Panchatantra Story In Hindi

बगुला भगत की कहानी : पंचतंत्र (मित्रभेद) | Bagula Bhagat Story In Hindi

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फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम ‘बगुला भगत की कहानी पंचतंत्र‘ (Bagula Bhagat Story In Hindi Panchatantra) शेयर कर रहे हैं. Bagula Bhagat Ki Kahani पंचतंत्र की कहानी (Panchatantra Story In Hindi) है, जिसमें एक बूढ़ा बगुला अपनी भूख मिटाने के लिए तालाब में रहने वाली मछलियों को अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों के जाल में फंसाता है. वह केकड़े पर भी अपना जाल फेंकता है. क्या केकड़ा उसके जाल में फंस जाता है? क्या वह बगुले का आहार बन जाता है? जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी :   

Bagula Bhagat Panchatantra Story In Hindi 

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Bagula Bhagat

Bagula Bhagat Story In Hindi | Bagula Bhagat Ki Kahani

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दूरस्थ वन में स्थित एक जलाशय में मछलियाँ, केकड़े, मेंढक और ना-ना प्रकार के जीव-जंतु रहा करते थे. तालाब के किनारे एक बूढ़ा बगुला भी रहा करता था.

बूढ़ा बगुला भोजन के लिए तालाब की मछलियों पर निर्भर था. वह दिन भर तालाब किनारे घात लगाये बैठा रहता. जैसे ही कोई मछली नज़र आती, उसे लपककर पकड़ लेता और अपने पेट की ज्वाला शांत कर लेता था.

लेकिन धीरे-धीरे उसकी आँखें कमज़ोर होने लगी और मछलियाँ पकड़ना उसके लिए दुष्कर हो गया. अब वह दिन-रात एक टांग पर खड़ा होकर सोचता रहता कि ऐसी हालत में कैसे भोजन की व्यवस्था की जाये.

एक दिन उसे एक युक्ति सूझी. युक्तिनुसार वह तालाब के किनारे गया और एक टांग पर खड़ा होकर जोर-जोर से विलाप करने लगा. उसे इस तरह विलाप करता देख तालाब में रहने वाला एक केकड़ा आश्चर्यचकित हो उसके पास आया और पूछने लगा, “बगुला मामा! क्या बात है? इस तरह आँसू क्यों बहा रहे हो? क्या आज कोई मछली हाथ नहीं लगी?”

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बगुला बोला, “बेटा! कैसी बात कर रहे हो? अब मैंने वैराग्य का जीवन अपना लिया है और मछलियों तथा अन्य जीवों का शिकार छोड़ दिया है. वैसे भी इस जलाशय के समीप रहते मुझे वर्षों हो गए है. यहाँ रहने वाले जलचरों के प्रति मन में प्रेम और अपनत्व का भाव जाग चुका है. इसलिए मैं उनके प्राण नहीं हर सकता.”

“तो इस तरह विलाप करने का क्या कारण है मामा?” केकड़े ने उत्सुकतावश पूछा.

“मैं तो इस तालाब में रहने वाले अपने भाई-बंधुओं के लिए विलाप कर रहा हूँ. आज ही एक जाने-माने ज्योतिष को मैंने ये भविष्यवाणी करते सुना कि इस क्षेत्र में १२ वर्षों के लिए अकाल पड़ेगा. यहाँ स्थित समस्त जलाशय सूख जायेंगे और उनमें रहने वाले जीव-जंतु भूख-प्यास से मर जायेंगे. आसपास के सभी छोटे जलाशयों के जीव-जंतु बड़ी-बड़ी झीलों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं. किंतु इस जलाशय के जीव-जंतु निश्चिंत बैठे हैं. इस जलाशय का जलस्तर अत्यंत कम है. सूखा पड़ने पर ये अतिशीघ्र सूख जायेगा. यहाँ के रहवासी सभी जलचर मारे जायेंगें. यही सोच-सोचकर मेरे आँसू नहीं थम रहे हैं.”

बगुले की बात सुनकर केकड़ा तुरंत तालाब में रहने वाली मछलियों और अन्य जलचरों के पास गया और उन्हें बगुले की अकाल संबंधी बात बता दी.

ये सुनना था कि सभी जलचर बगुले के पास जा पहुँचे और उससे इस समस्या से निकलने का उपाय पूछने लगे.

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दुष्ट बगुला तो इसी अवसर की ताक में था. वह बोला, “बंधुओं, चिंता की कोई बात नहीं है. यहाँ से कुछ ही दूरी पर जल से लबालब एक बड़ी झील अवस्थित है. वहाँ का जल अगले ५० वर्षों तक नहीं सूखेगा मैं तुम्हें अपनी पीठ पर लादकर उस झील में छोड़ आऊंगा. इस तरह तुम सबकी जान बच जायेगी.”

बगुले की बात सुनकर सभी जलचरों में पहले जाने की होड़ लग गई और वे बगुले से अनुनय करने लग गए, “बगुला मामा, हमें वहाँ पहले पहुँचा दो.”

ये देख बगुले की बांछे खिल गई. उसने सबको शांत किया और बोला, “बंधुओं, मैं तुम सबको एक-एक कर अपनी पीठ पर लादकर उस झील तक ले जाऊंगा. फिर चाहे मेरा जो हाल हो. आखिर तुम सब मेरे अपने हो.”

उस दिन के बाद से बगुला प्रतिदिन एक मछली को अपनी पीठ पर लादकर ले जाता और कुछ दूरी तय करने के बाद एक बड़ी शिला पर पटककर मार डालता. फिर छककर अपना पेट भरने के बाद दूसरे दिन दूसरा शिकार अपनी पीठ पर लादकर चल पड़ता.

ऐसे ही कई दिन बीत गये. बगुले को बिना परिश्रम के रोज़ एक मछली का आहार मिलने लगा. एक दिन जब बगुला तालाब के किनारे गया, तो केकड़ा बोला, “बगुला मामा! आपने सूखा पड़ने की बात मुझे सबसे पहले बताई. किंतु अब तक आप मुझे बड़ी झील लेकर नहीं गए. आज मैं आपकी कुछ नहीं सुनूंगा. आज आपको मुझे ही लेकर जाना होगा.”

बगुला भी रोज़ मछली खाकर ऊब चुका था. उसने सोचा कि क्यों ना आज केकड़े को ही अपना आहार बनाया जाये? और वह केकड़े को अपनी गर्दन पर बैठाकर उड़ने लगा.

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कुछ दूर जाने के बाद केकड़े ने देखा कि एक बड़ी शिला के पास मछलियों की हड्डियों का अंबार लगा हुआ है. उसे संदेह हुआ कि हो न हो ये सब बगुले का ही किया धरा है.

उसने बगुले से पूछा, “मामा, और कितनी दूर जाना है. तुम मुझे उठाये-उथाये थक गये होगे.”

शिला तक पहुँचने के बाद बगुले ने सोचा कि अब वास्तविकता बताने में कोई हर्ज़ नहीं. उसने केकड़े को सारी बात बता दी और बोला, “केकड़े, ईश्वर का स्मरण कर ले. तेरा अंत समय आ चुका है. अब मैं तुझे भी इन मछलियों की तरह इस शिला पर पटककर मार दूंगा और अपना आहार बनाऊंगा.”

ये सुनना था कि केकड़े ने अपने नुकीले दांत बगुले की गर्दन पर गड़ा दिए. बगुले की गर्दन कट गई और वह वहीं तड़पकर मर गया.

केकड़ा बगुले की कटी हुई गर्दन लेकर वापस तालाब में पहुँचा और दुष्ट बगुले की दुष्टता की कहानी सब जलचरों को बताई और बोला, “अब वह दुष्ट मर चुका है. तुम सब लोग यहाँ आनंद के साथ रहो.”

सीख (Moral Of The Bagula Bhagat Story In Hindi)

किसी भी बात का बिना सोचे-समझे विश्वास नहीं करना चाहिए. मुसीबत में धैर्य से काम लेना चाहिये.

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