भेड़िया की 6 कहानियाँ | 6 Best Wolf Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम भेड़िया की कहानी (Bhediya Ki Kahani) शेयर कर रहे हैं। पढ़िए भेड़िया की कहानी (Wolf Story In Hindi) : 

Bhediya Ki Kahani

Bhediya Ki Kahani 

गधा और भेड़िया की कहानी

जंगल के पास एक घास का मैदान था। एक मोटा ताज़ा गधा रोज़ वहाँ हरी घास चरने आया करता था।

एक दिन वह बड़े मज़े से घास के मैदान में चर रहा था। तभी जंगल से एक भेड़िया वहाँ आ गया। वह शिकार की तलाश में निकला था। उसे बड़े जोरों की भूख लगी थी। गधे को देख वह बड़ा खुश हुआ और सोचने लगा – ‘इस गधे का शिकार कर कई दिनों के भोजन का बंदोबस्त हो जायेगा।‘

वह अवसर की ताक में एक पेड़ के पीछे छिप गया और गधे पर नज़र रखने लगा। घास चरते गधे ने उसे देख लिया था और वह समझ गया था कि भेड़िया उसे मारने की फ़िराक़ में है।

वह यह सोच ही रहा था कि भेड़िया उसकी ओर आने लगा। जान बचाने के लिए गधे ने एक युक्ति लगाई और वह लंगड़ाकर चलने लगा।

उसे यूं लंगड़ाकर चलते देख भेड़िये ने पूछा, “क्यों? क्या बात है? तुम यूं लंगड़ा कर क्यों चल रहे हो?”

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“क्या बताऊं भेड़िये भाई? मेरे पैर में कांटा चुभ गया है। बड़ा दर्द हो रहा है। इसलिए यूं लंगड़ाकर चल रहा हूँ। क्या तुम ये कांटा निकाल दोगे?”

“मैं?” भेड़िया चकित होकर बोला।

“मैं जानता हूँ भेड़िये भाई! तुम मुझे खाने के बारे में सोच रहे हो। मगर जब तुम मुझे खाओगे, तब ये कांटा तुम्हारे गले में अटक सकता है। इसलिए इसे निकालना जरूरी है।”

भेड़िये ने सोचा – ‘गधा सही कह रहा है। खाते समय मैं बेकार की मुसीबत क्यों मोल लूं? इसका कांटा निकाल ही देता हूँ। फिर इसे मारकर मज़े से खाऊंगा।‘

वह बोला, “जरा दिखाओ तो, तुम्हें कहाँ कांटा चुभा है?”

गधे ने अपना पैर उठा दिया। भेड़िया उसके पैर के पास गया और कांटे को ढूंढने लगा। जब गधे ने देखा कि भेड़िये का ध्यान पूरी तरह से उसके पैर पर है, तो उसने एक ज़ोरदार दुलत्ती उसको मार दी।

भेड़िया दूर फिंका गया। उसका सिर चकरा गया था। उसे दिन में तारे नज़र आ गए। जब वह संभला और उठा, तो देखा कि गधा उसकी पहुँच से बहुत दूर भाग चुका है।

इस तरह अपनी सूझबूझ से गधे ने अपनी जान बचाई। भेड़िया सोचने लगा – जो काम मेरा नहीं बल्कि वैद्य का था अर्थात् कांटा निकालने का काम, उसे करने के चक्कर में मैंने दुलत्ती भी खाई और अपने शिकार से हाथ धो बैठा। आइंदा से उस काम में कभी हाथ नहीं डालूंगा, जो मुझे नहीं आता।

सीख 

  • विपत्ति के समय सूझबूझ से काम लें।
  • जो काम अपना नहीं है, उसमें जबरदस्ती दखल न दें। अन्यथा लेने के देने पड़ जायेंगे।

भेड़िया और सात बकरी के बच्चे की कहानी

एक जंगल किनारे घास के मैदान में एक सफेद रंग की बकरी अपने सात बच्चों के साथ रहती थी। उनका एक छोटा सा घर था, जिसमें वे सब बड़े प्यार से रहते थे। बकरी अपने बच्चों के खाने-पीने की व्यवस्था करती और सातों बच्चे जंगल में खेलते, नाचते-गाते, उछल कूद मचाते। उनके दिन बड़ी खुशी से गुज़र रहे थे।

एक दिन बकरी ने देखा कि जंगल से खतरनाक काला भेड़िया वहाँ आ गया है और उसके बच्चों को खाने की फ़िराक़ में है। तबसे उसने अपने बच्चों का घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया। वे सब दिन भर घर में रहते। बकरी अपने बच्चों को हर समय अपनी आँखों के सामने रखती।

एक दिन बकरी को खाने की व्यवस्था करने बाहर जाना पड़ा। जाने से पहले उसने बच्चों को हिदायत दी, “मेरे प्यारे बच्चों! घर से बाहर मत निकलना। खतरनाक भेड़िया आसपास ही घूम रहा है. कोई भी दरवाजा खटखटाये, तो बिना पूछे दरवाजा मत खोलना। ये काला भेड़िया है। इसके काले पैर हैं और इसकी आवाज कर्कश है। ये इसकी पहचान है। दरवाजा खटखटाने पर ये ज़रूर देखना।”

इतना कहकर बकरी चली गई। सातों बच्चों ने घर का दरवाज़ा अच्छी तरह बंद कर दिया और अपनी माँ के लौटने का इंतज़ार करने लगे।

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भेड़िया घर के आसपास ही था। उसने बकरी को घर से जाते हुए देख लिया और बच्चों को खाने के लिए उसके घर पहुँच गया। घर का दरवाज़ा बंद था। उसने दरवाज़ा खटखटाया। एक बकरी का बच्चा दरवाजा खोलने के लिए जाने लगा, तो सबसे बड़े बच्चे को अपनी माँ की बात याद आई और उसने उसे रोक दिया। फिर अंदर से ही पूछा, “कौन है?”

“मैं तुम्हारी माँ हूँ मेरे प्यारे बच्चों।” भेड़िये ने उत्तर दिया।

बकरी के बच्चे उसकी आवाज़ पहचान गये। वे बोले, “नहीं तुम हमारी माँ नहीं हो। हमारी माँ की आवाज़ मीठी है और तुम्हारी कर्कश। तुम काले भेड़िये हो। चले जाओ यहाँ से।”

यभेड़िया वहाँ से चला गया। वह सोचने लगा कि कैसे अपनी आवाज़ को मीठी बनाऊं। तभी उसे मधुमक्खी का छत्ता दिखाई पड़ा। उसने सोचा की मीठा शहद खाने से मेरी आवाज़ मीठी हो जायेगी। उसने झपट्टा मारकर मधुमक्खी के छत्ते को तोड़ दिया। मधुमक्खियाँ उसे काटने लगी, फिर भी किसी तरह उसने शहद खा लिया।

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शहद खाने से उसकी आवाज़ मीठी हो गई। वह फिर से बकरियों के घर में गया। और दरवाजा खटखटाने लगा।

बकरियों ने पूछा, “कौन है?”

भेड़िया मीठी आवाज़ में बोला, “मैं तुम्हारी माँ हूँ प्यारे बच्चों। दरवाजा खोलो।”

सबसे बड़े बकरी के बच्चे ने दरवाजे के नीचे से देखा, तो उसे काले पैर दिखाई पड़े। वह समझ गई कि वह भेड़िया है। वह बोली, “तुम हमारी माँ नहीं, दुष्ट भेड़िये हो। हमारी माँ के पैर सफ़ेद हैं और तुम्हारे काले। भागो यहाँ से।”

भेड़िया वहाँ से चला गया और इस बार खुद पर आटा उड़ेलकर आया। आटे के कारण वह सफेद हो गया था। उसने घर का दरवाज़ा खटखटाया और बोला, “मेरे प्यारे बच्चों दरवाजा खोलो। देखो तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए क्या-क्या लाई है?”

उसकी मीठी आवाज़ सुनने के बाद बकरियों ने दरवाजे के नीचे से उसके पैर देखे, जो आटे के कारण सफेद हो गए थे।

“लगता गई हमारी माँ आ गई।” बकरी के सबसे बड़े बच्चे ने कहा।

“दरवाजा खोल दो।” बाकी बकरी के बच्चे बोले, लेकिन सबसे छोटे बकरी के बच्चे ने उन्हें रोका कि ये भेड़िया भी हो सकता है। दूसरी बकरियों ने उसकी बात नहीं मानी, तो वह अंदर के कमरे ने जाकर छुप गया।

बकरी के सबसे बड़े बच्चे ने दरवाज़ा खोल दिया और भेड़िया दनदनाते हुए अंदर आया। दुष्ट भेड़ये को देखकर बकरी के बच्चे इधर-उधर भागने लगे, लेकिन भेड़िये ने उन्हें निगल लिया। उसे याद ही नहीं था कि बकरी के सात बच्चे है। इसलिए उसने सबसे बकरी के सबसे छोटे बच्चे को नहीं ढूंढ़ा और चला गया।

कुछ देर बाद बकरी वापस लौटी। घर का दरवाज़ा खुला देख उस शक हुआ। वह दौड़कर अंदर पहुँची, तो उसे अपने बच्चे दिखाई नहीं पड़े। वह उन्हें इधर-उधर ढूंढने लगी, तब सबसे छोटा बच्चा बाहर निकला और अपनी माँ को सारी बात बताई। बकरी को बड़ा गुस्सा आया और वह भेड़िये से बदला लेने निकल पड़ी।

जंगल में जाने पर उसने देखा कि भेड़िया उसके बच्चों को खाकर एक पेड़ के नीचे आराम से सोया है। उसका मोटा पेट देखकर बकरी समझ गई कि उसने उसके बच्चों को साबुत ही निगल लिया है।

उसने सोते हुए भेड़िया का पेट चीर दिया और अपने बच्चों को सही सलामत बाहर निकाल लिया। फिर उसने भेड़िये के पेट में पत्थर भर कर सिल दिया और अपने बच्चों के साथ घर लौट गई।

भेड़िये की जब नींद खुली, तो उसे प्यास लग आई। वह नदी की ओर जाने लगा। पत्थरों के वजन से उसे अपना पेट भारी महसूस हो रहा था और उसे चलने में कठिनाई हो रही थी। फिर भी वह किसी तरह चलकर नदी तक पहुँचा और झुककर पानी पीने लगा। लेकिन उसका पर फिसल गया, वह नदी में जा गिरा और पत्थरों के बोझ के कारण वह नदी के पानी में डूब गया।

बकरी और उसके सातों बच्चे खुशी-खुशी रहने लगे।

सीख

बुरे काम का बुरा नतीज़ा।


सेविका और भेड़िया की कहानी

दोपहर का समय था. घर पर सेविका छोटे बच्चे को खाना खिलाकर सुलाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन बच्चा सो नहीं रहा था, बल्कि  रोये जा रहा था.

तंग आकर सेविका बच्चे को डराने के लिए बोली, “रोना बंद करो. नहीं तो मैं तुम्हें भेड़िये के सामने डाल दूंगी.”

उसी समय एक भेड़िया उस घर के पास से गुजर रहा था. सेविका की बात सुनकर वह बड़ा ख़ुश हुआ.

सोचने लगा, “वाह क्या बात है!! आज का दिन तो शानदार है. बिना मेहनत के ही भोजन मिलने वाला है. यहीं बैठ जाता हूँ. जब सेविका बच्चे को मेरे सामने डालेगी, तो आराम खाऊंगा.”

वह खिड़की के पास दुबककर बैठ गया और लार टपकाते हुए इंतज़ार करने लगा.

 

उधर बच्चा सेविका की भेड़िये के सामने डाल देने वाली बात सुनकर डर गया और चुप हो गया. भेड़िये इंतज़ार करता हुआ सोचने लगा कि ये बच्चा रो क्यों नहीं रहा है. जल्दी से ये रोये और जल्दी से सेविका इसे मेरे सामने डाल दे.

लेकिन बहुत देर हो जाने पर भी बच्चे की रोने की आवाज़ नहीं आई. भेड़िया बेचैन हो उठा और खिड़की से घर के अंदर झांकने लगा.

भेड़िये को अंदर झांकते हुए सेविका ने देख लिया. उसने झटपट खिड़की बंद की और सहायता के लिए शोर मचाने लगी, “बचाओ बचाओ भेड़िया भेड़िया.”

सेविका को शोर मचाता देख भेड़िया डरकर भाग गया.

सीख 

शत्रु द्वारा दी गई आशा पर विश्वास नहीं करना चाहिए.


भेड़िया और सारस की कहानी

एक जंगल में एक दुष्ट और लालची भेड़िया रहता था. एक दिन उसने एक हिरण का शिकार किया. शिकार के बाद पर वह अपने लालच पर नियंत्रण नहीं रख पाया और जल्दी-जल्दी उसे खाने लगा. इस जल्दीबाज़ी में एक हड्डी उसके गले में अटक गई.

हड्डी अटक जाने पर वह बहुत परेशान हो गया. अब उससे न कुछ खाते बन रहा था, न ही पीते. उसने बहुत कोशिश की कि किसी तरह हड्डी उसके गले से निकल जाए. लेकिन सारी कोशिश बेकार गई.

अंत में उसने किसी से सहायता लेने का विचार किया. वह सोचने लगा कि ऐसा कौन हैं, जो उसके गले से हड्डी का टुकड़ा निकाल सकता है. कुछ देर सोचने पर उसे सारस का ध्यान आया. सारस की लंबी गर्दन और चोंच थी. वह उसके मुँह में अपनी चोंच घुसाकर आसानी से हड्डी निकाल सकता था.

बिना देर किये भेड़िया सारस के पास पहुँचा और बोला, “सारस भाई! मेरे गले में एक हड्डी अटक गई है. क्या तुम अपनी चोंच से वो हड्डी निकाल दोगे? मैं तुम्हारा बहुत अहसानमंद रहूंगा और तुम्हें उचित ईनाम भी दूंगा.”

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सारस पहले तो भेड़िये के मुँह में अपनी चोंच डालने से डरा. लेकिन बाद वे उसे भेड़िये पर दया आ गया और वह तैयार हो गया.

भेड़िये मुँह खोलकर खड़ा हो गया और सारस ने उसमें अपनी चोंच डाल दी. लेकिन उसकी चोंच हड्डी तक नहीं पहुँच पाई. तब उसे अपनी आधी गर्दन भी भेड़िये के मुँह में घुसानी पड़ी. सारस की गर्दन मुँह में जाते ही लालची भेड़िये के मन में लालच जागने लगा. उस सोचने लगा कि यदि मैं इसकी लज़ीज़ गर्दन को चबा पाता, तो मज़ा आ जाता. लेकिन उस समय उसे अपने गले में फंसी हड्डी निकलवानी थी. इसलिए वह मन मारकर रह गया.

कुछ ही देर में सारस ने उसके गले से हड्डी निकाल दी. हड्डी निकलते ही भेड़िया जाने लगा. न उसने सारस को धन्यवाद दिया न ही ईनाम. सारस ने उसे रोककर कहा, “मेरा ईनाम कहाँ है? तुमने कहा था कि तुम इस काम के बदले मुझे ईनाम दोगे.”

भेड़िया बोला, “एक भेड़िये के मुँह में अपनी गर्दन डालकर भी तुम सही-सलामत हो, क्या यह तुम्हारा ईनाम नहीं हैं?”

इतना कहकर भेड़िया चला गया और सारस मुँह लटकाकर खड़ा रह गया.

सीख 

लालची और दुष्ट व्यक्ति से कभी कृतज्ञता या पुरूस्कार की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए.


चरवाहा बालक और भेड़िया की कहानी

एक गाँव में एक चरवाहा बालक रहता था. वह रोज़ अपनी भेड़ों को लेकर जंगल के पास स्थित घास के मैदानों में जाता. वहाँ वह भेड़ों को चरने के छोड़ देता और ख़ुद एक पेड़ के नीचे बैठकर उन पर निगाह रखता. उसकी यही दिनचर्या थी.

दिन भर पेड़ के नीचे बैठे-बैठे उसका समय बड़ी मुश्किल से कटता था. उसे बोरियत महसूस होती थी. वह सोचता कि काश मेरे जीवन में भी कुछ मज़ा और रोमांच आ जाये.

एक दिन भेड़ों को चराते हुए उसे मज़ाक सूझा और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”

वहाँ से कुछ दूरी पर स्थित खेतों में कुछ किसान काम कर रहे थे. चरवाहे बालक की आवाज़ सुनकर वे अपना काम छोड़ उसकी सहायता के लिए दौड़े चले आये. लेकिन जैसे ही वे उसके पास पहुँचे, वह ठहाके मारकर हंसने लगा.

किसान बहुत गुस्सा हुए. उसे डांटा और चेतावनी दी कि आज के बाद ऐसा मज़ाक मत करना. फिर वे अपने-अपने खेतों में लौट गए.

चरवाहे बालक को गाँव के किसानों को भागते हुए अपने पास आता देखने में बड़ा मज़ा आया. उसके उनकी चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन उसे फिर से मसखरी सूझी और वह फिर से चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”

खेत में काम कर रहे किसान अनहोनी की आशंका में फिर से दौड़े चले आये, जिन्हें देखकर चरवाहा बालक फिर  से जोर-जोर से हंसने लगा. किसानों ने उसे फिर से डांटा और चेतावनी दी. लेकिन उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ. उसके बाद जब-तब वह किसानों को इसी तरह ‘भेड़िया आया भेड़िया आया’ कहकर बुलाता रहा. बालक के साथ कोई अनहोनी न हो जाये, ये सोचकर किसान भी आते रहे. लेकिन वे उसकी इस शरारत से बहुत परेशान होने लगे थे.

एक दिन चरवाहा बालक पेड़ की छाया में बैठकर बांसुरी बजा रहा था कि सच में एक भेड़िया वहाँ आ गया. वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा, “भेड़िया आया भेड़िया आया.”

लेकिन उसकी शरारतों से तंग आ चुके किसानों ने सोचा कि आज भी ये बालक उन्हें परेशान करने का प्रयास कर रहा है. इसलिए वे उसकी सहायता करने नहीं गए. भेड़िया उसकी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया.

चरवाहा बालक दौड़ते हुए खेत में काम कर रहे किसानों के पास पहुँचा और रोने लगा, “आज सचमुच भेड़िया आया था. वह मेरी कुछ भेड़ों को मारकर खा गया.”

किसान बोले, “तुम रोज़ हमारे साथ शरारत करते हो. हमें लगा कि आज भी तुम्हारा इरादा वही है. तुम हमारा भरोसा खो चुके थे. इसलिए हममें से कोई तुम्हारी मदद के लिए नहीं आया.”

चरवाहे बालक को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने प्रण लिया कि वह फिर कभी झूठ नहीं बोलेगा और दूसरों को परेशान नहीं करेगा.

सीख 

बार-बार झूठ बोलने से लोगों के विश्वास पर चोट पहुँचती है और उनका विश्वास टूट जाता है. किसी का विश्वासपात्र बनना है, तो हमेशा सच्चाई के साथ रहिये.


भेड़िया और शेर की कहानी

जंगल किनारे स्थित चारागाह में भेड़िये की कई दिनों से नज़र थी। वहाँ चरती भेड़ों को देखकर उसके मुँह से लार टपकने लगती और वह अवसर पाकर उन्हें चुराने की फ़िराक़ में था।

एक दिन उसे यह अवसर मिल ही गया। वह चुपचाप चारागाह में चरते एक मेमने को उठा लाया। खुशी-खुशी वह जंगल की ओर भागा जा रहा था और मेमने के स्वादिष्ट मांस के स्वाद की कल्पना कर रहा था।

तभी एक शेर उसके रास्ते में आ गया। शेर भी भोजन की तलाश में निकला था। भेड़िये को मेमना लेकर आता देख उसने उसका रास्ता रोका और इसके मुँह में दबा मेमना छीनकर जाने लगा।

भेड़िया पीछे से चिल्लाया, “ये तो गलत बात है। ये मेरा मेमना था। इसे तुम इस तरह छीन कर नहीं ले जा सकते।”

भेड़िये की बात सुनकर शेर पलटा और बोला, “तुम्हारा मेमना! क्यों क्या चरवाहे ने इसे तुम्हें उपहार में दिया था? तुम खुद इसे चरागाह से चुराकर लाये हो, तो इस पर अधिकार कैसे जता सकते हो? फिर भी यदि यह चारागाह से चुराने के बाद यह तुम्हारा मेमना बन गया था, तो तुमसे छीन लेने के बाद अब ये मेरा मेमना बन गया है। मुझसे छीन सकते हो, तो छीन लो।”

भेड़िया जानता था कि शेर से पंगा लेना जान से हाथ गंवाना हैं। इसलिए वह अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।

सीख

गलत तरीके से प्राप्त की गई वस्तु उसी तरीके से हाथ से निकल जाती है।

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