बकरी की 7 कहानियाँ | 7 Bakari Ki Kahani




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Bakari Ki Kahani

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Bakari Ki Kahani 




बकरी और बाघिन की कहानी 

एक गाँव में बूढ़े दंपत्ति रहा करते थे. संतान न होने के कारण वे दोनों बहुत दुखी थी. वक़्त गुजरता गया और उन्हें अकेलापन काटने लगा. एक दिन बूढ़े आदमी ने बूढ़ी दाई से कहा, “कब तक हम अकेले रहेंगे? अब मन नहीं लगता. घर काटने को दौड़ता है. क्यों न हम एक बकरी ले आयें?”

“ये तो बहुत अच्छी बात कही तुमने.” बूढ़ी दाई ख़ुश होकर बोली.

उसी दिन बूढ़ा बाज़ार गया और चार कौड़ी देकर एक बकरी ख़रीद लाया. चार कौड़ी में खरीदने के कारण उन्होंने उस बकरी का नाम “चारकौड़ी” रख दिया.

वे दोनों बकरी के घर आने से बहुत ख़ुश थे. उनका अधिकांश समय उसे खिलाने-पिलाने में बीतने लगा. वे कहीं भी जाते, चारकौड़ी उनके साथ जाती. वह उनके परिवार का हिस्सा बन गई थी.

लेकिन अधिक लाड़-प्यार का नतीज़ा ये हुआ कि चारकौड़ी मनमानी करने लगी. वह आस-पड़ोस के किसी भी घर में घुस जाती, उनकी बाड़ी की सब्जियाँ खा जाती, जिससे सारे पड़ोसी परेशान होने लगे. अब आये दिन पड़ोसियों की शिकायतें घर आने लगी. बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई चारकौड़ी की शिकायतें सुन-सुनकर तंग आ गए.

एक दिन बूढ़े आदमी ने बूढ़ी दाई से कहा, “इसकी मनमानी बढ़ती जा रही है. इसे जंगल में छोड़ आता हूँ.”

बूढ़ी दाई को यह बात जंची नहीं, वह बोली, “इस बेचारी को जंगल में क्या छोड़ना. दिन भर घर में रहती है, इसलिए मनमौजी हो गई है. इसे अब राउत के साथ चरने भेज दिया करेंगे. दिन भर जंगल में रहेगी, शाम को घर आ जायेगी. घर पर कम रहेगी, तो किसी को परेशान भी नहीं करेगी.”

बूढ़ा मान गया और ऊसी दिन राउत से जाकर चारकौड़ी को चराने की बात कर ली. अगले दिन से राउत चारकौड़ी को जंगल में चराने ले जाने लगा. लेकिन कुछ ही दिनों में वह उससे परेशान हो गया, क्योंकि वह उसकी कोई बात नहीं सुनती थी. इधर-उधर भागती रहती थी. आखिरकार, उसने उसे चराने से मना कर दिया.

अब वह फिर से पूरे दिन घर पर रहने लगी. कुछ समय बीता, तो उसने दो बच्चों को जन्म दिया – हिरमिट और खिरमिट. अब तो पड़ोसियों की और आफ़त आ गई, क्योंकि चारकौड़ी के साथ हिरमिट और खिरमिट भी उन्हें तंग करने लगे. बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई परेशान हो गए और उन्होंने चारकौड़ी को उसके बच्चों सहित जंगल में छोड़ दिया.

जंगल में चारकौड़ी अपने बच्चों के साथ मज़े से दिन गुजारने लगी. वे दिन भर जंगल में घूमते और फूल, पत्ते खाते और रात में किसी पेड़ के नीचे सो जाते. इसी तरह कुछ दिन बीते.

एक दिन एक बाघिन ने उन्हें जंगल में देख लिया और उसके मुँह से लार टपकने लगी. वह हिरमिट और खिरमिट को चट कर जाना चाहती थी. चारकौड़ी समझ गई कि बाघिन का इरादा क्या है? वह डर से कांप गई, फिर अपने बच्चों की खातिर हिम्मत कर बाघिन के पास गई और बोली, “प्रणाम दीदी!”

चारकौड़ी के मुँह से अपने लिए “दीदी” का संबोधन सुन बाघिन अचंभे में पड़ गई. वह सोचने लगी कि इसने “दीदी” कह दिया, अब इसके बच्चों को कैसे खाऊं?

उसने चारकौड़ी से पूछा, “कहाँ रहती हो?”

“रहने की कोई जगह नहीं है दीदी.” चारकौड़ी बोली.

“चल मेरे साथ. मेरी मांद के बगल की मांद खाली है. वहीं रहना.” बाघिन बोली.

चारकौड़ी हिरमिट और खिरमिट को लेकर बाघिन के साथ मांद में चली आई. वह समझ गई थी कि बाघिन उसके बच्चों को नहीं खायेगी, क्योंकि उसने उसे “दीदी” कहा है.

वह अपने बच्चों के साथ बाघिन की मांद के पास वाली मांद में ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगी. लेकिन वह सतर्क रहा करती थी, ना जाने कब बाघिन का मन बदल जाए. कुछ दिनों बाद बाघिन ने बच्चे दिए : एक-कांरा और दू- कांरा. बच्चे होने के बाद से वह शिकार पर नहीं जा पा रही थी. अब भूख के कारण वह बकरी के बच्चों को खाने की योजना बनाने लगी.

चारकौड़ी ने बाघिन की आँखों को पढ़ लिया था. वह बार-बार उसे ‘दीदी’ पुकारती, ताकि उसका मन बदल जाए. कुछ देर के लिए बाघिन का मन पिघलता भी, पर बाद में भूख हावी होती, तो वो फिर उसके बच्चों को खाने के लिए लालयित हो जाती,

एक शाम उसने चारकौड़ी से कहा, “तुम तीनों अब से हमारे साथ सोया करो. बच्चे ख़ुश होंगे.”

चारकौड़ी ने ना-नुकुर की, तो बाघिन बोली, “तीनों न सही, अगर खिरमिट या हिरमिट में से किसी एक को भेज दो, तो….”

चारकौड़ी चिंतित हो गई. अपनी माँ को चिंतित देख खिरमिट बोला, “माँ, मैं आज रात बाघिन की मांद में सोऊंगा और तू मेरी चिंता मर करना. मैं सुबह सही-सलामत आऊंगा.”

उस रात खिरमिट बाघिन की मांद में पहुँचा और बोला, “मौसी मैं आ गया.

उसे आया देख बाघिन बहुत ख़ुश हुई और बोली, “एक किनारे जाकर सो जा.”

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खिरमिट एक किनारे जाकर सो गया. बाघिन उसे देखती रही और उसे खाने के बारे में सोचती रही. कुछ ही देर में उसे नींद आ गई और वह सो गई. लेकिन डर के मारे खिरमिट को नींद नहीं आई थी. आधी रात वह उठा और बाघिन के पास गया. देखा, वह गहरी नींद में सो रही है. उसने उसके बच्चे एक-कांरा को उठाया और अपनी जगह सुलाकर उसकी जगह लेट गया.

रात और गहराई, तो बाघिन उठी और एक-कांरा को खिरमिट समझकर खा गई और अपनी जगह आकर सो गई.

सुबह होने पर खिरमिट बाघिन को जगाते हुए बोला, “मौसी मैं जा रहा हूँ.”

उसे सही-सलामत देख बाघिन चौंक गई. उसे समझ नहीं आया कि रात वह किसे खा गई है. उसने अपने बच्चों को देखा, तो उसे एक-कांरा दिखाई नहीं दिया. वह गुस्से से तिलमिला उठी. लेकिन, उस समय गुस्सा दबाकर बोली, “ठीक है जा, लेकिन रात को सोने के लिए आ जाना.”

उस रात जब खिरमिट सोने के लिए बाघिन की मांद में पहुँचा, तो देखा कि बाघिन दू-कांरा को अपनी पूंछ से लपेटकर सोई है.

वह सोच में पड़ गया कि अब ख़ुद को बचाने के लिए रात में क्या करूं?

बाघिन के कहने पर वह एक किनारे जाकर सो गया. इस बार भी वह सोया नहीं. बाघिन के सोने के बाद वह मांद से बाहर आया और इधर-उधर देखने लगा. उसे एक बड़ा सा खीरा दिखाई पड़ा. वह खीरे को अपने स्थान पर रखकर अपनी माँ के पास आ गया.

रात में बाघिन ने उसकी जगह खीरा खा लिया. सुबह होने पर खिरमिट  बाघिन की मांद में गया और बोला, “मौसी मैं जा रहा हूँ.”

उसे फिर से जीवित देख बाघिन आश्चर्य में पड़ गई. वह चला गया और बाघिन उसे देख सोचती रह गई कि रात में मैंने इसकी जगह क्या खा लिया? पास ही दू-कांरा सो रहा था. कुछ देर में बाघिन को खीरे की डकार आई और उसे समझ आया कि उसने खीरा खा लिया है. वह गुस्से से बिलबिला उठी.

इधर खिरमिट अपनी माँ के पास पहुँचा और उसे सारी बात बताते हुए बोला, “माँ, अब हमें यहाँ से भागना पड़ेगा. बाघिन हमें मार डालेगी.”

उसके बाद वे तीनों वहाँ नहीं रुके और जंगल की ओर भागने लगे. भागते-भागते वे बहुत थक चुके थे, लेकिन बाघिन के डर से उनके कदम रुक नहीं रहे थे. चारकौड़ी अपने बच्चों की हालत देख सोचने लगी कि बेचारों नन्हें बच्चों का क्या होगा?

काफ़ी दूर आ जाने के बाद वह खिरमिट और हिरमिट से बोली, “अब हमें कुछ देर आराम करना चाहिए. तुम दोनों भी तक गए होगे.”

खिरमिट बोला, “माँ बाघिन किसी भी समय यहाँ पहुँचती होगी. उसने हमें देख लिया, तो हमारे प्राण ले लेगी.”

ऐसे में हिरमिट ने सुझाया, “क्यों न हम किसी पेड़ पर जायें. बाघिन पेड़ पर चढ़ नहीं पायेगी और हम सुरक्षित रहेंगे.”

चारकौड़ी और खिरमिट को भी ये बात जम गई और वे तीनों एक पेड़ पर चढ़ गए.

उधर बाघिन खिरमिट को ढूंढते हुए उनकी मांद में पहुँची, लेकिन वहाँ उसे कोई नहीं दिखा. वह समझ गई कि तीनों भाग गए हैं. वह उनके कदमों के निशानों का पीछा करने लगी और कुछ ही देर में उस पेड़ के नीचे पहुँच गई, जहाँ चढ़कर वे तीनों आराम कर रहे थे.

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बाघिन ने सिर उठकार उन्हें देखा और बोली, “तुम तीनों यहाँ बैठे हो? रुको अभी तुम तीनों का काम तमाम करती हूँ.”

बाघिन की बात सुनकर हिरमिट डर गया, तब चारकौड़ी उसे समझाते हहुये बोली, “डरो मत, ये पेड़ पर नहीं चढ़ सकती. इसलिए हम यहाँ सुरक्षित हैं.”

तभी खिरमिट बोल पड़ा, “दे तो दाई सोने का डंडा.”

ये सुनकर बाघिन सोचने लगी कि सोने का डंडा इन्हें कहाँ से मिल गया. वो बोली, “अब तुम मुझे डंडे से डराओगे.”

तभी चारकौड़ी खिरमिट से बोली, “ ये ले खिरमिट सोने का डंडा.”

और उसने पेड़ की एक डाल तोड़कर खिरमिट की ओर फेंकी. खिरमिट ने वह डाल बाघिन के ऊपर मारा. डंडे की चोट से बाघिन कराह उठी और पेड़ से कुछ दूर हटकर खड़ी हो गई, लेकिन वहाँ से गई नहीं.

इधर तीनों बकरियाँ परेशान थीं कि बाघिन के रहते पेड़ से कैसे उतरे? और उधर बाघिन परेशान थी कि कब तक इन बकरियों का पेड़ से उतरने का इंतज़ार करते रहूं.

तभी बाघिन को वहाँ से तीन बाघ गुजरते हुए दिखे. उसमें से सबसे बड़े बाघ का नाम बंडवा था. बाघिन बंडवा के पास गई और उसे बताया कि पेड़ के ऊपर तीन बकरियाँ बैठी हैं. यह सुनकर बंडवा सहित अन्य दोनों बाघों के मुँह में पानी आ गया और वे तीनों बाघिन के साथ उस पेड़ के नीचे पहुँचे, जिसके ऊपर बकरियाँ बैठी हुई थी.

उन बाघों की देखकर खिरमिट और हिरमिट डर गए. तब चारकौड़ी उनका ढांढस बंधाते हुए बोली, “डरो मत. ये सब पेड़ पर नहीं चढ़ सकते. जब तक हम पेड़ पर हैं, सुरक्षित हैं.”

तभी उन्होंने देखा कि बंडवा पेड़ के नीचे खड़ा हो गया. उसके ऊपर बाघिन खड़ी हो गई, बाघिन के ऊपर एक बाघ और अब उसके ऊपर दूसरा बाघ चढ़ने लगा था.

अब चारकौड़ी भी डर गई कि इस तरह तो ये सब हम तक पहुँच जायेंगे. वह सोचने लगी कि अब अपने बच्चों को कैसे बचाए. तभी खिरमिट बोल पड़ा –

दे तो दाई सोने का डंडा,

तेमा मारौ तरी के बंडा

यह सुनकार बंडवा डर गया और भागने लगा. उसके भागते ही बाघिन नीचे गिरी और उसके बाद दोनों बाघ भी. वे सब भी भागने लगे. उन्हें भागता देख चारकौड़ी अपने बच्चों से बोली, “चलो बच्चों अब हमें भी पेड़ से उतरकर भागना चाहिए.”

तीनों तुरंत पेड़ से उतरे और गाँव की ओर भागने लगे और सीधा बूढ़े आदमी के घर पहुँचकर रुके. कुछ दिन बकरियों के बिना रहकर बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई भी उकता गये थे. उन्हें अपनी बकरियों की याद आने लगी थी. बकरियों को वापस आया देख वे बहुत ख़ुश हुए. उस दिन एक बाद से वे सब ख़ुशी-ख़ुशी साथ रहने लगे.

भेड़िया और सात बकरियों की कहानी 

एक जंगल किनारे घास के मैदान में एक सफेद रंग की बकरी अपने सात बच्चों के साथ रहती थी। उनका एक छोटा सा घर था, जिसमें वे सब बड़े प्यार से रहते थे। बकरी अपने बच्चों के खाने-पीने की व्यवस्था करती और सातों बच्चे जंगल में खेलते, नाचते-गाते, उछल कूद मचाते। उनके दिन बड़ी खुशी से गुज़र रहे थे।

एक दिन बकरी ने देखा कि जंगल से खतरनाक काला भेड़िया वहाँ आ गया है और उसके बच्चों को खाने की फ़िराक़ में है। तबसे उसने अपने बच्चों का घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया। वे सब दिन भर घर में रहते। बकरी अपने बच्चों को हर समय अपनी आँखों के सामने रखती।

एक दिन बकरी को खाने की व्यवस्था करने बाहर जाना पड़ा। जाने से पहले उसने बच्चों को हिदायत दी, “मेरे प्यारे बच्चों! घर से बाहर मत निकलना। खतरनाक भेड़िया आसपास ही घूम रहा है. कोई भी दरवाजा खटखटाये, तो बिना पूछे दरवाजा मत खोलना। ये काला भेड़िया है। इसके काले पैर हैं और इसकी आवाज कर्कश है। ये इसकी पहचान है। दरवाजा खटखटाने पर ये ज़रूर देखना।”

इतना कहकर बकरी चली गई। सातों बच्चों ने घर का दरवाज़ा अच्छी तरह बंद कर दिया और अपनी माँ के लौटने का इंतज़ार करने लगे।

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भेड़िया घर के आसपास ही था। उसने बकरी को घर से जाते हुए देख लिया और बच्चों को खाने के लिए उसके घर पहुँच गया। घर का दरवाज़ा बंद था। उसने दरवाज़ा खटखटाया। एक बकरी का बच्चा दरवाजा खोलने के लिए जाने लगा, तो सबसे बड़े बच्चे को अपनी माँ की बात याद आई और उसने उसे रोक दिया। फिर अंदर से ही पूछा, “कौन है?”

“मैं तुम्हारी माँ हूँ मेरे प्यारे बच्चों।” भेड़िये ने उत्तर दिया।

बकरी के बच्चे उसकी आवाज़ पहचान गये। वे बोले, “नहीं तुम हमारी माँ नहीं हो। हमारी माँ की आवाज़ मीठी है और तुम्हारी कर्कश। तुम काले भेड़िये हो। चले जाओ यहाँ से।”

यभेड़िया वहाँ से चला गया। वह सोचने लगा कि कैसे अपनी आवाज़ को मीठी बनाऊं। तभी उसे मधुमक्खी का छत्ता दिखाई पड़ा। उसने सोचा की मीठा शहद खाने से मेरी आवाज़ मीठी हो जायेगी। उसने झपट्टा मारकर मधुमक्खी के छत्ते को तोड़ दिया। मधुमक्खियाँ उसे काटने लगी, फिर भी किसी तरह उसने शहद खा लिया।

शहद खाने से उसकी आवाज़ मीठी हो गई। वह फिर से बकरियों के घर में गया। और दरवाजा खटखटाने लगा।

बकरियों ने पूछा, “कौन है?”

भेड़िया मीठी आवाज़ में बोला, “मैं तुम्हारी माँ हूँ प्यारे बच्चों। दरवाजा खोलो।”

सबसे बड़े बकरी के बच्चे ने दरवाजे के नीचे से देखा, तो उसे काले पैर दिखाई पड़े। वह समझ गई कि वह भेड़िया है। वह बोली, “तुम हमारी माँ नहीं, दुष्ट भेड़िये हो। हमारी माँ के पैर सफ़ेद हैं और तुम्हारे काले। भागो यहाँ से।”

भेड़िया वहाँ से चला गया और इस बार खुद पर आटा उड़ेलकर आया। आटे के कारण वह सफेद हो गया था। उसने घर का दरवाज़ा खटखटाया और बोला, “मेरे प्यारे बच्चों दरवाजा खोलो। देखो तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए क्या-क्या लाई है?”

उसकी मीठी आवाज़ सुनने के बाद बकरियों ने दरवाजे के नीचे से उसके पैर देखे, जो आटे के कारण सफेद हो गए थे।

“लगता गई हमारी माँ आ गई।” बकरी के सबसे बड़े बच्चे ने कहा।

“दरवाजा खोल दो।” बाकी बकरी के बच्चे बोले, लेकिन सबसे छोटे बकरी के बच्चे ने उन्हें रोका कि ये भेड़िया भी हो सकता है। दूसरी बकरियों ने उसकी बात नहीं मानी, तो वह अंदर के कमरे ने जाकर छुप गया।

बकरी के सबसे बड़े बच्चे ने दरवाज़ा खोल दिया और भेड़िया दनदनाते हुए अंदर आया। दुष्ट भेड़ये को देखकर बकरी के बच्चे इधर-उधर भागने लगे, लेकिन भेड़िये ने उन्हें निगल लिया। उसे याद ही नहीं था कि बकरी के सात बच्चे है। इसलिए उसने सबसे बकरी के सबसे छोटे बच्चे को नहीं ढूंढ़ा और चला गया।

कुछ देर बाद बकरी वापस लौटी। घर का दरवाज़ा खुला देख उस शक हुआ। वह दौड़कर अंदर पहुँची, तो उसे अपने बच्चे दिखाई नहीं पड़े। वह उन्हें इधर-उधर ढूंढने लगी, तब सबसे छोटा बच्चा बाहर निकला और अपनी माँ को सारी बात बताई। बकरी को बड़ा गुस्सा आया और वह भेड़िये से बदला लेने निकल पड़ी।

जंगल में जाने पर उसने देखा कि भेड़िया उसके बच्चों को खाकर एक पेड़ के नीचे आराम से सोया है। उसका मोटा पेट देखकर बकरी समझ गई कि उसने उसके बच्चों को साबुत ही निगल लिया है।

उसने सोते हुए भेड़िया का पेट चीर दिया और अपने बच्चों को सही सलामत बाहर निकाल लिया। फिर उसने भेड़िये के पेट में पत्थर भर कर सिल दिया और अपने बच्चों के साथ घर लौट गई।

भेड़िये की जब नींद खुली, तो उसे प्यास लग आई। वह नदी की ओर जाने लगा। पत्थरों के वजन से उसे अपना पेट भारी महसूस हो रहा था और उसे चलने में कठिनाई हो रही थी। फिर भी वह किसी तरह चलकर नदी तक पहुँचा और झुककर पानी पीने लगा। लेकिन उसका पर फिसल गया, वह नदी में जा गिरा और पत्थरों के बोझ के कारण वह नदी के पानी में डूब गया।

बकरी और उसके सातों बच्चे खुशी-खुशी रहने लगे।

सीख

बुरे काम का बुरा नतीज़ा।

ब्राह्मण, बकरी और चोर की कहानी 

एक गाँव में संभुदयाल नामक ब्राह्मण निवास करता था. एक बार वह हवन आदि करने एक यजमान के घर गया. उस यजमान द्वारा हवन संपन्न हो जाने के उपरांत यजमान द्वारा उसे एक बकरा दिया गया. ब्राह्मण जब वहाँ से चलने को हुआ, तो उसने बकरा अपने कंधे पर लाद लिया.

बकरे को कंधे पर लादे ब्राह्मण चला जा रहा था. मार्ग में तीन ठगों ने उसे बकरे के साथ देखा, तो बकरा हथियाने की योजना बनाने लगे. योजनुसार तीनों ठग ब्राह्मण के मार्ग पर थोड़ी-थोड़ी दूर में खड़े हो गये.

जब ब्राह्मण पहले ठग के पास से गुजरा, तो वह ठग बोला, “पंडित जी! ऐसा अनर्थ तो पहली बार देखा कि एक ब्राहमण अपने कंधे पर कुत्ता लादे ले जा रहा है.”

यह बात सुनकर ब्राह्मण क्रुद्ध हो गया और बोला, “दिखाई नहीं देता तुझे. ये कुत्ता नहीं, बकरा है.”

ठग बोला, “पंडित जी! ये कुत्ता ही है. यदि आपको नहीं मानना है, तो मत मानो. किंतु मानने या ना मानने से वास्तविकता बदल नहीं जायेगी.”

ब्राह्मण आगे बढ़ा, तो उसे दूसरा ठग मिला. उसने ब्राह्मण से कहा, “पंडित जी! लगता है आपको ज्ञात नहीं है कि उच्च कुल के व्यक्तियों को कुत्ता अपने कंधों पर नहीं उठाना चाहिए.”

उसकी बार सुनकर ब्राह्मण बिदक गया और चिड़चिड़ाते हुए वहाँ से आगे बढ़ गया.

कुछ देर बाद उसे तीसरा ठग मिला.

उसने भी ब्राह्मण से वही प्रश्न पूछा, “पंडित जी! अपने कंधे पर कुत्ता लादे कहाँ जा रहे हो?”

तीन लोगों द्वारा बकरे को कुत्ता कहने पर ब्राह्मण को उनकी बात पर विश्वास हो गया और उसे लगा कि वास्तव में उसके बकरा नहीं कुत्ता अपने कंधे पर उठाया है. इसलिए उसने बकरे को अपने कंधे से उतारकर रास्ते में ही छोड़ दिया और अपने घर चला आया.

इधर तीनों ठगों ने बकरे को मारकर उसकी दावत का मज़ा लिया.

सीख

1. एक झूठ यदि बार-बार कहा जाये, तो वह सच लगने लगता है. अतः सच-झूठ की पहचान करने अपनी पूरी समझ का इस्तेमाल करें.

2. स्वयं पर इतना विश्वास रखें कि कोई दूसरा आपकी मति भ्रष्ट न कर सकें.

दो बकरियों की कहानी 

नदी किनारे एक छोटा सा गाँव था. गाँव में रहने वाले लोगों ने नदी पार करने के लिए उस पर एक पुल बनाया हुआ था. लेकिन वह पुल इतना संकरा था कि एक बार में केवल एक ही व्यक्ति उसे पार कर सकता था.

एक दिन की बात है. एक बकरी नदी पर बने उस पुल को पार कर रही थी. पुल पर चलते-चलते उसने देखा कि एक दूसरी बकरी उसी पुल पर विपरीत दिशा से आ रही है. कुछ ही देर में दोनों पुल के बीचों-बीच पहुँच गई.

पुल को एक बार में केवल एक ही बकरी पार कर सकती थी. इसलिए दोनों बकरियाँ कुछ देर तक इंतज़ार करती रही कि सामने वाली बकरी पीछे हट जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दोनों में से कोई भी अपनी जगह से नहीं हिली, बल्कि अकड़कर खड़ी रही.

तब एक बकरी दूसरी बकरी से बोली, “तुम मुझे जाने का रास्ता दो, क्योंकि मैं तुमसे बड़ी हूँ.”

इस बात पर दूसरी बकरी हँस पड़ी और बोली, “होगी तुम मुझसे बड़ी, लेकिन मैं तुमसे कहीं ज्यादा ताकतवर हूँ. मैं तुमसे जल्दी ये पुल पार कर लूंगी. इसलिए तुम मुझे रास्ता दो.”

पहली बकरी बोली, “मैं तुमसे बड़ी भी हूँ और ताकतवर भी. इसलिए हट जाओ.”

कुछ देर तक दोनों में इस बात पर बहस होती रही कि दोनों में कौन ज्यादा ताकतवर है. फिर बहस लड़ाई में बदल गई. दोनों अपनी सींगों से एक-दूसरे पर वार करने लगी. धीरे-धीरे उनकी लड़ाई बहुत बढ़ गई. परिणाम ये हुआ कि उनका संतुलन बिगड़ा और वे दोनों पुल से नीचे नदी में जा गिरी. नीचे नदी की तेज धार उनको बहा ले गई और अंततः दोनों मर गई.

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कुछ देर बाद दो और बकरियाँ विपरीत दिशा से उस पुल पर चलते हुए आई और बहस करने लगी कि कौन पीछे हटेगी और कौन दूसरे को रास्ता देगी. इस बार एक बकरी ने समझदारी से काम लिया और कुछ देर सोचकर दूसरी बकरी से बोली, “ये पुल बहुत संकरा है. इसे एक बार में कोई एक ही पार कर सकता है. यदि हमने लड़ने की मूर्खता की, तो नदी में गिरकर अपनी जान गंवा देंगी. इसलिए ऐसा करते हैं कि मैं पुल पर लेट जाती हूँ. तुम मुझे लांघ कर दूसरी ओर चले जाना.”

दूसरी बकरी को भी ये बात समझदारी भरी लगी. उसने पहली बकरी की बात मान ली. पहली बकरी पुल पर लेट गई और दूसरी बकरी उसे लांघ कर दूसरी ओर चली गई. इस तरह दोनों ने पुल पार कर लिया.

सीख

१. गुस्सा और अहंकार बर्बादी की ओर ले जाता है.

२. वहीं समझदारी से काम लेने पर हर समस्या का समाधान निकल आता है.

लड़ती बकरियां और सियार 

एक दिन एक सियार किसी गाँव से गुजर रहा था. गाँव में उस दिन हाट-बाज़ार लगा हुआ था. सियार जब हाट से गुजरा, तो वहाँ उसे लोगों की भीड़ दिखाई पड़ी. वे लोग जोर-जोर से चिल्ला रहे थे और तालियाँ बजा रहे थे.

कौतूहलवश सियार उस भीड़ की ओर चल पड़ा और उनके बीच में से झांककर देखने लगा कि आखिर माज़रा क्या है? उसने देखा कि वहाँ दो हट्ठी-कट्ठी बकरियों के बीच लड़ाई हो रही है. लोग उन्हें ही देखकर चिल्ला रहे हैं.

दोनों बकरियों के बीच चल रही लड़ाई जबरदस्त थी. अपनी सींगों के वार से दोनों ने एक-दूसरे को लहू-लुहान कर दिया था. किंतु इसके बाद भी कोई रुकने का नाम नहीं ले रहा था. उनके शरीर से बहता हुआ रक्त सड़क पर फ़ैलने लगा था.

ताज़े रक्त की महक जब सियार के नथुनों तक पहुँची, तो उसकी लार टपकने लगी. वह ख़ुद को रोक नहीं पाया और रक्त को चाटने लगा. रक्त को चाटते-चाटते वह बकरियों के नज़दीक पहुँच गया. उसके मुँह में बकरियों के रक्त का स्वाद लग चुका था. अब उसका लालच और बढ़ गया. उसने सोचा कि क्यों न इस बकरियों को मारकर मैं अपनी पेट की ज्वाला शांत कर लूं.

बस, फिर क्या था? उसने आव देखा न ताव और टूट पड़ा बकरियों के ऊपर. बकरियाँ हट्ठी-कट्ठी और बलशाली थीं. ऊपर से बहुत देर से लड़ते रहने के कारण तैश में भी थीं. सियार के अड़ंगे ने उनका क्रोध भड़का दिया और उन्होंने सियार को ऐसी पटकनी दी कि वह चारों खाने चित हो गया. उसके बाद बकरियों ने उसकी तब तक धुनाई की, जब तक वह मर नहीं गया.

सीख

कोई भी कदम उठाने के पहले भली-भांति सोच लेना चाहिए. लोभ के वशीभूत होकर उठाया गया कदम पतन की ओर ले जाता है.

तीन बकरों की कहानी 

बहुत समय पहले की बात है। जंगल में नदी किनारे तीन बकरे रहा करते थे। नदी किनारे हरा-भरा घास का मैदान था, जहाँ वे दिन भर घास चरते रहते थे। वे तीनों हट्ठे-कट्ठे हो गए थे और मज़े से अपना दिन गुज़ार रहे थे।

लेकिन समय बीतने के साथ वहाँ की घास खत्म होने लगी। अब उन बकरों को नई जगह की तलाश थी। एक दिन छोटे बकरे ने दोनों बड़े बकरों को बताया कि नदी के पार एक बहुत बड़ा घास का मैदान है, जहाँ की घास सालों तक ख़त्म नहीं होगी।

तीनों ने सोचा कि अब अपना यह जगह छोड़कर नदी के पार जाने का वक्त आ गया है। नदी के पार जाने के लिए उस पर एक पुराना पुल बना हुआ था। लेकिन समस्या यह थी कि उस पुल पर एक भयानक राक्षस रहता था, जो हर आने जाने वालों को मारकर खा जाता था। उस राक्षस के कारण नदी पार करना नामुमकिन था।

तीनों नदी पार जाने का उपाय सोचने लगे। सोचते-सोचते बड़े बकरे के दिमाग में एक उपाय आ गया और उसने वह उपाय अन्य दोनों बकरों को बताया। जिसे सुनकर वे दोनों बहुत ख़ुश हुये। उसके बाद तीनों पुल की ओर चल दिये।

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पुल के पास पहुँचकर दो बड़े बकरे एक पेड़ के पीछे छुप गये। सबसे छोटा बकरा पुल पार करने लगा। जैसे ही वह पुल के बीचों-बीच पहुँचा, पुल पर रहने वाला राक्षस उसके सामने प्रकट हुआ और बोला, “तेरी ये ज़ुर्रत कि मेरे इलाके में आये। अब तू नहीं बचेगा, मैं तुझे मारकर खा जाऊंगा।“

छोटा बकरा घबराया नहीं, बल्कि उपाय अनुसार बोला, “राक्षस महाराज! आपको मुझे खाकर क्या मिलेगा? मैं तो कितना छोटा हूँ। मेरे पीछे मेरा बड़ा भाई आ रहा है। आप उसे खा लीजिएगा।”

राक्षस ने मुड़कर देखा कि एक बकरा पुल की तरफ़ चला आ रहा है, जो उसके सामने खड़े बकरे से काफ़ी बड़ा है। उसने छोटे बकरे को जाने दिया और दूसरे बकरे का इंतज़ार करने लगा। जैसे ही दूसरा बकरा पुल के बीचों-बीच पहुँचा, वह उसे पकड़ कर बोला, “आज तेरी मौत तुझे यहाँ ले आई है। अब मैं तुझे खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा।”

मंझला बकरा बोला, “राक्षस महाराज! मुझे छोड़ दीजिये। मेरे पीछे मेरे बड़ा भाई आ रहा है। वह इतना मोटा ताजा है कि आपको कई दिनों तक खाने की आवश्कता ही नहीं पड़ेगी।”

राक्षस ने मुड़कर देखा कि एक मोटा ताजा बड़ा सा बकरा पुल की तरफ़ चला आ रहा है। उसने मंझले बकरे को जाने दिया। इस तरह दो बकरे पुल के पार पहुँच गये।

सबसे बड़ा बकरा जब पुल के बीचों बीच पहुँचा, तो उसने सामने राक्षस प्रकट हुआ. उस बकरे को देखकर खुश होते हुए उसने अट्टहास किया और बोला, “अब तू मेरा शिकार है। मुझे मारकर जी भरकर खाऊंगा और कई दिन आराम से गुजारूंगा।”

बड़ा बकरा डरा नहीं, बल्कि तीन-चार कदम पीछे हटकर तेजी से राक्षस की ओर दौड़ा और अपने सींगों से उसके पेट पर वार किया। अचानक हुए हमले से राक्षस संभल नहीं पाया. वह पुल के नीचे नदी में जा गिरा और पानी की तेज धार में बह गया।

बड़ा बकरा पुल पार करके दोनों बकरों से मिला। उसके बाद वे नदी पार के हरे-भरे घास के मैदान में ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे।

सीख

समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो, सूझबूझ और हिम्मत से काम लिया जाये, तो समाधान अवश्य निकलता है।

मुल्ला नसरुद्दीन और बकरे की कहानी 

मुल्ला नसरुद्दीन के पास एक मोटा-ताज़ा बकरा था. वह उसकी खुराक का विशेष ध्यान रखता था. उसे खूब खिलाता-पिलाता था. उसकी मंशा उसे ईद के समय बेचकर अच्छी कमाई करने की थी.

मुल्ला के पड़ोसियों की उस बकरे पर कई दिनों से नज़र थी. वे जब भी उसे देखते, उनके मुँह में पानी आ जाता था. वे उसकी दावत उड़ाना चाहते थे. एक दिन उन्होंने मुल्ला को मूर्ख बनाकर उस बकरे पर हाथ साफ़ करने की तिकड़म लगाई.

वे सब मुल्ला के पास गए. एक पड़ोसी उससे बोला, “मुल्ला! जानते हो, कल प्रलय आने वाला है.”

“प्रलय? मुल्ला ने चौंककर पूछा.

“हाँ प्रलय. कल पूरी दुनिया तबाह हो जायेगी. कोई ज़िन्दा न बचेगा. आज की रात हम सबकी आखिरी रात है.” दूसरा पड़ोसी बोला.

“ऐसा तुम लोगों से किसने कहा?” मुल्ला ने उत्सुकतावश पूछा.

“चारों तरफ़ यही खबर फ़ैली है मुल्ला. तुम अब तक अनजान हो. अब कल सबकी जान तो जानी ही है, इसलिए हम सबने फ़ैसला किया है कि आज की रात जश्न मनाएंगे. हमने मोहल्ले में शानदार दावत का आयोजन किया है. तुम भी आओ ना.”

“ठीक है आ जाऊंगा.” मुल्ला शांति से बोला.

“हम सब अपना कुछ न कुछ दे रहे हैं मुल्ला. कल के बाद दुनिया की चीज़ों का क्या काम? तुम भी अपना कुछ दे दो. ऐसा करो अपना बकरा ही दे दो.” चालाकी दिखाते हुए एक पड़ोसी बोला.

मुल्ला को पड़ोसियों पर शक़ हो गया कि वे उसे मूर्ख बनाने आये हैं. लेकिन, वह तैयार हो गया और बोला, “ठीक है, मेरा बकरा ले जाओ और शानदार दावत करो. मैं तुम लोगों से दावत में मिलता हूँ.”

पड़ोसियों की तो मन की मुराद पूरी हो गई. वे सब ख़ुशी-ख़ुशी मुल्ला का बकरा ले गए. शाम को उस बकरे की दावत हुई. सबने छककर दावत उड़ाई. मुल्ला भी दावत में शामिल हुआ.

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सर्दियों के दिन थे. मुल्ला ने अलाव की व्यवस्था कर दी और सारी रात अलाव जलाकर रखी. जिसके इर्द-गिर्द रात भर ख़ूब नाच-गाना हुआ, जो सुबह तक चला.

अगली सुबह पड़ोसियों ने मुल्ला का शुक्रिया किया, “मुल्ला तुम्हारी वजह से कल रात की दावत शानदार रही. बकरे का मांस स्वादिष्ट था और जो अलाव तुमने रात भर जलाकर रखी, उससे ठंड का अहसास ही नहीं हुआ.”

“तुम सबका भी बहुत शुक्रिया.” मुल्ला ने जवाब दिया.

पड़ोसी चलने को हुए ही थे कि एक पड़ोसी को अलाव में एक अधजला कपड़ा दिखाई पड़ा. उसने मुल्ला से पूछा, “अरे मुल्ला, ये तो मेरे क़मीज़ के जैसा दिखाई पड़ रहा है. तुम्हें ये कहाँ से मिला?”

मुल्ला बोला, ”तुम लोगों ने ही तो बताया था कि आज प्रलय आने वाला है. दुनिया तो बचती नहीं, न ही हममें से कोई बचता. फ़िर वो सिल्क की कमीज़ किस काम की रहती? मैंने सोचा सर्दी में अलाव जलाने के काम ही आ जायेगी. मैंने सारे पड़ोसियों के सिल्क के कपड़े लेकर अलाव में डाल दिया. क्यों ठीक किया ना?”

पड़ोसी क्या कहते? उन्हें अपनी पोल खुलती जान पड़ी. मुल्ला के बकरे के बदला उन्होंने अपने सिल्क के कपड़ों से चुकाना पड़ा था. मन मारकर सारे वहाँ से ख़िसक गए.





 

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