बच्चों के लिए 10 शिक्षाप्रद कहानियां | Top 10 Moral Stories In Hindi For Kids

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Top 10 Moral Stories In Hindi For Kids 

Top 10 Moral Stories In Hindi For Kids 

चींटी और कबूतर की कहानी

तपती दोपहरी में प्यास से बेहाल एक छोटी सी चींटी पानी की तलाश में भटक रही थी. बहुत देर भटकने के बाद उसे एक नदी दिखाई पड़ी और वो ख़ुश होकर नदी की ओर बढ़ने लगी. नदी के किनारे पहुँचकर जब उसने कल-कल बहता शीतल जल देखा, तो उसकी प्यास और बढ़ गई.

वह सीधे नदी में नहीं जा सकती थी. इसलिए किनारे पड़े एक पत्थर पर चढ़कर पानी पीने का प्रयास करने लगी. लेकिन इस प्रयास में वह अपना संतुलन खो बैठी और नदी में गिर पड़ी.

नदी के पानी में गिरते ही वह तेज धार में बहने लगी. उसे अपनी मृत्यु सामने दिखाई देने लगी. तभी कहीं से एक पत्ता उसके सामने आकर गिरा. किसी तरह वह उस पत्ते पर चढ़ गई. वह पत्ता नदी किनारे स्थित एक पेड़ पर बैठे कबूतर ने फेंका था, जिसने चींटी को पानी में गिरते हुए देख लिया था और उसके प्राण बचाना चाहता था.

पत्ते से साथ बहते हुए चींटी किनारे पर आ गई और कूदकर सूखी भूमि पर पहुँच गई. कबूतर के निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता के कारण चींटी की जान बच पाई थी. वह मन ही मन उसका धन्यवाद करने लगी.

इस घटना को कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन कबूतर बहेलिये के द्वारा बिछाये जाल में फंस गया. उसने वहाँ से निकलने के लिए बहुत पंख फड़फड़ाये, बहुत ज़ोर लगाया, लेकिन जाल से निकलने में सफ़ल न हो सका. बहेलिये ने जाल उठाया और अपने घर की ओर जाने लगा. कबूतर निःसहाय सा जाल के भीतर कैद था.

जब चींटी की दृष्टि जाल में फंसे कबूतर पर पड़ी, तो उसे वह दिन स्मरण हो आया, जब कबूतर ने उसके प्राणों की रक्षा की थी. चींटी तुरंत बहेलिये के पास पहुँची और उसके पैर पर ज़ोर-ज़ोर से काटने लगी. बहेलिया दर्द से छटपटाने लगा. जाल पर से उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और जाल जमीन पर जा गिरा.

कबूतर को जाल से निकलने का अवसर प्राप्त हो चुका था. वह झटपट जाल से निकला और उड़ गया. इस तरह चींटी ने कबूतर के द्वारा किये गये उपकार का फ़ल चुकाया.

सीख 

कर भला, हो भला. दूसरों पर किया गया उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता. उसका प्रतिफल कभी न कभी अवश्य प्राप्त होता है. इसलिए सदा निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना चाहिए.

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शेर और चूहा की कहानी

जंगल का राजा शेर खा-पीकर आराम से एक पेड़ की छाँव में सो रहा था. तभी कहीं से एक नटखट चूहा वहाँ आ पहुँचा और खेलने लगा. खेलते-खेलते वह शेर के ऊपर चढ़ गया.

कभी वह शेर की पीठ पर दौड़ता, तो कभी सिर पर चढ़ जाता. कभी वह उसके कान पर झूलता, तो कभी पूंछ से खेलता. उसे बड़ा मज़ा आ रहा है और उसकी उछल-कूद बढ़ती जा रही थी.

नटखट चूहे की धमा-चौकड़ी से शेर की नींद टूट गई. आँख खोलकर उसने देखा कि एक छोटा सा चूहा उसके ऊपर खेल रहा है. उसे बहुत गुस्सा आया और उसने चूहे को अपने पंजे में दबोच लिया.

शेर के पंजे में आते ही चूहे डर गया और थर-थर कांपने लगा. शेर बोला, “बदमाश चूहे, तेरी इतनी हिम्मत की तू जंगल के राजा शेर की नींद में खलल डाले. अब तेरी खैर नहीं. मरने के लिए तैयार हो जा. अब मैं तुझे मारकर खा जाऊंगा.”

चूहे की बात सुनकर शेर हँसने लगा और बोला, “मैं जंगल का राजा हूँ. मुझसे बलशाली इस पूरे जंगल में कोई नहीं. तू छोटा सा चूहा मेरे क्या काम आएगा? लेकिन फिर भी मैं दया करके तुझे प्राणदान देता हूँ. मेरी नज़रों से दूर हो जा और आइंदा कभी मेरी नींद में खलल मत डालना.”

चूहा धन्यवाद कहकर वहाँ से चला गया.  

कुछ दिन बीते. एक दिन शेर जंगल में शिकार के लिए घूम रहा था कि वह शिकारी द्वारा बिछाए जाल में फंस गया. उसने बहुत प्रयत्न किया, किंतु जाल से बाहर नहीं आ पाया. वह मदद के लिए दहाड़ने लगा.

शेर की दहाड़ वहाँ से गुज़र रहे एक चूहे के कानों में पड़ी. यह वही चूहा था, जिसे शेर ने दया कर प्राणदान दिया था. चूहे दहाड़ की दिशा में गया, तो शेर को जाल में फंसा हुआ पाया. उसने फ़ौरन अपने नुकीले दांतों से जाल काट दिया. शेर आज़ाद हो गया.

उसने चूहे को धन्यवाद दिया, तो चूहा बोला, “वनराज, आप शायद मुझे भूल गए हैं. मैं वही चूहा हूँ, जिसे अपने प्राणदान दिया था. मैंने आपको कहा था कि किसी दिन मैं अवश्य आपके काम आऊंगा. देखिये आज मैं आपके काम आ ही गया.”

शेर को वह दिन याद आ गया और उस दिन की अपनी सोच पर बहुत पछतावा हुआ कि जिस चूहे को उसने तुच्छ समझा था, उसी की सहायता से वह शिकारी से बच पाया है.

सीख 

१. बाहरी स्वरुप देखकर किसी की योग्यता का आंकलन नहीं करना चाहिए.

२. उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता. किसी न किसी रूप में उसका फ़ल अवश्य प्राप्त होता है.

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लोमड़ी और कौवा की कहानी

एक लोमड़ी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी. एक पेड़ के पास से गुजरते हुए उसकी नज़र ऊँची डाल पर बैठे कौवे पर पड़ी. वह ठिठक गई. ऐसा नहीं था कि लोमड़ी ने पहले कौवा नहीं देखा था. लेकिन जिस चीज़ ने उसका ध्यान आकर्षित किया था, वह उस कौवे की चोंच में दबा हुआ रोटी का टुकड़ा था.

‘अब कहीं और जाने की ज़रुरत नहीं. ये रोटी अब मेरी है.’ – चालाक लोमड़ी ने मन ही मन सोचा और पेड़ के नीचे जाकर खड़ी हो गई. फिर ऊपर सिर उठाकर मीठी आवाज़ में कौवे से बोली, “शुभ-प्रभात मेरे सुंदर दोस्त.”

लोमड़ी की आवाज़ सुनकर कौवे ने अपना सिर नीचे झुकाया और लोमड़ी को देखा. लेकिन अपनी चोंच उसने कसकर बंद रखी और लोमड़ी के अभिवादन का कोई उत्तर नहीं दिया.

“तुम कितने सुंदर हो दोस्त…” लोमड़ी ने अपनी बोली में पूरी मिठास झोंक दी, “देखो तुम्हारे पंख कैसे चमक रहे हैं? तुम जैसा सुंदर पक्षी मैंने आज तक नहीं देखा. तुम विश्व के सबसे सुंदर पक्षी हो. मेरे ख्याल से तुम तो पक्षियों के राजा हो.”

कौवे ने अपनी इतनी प्रशंषा आज तक नहीं सुनी थी. वह बहुत खुश हुआ और गर्व से फूला नहीं समाया. लेकिन उसने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी.  

इधर लोमड़ी प्रयास करती रही, “दोस्त! मैं सोच रही हूँ कि जो पक्षी इतना सुंदर है, इसकी आवाज़ कितनी मीठी होगी? क्या तुम मेरे लिए एक गीत गुनगुना सकते हो?”

लोमड़ी के मुँह से अपनी आवाज़ की प्रशंषा सुनकर कौवे से रहा न गया. वह गाना गाने के लिए मचल उठा. लेकिन जैसे ही उसने गाना गाने के लिए अपना मुँह खोला, उसकी चोंच में दबा रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया.

नीचे मुँह खोले खड़ी लोमड़ी इसी फिराक़ में थी. उसने रोटी झपट ली और चलती बनी.

सीख 

चापलूसों से बचकर रहो.

लोमड़ी और अंगूर की कहानी

एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी. एक दिन वह भूखी-प्यासी भोजन की तलाश में जंगल में भटक रही थी. भटकते-भटकते सुबह से शाम हो गई, लेकिन वह शिकार प्राप्त न कर सकी. 

शाम होते-होते वह जंगल के समीप स्थित एक गाँव में पहुँच गई. वहाँ उसे एक खेत दिखाई पड़ा. भूख से बेहाल लोमड़ी खेत में घुस गई. वहाँ एक ऊँचे पेड़ पर अंगूर की बेल लिपटी हुई थी, जिसमें रसीले अंगूर के गुच्छे लगे हुए थे.

अंगूर देखते ही लोमड़ी के मुँह से लार टपकने लगी. वह उन रस भरे अंगूरों को खाकर तृप्त हो जाना चाहती थी. उसने अंगूर के एक गुच्छे पर अपनी दृष्टि जमाई और जोर से उछली. ऊँची डाली पर लिपटी अंगूर की बेल पर लटका अंगूर का गुच्छा उसकी पहुँच के बाहर था. उसका प्रयास व्यर्थ रहा.

उसने सोचा क्यों न एक प्रयास और किया जाए. इस बार वह थोड़ा और ज़ोर लगाकर उछली. लेकिन इस बार भी अंगूर तक पहुँचने में नाकाम रही. कुछ देर तक वह उछल-उछल कर अंगूर तक पहुँचने का प्रयास करती रही. लेकिन दिन भर की जंगल में भटकी थकी हुई भूखी-प्यासी लोमड़ी आखिर कितना प्रयास करती?

वह थककर पेड़ के नीचे बैठ गई और ललचाई नज़रों से अंगूर को देखने लगी. वह समझ कई कि अंगूर तक पहुँचना उसने बस के बाहर है. इसलिए कुछ देर अंगूरों को ताकने के बाद वह उठी और वहाँ से जाने लगी.

वह अंगूर खाने का विचार त्याग चुकी थी. पास ही एक पेड़ पर बैठा बंदर उसे बहुत देर से देख रहा था. उसे जाते हुए देख वह खुद को रोक नहीं पाया और पूछ बैठा, “क्या हुआ लोमड़ी बहन? वापस क्यों जा रही हो? अंगूर नहीं खाओगी?”

लोमड़ी रुकी और बंदर को देखकर फीकी मुस्कान से साथ बोली, “नहीं बंदर भाई. मैं ऐसे अंगूर नहीं खाती. ये तो खट्टे हैं.”

सीख 

जब हम किसी चीज़ को प्राप्त नहीं कर पाते, तो अपनी कमजोरियाँ को छुपाने या अपने प्रयासों की कमी को नज़रंदाज़ करने अक्सर उस चीज़ में ही कमियाँ निकालने लग जाते हैं. जबकि आवश्यकता है, अपनी कमजोरियों को पहचान कर उसे दूर करने की, सूझ-बूझ से काम लेने की और सफ़ल होने तक अनवरत प्रयत्न करते रहने की. दूसरों पर दोष मढ़ने से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता. हासिल होता है : कड़े परिश्रम और प्रयासों से.

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लालची कुत्ता और हड्डी की कहानी 

एक भूखे कुत्ते को गाँव के एक कसाई ने दया कर हड्डी का एक टुकड़ा दे दिया. कुत्ते ने हड्डी का वह टुकड़ा मुँह में दबाया और ख़ुशी-ख़ुशी एकांत तलाशने चल पड़ा. एकांत में वह आराम से तृप्त होने तक हड्डी को चूसकर उसका स्वाद लेना चाहता था.

रास्ते में एक नदी पड़ी. कुत्ता जब नदी के किनारे से गुजरा, तो उसकी दृष्टि नदी के पानी पर दिखाई दे रही अपनी ही परछाई पर पड़ी. मूर्ख कुत्ते ने सोचा कि कोई दूसरा कुत्ता वहाँ मौजूद है, जो उसे घूर रहा है.

अपनी परछाई में उसे अपने मुँह में दबी हड्डी दिखाई दी और वह मूर्खतावश सोचने लगा कि दूसरे कुत्ते के पास भी हड्डी है. वह लालच से भर उठा और उस हड्डी को हथियाने अपना दिमाग लड़ाने लगा.

उसे अपनी शक्ति पर अभिमान था. उसके सोचा कि दूसरे कुत्ते को मैं भौंककर डरा दूंगा और हड्डी छीन लूंगा. अगर ये भौंकने से नहीं डरा, तो लड़ाई में तो मैं इसे हरा ही दूंगा.

उसके बाद वह नदी में दिख रही अपनी ही परछाई पर भौंकने लगा, जिससे उसके मुँह में दबी हड्डी पानी में गिर गई. कुत्ते के देखा कि दूसरे कुत्ते के मुँह में भी अब हड्डी नहीं थी. कुत्ते को अपनी मूर्खता का अहसास हो गया और वह मुँह लटकाकर वहाँ से चला गया. लालच ने उससे वह भी छीन लिया, जो उसके पास था.

सीख 

लालच बुरी बला है.

प्यासा कौआ की कहानी

गर्मियों के दिन थे. एक कौआ प्यास से बेहाल था और पानी की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहा था. किंतु कई जगहों पर भटकने के बाद भी उसे पानी नहीं मिला.

वह बहुत देर से उड़ रहा था. लगातार उड़ते रहने के कारण वह बहुत थक कर चूर हो चुका था. उधर तेज गर्मी में उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी. धीरे-धीरे वह अपना धैर्य खोने लगा. उसे लगने लगा कि अब उसका अंत समय निकट है. आज वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा. 

थकान के कारण अब उससे उड़ा नहीं जा रहा था. कुछ देर आराम करने वह एक मकान की छत पर बैठ गया. वहाँ उसने देखा कि छत के एक कोने में घड़ा रखा हुआ है. घड़े में पानी होने की आस में वह उड़कर घड़े के पास गया और उसके अंदर झांक कर देखा.

कौवे ने देखा कि घड़े में पानी तो है, किंतु इतना नीचे है कि उसकी चोंच वहाँ तक नहीं पहुँच सकती थी. वह उदास हो गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे घड़े में रखे पानी तक पहुँचे. लेकिन फिर उसने सोचा कि उदास होने से काम नहीं चलेगा, कोई उपाय सोचना होगा.

घड़े के ऊपर बैठे-बैठे ही वह उपाय सोचने लगा. सोचते-सोचते उसकी दृष्टि पास ही पड़े कंकड़ो के ढेर पर पड़ी. फिर क्या था? कौवे के दिमाग की घंटी बज गई. उसे एक उपाय सूझ गया.

बिना देर किये वह उड़कर कंकडों के ढेर पर पहुँचा और एक उनमें से एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े तक लाकर घड़े में डाल दिया. वह एक-एक कंकड़ अपनी चोंच से उठाकर घड़े में लाकर डालने लगा. कंकड़ डालने से घड़े का पानी ऊपर आने लाग. कुछ देर में ही घड़े का पानी इतना ऊपर आ गया कि कौआ उसमें चोंच डालकर पानी पी सकता था. कौवे की मेहनत रंग लाई थी और वह पानी पीकर तृप्त हो गया.

सीख 

“चाहे समय कितना ही कठिन क्यों न हो, धैर्य से काम लेना चाहिए और उस कठिनाई से निकलने के लिए बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए. धैर्य और बुद्धि से हर समस्या का निवारण संभव है. “

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टोपीवाला और बंदर की कहानी

एक गाँव में एक आदमी रहता था. टोपी बेचना उसका काम था. अपने गाँव के साथ ही वह आस-पास के दूसरे गाँवों में भी घूम-घूमकर टोपियाँ बेचा करता था. वह रोज़ सुबह एक बड़ी सी टोकरी में ढेर सारी रंग-बिरंगी टोपियाँ भरता और उसे सिर पर लादकर घर से निकल जाता. सांझ ढले सारी टोपियाँ बेचकर वह घर वापस आता था.

एक दिन अपने गाँव में टोपियाँ बेचने के बाद वह पास के एक दूसरे गाँव जा रहा था. दोपहर का समय था. वह थका हुआ था और उसका गला भी सूख रहा था. रास्ते में एक स्थान पर कुआँ देख वह रुक गया. कुएं के पास ही बरगद का एक पेड़ था, जिसके नीचे उसने टोपियों की टोकरी रख दी और कुएं से पानी निकालकर पीने लगा.

प्यास बुझ जाने के बाद उसने सोचा कि थोड़ी देर सुस्ताने के बाद ही आगे बढ़ना ठीक होगा. उसने टोकरी में से एक टोपी निकाली और पहन ली. फिर बरगद के पेड़ के नीचे गमछा बिछाकर बैठ गया. वह थका हुआ तो था ही, जल्दी ही उसे नींद आ गई.

वह खर्राटे मारते हुए सो रहा था कि शोर-शराबे से उसकी नींद उचट गई. आँख खुली, तो उसने देखा कि बरगद के पेड़ के ऊपर ढेर सारे बंदर उछल-कूद कर रहे हैं. वह यह देखकर चकित रहा गया कि उन सब बंदरों के सिर पर टोपियाँ थीं. उसने अपनी टोपियों की टोकरी की ओर दृष्टि डाली, तो सारी टोपियाँ नदारत पाई.

चिंता में वह अपना माथा पीटने लगा. सोचने लगा कि अगर बंदर सारी टोपियाँ ले गए, तो उसे बड़ा नुकसान हो जायेगा. उसे माथा पीटता देख बंदर भी अपना माथा पीटने लगे. बंदरों को नक़ल उतारने की आदत होती है. वे टोपीवाले की नक़ल उतार रहे थे.

बंदरों को अपनी नक़ल उतारता देख टोपीवाले को टोपियाँ वापस प्राप्त करने का एक उपाय सूझ गया. उपाय पर अमल करते हुए उसने अपने सिर से टोपी उतारकर फेंक दी. फिर क्या था? बंदरों ने भी अपनी-अपनी टोपियाँ उतारकर फ़ेंक दी. टोपीवाले ने झटपट सारी टोपियाँ टोकरी में इकठ्ठी की और आगे की राह पकड़ ली.

सीख

सूझबूझ से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है.

सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी

एक गाँव में एक किसान अपनी पत्नि के साथ रहता था. उनका एक छोटा सा खेत था. किसान और उसकी पत्नी दिन भर खेत में कड़ी मेहनत किया करते थे. किंतु कड़ी मेहनत के बाद भी खेती से होने वाली आमदनी उनके गुजर बसर के लिए पर्याप्त नहीं थी. दोनों बड़ी मुश्किल से अपनी जीविका चला रहे थे और निर्धनता का जीवन व्यतीत करने पर विवश थे.

एक दिन किसान की मुलाक़ात गाँव के एक विवाह समारोह में अपने एक पुराने मित्र से हुई. उसे देखकर किसान बहुत ख़ुश हुआ. दोनों कई सालों बाद मिले थे. इसलिए बैठकर बातें करने लगे. इन सालों में किसान के मित्र ने काफ़ी धन कमाया था और उसकी गिनती अपने गाँव के धनि व्यक्तियों में होती थी. किसान उसके ठाठ-बाट देखकार बहुत ख़ुश हुआ और उससे उसकी उन्नति का कारण पूछा.

मित्र ने बताया कि किसानी के साथ-साथ वह मुर्गियों के अंडों के क्रय-विक्रय का व्यापार करता है और साथ ही साथ उसका दूध विक्रय का भी व्यापार है. यही उसकी उन्नति का कारण है.

ये सुनकर किसान ने उसे अपना दुखड़ा सुनाया कि कैसे वह बड़ी मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहा है. तब मित्र ने उसे अंडों का व्यापार प्रारंभ करने की सलाह दी. किसान ने कहा कि उसके पास मुर्गियाँ खरीदने के लिए भी धन नहीं है, तो वह व्यापार कहाँ से शुरू कर पायेगा.

तब मित्र ने उसे कुछ धन उधार दिया, ताकि वह मुर्गियाँ खरीद सके. किसान ने उसका धन्यवाद किया और आश्वासन दिया कि व्यापार फलने-फूलने पर वह उसका धन वापस कर देगा.

उसी शाम किसान ने बाज़ार से कुछ मुर्गियाँ ख़रीदी और उन्हें लेकर घर पहुँचा. पत्नी ने जब मुर्गियाँ देखी, तो चकित हुई. तब किसान के उसे बताया कि इन मुर्गियों से जो अंडे मिलेंगे, वह उन्हें बेचकर धन अर्जित करेगा. पत्नी उसकी योजना सुनकर ख़ुश हो गई. उसी समय दोनों ने साथ मिलकर घर के आंगन में एक छोटा-सा दड़बा बनाया और उसमें मुर्गियों को उसमें रख दिया. दोनों थक कर चूर थे. खाना खाकर वे रात में गहरी नींद सोये.

सुबह होने पर दोनों ने जब मुर्गियों के दड़बे में झांककर देखा, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. वहाँ अन्य अंडों के साथ एक सोने का अंडा भी पड़ा हुआ था. किसान ने अंडा उठा लिया. पत्नी ने उससे कहा कि वह उसे जौहरी के पास बेच आये. 

किसान ने सोने का अंडा जौहरी को बेच दिया, बदले में उसे अच्छी कीमत मिली. वह ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आया.

अगले दिन जब उन्होंने फिर दड़बे में झांका, तो फिर से वहाँ सोने का अंडा पड़ा हुआ देखा. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि उनके द्वारा पाली जा रही मुर्गियों में से एक चमत्कारी मुर्गी है. वह चमत्कारी मुर्गी सोने का अंडा देती है. किंतु वे उस चमत्कारी मुर्गी को पहचानते नहीं थे. इसलिए दोनों ने रात में पहरेदारी करने का निश्चय किया. 

उस रात दोनों सोये नहीं, बल्कि दड़बे की पहरेदारी करते रहे और उस सोने का अंडा देने वाली चमत्कारी मुर्गी को पहचान गए. उस दिन के बाद से वे उसका ख़ास ख़याल रखने लगे. उस मुर्गी से उन्हें रोज़ सोने का अंडा मिलने लगा, जिसे जौहरी को बेचकर किसान को अच्छे पैसे मिलने लगे. कुछ ही महीनों में सोने के अंडों की वजह से किसान ने ढेर सारा धन अर्जित कर लिया और उनकी गिनती गाँव के घनी व्यक्तियों में होने लगी.

अब किसान अपने जीवन से संतुष्ट था. किंतु उसकी पत्नि लोभी प्रवृत्ति की थी. एक दिन वह किसान से बोली, “आखिर कब तक हम रोज़ एक ही सोने का अंडा प्राप्त करते रहेंगे. क्यों न हम मुर्गी के पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लें? इस तरह हम उन्हें बेचकर एक बार में इतने धनवान हो जायेंगे कि हमारी सात पुश्तें आराम का जीवन जियेंगी.”

पत्नि की बात सुनकर किसान के मन में भी लोभ घर कर गया. उसने मुर्गी को मारकर उसके पेट से एक साथ सारे अंडे निकाल लेने का मन बना लिया.

उसने पत्नी से कहा कि मैं बाज़ार जाकर एक बड़ा चाकू ख़रीद लाता हूँ. आज रात ही हम चमत्कारी मुर्गी के पेट से सारे सोने के अंडे निकाल लेंगे. इसके बाद वह बाज़ार गया और चाकू खरीद लाया. घर आकर उसने चाकू की धार तेज की, ताकि मुर्गी का पेट काटने में कोई समस्या न आये.

उसके बाद वह अपनी पत्नी के साथ रात होने का इंतज़ार करने लगा. रात होते ही दोनों मुर्गियों के दड़बे में गए. वहाँ देखा कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी सो रही है. किसान ने उस मुर्गी को पकड़कर दड़बे से बाहर निकाल लिया. फिर आव देखा न ताव और एक ही वार में उसका पेट चीर दिया.

उसके बाद किसान और उसकी पत्नी ने उत्सुकता से मुर्गी के पेट में देखा, लेकिन वह भीतर से सामान्य मुर्गियों की तरह ही थी. उसके पेट में सोने के अंडे नहीं थे. यह देखकर किसान और उसकी पत्नि अपनी गलती पर पछताने लगे. अधिक सोने के अंडों के लोभ में पड़कर वे रोज़ मिलने वाले एक सोने के अंडे से भी हाथ धो बैठे थे.

सीख 

लालच बुरी बला है.        

मेहनती चींटी और आलसी टिड्डा की कहानी

गर्मी का दिन था. सुबह की खिली धूप में एक टिड्डा बड़े मज़े से घास पर फ़ुदक रहा था. वह बड़ा ख़ुश था और उस ख़ुशी में गा रहा था, नाच रहा था और ज़िंदगी के मज़े ले रहा था.

एक ओर जहाँ टिड्डा अपनी मस्ती में लगा हुआ था, वहीं दूसरी ओर एक चींटी अनाज के एक दाने को पीठ पर ढोकर अपने बिल में ले जा रही थी. जब चींटी टिड्डे के पास से गुज़री, तो टिड्डे ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, “प्यारी चींटी आओ मज़े करें”

लेकिन चींटी ने मना कर दिया और अपने काम में लगी रही. वह पूरे दिन कड़ी मेहनत कर एक-एककर अनाज का दाना खेत से उठाकर अपने बिल तक ले जाती रही.

अपनी मस्ती में डूबा टिड्डा चींटी को देखता और हँसता. वह बार-बार उसे अपने पास बुलाता और कहता, “प्यारी चींटी, तुम क्यों इतनी मेहनत कर रही हो? आओ, कुछ देर आराम करो, मेरा गाना सुनो. गर्मी के लंबे और उजले दिन है. ऐसे ख़ूबसूरत दिन इस तरह से मेहनत करके हुए क्यों बर्बाद करना?”

चींटी बोली, “मैं ठंड के मौसम के लिए भोजन इकट्ठा कर रही हूँ. मेरी सलाह मानो, तो तुम भी ऐसा ही करो. वरना बाद में पछताओगे.”

“अभी से ठंड के मौसम के बारे में क्यों चिंता करना?” टिड्डा बोला, “मेरे पास पर्याप्त भोजन है और ठंड का मौसम तो अभी बहुत दूर है. उसकी तैयारी करने के लिए बहुत समय है. अभी का समय तो मैं आराम से सोते हुए और मज़े करते हुए बिताना चाहता हूँ. मेरी मानो तो मेहनत छोड़ो और मज़े करो.”

टिड्डे की बात पर ध्यान न देकर चींटी अपने काम में लगी रही. पूरी गर्मी मेहनत कर उसने अपने बिल में ढेर सारा अनाज इकट्ठा कर लिया, जो ठंड के दिनों में उसे काम आने वाला था.

उधर टिड्डा ठंड के मौसम की तैयारी के स्थान पर पूरे दिन नाचता-गाता रहा. अपनी मस्ती में उसे होश ही नहीं रहा कि गर्मी के दिन बहुत लंबे समय तक नहीं रहने वाले हैं. जल्द ही ठंड के दिन और फिर बरसात के दिन आ जायेंगे, जो उस जैसे जीवों के लिए मुश्किल भरे दिन होंगे.

धीरे-धीरे गर्मी चली गई और वसंत का मौसम आ गया. फिर वसंत का मौसम ठंड में तब्दील हो गया. अब तो सूरज बमुश्किल आसमान में नज़र आता. दिन छोटे हो गए और रातें बड़ी हो गई थी. कड़कड़ाती ठंड पड़ने लगी थी और बर्फ़बारी होने लगी थी.

अब टिड्डे को महसूस हुआ कि चींटी सही कह रही थी. उसे भी इस मौसम के लिए पहले से तैयारी करनी चाहिए थी. लेकिन वह तो पूरी गर्मी नाचता-गाता और मज़े करता रहा. अब न उसे गाना गाने का मन कर रहा था, न ही नाचने का. उसका भोजन ख़त्म हो चुका था. वह ठंड और भूख से तड़प रहा था.

उसने सोचा नहीं था कि ठंड इतनी बुरी भी हो सकती है. उसके पास भोजन नहीं था. बर्फ़ से बचने का इंतज़ाम नहीं था. उसे लगने लगा कि जिस गर्मी के मौसम में उसने इतने मज़े किये हैं, शायद अब अगली बार उस मौसम को देखने के लिए वह जिंदा ही न बचे.        

एक दिन भूख से तड़पते हुए बर्फ़ीले मौसम में उसकी नज़र चींटी पर पड़ी, जो अपने बिल में मज़े से आराम कर रही थी. उसके पास पर्याप्त भोजन था और ठंड से बचने के लिए आसरा. टिड्डा पछताने लगा और रोने लगा. उसे समय बर्बाद करने का फ़ल मिल चुका था.

सीख 

समय का सदुपयोग करें, अन्यथा समय हाथ से निकल जाने पर पछतावे के सिवाय कुछ हाथ नहीं आता.

लोमड़ी और सारस की कहानी 

एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी. उसे दूसरे जानवरों को मूर्ख बनाने में बड़ा आनंद प्राप्त होता था. वह आये-दिन कोई न कोई युक्ति सोचती और किसी न किसी जानवर को उसमें फंसाकर मज़े लिया करती थी. जंगल के सारे जानवर उसका स्वभाव समझ चुके थे. इसलिए उससे कन्नी काटने लगे थे.

एक दिन एक सारस जंगल में आया और नदी किनारे रहने लगा. लोमड़ी के नज़र जब सारस पर पड़ी, तो वह सोचने लगी – जंगल के दूसरे जानवर तो मुझसे कन्नी काटने लगे हैं. ये सारस जंगल में नया आया प्रतीत होता है. क्यों न इसे मूर्ख बनाकर मज़े लूं?

वह सारस के पास गई और बोली, “मित्र! इस जंगल में नये आये मालूम पड़ते हो. तुम्हारा स्वागत है.”

“सही पहचाना मित्र. मुझे यहाँ आये अभी कुछ ही दिन हुए हैं. मैं यहाँ किसी से परिचित भी नहीं हूँ. तुमने मेरा स्वागत किया, इसलिए तुम्हारा धन्यवाद.” सारस ने उत्तर दिया.

लोमड़ी ने सारस के समक्ष मित्रता का प्रस्ताव रखा. सारस का उस जंगल में कोई मित्र नहीं था. उसने लोमड़ी की मित्रता स्वीकार कर ली. लोमड़ी ने उससे मीठी-मीठी बातें की और वापस जाते-जाते अपने घर भोज के लिए आमंत्रित कर गया.

नियत दिन को उपहार लेकर सारस लोमड़ी के घर पहुँचा. लोमड़ी उसका स्वागत करते हुए बोली, “आओ मित्र! आज मैंने तुम्हारे लिए स्वादिष्ट खीर तैयार की है.”

अंदर बुलाकर उसने दो तश्तरियां लगाई और उसमें खीर परोस दी. लंबी चोंच वाले सारस ने तश्तरी से खीर खाने का प्रयास किया, लेकिन खा नहीं पाया. उधर लोमड़ी झटपट तश्तरी में से खीर चाट गई.

अपनी तश्तरी में से खीर ख़त्म करने के बाद वह सारस से बोली, “खीर तो बहुत स्वादिष्ट है मित्र. लेकिन तुम खा क्यों नहीं रहे हो?”

सारस संकोचवश बस इतना ही कह पाया, “आज मेरे पेट में दर्द है मित्र. इसलिए मैं ये स्वादिष्ट खीर खा नहीं पाया. लेकिन भोज के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद.”

सारस अपमान का घूंट पीकर वहाँ से चला आया. उधर लोमड़ी सारस को मूर्ख बनाकर बहुत खुश हुई.

कुछ दिनों बाद सारस ने लोमड़ी को भोज पर आमंत्रित किया. नियत दिन को लोमड़ी बिना कोई उपहार लिए ही सारस के घर पहुँच गई. सारस के उसे अंदर बुलाया और बोला, “मित्र! मैंने भी भोज में खीर बनाया है. आशा है तुम्हें उसका स्वाद पसंद आएगा.”

खीर सुनकर लोमड़ी के मुँह में पानी आ गया और वह खीर परोसने की प्रतीक्षा करने लगी. कुछ देर में सारस ने सुराही में खीर भरकर परोस दी. सुराही में खीर देखकर लोमड़ी का मुँह उतर गया. उसके लिए सुराही से खीर खा पाना असंभव था. वह चुपचाप सारस का मुँह देखने लगी, जो अपनी लंबी चोंच से झटपट सुराही में रखा खीर पी गया.

खीर ख़त्म कर सारस बोला, “क्या बात है मित्र? तुम खा क्यों नहीं रहे हो? क्या तुम्हें खीर पसंद नहीं?”

लोमड़ी समझ गई कि सारस ने उससे अपने अपमान का बदला लिया है. वह खिसियाते हुए बोली, “नहीं मित्र! वो क्या है कि आज मेरे पेट में दर्द है.” और वहाँ से भाग खड़ी हुई.

सीख 

इस कहानी से सीख मिलती है कि जैसा करोगे, वैसा भरोगे. जैसे को तैसा.   

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