मुझसे गलती हो गई. मैं आपको कोई और समझ बैठा था. मुझे माफ़ कर दो.”

मुल्ला बौखला सा गया था. उसे उस आदमी की बात पर यकीन नहीं हुआ और वो उसे पकड़कर काज़ी के पास ले गया. वहाँ जाकर उसने काज़ी को पूरा वाक्या सुनाया और न्याय की गुज़ारिश की. काज़ी ने जब इस बाबत उस आदमी से पूछा, तो उसने बिना लाग-लपेट के अपनी गलती कबूल कर ली.

काज़ी ने भी फ़ौरन अपना फ़ैसला सुना दिया, “मुल्ला को तमाचा जड़कर इस आदमी से गलती हुई है. लेकिन यह अपनी गलती कबूल भी कर रहा है. इसलिए सज़ा के तौर पर मैं इसे मुल्ला को १ रुपया हर्ज़ाना देने का हुक्म देता हूँ.”

मुल्ला को तमाचा मारने वाला आदमी बोला, “काज़ी साहब, अभी तो मेरे पास १ रुपया नहीं है.”

“ऐसा है, तो फ़ौरन कहीं से १ रूपये का इंतज़ाम कर मुल्ला को दो. मुल्ला यहीं इंतज़ार करेगा.” काज़ी बोले.

वह आदमी १ रुपये का इंतज़ाम करने चल दिया और मुल्ला काज़ी के पास बैठकर इंतज़ार करने लगा. लेकिन बहुत देर हो जाने के बाद भी वह आदमी नहीं लौटा.  

मुल्ला समझ गया कि काज़ी और वो आदमी मिले हुए हैं. वह काज़ी से बोला, “काज़ी साहब! एक बात पूछना चाहता हूँ आपसे? क्या पूछ सकता हूँ?”

“हाँ हाँ पूछो.” काज़ी बोला.

“क्या एक तमाचे का हर्ज़ाना १ रुपया हो सकता है?” मुल्ला ने पूछा.

“बिल्कुल हो सकता है.” काज़ी ने जवाब दिया.  

फिर क्या था? मुल्ला अपनी जगह से उठा और काज़ी के पास जाकर उसके गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़कर बोला, “काज़ी साहब! जब वह आदमी वापस आये, तो उससे वह १ रुपया ले लेना. मैं चलता हूँ.”

मुल्ला चल दिया और काज़ी गाल पर हाथ रखकर उसे जाते देखता रहा.


11 : गधे का रिश्तेदार 

मुल्ला का एक पड़ोसी अक्सर उसे नीचा दिखाने या उसका मज़ाक उड़ाने का मौका तलाशता रहता था. ऐसा करने में उसे बड़ा मज़ा आता था.

एक बार मुल्ला अपने गधे को साथ लेकर कहीं जा रहा था. रास्ते में उसे उसका वही पड़ोसी मिला गया. मुल्ला और गधे को एक साथ देखकर उसे मज़ाक सूझ गया.

वह मुल्ला को रोककर बोला, “अरे मुल्ला, क्या हाल-चाल हैं तुम्हारे? और तुम्हारा दोस्त गधा कैसा है?”

“सबके हाल बढ़िया हैं.” मुल्ला ने जवाब दिया.

पड़ोसी यहाँ रुका नहीं, वह आगे बोला, “मुल्ला, तुम तो कई बरसों से गधा पाल रहे हो. अब तक तो ज़रूर इसकी भाषा समझने लगे होगे. ज़रा, बताओ तो कि भूख लगने पर ये कैसे बताता है?”

“जब इसे भूख लगती है, तो ये मेरे पास आता है और मुझे चाटने लगता है. मैं समझ जाता हूँ कि इसे भूख लगी है. मैं इसे घास खिला देता हूँ.” मुल्ला ने शांति से जवाब दिया.

“अच्छा और जब तुम्हारा गधा उदास होता है, तो तुम्हें कैसे पता चलता है?” पड़ोसी के सवाल खत्म ही नहीं हो रहे थे.

मुल्ला समझ गया कि पड़ोसी का इरादा गधे को लेकर उसका मज़ाक उड़ाने का है. फिर भी वह आराम से जवाब देता रहा, “जब ये उदास होता है, तो रेंकने लगता है.”

मुल्ला का ये कहना था कि उसका गधा रेंकने लगा.

गधे को रेंकता देख पड़ोसी हँसते हुए बोला, “अरे, तुम्हारा गधा तो रेंक रहा है मुल्ला. इसका मतलब है कि ये उदास है. अब बताओ तो कि ये क्यों उदास है?”

“ये इसलिए उदास है कि मैंने इसे अकेला छोड़ दिया है और दूसरे गधे से बातें कर रहा हूँ.” मुल्ला मुस्कुराते हुए बोला.

मुल्ला के जवाब से पड़ोसी की हँसी फ़ुर्र हो गई. ऐसी फ़ज़ीहत के बाद उसने वहाँ से खिसकने में ही भलाई समझी.


12 : ताकत का इम्तिहान 

एक दिन की बात है. मुल्ला नसरुद्दीन अपने दोस्तों के साथ गाँव की चौपाल पर बैठकर गपशप कर रहा था.

अचानक बात बचपन और जवानी के दिनों की चल गई. वे चर्चा करने लगे कि वे पहले कैसे था और अब कैसे हैं? उनके अंदर पहले से कितना ज्यादा बदलाव आया है?

एक दोस्त बोला कि अब वह पहले से ज्यादा समझदार हो गया है. दूसरा बोला कि वो समझदार तो हो गया है, लेकिन पहले की तुलना में कमज़ोर हो गया है.

जब मुल्ला की बारी आई, तो वो बोला, “दोस्तों! मैं तो पहले भी समझदार था और आज भी हूँ. और हाँ, जहाँ तक ताक़त की बात है, तो मैं पहले भी ताकतवर था और आज भी हूँ.”

“वाकई मुल्ला…..क्या तुम आज भी उतने ही ताकतवर हो?” मुल्ला के दोस्तों ने पूछा.

हाँ..हाँ बिलकुल. ये मैं आज़मा चुका हूँ.” मुल्ला ने कहा.

“कैसे आज़माया तुमने?” मुल्ला के दोस्तों ने जिज्ञासावश पूछा.

मुल्ला बोला, “कई बरसों से मेरे घर के सामने एक बड़3 सा पत्थर रखा हुआ है. मैं उसे अपनी जवानी में भी नहीं उठा पता था और आज भी नहीं उठा पाता हूँ. हुआ ना उतना ही ताकतवर.”


13 : चक्के वाला चूल्हा

एक बार मुल्ला नसरुद्दीन की बीवी ने उससे कहा, “सुनो जी, आंगन में एक चूल्हा बना दो. अंदर बड़ी गर्मी लगती है. यहाँ बाहर आराम से खाना बना लिया करूंगी.”

मुल्ला बेगम का हुक्म बजाने तैयार था. झटपट सारा सामान इकठ्ठा कर चूल्हा बनाने में जुट गया और बड़ी मेहनत से एक चूल्हा तैयार कर लिया.

चूल्हा देख वह बहुत ख़ुश हुआ और तारीफ़ सुनने की चाह में अपने दोस्तों को बुला लिया. दोस्त आये, चूल्हा देखा और तारीफ़ करने लगे, “वाह, मुल्ला तुम्हारा जवाब नहीं. क्या चूल्हा बनाया है माशा अल्लाह. शानदार.”

मुल्ला दिल ही दिल में ख़ुशी से उछल पड़ा. लेकिन उसकी ख़ुशी एक पल के लिए थी. अगले ही पल चूल्हे को गौर से देखते हुए उसके एक दोस्त ने कहा, “मुल्ला, चूल्हे का मुँह उत्तर की तरफ़ है. तुम्हें नहीं लगता कि उस दिशा से हवा चलने पर चूल्हे की सारी आग उड़ जायेगी.”

मुल्ला को दोस्त की बात सही लगी. उसने वह चूल्हा तोड़ दिया और दूसरा चूल्हा बनाया. वह चूहा पहले चूल्हे से भी अधिक अच्छा बन पड़ा था. उसका मुँह दक्षिण दिशा की ओर था.

उसने फ़िर से अपनी दोस्तों को बुलाकर चूल्हा दिखाया और उनकी राय का इंतज़ार करने लगा. सभी दोस्त चूल्हे की तारीफ़ों के पुल बांधने लगे, “वाह मुल्ला कमाल कर दिया तुमने. इतना शानदार चूल्हा हमने पहले कभी नहीं देखा.”

लेकिन एक दोस्त ख़ामोश था. मुल्ला बोला, “मित्र, तुम भी कुछ कहो. यूं खामोश क्यों हो?”

“चूल्हा तो कमाल का है मुल्ला. लेकिन इसका मुँह दक्षिण दिशा की ओर है. उल्टी दिशा से हवा चलने पर तुम क्या करोगे? आग बाहर निकलेगी और तुम्हारे लिए खाना बनाना मुसीबत बन जायेगा.”

मुल्ला को बात पते की लगी. इसलिए उसने वह चूल्हा तोड़कर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके एक नया चूल्हा बनाया. दोस्त चूल्हा देखने फ़िर आये. इस बार फ़िर एक दोस्त ने उसे कहा, “मुल्ला कुछ माह पूर्व दिशा से भी हवा चलती है. उन दिनों तुम परेशान रहोगे.”

मुल्ला ने फ़िर अपना चूल्हा तोड़ दिया. अबकी बार उसने अपना पूरा दिमाग लगाते हुए चक्के वाला चूल्हा बनाया, ताकि उसे किसी भी दिशा में घुमाया जा सके. वह अपने चूल्हे से बहुत ख़ुश था.

उसके दोस्तों ने जब चूल्हा देखा, तो मुल्ला के तारीफ़ों के पुल बांधने लगे, “क्या दिमाग पाया है मुल्ला. अब तो तुम्हें किसी किस्म की कोई परेशानी नहीं होगी. इसे तो तुम अपने मन मुताबिक कहीं भी रख सकते हो. कहीं भी ले जा सकते हो. वाकई कमाल कर दिया तुमने.”

मुल्ला गर्व से फूल गया. दोस्त जब जाने लगे, तो एक दोस्त बोला, “मुल्ला एक गुज़ारिश है. उम्मीद है तुम टालोगे नहीं.”

“बताओ” मुल्ला बोला.

“क्या मैं आज तुम्हारा चूल्हा अपने घर ले जा सकता हूँ. कल सुबह वापस कर दूंगा.” दोस्त बोला.

मुल्ला से इंकार करते नहीं बना. इसलिए उसने हामी भर दी. दोस्त वह चक्के वाला चूल्हा अपने घर ले गया. रात को उसने उसी चूल्हे पर खाना बनाया और अगले दिन मुल्ला को वापस कर दिया.

मुल्ला ने चूल्हा आंगन में रख दिया और बीवी को खाना बनाने का बोलकर काम पर चला गया. दोपहर में जब वो खाना खाने वापस आया, तो देखा कि उसके बीवी आँगन में एक चारपाई पर सिर पकड़कर बैठी है.

मुल्ला ने पूछा, “क्या हुआ? खाना बना लिया क्या?”

“ख़ाक खाना बनाया है.” मुल्ला की बीवी गुस्से से चिल्लाई, “तुमने चूल्हा क्या बनाया आफ़त हो गई.”

गोल-मोल बातें मत करो. सही-सही बोलो क्या हुआ?” मुल्ला ने पूछा.

“चक्के वाला चूल्हा बनाकर बड़े इतरा रहे थे ना तुम, अब भुगतो. सब्जी लेने बाज़ार गई थी. उस बीच कोई चोर तुम्हारा चक्के वाला चूल्हा लेकर चला गया.”

यह सुनकर मुल्ला भी सिर पकड़कर बैठ गया.     


14 : मुल्ला नसरुद्दीन बने कम्युनिस्ट

एक बार की बात है. मुल्ला नसरुद्दीन ने कम्युनिस्ट बनने की ठान ली. ये खबर तेज़ी से पूरे गाँव में फ़ैल गई और लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई. लोग हैरान थे, क्योंकि उन्हें मालूम था कि मुल्ला अपनी चीज़ों को किसी को देना पसंद नहीं करता.

खबर फैलते-फैलते मुल्ला के ज़िगरी दोस्त के पास पहुँची. वह भी इस ख़बर पर हैरान हुआ. उसने सोचा कि इस संबंध में मुल्ला से ही बात करना ठीक होगा.

वह मुल्ला से मिलने पहुँचा और उससे पूछा, “मुल्ला सुना है कि तुम कम्युनिस्ट बनने वाले हो. जानते हो कम्युनिज्म का क्या मतलब होता है?”

“हाँ, मुझे अच्छी तरह पता है.” मुल्ला ने जवाब दिया.

“ख़ाक पता है. जानते हो क्या करना पड़ता है? यदि तुम्हारे पास दो गाड़ियाँ हैं और किसी के पास एक भी नहीं. तो तुम्हें एक गाड़ी दूसरे को देनी पड़ेगी.”

“हाँ और मैं अपनी पूरी इच्छा से ऐसे करने को तैयार हूँ. मैं एक गाड़ी दूसरे को दे दूंगा.” मुल्ला बोला.

“अगर तुम्हारे पास दो मकान है और किसी के पास एक भी नहीं है. तो तुम्हें अपना एक मकान उसे देना पड़ेगा” दोस्त बोला.

“हाँ, मैं देने को तैयार हूँ.” मुल्ला बोला.

“और अगर तुम्हारे पास दो गधे हैं और किसी के पास एक भी नहीं. तो तुम्हें अपना एक गधा दूसरे को देना पड़ेगा.” दोस्त बोला.

“नहीं मैं इस बात से इत्तफ़ाक नहीं रखता. मैं अपना गधा नहीं दे सकता. बिल्कुल भी नहीं दे सकता.” मुल्ला बोला.

“क्यों? तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? यहाँ भी तो वही बात लागू होती है, जो गाड़ी और मकान के साथ होती है.” दोस्त बोला.

“वो इसलिए क्योंकि मेरे पास दो गाड़ियाँ और मकान तो नहीं है, लेकिन दो गधे है.” मुल्ला शांति से बोला.

दोस्त उसको देखता रहा गया.

15 : मुल्ला नसरुद्दीन की हाज़िरजवाबी

उन दिनों मुल्ला नसीरुद्दीन का काम-काज़ ठीक नहीं चल रहा था. वह जैसे-तैसे दिन काट रहा था. कैसे दिन तो ऐसे होते थे कि उसकी जेब में एक ठेला भी नहीं होता था. ऐसे में लोगों से पैसे उधार मांग कर वह अपना काम चलाता था.

एक बार ज़रुरत पड़ने पर उसने अपने पड़ोसी से ५०० दीनार उधार लिये. उधार चुकाने का समय नियत था. लेकिन, वह नियत समय तक उधार नहीं चुका पाया. पड़ोसी कई बार मुल्ला के घर पैसे मांगने आया, लेकिन मुल्ला आज-कल करता हुआ टालता गया.

आखिरकार, एक दिन पड़ोसी ने बादशाह से मुल्ला की शिकायत कर दी. बादशाह ने मुल्ला को हाज़िर होने का हुक्म सुनाया. मुल्ला बादशाह ने सामने हाज़िर हुआ.

“मुल्ला! तुमने इस आदमी से ५०० दीनार उधार लिए हैं?” बादशाह ने मुल्ला से पूछा.

“जी जहाँपनाह! मैंने इससे ५०० दीनार उधार लिए हैं.” मुल्ला बेफ़िक्री से बोला.

“तो तुम उधार क्यों नहीं चुका रहे हो?” बादशाह ने फिर से पूछा.

“जहाँपनाह! मैं अब तक इसका उधार नहीं चुका पाया हूँ. लेकिन बहुत जल्द मैं पाई-पाई चुका दूंगा, भले ही इसके लिए मुझे अपना गाय और घोड़ा ही क्यों न बेचना पड़े?” मुल्ला भरोसा जताते हुए बोला.

बादशाह कुछ कहते, इसके पहले ही पड़ोसी बोल पड़ा, “जहाँपनाह! ये झूठ बोल रहा है. इसके पास न गाय है ना ही घोड़ा. ये तो कंगाल है. दो जून खाने को तरस रहा है. ये कहाँ से मेरे पैसे लौटाएगा?”

“मेरा हाल तो इसके मुँह से ही आपने सुन लिया जहाँपनाह. अब आप ही बताइए कि इस तंगहाली में मैं इतनी जल्दी कैसे इसका उधार चुका सकता हूँ. कहाँ से करूं इसके पैसे का बंदोबस्त, जब खाने के लाले पड़े हैं.” मुल्ला हाथ जोड़कर बोला.

मुल्ला की हालत देख बादशाह ने पूरा मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया. इस प्रकार  अपनी हाज़िरजवाबी से मुल्ला ने अपनी जान छुड़ाई और उस वक़्त उधार चुकाने से बच गया.

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