फ्रेंड्स, आज की जादुई कहानी (Jadui Kahani) में हम जादुई मछली की कहानी (Jadui Machli Ki Kahani) शेयर कर रहे हैं. ये मध्यप्रदेश की एक लोकप्रिय लोककथा (Lok Katha) है. पढ़िए :
Jadui Machhli Story In Hindi

एक गाँव में एक मछुआरा रहता अपनी पत्नि के साथ रहता था. वह मुँह अंधेरे घर से नदी को ओर निकल जाता और वहाँ जाल डालकर दिन भर मछली पकड़ता था. शाम तक जितनी मछली पकड़ पाता, उसे बेचकर प्राप्त पैसों से अपना घर चलाता था.
आमदनी अधिक नहीं थी. क्योंकि कभी ढेर सारी मछलियाँ फंसती, तो कभी बहुत ही कम. जैसे-तैसे उसके दिन गुजर रहे थे. इस पर भी वह संतुष्ट था और सुख-चैन से अपना जीवन बसर करने की कोशिश करता था.
लेकिन उसकी पत्नि लालची किस्म थी. चाहे वह कितने ही पैसे घर लेकर आये, वह कभी ख़ुश नहीं होती और उसे उलाहना दिया करती थी. मछुआरा ज्यादा मेहनत कर अधिक से अधिक पैसे कमा कर उसे ख़ुश करने की हर संभव कोशिश किया करता था. लेकिन कभी उसे ख़ुश नहीं कर पाता था.
एक सुबह जब मछुआरा उठा, तो उसका शरीर बुखार से तप रहा था. लेकिन पत्नि के डर से वह जाल लेकर नदी चला गया. कुछ देर वह नदी में जाल डाले बैठा रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में नहीं फंसी. वह खाली हाथ घर लौट आया.
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उसे खाली हाथ लौटा देख उसकी पत्नि चिल्लाने लगी. उसने उसे समझाने की कोशिश की कि आज उसकी तबियत ठीक नहीं है. लेकिन वह नहीं मानी और मजबूरन मछुआरे को फिर से मछली पकड़ने जाना पड़ा.
बुखार से तपता हुआ वह नदी में जाल डालकर बैठ गया. बहुत देर तक जाल डाले रहने के बाद भी एक भी मछली जाल में नहीं फंसी. वह निराश होकर लौटने का मन बनाने लगा कि तभी उसे जाल कुछ भारी सा प्रतीत हुआ.
वह ख़ुश हो गया कि शायद कोई बड़ी मछली फंस गई है. उसने जल्दी-जल्दी जाल खींचा. जाल में एक सुनहरी मछली फंसी हुई थी. मछुआरे ने इतनी सुंदर मछली पहली बार देखी थी. वह उसे हाथ में लेकर निहारने लगा.
तभी वह मछली बोल पड़ी, “मछुआरे भाई! मैं इस नदी की रानी हूँ. मुझ पर दया करो. मुझे छोड़ दो. तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगी.”
मछुआरे को मछली पर दया आ गई. उसने वापस नदी के पानी में छोड़ दिया और घर वापस आ गया. घर में पत्नि ने उसे फिर खाली हाथ लौटा देख उत्पात मचा दिया.
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मछुआरे ने उसे किसी तरह शांत कर सुनहरी जादुई मछली (jadui Machhli) की बात बताई. सारी बात जानकर उसकी पत्नि भड़क गई कि जब जादुई मछली हर इच्छा पूरी करने तैयार थी, तो तुमने कुछ मांगा क्यों नहीं? उसने जबरदस्ती मछुआरे को नदी पर भेजा और जादुई मछली (jadui Machhli) से खाने-पीने का सामान मांगकर लाने को कहा.
मछुआरा नदी पर पहुँचा और किनारे खड़े होकर ज़ोर से चिल्लाया, “मछली रानी! मछली रानी! बाहर तो आओ. मेरी एक विनती सुन लो.”
कुछ ही देर में नदी के पानी में हलचल हुई और सुनहरी जादुई मछली (Jadui Machhli) पानी के ऊपर आ गई.
“क्या बात है मछुआरे भाई? मुझे क्यों बुलाया?” मछली बोली.
“मछली रानी! आज घर पर खाने का कुछ सामान नहीं है. मैं और मेरी पत्नि दोनों भूखे हैं. क्या तुम मुझे खाने का कुछ सामान दे सकती हो?” मछुआरा हाथ जोड़कर बोला.
“क्यों नहीं?” मछली बोली, “तुम अपने घर पहुँचो. वहाँ खाने का सामान पहुँच जायेगा.”
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मछुआरे ने वापस घर की राह पकड़ ली. जब वह घर पहुँचा, तो देखा दरवाज़े पर खाने-पीने की ढेर सारी चीज़ें रखी हुई है. उसने आवाज़ लगाकर अपनी पत्नि को बुलाया और वे सारी चीज़ें दिखाई.
उसकी पत्नि ख़ुश हो गई. सारी चीज़ें घर के अंदर रखने के बाद मछुआरा बैठा ही था कि पत्नि बोली, “तुम भी क्या बस खाने-पीने की चीज़ें ही मांगकर लाये. सुंदर वस्त्र और कीमती आभूषण भी तो मांगने चाहिए थे. अभी जाओ और जादुई मछली (Jadui Machhli) से जाकर वस्त्र और आभूषण मांगों.”
मछुआरे को बार-बार जाकर मछली से चीज़ें मांगना ठीक नहीं लगा. वह बोला, “अभी तो इतना सारा खाने का सामन मांगकर लाया हूँ. हमारी खाने की ज़रूरतें तो पूरी हो गई. कपड़े और आभूषण फिर कभी मांग लूंगा.”
ये सुनना था कि पत्नि ने आसमान सिर पर उठा लिया. मछुआरा मन मानकर फिर नदी की ओर चल पड़ा. वहाँ उसने फिर से मछली को पुकारा, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा बाहर तो आओ.”
मछली पानी के ऊपर आ गई.
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मछुआरा हिचकते हुए बोले, “क्या बताऊँ मछली रानी. पत्नि सुंदर कपड़े और आभूषण मांग रही है. क्या तुम उसकी इस मांग को पूरा कर सकती हो.”
“उसकी इच्छा पूरी होगी. जाओ घर लौट लाओ.” इतना कहकर मछली पानी में चली गई.
मछुआरा जब घर पहुँचा, तो देखा कि उसकी पत्नि नए कपड़े और आभूषण पहनकर बैठी हुई है. मछुआरे को देखते ही वह ख़ुशी से झूम उठी.
अपने नए कपड़े और आभूषण दिखाते हुए वह बोली, “सुनो जी! मैं इन कपड़ों और आभूषणों में किसी रानी से कम नहीं लग रही हूँ. ऐसे में इस झोपड़ी में रहना कहाँ शोभा देता है? तुम ऐसा करना कि कल सुबह जादुई मछली (jadui Machhli) से एक महल मांग लेना.”
मछुआरा क्या कहता? कलह के डर से वह चुप रहा. अगली सुबह पत्नि ने उसे उठाया और जादुई मछली (Jadui Machhli) के पास भेज दिया.
नदी के किनारे खड़े होकर मछुआरे ने फिर से मछली को बुलाया, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा बाहर तो आओ.”
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जादुई मछली (Jadui Machhli) पानी के ऊपर आई, तो मछुआरा बोला, “मछली रानी! मेरी पत्नि ने पूरा जीवन गरीबी में व्यतीत किया है. वर्षों से झोपड़ी में रहते-रहते उसने बहुत दुःख झेले हैं. क्या तुम उसके रहने के लिए एक महल बना सकती हो?”
“उसकी ये इच्छा भी पूरी होगी.” कहकर मछली पानी में चली गई.
जब मछुआरा घर पहुँचा, तो देखा कि उसकी झोपड़ी के स्थान पर आलीशान महल खड़ा हुआ है. अंदर जाने पर उसने देखा कि उसकी पत्नि सज-संवरकर बैठी हुई है.
वह बहुत ख़ुश थी. जब मछुआरा उसके पास गया, तो बोली, “महल तो रानी जैसा मिल गया है. लेकिन बिना सेवक-सेविकाओं और सुख-सुविधा के सारे सामान के रानी होने का क्या लाभ? कल तुम मछली से सेवक-सेविकायें और सुख-सुविधा का सारा सामान मांग लेना.”
मछुआरा ने पत्नि को समझाने की कोशिश की. लेकिन पत्नि नहीं मानी. अगले दिन मछुआरे ने जादुई मछली (Jadui Machhli) से नौकर-चाकर और सुख-सुविधा के सारे सामान मांग लिए. घर लौटने पर उसे अपनी पत्नि सोने के पलंग पर आराम करती हुई दिखी. सेवक-सेविकाएं उसकी सेवा में लगे हुए थे.
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उसकी पत्नि बहुत ख़ुश थी. कुछ दिन उसने बड़े मज़े से काटे. लेकिन फिर उसके मन में नई इच्छा ने जन्म ले लिया. एक दिन वह मछुआरे से कहने लगी, “मैं इस महल रानी तो बन गई. लेकिन अब मैं इस पूरी पृथ्वी की रानी बनना चाहती हूँ. जाओ जादुई मछली से कहो कि मुझे इस पृथ्वी की रानी बना दे.”
मछुआरा अपनी पत्नि की रोज़-रोज़ की इच्छाओं से तंग आ चुका था और इस बार तो अति हो चुकी थी. उसने मछली के पास जाने से मना कर दिया. इस पर उसकी पत्नि लड़ने-झगड़ने लगी. इस पर भी जब मछुआरा तैयार नहीं हुआ, तो उसने उसे महल से निकाल दिया.
दु:खी मछुआरा फिर से नदी पर गया और जादुई मछली को पुकारने लगा, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा बाहर तो आओ.”
जादुई मछली (jadui Machhli) तैरकर पानी के ऊपर आ गई और बोली, “क्या बात है? अब तुम्हारी पत्नि की क्या इच्छा है?”
मछुआरा बोला, “अब तक मैं हर बार अपनी पत्नि की इच्छा लेकर तुम्हारे पास आया करता था. आज अपनी इच्छा लेकर आया हूँ.”
“कहो. क्या चाहते हो?” मछली बोली.
“मैं चाहता हूँ कि तुमने अब तक हमें जो भी दिया है, वह सब वापस ले लो. एक बात मुझे समझ आ गई है कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है. तुम जितना देती रहोगी, मेरी पत्नि उतना मांगती रहेगी. वह कभी संतुष्ट नहीं होगी और बिना संतुष्ट हुए वह कभी ख़ुश नहीं रह पायेगी.”
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मछली बोली, “तुम्हारी यह इच्छा पूरी हो.” और वह पानी में चली गई.
मछुआरा जब अपने घर पहुँचा, तो महल गायब हो चुका था. उसके स्थान पर उसकी झोपड़ी आ गई थी. अंदर जाने पर उसे फटे-पुराने कपड़ों में अपनी पत्नि दिखी.
मछुआरे को देख वह रोना-पीटना मचाने लगी कि महल, धन-दौलत, सेवा-सेविकाएं, आभूषण कुछ भी न रहा.
मछुआरे ने उससे कहा कि अपनी आँखों पर पड़ा लोभ का पर्दा हटाओ, तो तुम्हें इस गरीबी में भी सुख नज़र आएगा. जितना लालच करोगी, उतना और लालच बढ़ेगा. इसलिए जीवन में जो है, उसमें संतुष्ट रहना सीखो. मैं अपनी मेहनत से जो भी रुखी-सूखी लाऊं, उसमें ख़ुश रहने को तैयार हो, तो मेरे साथ रहो. नहीं तो मैं जाल लेकर जा रहा हूँ.
पत्नि अकेले कैसे रहती? उसे अहसास हुआ कि वह लालच में अंधी हो गई थी. उसने अपने पति को बहुत दुःख दिए हैं. वह मछुआरे से क्षमा मांगने लगी. उसके बाद वह जीवन में जो मिला, उसमें अपने पति के साथ संतुष्ट रही.
सीख (Moral Of Jadui Machli Ki Kahani)–
लालच का कोई अंत नहीं है. जो लालच में अंधा हो जाता है, वह जीवन में कभी सुखी नहीं रहा सकता.
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