मछली की 3 कहानियां | Machhali Ki Kahani

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Machhali Ki Kahani

 

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Machhali Ki Kahani

जादुई मछली की कहानी

एक गाँव में एक मछुआरा रहता अपनी पत्नि के साथ रहता था. वह मुँह अंधेरे घर से नदी को ओर निकल जाता और वहाँ जाल डालकर दिन भर मछली पकड़ता था. शाम तक जितनी मछली पकड़ पाता, उसे बेचकर प्राप्त पैसों से अपना घर चलाता था.

आमदनी अधिक नहीं थी. क्योंकि कभी ढेर सारी मछलियाँ फंसती, तो कभी बहुत ही कम. जैसे-तैसे उसके दिन गुजर रहे थे. इस पर भी वह संतुष्ट था और सुख-चैन से अपना जीवन बसर करने की कोशिश करता था.

लेकिन उसकी पत्नि लालची किस्म थी. चाहे वह कितने ही पैसे घर लेकर आये, वह कभी ख़ुश नहीं होती और उसे उलाहना दिया करती थी. मछुआरा ज्यादा मेहनत कर अधिक से अधिक पैसे कमा कर उसे ख़ुश करने की हर संभव कोशिश किया करता था. लेकिन कभी उसे ख़ुश नहीं कर पाता था.

एक सुबह जब मछुआरा उठा, तो उसका शरीर बुखार से तप रहा था. लेकिन पत्नि के डर से वह जाल लेकर नदी चला गया. कुछ देर वह नदी में जाल डाले बैठा रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में नहीं फंसी. वह खाली हाथ घर लौट आया.

उसे खाली हाथ लौटा देख उसकी पत्नि चिल्लाने लगी. उसने उसे समझाने की कोशिश की कि आज उसकी तबियत ठीक नहीं है. लेकिन वह नहीं मानी और मजबूरन मछुआरे को फिर से मछली पकड़ने जाना पड़ा.

बुखार से तपता हुआ वह नदी में जाल डालकर बैठ गया. बहुत देर तक जाल डाले रहने के बाद भी एक भी मछली जाल में नहीं फंसी. वह निराश होकर लौटने का मन बनाने लगा कि तभी उसे जाल कुछ भारी सा प्रतीत हुआ.

वह ख़ुश हो गया कि शायद कोई बड़ी मछली फंस गई है. उसने जल्दी-जल्दी जाल खींचा. जाल में एक सुनहरी मछली फंसी हुई थी. मछुआरे ने इतनी सुंदर मछली पहली बार देखी थी. वह उसे हाथ में लेकर निहारने लगा.

तभी वह मछली बोल पड़ी, “मछुआरे भाई! मैं इस नदी की रानी हूँ. मुझ पर दया करो. मुझे छोड़ दो. तुम मुझे छोड़ दोगे, तो मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगी.”

मछुआरे को मछली पर दया आ गई. उसने वापस नदी के पानी में छोड़ दिया और घर वापस आ गया. घर में पत्नि ने उसे फिर खाली हाथ लौटा देख उत्पात मचा दिया.

मछुआरे ने उसे किसी तरह शांत कर सुनहरी जादुई मछली की बात बताई. सारी बात जानकर उसकी पत्नि भड़क गई कि जब जादुई मछली हर इच्छा पूरी करने तैयार थी, तो तुमने कुछ मांगा क्यों नहीं? उसने जबरदस्ती मछुआरे को नदी पर भेजा और जादुई मछली से खाने-पीने का सामान मांगकर लाने को कहा.

मछुआरा नदी पर पहुँचा और किनारे खड़े होकर ज़ोर से चिल्लाया, “मछली रानी! मछली रानी! बाहर तो आओ. मेरी एक विनती सुन लो.”

कुछ ही देर में नदी के पानी में हलचल हुई और सुनहरी जादुई मछली पानी के ऊपर आ गई.

“क्या बात है मछुआरे भाई? मुझे क्यों बुलाया?” मछली बोली.

“मछली रानी! आज घर पर खाने का कुछ सामान नहीं है. मैं और मेरी पत्नि दोनों भूखे हैं. क्या तुम मुझे खाने का कुछ सामान दे सकती हो?” मछुआरा हाथ जोड़कर बोला.

“क्यों नहीं?” मछली बोली, “तुम अपने घर पहुँचो. वहाँ खाने का सामान पहुँच जायेगा.”

मछुआरे ने वापस घर की राह पकड़ ली. जब वह घर पहुँचा, तो देखा दरवाज़े पर खाने-पीने की ढेर सारी चीज़ें रखी हुई है. उसने आवाज़ लगाकर अपनी पत्नि को बुलाया और वे सारी चीज़ें दिखाई.

उसकी पत्नि ख़ुश हो गई. सारी चीज़ें घर के अंदर रखने के बाद मछुआरा बैठा ही था कि पत्नि बोली, “तुम भी क्या बस खाने-पीने की चीज़ें ही मांगकर लाये. सुंदर वस्त्र और कीमती आभूषण भी तो मांगने चाहिए थे. अभी जाओ और जादुई मछली से जाकर वस्त्र और आभूषण  मांगों.”

मछुआरे को बार-बार जाकर मछली से चीज़ें मांगना ठीक नहीं लगा. वह बोला, “अभी तो इतना सारा खाने का सामन मांगकर लाया हूँ. हमारी खाने की ज़रूरतें तो पूरी हो गई. कपड़े और आभूषण फिर कभी मांग लूंगा.”

ये सुनना था कि पत्नि ने आसमान सिर पर उठा लिया. मछुआरा मन  मानकर फिर नदी की ओर चल पड़ा. वहाँ उसने फिर से मछली को पुकारा, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा बाहर तो आओ.”

मछली पानी के ऊपर आ गई.

मछुआरा हिचकते हुए बोले, “क्या बताऊँ मछली रानी. पत्नि सुंदर कपड़े और आभूषण मांग रही है. क्या तुम उसकी इस मांग को पूरा कर सकती हो.”

“उसकी इच्छा पूरी होगी. जाओ घर लौट लाओ.” इतना कहकर मछली पानी में चली गई.

मछुआरा जब घर पहुँचा, तो देखा कि उसकी पत्नि नए कपड़े और आभूषण पहनकर बैठी हुई है. मछुआरे को देखते ही वह ख़ुशी से झूम उठी.

अपने नए कपड़े और आभूषण दिखाते हुए वह बोली, “सुनो जी! मैं इन कपड़ों और आभूषणों में किसी रानी से कम नहीं लग रही हूँ. ऐसे में इस झोपड़ी में रहना कहाँ शोभा देता है? तुम ऐसा करना कि कल सुबह जादुई मछली से एक महल मांग लेना.”

मछुआरा क्या कहता? कलह के डर से वह चुप रहा. अगली सुबह पत्नि ने उसे उठाया और जादुई मछली के पास भेज दिया.

नदी के किनारे खड़े होकर मछुआरे ने फिर से मछली को बुलाया, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा बाहर तो आओ.”

जादुई मछली पानी के ऊपर आई, तो मछुआरा बोला, “मछली रानी! मेरी पत्नि ने पूरा जीवन गरीबी में व्यतीत किया है. वर्षों से झोपड़ी में रहते-रहते उसने बहुत दुःख झेले हैं. क्या तुम उसके रहने के लिए एक महल बना सकती हो?”

“उसकी ये इच्छा भी पूरी होगी.” कहकर मछली पानी में चली गई.

जब मछुआरा घर पहुँचा, तो देखा कि उसकी झोपड़ी के स्थान पर आलीशान महल खड़ा हुआ है. अंदर जाने पर उसने देखा कि उसकी पत्नि सज-संवरकर बैठी हुई है.

वह बहुत ख़ुश थी. जब मछुआरा उसके पास गया, तो बोली, “महल तो रानी जैसा मिल गया है. लेकिन बिना सेवक-सेविकाओं और सुख-सुविधा के सारे सामान के रानी होने का क्या लाभ? कल तुम मछली से सेवक-सेविकायें और सुख-सुविधा का सारा सामान मांग लेना.”

मछुआरा ने पत्नि को समझाने की कोशिश की. लेकिन पत्नि नहीं मानी. अगले दिन मछुआरे ने जादुई मछली से नौकर-चाकर और सुख-सुविधा के सारे सामान मांग लिए. घर लौटने पर उसे अपनी पत्नि सोने के पलंग पर आराम करती हुई दिखी. सेवक-सेविकाएं उसकी सेवा में लगे हुए थे.

उसकी पत्नि बहुत ख़ुश थी. कुछ दिन उसने बड़े मज़े से काटे. लेकिन फिर उसके मन में नई इच्छा ने जन्म ले लिया. एक दिन वह मछुआरे से कहने लगी, “मैं इस महल रानी तो बन गई. लेकिन अब मैं इस पूरी पृथ्वी की रानी बनना चाहती हूँ. जाओ जादुई मछली से कहो कि मुझे इस पृथ्वी की रानी बना दे.”

मछुआरा अपनी पत्नि की रोज़-रोज़ की इच्छाओं से तंग आ चुका था और इस बार तो अति हो चुकी थी. उसने मछली के पास जाने से मना कर दिया. इस पर उसकी पत्नि लड़ने-झगड़ने लगी. इस पर भी जब मछुआरा तैयार नहीं हुआ, तो उसने उसे महल से निकाल दिया.

दु:खी मछुआरा फिर से नदी पर गया और जादुई मछली को पुकारने लगा, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा बाहर तो आओ.”

जादुई मछली तैरकर पानी के ऊपर आ गई और बोली, “क्या बात है? अब तुम्हारी पत्नि की क्या इच्छा है?”

मछुआरा बोला, “अब तक मैं हर बार अपनी पत्नि की इच्छा लेकर तुम्हारे पास आया करता था. आज अपनी इच्छा लेकर आया हूँ.”

“कहो. क्या चाहते हो?” मछली बोली.

“मैं चाहता हूँ कि तुमने अब तक हमें जो भी दिया है, वह सब वापस ले लो. एक बात मुझे समझ आ गई है कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है. तुम जितना देती रहोगी, मेरी पत्नि उतना मांगती रहेगी. वह कभी संतुष्ट नहीं होगी और बिना संतुष्ट हुए वह कभी ख़ुश नहीं रह पायेगी.”

मछली बोली, “तुम्हारी यह इच्छा पूरी हो.” और वह पानी में चली गई.

मछुआरा जब अपने घर पहुँचा, तो महल गायब हो चुका था. उसके स्थान पर उसकी झोपड़ी आ गई थी. अंदर जाने पर उसे फटे-पुराने कपड़ों में अपनी पत्नि दिखी.

मछुआरे को देख वह रोना-पीटना मचाने लगी कि महल, धन-दौलत, सेवा-सेविकाएं, आभूषण कुछ भी न रहा.

मछुआरे ने उससे कहा कि अपनी आँखों पर पड़ा लोभ का पर्दा हटाओ, तो तुम्हें इस गरीबी में भी सुख नज़र आएगा. जितना लालच करोगी, उतना और लालच बढ़ेगा. इसलिए जीवन में जो है, उसमें संतुष्ट रहना सीखो. मैं अपनी मेहनत से जो भी रुखी-सूखी लाऊं, उसमें ख़ुश रहने को तैयार हो, तो मेरे साथ रहो. नहीं तो मैं जाल लेकर जा रहा हूँ.

पत्नि अकेले कैसे रहती? उसे अहसास हुआ कि वह लालच में अंधी हो गई थी. उसने अपने पति को बहुत दुःख दिए हैं. वह मछुआरे से क्षमा मांगने लगी. उसके बाद वह जीवन में जो मिला, उसमें अपने पति के साथ संतुष्ट रही.

सीख

लालच का कोई अंत नहीं है. जो लालच में अंधा हो जाता है, वह जीवन में कभी सुखी नहीं रहा सकता.

तीन मछलियों की कहानी

एक जलाशय में तीन मछलियाँ (Fishes) रहा करती थी : अनागतविधाता, प्रत्युत्पन्नमति और यभ्दविष्य. तीनों के स्वभाव एक-दूसरे से भिन्न थे. अनागतविधाता संकट आने के पूर्व ही उसके समाधान में विश्वास रखती थी. प्रत्युत्पन्नमति की सोच थी कि संकट आने पर उसका कोई न कोई समाधान निकल ही आता है. यभ्दविष्य किस्मत के भरोसे रहने वालों में से थी. उसका मानना था कि जो किस्मत में लिखा है, वह तो होकर ही रहेगा. चाहे कितने ही प्रयत्न क्यों न कर लिए जायें, उसे टाला नहीं जा सकता.

तीनों मछलियाँ जिस जलाशय में रहती थीं, वह मुख्य नदी से जुड़ा हुआ था. किंतु घनी झाड़ियों से ढका होने के कारण सीधे दिखाई नहीं पड़ता था. यही कारण था कि वह अब तक मछुआरों की दृष्टि से बचा हुआ था.

एक शाम मछुआरे नदी से मछलियाँ पकड़कर वापस लौट रहे थे. बहुत ही कम मछलियाँ हाथ आने के कारण वे उदास थे. तभी उनकी दृष्टि मछलीखोर पक्षियों पर पड़ी, जो नदी से लगी झाड़ियों के पीछे से उड़ते चले आ रहे थे. उन मछलीखोर पक्षियों की चोंच में मछलियाँ दबी हुई थी.

यह देख मछुआरों को समझते देर न लगी कि झाड़ियों के पीछे नदी से लगा हुआ कोई जलाशय है. वे झाड़ियों के पार जाकर जलाशय के पास पहुँच गए. वे बहुत ख़ुश थे. एक मछुआरा बोला, “लगता है यह जलाशय मछलियों से भरा हुआ है. यहाँ से हम ढेर सारी मछलियाँ पकड़ पायेंगे.”

“सही कह रहे हो भाई. लेकिन आज तो शाम घिर आई है. कल सुबह-सुबह आकर यहाँ पर अपना जाल बिछाते हैं.” दूसरे मछुआरे ने कहा. दूसरे दिन आने की योजना बनाकर मछुआरे वहाँ से चले गए.

मछुआरों की बातें अनागतविधाता ने सुन ली. वह तुरंत प्रत्युत्पन्नमति और यभ्दविष्य के पास पहुँची और बोली, “कल मछुआरे जाल डालने इस जलाशय में आ रहे हैं. यहाँ रहना अब ख़तरे से खाली नहीं रह गया है. हमें यथाशीघ्र यह स्थान छोड़ देना चाहिए. मैं तो तुरंत ही नहर से होती हुई नदी में जा रही हूँ. तुम लोग भी साथ चलो.”

अनागतविधाता की बात सुनकर प्रत्युत्पन्नमति बोली, “अभी ख़तरा आया कहाँ है? हो सकता है कि वो आये ही नहीं. जब तक ख़तरा सामने नहीं आएगा, मैं जलाशय छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी. हो सकता है कि मछुआरों को मछलियों से भरा कोई दूसरा जलाशय मिल जाये और वे यहाँ आने का इरादा छोड़ दें. यदि वे आ भी गए, तो ये भी संभव है कि मैं उनके जाल फंसू ही ना.”

यभ्दविष्य बोली, “किस्मत के आगे क्या भला किसकी चली है? मछुआरों को आना होगा तो आयेंगे और मुझे उनके जाल में फंसना होगा, तो मैं फंसूंगी ही. मेरे कुछ भी करने से किस्मत का लिखा थोड़ी बदल जाएगा.”

अनागतविधाता ने अपनी योजना अनुसार वहाँ से प्रस्थान करना ही उचित समझा और वह तुरंत वहाँ से चली गई. प्रत्युत्पन्नमति और यभ्दविष्य जलाशय में ही रुकी रही.

अगले दिन सुबह मछुआरे जाल लेकर आये और जलाशय में जाल फेंक दिया. संकट सामने देख बचाव हेतु प्रत्युत्पन्नमति अपना दिमाग दौड़ाने लगी. उसने इधर-उधर देखा, किंतु उसे कोई खोखली जगह नहीं मिली, जहाँ जाकर वह छुप सके. तभी उसे एक उदबिलाव की सड़ी हुई लाश पानी में तैरती हुई दिखाई पड़ी. वह उस लाश में घुस गई और उसकी सड़ांध अपने ऊपर लपेटकर बाहर आ गई.

थोड़ी देर बाद वह एक मछुआरे के जाल में फंस गई. मछुआरे ने जब जाल बाहर निकाला और सारी मछलियों को जाल से एक किनारे पर उलट दिया, तब प्रत्युत्पन्नमति सड़ांध लपेटे हुए मरी मछली की तरह जमीन पर पड़ी रही. उसमें कोई हलचल न देख मछुआरे ने उसे उठाकर सूंघा. उसके ऊपर से आ रही बदबू से उसने अनुमान लगाया कि ये अवश्य कई दिनों पहले मरी मछली है और उसने उसे पानी में फेंक दिया. पानी में पहुँचते ही प्रत्युत्पन्नमति तैरकर सुरक्षित स्थान पर चली गई. इस तरह बुद्धि का प्रयोग कर वह बच गई.

वहीं दूसरे मछुआरे के जाल में फंसी यभ्दविष्य कुछ किये बिना किस्मत के भरोसे रही और अन्य मछलियों के साथ दम तोड़ दिया.

सीख

किस्मत उसी का साथ देती है, जो खुद का साथ देते हैं. किस्मत के भरोसे रहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने वालों का विनाश निश्चित है.   

दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी 

एक तालाब में शतबुद्धि (सौ बुद्धियों वाली) और सहस्त्रबुद्धि (हज़ार बुद्धियों वाली) नामक दो मछलियाँ रहा करती थी. उसी तालाब में एकबुद्धि नामक मेंढक भी रहता था. एक ही तालाब में रहने के कारण तीनों में अच्छी मित्रता थी.

दोनों मछलियों शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को अपनी बुद्धि पर बड़ा अभिमान था और वे अपनी बुद्धि का गुणगान करने से कभी चूकती नहीं थीं. एकबुद्धि सदा चुपचाप उनकी बातें सुनता रहता. उसे पता था कि शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के सामने उसकी बुद्धि कुछ नहीं है.

एक शाम वे तीनों तालाब किनारे वार्तालाप कर रहे थे. तभी समीप के तालाब से मछलियाँ पकड़कर घर लौटते मछुआरों की बातें उनकी कानों में पड़ी. वे अगले दिन उस तालाब में जाल डालने की बात कर रहे थे, जिसमें शतबुद्धि, सहस्त्रबुद्धि और एकबुद्धि रहा करते थे.

यह बात ज्ञात होते ही तीनों ने उस तालाब रहने वाली मछलियों और जीव-जंतुओं की सभा बुलाई और मछुआरों की बातें उन्हें बताई. सभी चिंतित हो उठे और शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि से कोई उपाय निकालने का अनुनय करने लगे.

सहस्त्रबुद्धि सबको समझाते हुए बोली, “चिंता की कोई बात नहीं है. दुष्ट व्यक्ति की हर कामना पूरी नहीं होती. मुझे नहीं लगता वे आयेंगे. यदि आ भी गए, तो किसी न किसी उपाय से मैं सबके प्राणों की रक्षा कर लूंगी.”

शतबुद्धि ने भी सहस्त्रबुद्धि की बात का समर्थन करते हुए कहा, “डरना कायरों और बुद्धिहीनों का काम है. मछुआरों के कथन मात्र से हम अपना वर्षों का गृहस्थान छोड़कर प्रस्थान नहीं कर सकते. मेरी बुद्धि आखिर कब काम आयेगी? कल यदि मछुआरे आयेंगे, तो उनका सामना युक्तिपूर्ण रीति से कर लेंगे. इसलिए डर और चिंता का त्याग कर दें.”

तालाब में रहने वाली मछलियों और जीवों को शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के द्वारा दिए आश्वासन पर विश्वास हो गया. लेकिन एकबुद्धि को इस संकट की घड़ी में पलायन करना उचित लगा. अंतिम बार वह सबको आगाह करते हुए बोला, “मेरी एकबुद्धित कहती है कि प्राणों की रक्षा करनी है, तो यह स्थान छोड़कर अन्यत्र जाना सही है. मैं तो जा रहा हूँ. आप लोगों को चलना है, तो मेरे साथ चलें.”

इतना कहकर वह वहाँ से दूसरे तालाब में चला गया. किसी ने उस पर विश्वास नहीं किया और शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि की बात मानकर उसी तालाब में रहे.

अलगे दिन मछुआरे आये और तालाब में जाल डाल दिया. तालाब की सभी मछलियाँ उसमें फंस गई. शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने अपने बचाव के बहुत यत्न करे, किंतु सब व्यर्थ रहा. मछुआरों के सामने उनकी कोई युक्ति नहीं चली और वे उनके बिछाए जाल में फंस ही गई.

जाल बाहर खींचने के बाद सभी मछलियाँ तड़प-तड़प कर मर गई. मछुआरे भी जाल को अपने कंधे पर लटकाकर वापस अपने घर के लिए निकल पड़े. शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि बड़ी मछलियाँ थीं. इसलिए मछुआरों ने उन्हें जाल से निकालकर अपने कंधे पर लटका लिया था. जब एकबुद्धि ने दूसरे तालाब से उनकी ये दुर्दशा देखी, तो सोचने लगा : अच्छा हुआ कि मैं एकबुद्धि हूँ और मैंने अपनी उस एक बुद्धि का उपयोग कर अपने प्राणों की रक्षा कर ली. शतबुद्धि या सहस्त्रबुद्धि होने की अपेक्षा एकबुद्धि होना ही अधिक व्यवहारिक है.

सीख

१. बुद्धि का अहंकार नहीं करना चाहिए.

२. एक व्यवहारिक बुद्धि सौ अव्यवहारिक बुद्धियों से कहीं बेहतर है.

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