चाँद पर खरगोश : जातक कथा | The Hare On The Moon Story In Hindi Jatak Tales

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम चाँद पर खरगोश – जातक कथा  (The Hare On The Moon Story In Hindi Jatak Tales) शेयर कर रहे है. चाँद को देखने पर प्रतीत होता है कि वहाँ कोई बूढ़ी औरत बैठकर सूत कात रही है और ऐसा भी प्रतीत होता मानो कोई ख़रगोश बैठा है. यह जातक कथा एक दानवीर खरगोश की है, जो वर्णन करती है कि कैसे अपनी दानवीरता से वह चाँद पर जाने का सौभाग्य प्राप्त कर सका. पढ़िये Chand Par Khargosh Jatak Katha : 

The Hare On The Moon Story In Hindi

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The Hare On The Moon Story In Hindi
The Hare On The Moon Story In Hindi

चार मित्र खरगोश, बंदर, सियार और उदबिलाव गंगा के तट पर स्थित वन में निवास करते थे. उन सबकी की मंशा थी कि वे दानवीर बनकर पुण्य प्राप्त करें. एक दिन चारों में दान के संबंध में चर्चा चली और उन्होंने निर्णय लिया कि वे सब उपोसथ के दिन परम-दान करेंगे. उपोसथ बौद्ध धर्म के धार्मिक महोत्सव का दिन है. बौद्ध धर्म की मान्यता अनुसार इस पावन दिवस पर दान करने से दान का संपूर्ण फल प्राप्त होता है.

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उपोसथ के दिन भोर होते ही चारों मित्र भोजन की तलाश में वन में निकल गए. बंदर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछलता-कूदता मीठे फलों की खोज में था. एक पेड़ रसीले आम से लदा हुआ था. उनमें से कुछ आम तोड़ वह अपने घर लौट आया. सियार पास के गाँव में जाकर वहाँ एक घर से दही की हांडी और मांस का एक टुकड़ा चुरा लाया. उदबिलाव को अधिक दूर नहीं जाना पड़ा, उसे गंगा के तट पर सात लोहित मछलियाँ मिल गई और वह उन्हें लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर लौट आया.

उधर वन में निकला खरगोश सोचने लगा कि वह भोजन के रूप में ग्रहण करने वाले घास-पात को अपने याचक को दान में देने का कोई अर्थ नहीं. दान का संपूर्ण फल प्राप्त करने के लिए स्वयं को ही दान करना उचित होगा. इसलिए वह खाली हाथ ही घर लौट आया.

  खरगोश द्वारा स्वयं को दान करने के निर्णय ने तीनों लोकों को हिलाकर रख दिया. सक्क अर्थात् इंद्र का सिंहासन डोलने लगा. अंततः इंद्र ने उन चारों मित्रों की दानपरायणता की परीक्षा लेने स्वयं उनके घर जाने का निर्णय लिया.

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इंद्र ने याचक का वेश धारण किया और एक-एक कर चारों के घर पहुँचे. सबसे पहले वे सियार के घर पहुँचे, सियार ने उन्हें दही हांड़ी और मांस दान में चढ़ाया. किंतु वे उसे ग्रहण किये बिना उदबिलाव के घर आ गए. उदबिलाव ने उन्हें लोहित मछलियाँ दान स्वरुप चढ़ाई. किंतु, उन्होंने वह दान भी ग्रहण नहीं किया. बंदर के घर जाने पर बंदर ने उन्हें रसीले आम दान में देने चाहे, किंतु उन्होंने वह दान अस्वीकार कर दिया. अंत में वे खरगोश के घर पहुँचे. खरगोश याचक को देख बोला, “आदरणीय, दान में मैं स्वयं को अर्पित करता हूँ. कृपया मेरा दान स्वीकार करें.”

उसके बाद उसने एक अंगीठी जलाई. फिर अपने शरीर के रोओं को तीन बार झटका, ताकि रोओं के जीव निकल जाएं और उन्हें उसके साथ आग में न जलना पड़े. उसके बाद वो अंगीठी में कूद गया.

इंद्र ने किसी जीव की ऐसी दानवीरता कभी नहीं देखी थी. वह चकित रह गए. वे समझ गए कि खरगोश सच्चा दानवीर है. आग में कूदा खरगोश अपने प्राण निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था. किंतु, इंद्र की माया से वह अग्नि उसे जला नहीं पाई.

इंद्र ने खरगोश का प्रशस्ति गान किया और चाँद के एक पर्वत को मसलकर उससे चाँद पर एक निशान बना दिया. वे खरगोश से बोले, “मैं तुम्हारी दान वीरता से अत्यंत प्रसन्न हूँ. जब तक चाँद पर निशान रहेगा, तुम्हारा नाम अमर रहेगा, और तुम्हारी दानवीरता स्मरण की जायेगी.”

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