जादुई दरवाज़ा कहानी | Jadui Darwaza Kahani | Magical Door Story In Hindi

फ्रेंड्स, आज की जादुई कहानी (Jadui Kahani) में हम जादुई दरवाज़ा की कहानी (Jadui Darwaza Kahani) शेयर कर रहे हैं. ये कहानी एक लकड़ी काटने वाले गरीब लड़के है. कैसे उसका जादुई दरवाज़ा से वास्ता पड़ता है? उस दरवाज़े में जाने पर क्या होता है? जानने के लिए पढ़िए Magical Door Story In Hindi :

Jadui Darwaza Kahani

Jadui Darwaza Kahani
Jadui Darwaza Kahani | Jadui Darwaza Kahani | Jadui Darwaza Kahani

एक छोटे से गाँव में सुरेश नाम का लड़का अपनी माँ के साथ रहता था. उसके पिता नहीं थे. सुरेश लकड़ियाँ काटने का काम किया करता था. वह रोज़ सुबह कुल्हाड़ी लेकर जंगल चला जाता, दिन भर लकड़ियाँ काटता और शाम को उन लड़कियों की इकट्ठा कर बाज़ार जाकर बेच देता था. जो पैसे मिलते, उससे उसके घर का गुजारा चलता था.

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एक दिन जब सुरेश जंगल से लकड़ियाँ काटकर बाज़ार में बेचने गया, तो दुकानदार बोला, “सुरेश, अब लकड़ियों की मांग बढ़ गई है. इतनी लकड़ियों से काम नहीं चल पायेगा. तुम्हें ज्यादा लकड़ियाँ लानी होगी.”

सुरेश बोला, “सेठजी! कल से मैं ज्यादा मेहनत करूंगा और ज्यादा लकड़ियाँ काटकर लाऊंगा.”

“ठीक है! यदि तुम ज्यादा लकड़ियाँ लेकर आओगे, तो तुम्हें उसे अच्छे दाम दूंगा.” दुकानदार बोला.

सुरेश दुकानदार से पैसे लेकर घर चला आया और अपनी माँ को सारी बात बताई. सुनकर माँ बोली, “बेटा, छोटी सी उम्र में तुम्हें कितनी मेहनत करनी पड़ती है. काश तेरे पिता ज़िन्दा होते, तो हमें यूं गरीबी का जीवन नहीं काटना पड़ता.”

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सुरेश माँ से बोला, “माँ चिंता मत कर. मैं खूब मेहनत करूंगा. एक दिन हमारी गरीबी भी दूर हो जायेगी.”

अगली सुबह सुरेश जल्दी उठा और कुल्हाड़ी लेकर जंगल चला गया. जंगल के बाहर के कई पेड़ों की लकड़ियाँ वह पहले ही काट चुका था. इसलिए उसने जंगल के अंदर जाकर लकड़ियाँ काटने का निश्चय किया.

जंगल के अंदर जाने पर उसे बरगद का एक पेड़ दिखाई पड़ा, जिसमें एक बड़ा सा दरवाज़ा बना हुआ था. ऐसा विचित्र बरगद का पेड़ देख सुरेश अचरज में पड़ गया. कौतुहल में वह पेड़ के पास गया और दरवाज़े को धक्का दे दिया. देखते ही देखते दरवाज़ा खुल गया.

सुरेश ने अंदर झांका, तो उसे घुप्प अंधेरा नज़र आया. लेकिन, फ़िर भी सुरेश दरवाज़े के अंदर चला गया. अंदर कुछ दूर अंधेरे में चलने के बाद उसे रौशनी दिखाई देने लगी. वह रौशनी की ओर बढ़ा, तो पाया कि पेड़ के इस पार एक गाँव बसा हुआ है.

वह गाँव में घूमने लगा. घूमते-घूमते अचानक उसे किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. वह आवाज़ की ओर बढ़ा, तो देखा कि वो आवाज़ एक गड्ढे से आ रही है.

उसने गड्ढे में झांका. वहाँ एक आदमी गिरा हुआ था और सहायता के लिए पुकार रहा था.

सुरेश ने उससे कहा, “मैं रस्सी फेंक रहा हूँ. आप उस पकड़कर बाहर आ जाइए.”

फ़िर उसने गड्ढे में रस्सी फेंकी, जिसे पकड़कर वह आदमी गड्ढे से बाहर आ गया. वह सुरेश को बहुत धन्यवाद देने लगा, तो सुरेश बोला, “धन्यवाद की कोई बात नहीं. हम सबको एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए.”

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फ़िर उस आदमी ने सुरेश से पूछा, “तुम कौन हो और यहाँ कैसे आये?”

सुरेश ने उसे बरगद के पेड़ के दरवाज़े के बारे में सारी बात बता दी. है.

तब वह आदमी बोला, “वह एक जादुई दरवाज़ा है, जो केवल दस दिनों के लिए खुलता है. तुम्हें शाम होने के पहले वापस जाना होगा, क्योंकि अगर दरवाज़ा बंद हो गया, तो तुम दस दिन अपन घर नहीं जा पाओगे.”

सुरेश ने इस जानकारी के लिए उसका धन्यवाद किया और आगे जाने लगा. तब उस आदमी ने उसे एक डंडा दिया और बोला, “तुमने मेरी जन बचाई है. इसलिए ये डंडा रख लो.”

“पर मैं इस डंडे का क्या करूंगा?” सुरेश आश्चर्य में बोला.

“ये एक जादुई डंडा है. इससे तुम जितनी लकड़ियाँ मांगोगे, ये तुम्हें देगा.” उस आदमी ने बताया.

सुरेश ने जादुई डंडा ले लिया और उस आदमी का धन्यवाद कर आगे बढ़ गया.

कुछ दूर जान पर उसे एक बूढ़ा आदमी दिखाई पड़ा, जो कुछ परेशान सा था. सुरेश ने इ\उससे पूछा, “बाबा, क्या हुआ? कुछ परेशान नज़र आ रहे हो.”

वह आदमी बोला, “बेटा, क्या बताऊं. घर पर लकड़ियाँ खत्म हो गई है. इसलिय जंगल से लड़कियां काटने निकला हूँ लेकिन अब इन हाथों में इतनी शक्ति नहीं रही. समझ नहीं आ रहा कि कैसे लकड़ियों की व्यवस्था करूं.”

सुरेश ने जादुई डंडे की मदद से बूढ़े आदमी को ढेर सारी लकड़ियाँ दी. बूढ़े आदमी ने उसका धन्यवाद किया और उसे एक बर्तन देते हुए कहा, “बेटा, ये एक जादुई बर्तन है. जब भी खाने की ज़रूरत पड़े, इससे मांग लेना.”

सुरेश ने जादुई बर्तन ले लिया. शाम हो रही थी. इसलिए वह पेड़ के जादुई दरवाज़े से बाहर निकल आया. ख़ुशी-ख़ुशी वह घर पहुँचा और जंगल में हुई घटना के बारे में बताते हुए जादुई डंडा और जादुई बर्तन माँ के हाथ में रख दिया.

माँ जादुई डंडे और जादुई बर्तन को देखकर बहुत ख़ुश हुई. सुरेश को भूख लग रही थी. उसने जादुई बर्तन से खाना मांगा. ढेर सारे पकवान उनके सामने थाली में सज गए. माँ-बेटे ने उस रात पेट भरकर खाना खाया.

अगली सुबह सुरेश ने जादुई डंडे से ढेर सारी लकड़ियाँ मांगी और दुकानदार को बेचकर अच्छे पैसे कमाये. जादुई डंडे और जादुई बर्तन की मदद से धीरे-धीरे उनकी गरीबी दूर हो गई और वे आनंदपूर्वक रहने लगे.

सीख (Moral of the story)

सदा विपत्ति में फंसे लोगों की सहायता करनी चाहिए. भला करोगे, तो भला प्रतिफल प्राप्त होगा.


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