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चूहे की 5 कहानियाँ | 5 Best Rat Stories In Hindi

Chuha Ki Kahani
Written by Editor

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में बच्चों के लिए चूहे की कहानियाँ (Chuha Ki Kahani) शेयर कर रहे हैं. सभी कहानियाँ रोचक, मज़ेदार होने के साथ-साथ शिक्षा-प्रधान भी हैं. पढ़िए :

चूहा की कहानी | Chuha Ki Kahani

शेर और चूहा | Sher Aur Chuha Ki Kahani

जंगल का राजा शेर खा-पीकर आराम से एक पेड़ की छाँव में सो रहा था. तभी कहीं से एक नटखट चूहा वहाँ आ पहुँचा और खेलने लगा. खेलते-खेलते वह शेर के ऊपर चढ़ गया.

कभी वह शेर की पीठ पर दौड़ता, तो कभी सिर पर चढ़ जाता. कभी वह उसके कान पर झूलता, तो कभी पूंछ से खेलता. उसे बड़ा मज़ा आ रहा है और उसकी उछल-कूद बढ़ती जा रही थी.

नटखट चूहे की धमा-चौकड़ी से शेर की नींद टूट गई. आँख खोलकर उसने देखा कि एक छोटा सा चूहा उसके ऊपर खेल रहा है. उसे बहुत गुस्सा आया और उसने चूहे को अपने पंजे में दबोच लिया.

शेर के पंजे में आते ही चूहे डर गया और थर-थर कांपने लगा. शेर बोला, “बदमाश चूहे, तेरी इतनी हिम्मत की तू जंगल के राजा शेर की नींद में खलल डाले. अब तेरी खैर नहीं. मरने के लिए तैयार हो जा. अब मैं तुझे मारकर खा जाऊंगा.”

मौत सामने देख चूहा गिड़गिड़ाने लगा, “वनराज, मुझे क्षमा कर दें. मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई. मुझ जैसे छोटे से प्राणी को खाकर आपको क्या मिलेगा? आपका पेट तो भर नहीं पायेगा. कृपा कर मुझे छोड़ दीजिये. अवसर आने पर मैं अवश्य आपके काम आऊंगा.”

चूहे की बात सुनकर शेर हँसने लगा और बोला, “मैं जंगल का राजा हूँ. मुझसे बलशाली इस पूरे जंगल में कोई नहीं. तू छोटा सा चूहा मेरे क्या काम आएगा? लेकिन फिर भी मैं दया करके तुझे प्राणदान देता हूँ. मेरी नज़रों से दूर हो जा और आइंदा कभी मेरी नींद में खलल मत डालना.”

चूहा धन्यवाद कहकर वहाँ से चला गया.  

कुछ दिन बीते. एक दिन शेर जंगल में शिकार के लिए घूम रहा था कि वह शिकारी द्वारा बिछाए जाल में फंस गया. उसने बहुत प्रयत्न किया, किंतु जाल से बाहर नहीं आ पाया. वह मदद के लिए दहाड़ने लगा.

शेर की दहाड़ वहाँ से गुज़र रहे एक चूहे के कानों में पड़ी. यह वही चूहा था, जिसे शेर ने दया कर प्राणदान दिया था. चूहे दहाड़ की दिशा में गया, तो शेर को जाल में फंसा हुआ पाया. उसने फ़ौरन अपने नुकीले दांतों से जाल काट दिया. शेर आज़ाद हो गया.

उसने चूहे को धन्यवाद दिया, तो चूहा बोला, “वनराज, आप शायद मुझे भूल गए हैं. मैं वही चूहा हूँ, जिसे अपने प्राणदान दिया था. मैंने आपको कहा था कि किसी दिन मैं अवश्य आपके काम आऊंगा. देखिये आज मैं आपके काम आ ही गया.”

शेर को वह दिन याद आ गया और उस दिन की अपनी सोच पर बहुत पछतावा हुआ कि जिस चूहे को उसने तुच्छ समझा था, उसी की सहायता से वह शिकारी से बच पाया है.

सीख (Moral of the story)

१. बाहरी स्वरुप देखकर किसी की योग्यता का आंकलन नहीं करना चाहिए.

२. उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता. किसी न किसी रूप में उसका फ़ल अवश्य प्राप्त होता है.

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बिल्ली के गले में घंटी | Billi Aur Chuha Ki Kahani

एक शहर में एक बहुत बड़ा मकान था. उस मकान में चूहों ने डेरा जमा रखा था. जब भी मौका मिलता वे अपने-अपने बिलों से निकलते और कभी खाने की चीज़ों पर अपना हाथ साफ़ करते, तो कभी घर की अन्य चीज़ें कुतर देते. उनका जीवन बड़े मज़े से बीत रहा था.

इधर मकान मालिक चूहों से तंग आ चुका था. इसलिए वह एक बड़ी सी बिल्ली ले आया. अब वह बिल्ली उसी घर में रहने लगी. बिल्ली के आने से चूहों का जीना हराम हो गया. जो भी चूहा बिल से निकलता, वह उसे चट कर जाती.

चूहों का बिलों से निकलना मुहाल हो गया. वे दहशत के माहौल में जीने लगे. बिल्ली उनके लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन गई थी. समस्या से निज़ात पाने का उपाय निकालने के लिए एक दिन चूहों की सभा बुलाई गई.

सभा में सभी चूहे उपस्थित हुए. सभा की अध्यक्षता कर रहे चूहे ने सबको संबोधित करते हुए कहा, “साथियों, आप सब जानते ही हैं कि हम लोग बिल्ली रुपी बहुत बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं. वह रोज़ हमारे किसी न किसी साथी को मारकर खा जाती है. बिलों से निकलना मुश्किल हो गया है. लेकिन इस तरह हम कब तक बिल में छुपकर रहेंगे. भोजन की व्यवस्था के लिए तो हमें बिल से बाहर निकलना ही होगा. यह सभा इसलिए आयोजित की गई है, ताकि इस समस्या का समाधान निकाला जा सके. आपके सुझाव आमंत्रित हैं. आप एक-एक कर अपने सुझाव दे सकते हैं.”

एक-एक कर सभी चूहों से इस समस्या पर अपनी-अपनी सोच के हिसाब से सुझाए दिए. लेकिन किसी भी उपाय पर सब एकमत नहीं हुए.

तब अंत में एक चूहा उठा और चहकते हुए बोला, “मेरी दिमाग में अभी-अभी एक बहुत ही बढ़िया उपाय आया है. क्यों न हम बिल्ली के गले में एक घंटी बांध दें? इस तरह बिल्ली जब भी आस-पास होगी, उस घंटी की आवाज़ से हमें पता चल जायेगा और हम वहाँ से भाग जायेंगे. कहो कैसा लगा उपाय?”  

सारे चूहों को ये उपाय बहुत पसंद आया. वे ख़ुशी में नाचने और झूमने लगे, मानो उनकी समस्या का अंत हो गया हो.

तभी एक बूढ़ा और अनुभवी चूहा खड़ा हुआ और बोला, “मूर्खों, नाचना-गाना बंद करो और ज़रा ये तो बताओ कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा?”

ये सुनना था कि चूहों का नाचना-गाना बंद हो गया. बिल्ली के गले में घंटी बांधना अपनी जान से हाथ धोना था. कोई इसके लिए तैयार नहीं हुआ. सभा में शांति छा गई थी. तभी इस शांति को चीरते हुए बिल्ली के कदमों की आहट सबके कानों में पड़ी और फिर क्या था? सब सिर पर पैर रखकर अपने-अपने बिलों की ओर भाग खड़े हुए.

सीख

योजना बनाने का कोई औचित्य नहीं, यदि उसे लागू न किया जा सके.

पढ़ें : मोर और नीलकंठ की कहानी 

दो चूहे | Shahar Ka Chuha Aur Gaon Ka Chuha Ki Kahani

शहर में रहने वाले और गाँव में रहने वाले दो चूहों में गहरी मित्रता थी. वे अक्सर एक-दूसरे को संदेश भेजा करते और एक-दूसरे का हाल जाना करते थे. एक बार गाँव में रहने वाले चूहे ने शहरी चूहे को गाँव आने का निमंत्रण भेजा. शहरी चूहे ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया.

सप्ताहांत का समय नियत हुआ और गाँव का चूहा अपने शहरी मित्र के आने की प्रतीक्षा करने लगा. वह उससे ढेर सारी बातें करना चाहता था, उसे गाँव के खेत-खालिहानों की सैर करवाना चाहता था. वह अपने मित्र की आव-भगत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए वह उसके लिए ढेर सरे फ़ल और आनाज इकट्ठा करने में लगा हुआ था.

आखिर वह दिन भी आया, जब शहरी चूहा गाँव पहुँचा. दोनों मित्र एक-दूसरे से मिलकर बहुत ख़ुश हुए. बहुत देर तक वे बातें करते रहे और एक-दूसरे को अपना हाल बताते रहे. फिर दोनों भोजन के लिए बैठे. भोजन में गाँव के चूहे ने अनाज और फ़ल परोसे, जिसे खाकर दोनों ने आराम किया.  

शाम को गाँव का चूहा अपने शहरी मित्र को गाँव दिखाने ले गया. शहरी चूहा वहाँ के खेत-खलिहान देखकर आनंद से भर उठा. वहाँ की शुद्ध हवा में श्वास लेकर उसका मन प्रफुल्लित हो गया. गाँव का चूहा बोला, “गाँव का वातावरण और वायु शुद्ध है, जो तुम्हें शहर में शायद ही नसीब होती होगी मित्र.”

शहरी चूहा शहर की समस्याएं जानता था. वह वर्षों से वहाँ रहा रहा था, लेकिन गाँव के चूहे मित्र की ये बात उसे बुरी लग गई. हालांकि वह कुछ बोला नहीं.

गाँव का चूहा गाँव की प्रशंसा में लगा हुआ था, वह उसे जंगलों में ले गया और बोला, “मित्र, ऐसे प्राकृतिक और मनोरम दृश्य तुम्हें शहर में देखने को नहीं मिलेंगे. इसलिए आज इस दृश्यों का आनंद ले लो.”

शहरी चूहे को यह बात भी चुभी, लेकिन वह कुछ नहीं बोला. वह सोचने लगा कि अब अपने इस ग्रामीण मित्र को शहरी चका-चौंध का जीवन दिखाना पड़ेगा. तब इसे समझ आएगा कि शहर कितना शानदार होता है.

रात होने पर दोनों चूहे घर वापस आ गए. भोजन का समय आया, तो गाँव के चूहे ने फिर से शहरी चूहे को फ़ल और अनाज परोसा. शहरी भोजन के आदी चूहे को यह भोजन गले नहीं उतर रहा था, वह बोला, “मित्र, क्या तुम हर समय फल और अनाज खाते हो. शहर आओ, मैं तुम्हें एक से बढ़कर एक पकवान खिलाऊंगा. साथ ही वहाँ का शानदार जीवन भी दिखाऊंगा. कल ही तुम मेरे साथ चलो.”

गाँव के चूहे में शहर देखने की लालसा जाग गई. वह फ़ौरन तैयार हो गया. रात नरम घास पर सोने के बाद अगली सुबह उठकर दोनों शहर के लिए निकल गए. शहरी चूहा अपने ग्रामीण मित्र को उस घर में ले गया, जहाँ वह रहा करता था. वह किसी अमीर आदमी का घर था, उसमें ही शहरी चूहे का बिल था. उतना बड़ा और सजा-धजा घर देखकर गाँव के चूहे की आँखें चौंधिया गई.

खाने की मेज़ देखी, तो उसका मुँह खुला रह गया. एक से बढ़कर एक पकवान उस पर सजे हुए थे. शहरी चूहे ने उसे भोजन प्रारंभ करने को कहा. ख़ुशी-ख़ुशी गाँव का चूहा भोजन करने लगा. सबसे पहले उसके प्लेट में से पनीर का टुकड़ा उठाया. उसने अभी पनीर कुतरा ही था, कि शहरी चूहा चिल्लाया, “भागो मित्र, बिल्ली आ रही है. जल्दी से अलमारी में छुप जाओ. नहीं तो जान से हाथ धोना पड़ेगा.”

पनीर छोड़ गाँव का चूहा शहरी चूहे के साथ अलमारी की ओर भागा. कुछ देर तक दोनों अलमारी में छुपे रहे. बिल्ली के जाने के बाद दोनों वहाँ से निकले. शहरी चूहा फिर से अपने मित्र गाँव के चूहे को भोजन के लिए ले गया. लेकिन डर के मारे उसकी भूख मर गई थी.  

शहरी चूहा उसकी हालत देख बोला, “मित्र डरने की कोई बात नहीं है. बिल्ली चली गई है. वैसे यह शहरी जीवन का हिस्सा है. यहाँ यूं ही जीवन जीते हैं. लो केक खाकर देखो.”

गाँव के चूहे ने केक का टुकड़ा ले लिया. लेकिन इसके पहले वह उसे मुँह में डाल पाता, शहरी चूहा चिल्लाया, “भागो मित्र! कुत्ता आ गया है.”

दोनों फिर से भागकर अलमारी में जा छुपे. शहरी चूहे ने बताया कि उस घर के मालिक ने एक कुत्ता पाला हुआ है, जो बड़ा भयानक है. उससे बचकर रहना पड़ता है.”

गाँव का चूहा बहुत ज्यादा डर गया था. अलमारी से बाहर आने के बाद वह एक क्षण भी वहाँ नहीं रुका. वह बोला, “मित्र, मुझे जाने दो. ये शहरी जीवन मुझे तो रास नहीं आता. यहाँ तो हर समय सिर पर ख़तरा मंडराता रहता है. इससे तो गाँव ही भला.”

फिर वह गाँव की ओर चल पड़ा और गाँव पहुँचकर ही दम लिया. वहाँ पहुँचकर वह सोचने लगा, “जगह वही अच्छी है, जहाँ जीवन सुरक्षित है.”

शिक्षा

अमन-चैन का साधारण जीवन ऐसे ऐशो-आराम के जीवन से बेहतर है, जो ख़तरों से भरा हुआ है.

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नटखट चूहा | Natkhat Chuha Ki Kahani

एक छोटे से बिल में रहने वाला नटखट चूहा (Natkhat Chuha)  हर समय कुछ न कुछ शरारतें करने मचलता रहता था. लेकिन बहुत दिनों से बारिश होने के कारण वह अपने बिल से बाहर नहीं निकल पा रहा था.

जिस दिन बारिश रुकी, उसने सोचा, “इतने दिन बिल में घुसे-घुसे मेरा मन उकता गया है. आज तो मैं शहर जाऊंगा और खूब घूमूंगा.”

वह झटपट तैयार हुआ और शहर की ओर निकल पड़ा. मस्ती में डूबा चूहा शहर में घूम रहा था. घूमते-घूमते वह शहर के बाज़ार में पहुँच गया. वहाँ उसे कपड़े की एक बड़ी सी दुकान दिखाई पड़ी. वह दुकान में घुस गया.

जब दुकानदार ने चूहे को देखा, तो बोला, “अरे चूहे, तू कैसे मेरी दुकान में घुस गया? चल भाग यहाँ से.”

चूहा बोला, “मुझे एक टोपी सिलवानी है. उसके लिए मैं कपड़ा ख़रीदने आया हूँ.”

उसकी बात सुनकर दुकानदार हँसते हुए बोला, “तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है. तू चूहा होकर टोपी पहनेगा..हा…हा…हा…ध्यान से सुन, मैं चूहों को कुछ नहीं बेचता. मेरा समय बर्बाद मत कर और भाग यहाँ से.”

चूहे को गुस्सा आ गया. वह चिल्लाकर बोला, “तुम मुझे कपड़ा बेच रहे हो या नहीं?”

“नहीं” दुकानदार ने उत्तर दिया.

“रातों रात मैं आऊँगा.

अपनी सेना लाऊँगा.

तेरे कपड़े कुतरूँगा.” चूहा गाते हुए दुकानदार से बोला.

चूहे गाने के अर्थ समझकर दुकानदार डर गया और उसे रेशमी कपड़ा देकर बोला, “चूहे भाई, मेरे दुकान के कपड़े मत कुतरना. मेरा धंधा बर्बाद हो जायेगा.”

चूहे ने रेशमी कपड़ा लिया और नाचते-गाते दुकान से बाहर निकल गया. थोड़ी ही दूर पर दर्जी की दुकान थी. वह वहाँ पहुँचा और दर्जी से बोला, “दर्जी भाई, इस कपड़े से एक अच्छी सी टोपी सिल दो.”

चूहे हो देखकर दर्जी बोला, “देखता नहीं मेरे पास बहुत काम है. तेरी टोपी मैं कब सिलूं? इतना समय नहीं है मेरे पास. चल भाग जा…मेरा समय बर्बाद कर.”

चूहे को गुस्सा आ गया. वह चिल्लाकर बोला, “तुम मेरी टोपी सिलते हो या नहीं.”

“नहीं सिलता.” दर्जी भी चिल्लाकर बोला.

“रातों रात मैं आऊँगा.

अपनी सेना लाऊँगा.

तेरे कपड़े कुतरूँगा.” चूहा गाने लगा.

चूहे का गाना सुनकर दर्जी डर गया और उससे कपड़ा लेकर वह टोपी सिलने लगा. थोड़ी ही देर में एक सुंदर टोपी तैयार थी. चूहे ने टोपी पहनी और आईने में ख़ुद को देखा. टोपी सुंदर लग रही थी, लेकिन सादी थी. चूहे ने सोचा कि इसमें चमकीले सितारे लगवाऊँगा, तो यह और ज्यादा सुंदर लगने लगेगी.

वह दर्जी की दुकान से निकला और सितारों की दुकान खोजने लगा. थोड़ी ही दूर पर एक छोटी सी सितारों की दुकान थी. नटखट चूहा उसमें घुस गया. दुकान के अंदर जाकर वह बोला, “भैया, मुझे इस टोपी में चमकीले सितारे लगवाने है. अपनी दुकान के सबसे सुंदर और चमकीले सितारे दिखाओ.”

टोपी पहने हुए चूहे को देखकर दुकानदार जोर से हँसा और बोला, “तेरे लिए ऐसी ही टोपी ठीक है. मैं तुझे सितारे नहीं दूंगा. भाग यहाँ से.”

“तुम मुझे सितारे देते हो या नहीं.” चूहा गुस्से में बोला.

“नहीं” दुकानदार बोला.

“रातों रात मैं आऊँगा

अपनी सेना लाऊँगा

सारे सितारे बिखेरूँगा.” चूहे ने गाना गया.

सितारे बिखेरने की बात सुनकर दुकानदार डर गया और बोला, “अरे चूहे भाई, क्यों नाराज़ होते हैं? मैं तुम्हें अभी सितारे दिखाता हूँ. जो सितारे तुम्हें पसंद हो, उसे तुम्हारी टोपी में टांक भी देता हूँ.”

कुछ ही देर में चूहे की टोपी पर चमकीले सितारे लग गए. जब उसने टोपी पहनकर ख़ुद को आईने में देखा, तो ख़ुशी से झूमने लगा. वह ख़ुद को राजा से कम नहीं समझ रहा था.

सितारों की दुकान से बाहर निकलने के बाद वह सोचने लगा, “मैं इस सुंदर टोपी में राजा लग रहा हूँ. ऐसा करता हूँ कि राजा के पास जाता हूँ और उन्हें अपनी टोपी दिखता हूँ.”

वह कूदते-फांदते राजमहल को ओर जाने लगा. राजमहल पहुँचकर वह चमकीली टोपी के साथ तनकर राजा के सामने खड़ा हो गया.

राजा उसे देखकर हैरत में पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

चूहा बोला, “महाराज! आज ही मैंने ये टोपी सिलवाई है. आपको दिखाने आया हूँ. आप बताइये कि इस टोपी में मैं कैसा लग रहा हूँ?”

“तुम तो इसमें बहुत जंच रहे हो. एकदम राजकुमार लग रहे हो.” राजा ने उत्तर दिया.

चूहा ख़ुश हो गया और बोला, “ऐसी बात है, तो राजसिंहासन से उतरो. मैं उस पर बैठूंगा.”

चूहे की बात पर राजा जोर-जोर से हँसने लगा. फिर बोला, “अरे चूहे, मैं इस राज्य का राजा हूँ. इस राजसिंहासन पर मैं ही बैठूंगा, कोई चूहा नहीं.”

चूहा तैश में आकर बोला, “तुम इस सिंहासन से उतरते हो या नहीं.”

सैनिक चूहे को पकड़ने के लिए जैसे ही आगे बढ़े, चूहा फुदककर दूसरी ओर भाग गया. सैनिकों नटखट चूहे को पकड़ने के लिए उसके पीछे बहुत भागे, लेकिन वो उनकी पकड़ में नहीं आया. जब वे थक-हार गए, तो चूहा राजा के सामने तनकर खड़ा हो गया और बोला –

“रातों रात को मैं आऊँगा

अपनी सेना लाऊँगा

तेरे कान कुतरूँगा.”

चूहे की बात सुनकर राजा डर गया. वह सोचने लगा, “चूहे की सेना तो पूरे राजमहल को तहस-नहस कर देगी.”

चूहा चिल्लाया, “सिंहासन से उतरते हो या नहीं.”

राजा डर के मारे तुरंत सिंहासन से उतर गया और बोला, “मैं तो सिंहासन से उतर गया, अब तुम जितनी देर चाहो इस पर बैठो.”

राजा के उतरते ही चूहा मज़े से सिंहासन पर बैठ गया. रात भर वह सिंहासन पर बैठकर आराम करता रहा. फिर उठकर ख़ुशी में नाचता-गाता अपने दोस्तों के पास चला गया. दोस्तों के बीच पहुँचकर उसने अपनी सुंदर चमकीली टोपी दिखाई और दिन भर का किस्सा उन्हें सुनाया.

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सिंह, चूहा और बिल्ली | Singh, Billi Aur Chuha Ki Kahani

बहुत समय पहले की बात है. दुर्दांत नाम का एक बलिष्ट सिंह अर्बुदशिखर नामक पर्वत की गुफ़ा में निवास करता था. प्रतिदिन वह शिकार हेतु वन में जाता और वापस गुफ़ा में आकर विश्राम किया करता था. एक दिन कहीं से एक चूहा उस गुफा में आ गया धमका और बिल बनाकर रहने लगा.

जब भी सिंह विश्राम कर रहा होता, चूहा बिल से निकलता और सिंह के केशों को कुतर जाता. जागने के उपरांत सिंह की जब अपने कुतरे हुए केशों पर दृष्टि जाती, तो वह क्रोध से आग-बबूला हो जाता. बलशाली होने के बावजूद भी उसका चूहे जैसे छोटे से जीव पर बस नहीं था. जब भी वह उसे पकड़ने के प्रयास करता, वह चपलता से अपने बिल में घुस जाता और सिंह क्रोधवश दांत पीसता रह जाता.

एक दिन सिंह ने सोचा कि इस छोटे से जीव पर अपनी ऊर्जा व्यर्थ करने का कोई औचित्य नहीं है. इसके विनाश के लिए इसका ही कोई परम शत्रु लाना चाहिए और वह गाँव जाकर बहला-फ़ुसलाकर एक बिल्ली ले आया.

प्रतिदिन सिंह बिल्ली के लिए ताज़ा मांस लाया करता और प्रेम से उसे खिलाता. बदले में सिंह के विश्राम के समय चौकसी करती. बिल्ली की उपस्थिति में चूहा डर के मारे बिल में घुसा रहता. सिंह अब निश्चिंत होकर सोने लगा. बिल्ली रोज़ ताज़ा मांस प्राप्त कर हृष्ट-पुष्ट होने लगी.

इधर चूहा (Mouse) बिला में घुसा-घुसा कमज़ोर हो चला था. सिंह के केश उसका आहार थे. आखिर, कब तक वह भूखे-प्यासे बिल में पड़ा रहता? एक दिन व्याकुल होकर वह अपने बिल से निकल ही गया.

सिंह उस समय विश्राम कर रहा था और बिल्ली पास ही बैठकर मांस का भक्षण कर रही थी. चूहा बिल्ली को चकमा देकर सिंह के पास जाने का प्रयास करने लगा, किंतु बिल्ली चपल थी. उसने चपलता से चूहे को अपने पंजे में दबोच लिया और मारकर खा गई.

बिल्ली प्रसन्न थी कि उसने अपने स्वामी की चिंता का सदा के लिए अंत कर दिया. उसे विश्वास था कि प्रसन्न होकर सिंह अवश्य उसे और स्वादिष्ट मांस लाकर देगा.

सिंह के जागने पर बिल्ली ने उसे चूहे को मार डालने की बात बता दी. सिंह की परेशानी का कारण समाप्त हो चुका था. वह बड़ा प्रसन्न हुआ. किंतु अब बिल्ली उसके किसी प्रयोजन की नहीं रही रही थी. उसने उसे भोजन देना बंद कर दिया. बिना भोजन के बिल्ली कमज़ोर होने लगी. उसे समझ में आ गया कि चूहे को मारकर उसने अपनी उपयोगिता समाप्त कर दी है. इसलिए सिंह उसकी उपेक्षा करने लगा लगा है. अंततः वह गुफ़ा छोड़कर चली गई.

सीख 

प्रयोजन सिद्ध हो जाने के उपरांत पूछ-परख समाप्त हो जाती है. इसलिए अपनी उपयोगिता बनाये रखें.


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