दो साँपों की कहानी पंचतंत्र ~ ककोलूकियम | The Tale Of Two Snakes In Hindi

फ्रेंड्स,  इस पोस्ट में दो साँपों की कहानी (The Tale Of Two Snakes In Hindi) शेयर कर रहे हैं. Do Sanpon Ki Kahani  कहानी पंचतंत्र के तंत्र (भाग) ककोलूकियम से ली गई है, जो एक राजकुमार के पेट में घर बनाकर रहने वाले साँप की है. क्या राजकुमार को उस साँप से छुटकारा मिल पाता है? यही इस कहानी में वर्णन किया गया है. पढ़िए पूरी कहानी The Prince And The Snake Story In Hindi  :  

The Tale Of Two Snakes In Hindi

The Tale Of Two Snakes In Hindi
The Tale Of Two Snakes In Hindi

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एक राज्य में देवशक्ति नामक राजा शासन करता था. उसका एक पुत्र था. एक बार उसके पुत्र के पेट में एक साँप घुस गया. वह वहीं अपना बिल बनाकर बैठ गया.

पेट में बैठे साँप के कारण राजपुत्र का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा था. किंतु, वह अपने पेट के भीतर साँप होने की बात से अनभिज्ञ था. उसने कई वैद्यों का परामर्श लिया और उनसे उपचार करवाया.

वैद्यों ने राजपुत्र को विभिन्न प्रकार की औषधियाँ प्रदान की. किंतु सब प्रभावहीन रही और राजपुत्र के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ. गिरते स्वास्थ्य के कारण राजपुत्र निराशा से घिर गया. अंततः उसने राजमहल और राजकीय जीवन त्यागकर अन्यत्र चले जाने का निर्णय लिया.

अपने पिता के आज्ञा लेकर लंबी यात्रा कर वह अपने राज्य से अत्यंत दूर स्थित एक प्रदेश पहुँचा और वहाँ एक मंदिर में भिखारी का जीवन यापन करने लगा.  

जिस प्रदेश को उसने अपना बसेरा बनाया था, उस देश के राजा का नाम बलि था. उसकी दो युवा पुत्रियाँ थीं. दोनों राजकुमारियाँ प्रतिदिन प्रातःकाल अपने पिता के कक्ष में जाकर उन्हें प्रणाम किया करती थी.

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प्रणाम करते समय एक राजकुमारी राजा से कहा करती थी, “पिताश्री प्रणाम. आप बड़े कृपालु हैं. आपकी कृपा से ही संसार सुख-साधनों ने परिपूर्ण है.“

यह वचन सुनकर राजा की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रहती थी. 

दूसरी राजकुमारी राजा से कहा करती थी, “पिताश्री प्रणाम. जो जैसा कर्म करेगा, वह वैसा ही फल पायेगा. ईश्वर आपको आपके कर्मों का फल प्रदान करे.”

यह वचन सुनकर राजा के क्रोध की कोई सीमा नहीं रहती थी.

एक दिन राजा दूसरी राजकुमारी के प्रति अपने क्रोधावेश पर नियंत्रण नहीं रख पाया. उसने तत्काल मंत्री को बुलाया और उसे आदेश दिया, “मंत्री! यह कन्या सदा कटु वचन ही कहती है. इसे कहीं दूर ले जाओ और किसी निर्धन परदेशी को सौंप दो. वहाँ निर्धनता में यह अपने कर्मों का फल भोगेगी.”

राजा की आज्ञा मानकर मंत्री ने उस राजकुमारी का विवाह मंदिर में भिखारी के रूप में रह रहे राजपुत्र से कर दिया. राजकुमारी उसके राजपुत्र होने की बात से अनभिज्ञ थी. भिखारी के रूप में भी उसने उसे स्वीकार कर लिया और उसे अपना पति मान उसकी सेवा-सुश्रुषा करने लगी.

कुछ दिनों बाद दोनों वह प्रदेश त्याग कर अन्य प्रदेश की ओर रवाना हो गये. यात्रा लंबी थी. दोनों सुस्ताने और भोजन ग्रहण करने सरोवर के किनारे रुक गए.

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अस्वस्थ राजपुत्र थक चुका था. वह वहीं लेट गया और राजकुमारी निकट के गाँव में भोज्य-सामग्री लेने चली गई. वापस आकर उसने देखा कि उसका पति सो रहा है और उसके मुख से एक साँप फन फैलाकर बाहर की हवा खा रहा है. पास ही एक दूसरे साँप का बिल है. वो साँप भी फन फैलाए बैठा है और दोनों वार्तालाप कर रहे हैं.

बिल वाला साँप पेट वाले साँप से कह रहा था, “दुष्ट! तू क्यों इस राजपुत्र का जीवन नष्ट कर रहा है?”

पेट वाला साँप बोला, “तू भी तो अपने बिल में पड़े स्वर्ण कलश को दूषित कर रहा है.”

बिल वाला सांप बोला, “कदाचित् तुझे ऐसा लगता है कि तुझे इस राजपुत्र के पेट से बाहर निकालने की औषधि की को ज्ञात नहीं है. मत भूल, जब कोई व्यक्ति इस राजपुत्र को उकाली हुई कांजी की राई पिलाएगा, तब तेरा काल होगा.”

पेट वाला साँप बोला, “तेरे बिल में भी तो गर्म तेल डालकर कोई भी तेरा नाश कर सकता है.”

जब दोनों एक-दूसरे के भेद खोल रहे थे, तब राजकुमारी ने उनकी बातें सुन ली. उसने उनके द्वारा बताई विधियों से दोनों का ही नाश कर दिया. इस तरह राजपुत्र भी स्वस्थ हो गया और बिल में से स्वर्ण कलश पाकर उन्हें निर्धनता से भी मुक्ति मिल गई.

स्वास्थ लाभ प्राप्त करने के उपरांत राजपुत्र राजकुमारी को लेकर अपने देश लौट गया. वहाँ उसके पिता ने दोनों का स्वागत किया और वे सब सुख-चैन का जीवन व्यतीत करने लगे.

सीख (Do Sanpon Ki Kahani Moral)

आपसी विद्वेष और कलह में दो साँपों ने एक-दूसरे के भेद खोल दिए और राजकुमारी ने वह भेद जानकर उनका नाश कर दिया. इसलिए कहते हैं कि आपसी कलह का लाभ तीसरा व्यक्ति उठाता है.


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